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सौमित्र चटर्जी: रूपहले पर्दे पर अभिनय का छंद गढ़ने वाला अभिनेता
सौमित्र चटर्जी का दायरा इतना बड़ा है कि सत्यजीत रे को छोड़कर शायद ही कोई फिल्मकर्मी-संस्कृतिकर्मी उनके बराबर खड़ा हो सकता है।
दीपक के मंडल
16 Nov 2020
‘बेला शेषे’ के एक दृश्य में सौमित्र 
‘बेला शेषे’ के एक दृश्य में सौमित्र 

बंगाली फिल्मों से अपरिचित कोई शख्स यह सवाल कर सकता है कि सौमित्र चटर्जी क्या थे? लेकिन महान फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्मों का चेहरा माने जाने वाले सौमित्र चटर्जी के बारे में यह सवाल सही रहेगा कि  वह क्या नहीं थे? एक दिन पहले, इस दुनिया को अलविदा कह चुके सौमित्र चटर्जी के बारे में दिग्गज फिल्मकार और अभिनेत्री अपर्णा सेन ने कहा कि बंगाली संस्कृति के आकाश ने अपना सबसे चमकदार सितारा खो दिया।

दादा साहेब फाल्के, पद्म भूषण, फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान से लेकर  फिल्म फेयर, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी जैसे सम्मान से सम्मानित चटर्जी सिर्फ अभिनेता नहीं थे। उनका दायरा कवि, निबंधकार, संपादक, पटकथा लेखक, चित्रकार और कला विशेषज्ञ, खिलाड़ी से लेकर एक सजग राजनीतिकर्मी तक का था। खुद बहुमुखी प्रतिभा के धनी सत्यजीत रे ने कहा था कि सौमित्र हमारे जमाने के रवींद्र नाथ टैगोर हैं। उन्हें सिर्फ दाढ़ी लगाना बाकी है। जिंदगी भर अपनी वाम चेतना को लेकर सजग रहने वाले सौमित्र ने जब भी जरूरत पड़ी इस देश की साझा विरासत और जनवाद के पक्ष में आवाज उठाई। देश में मॉब लिचिंग को रोकने के लिए उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी और कुछ दिनों बाद खुद कोरोनावायरस का शिकार होने से पहले कवि वरवर राव को जिला से रिहा करने की भी अपील की।

1959 में फिल्म ‘अपुर संसार’ के सेट पर सत्यजीत रे और सौमित्र चटर्जी। साभार : ट्विटर

सत्यजीत रे की फिल्मों का चेहरा

सौमित्र दा की सबसे बड़ी पहचान सत्यजीत रे के पसंदीदा अभिनेता के तौर पर रही है। रे, जो अपनी फिल्म की कास्टिंग के लिए काफी चूजी माने जाते थे और शायद ही अपनी फिल्मों में किसी एक्टर को दोहराते थे उनका एक के बाद एक सौमित्र को अपनी 14 अहम फिल्मों में लेना एक अचंभा माना जाता है। रे के साथ उनकी अभिनय यात्रा ‘अपु त्रयी’ (Apu Trilogy ) से शुरू हुई थी और खुद उन्हीं के शब्दों में अगर रे जीवित रहते तो उनकी आखिरी फिल्म में वही अहम भूमिका निभाते।

सौमित्र, रे को अपना टीचर मानते थे। एक इंटरव्यू में सौमित्र ने उनके साथ अपने कामकाजी रिश्तों का जिक्र कहते हुए कहा था, “ रे ने मुझे कभी यह नहीं कहा कि इस तरह की एक्टिंग करो या उस तरह की एक्टिंग करो। लेकिन हमारे बीच काफी अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी और हमारी वेबलेंग्थ मिलती थी। शायद यह बात उन्हें पता थी कि मेरे अंदर उनकी फिल्मों की अलग-अलग भूमिकाओं को निभाने की आग है। हो सकता है मैं ऐसा एक्टर था जिसे रे आसानी से अपने सांचे में ढाल सकते थे। यही वजह है कि मैं उनकी फिल्म फिल्म अशनी संकेत में एक ग्रामीण पुरोहित से लेकर जासूसी फेलू दा और अरण्येर दिन रात्रि के शहरी बंगाली बाबू की भूमिकाओं को सहज ढंग से निभा पाया। रे जीनियस थे। शायद हमारे अंदर पढ़े-लिखे बंगाली मध्यवर्ग और टैगोर की साझा विरासत थे। हो सकता यही हमारे खास रिश्तों की बुनियाद रही हो।”

सौमित्र चटर्जी को निर्देशित करते रे

‘द टेलीग्राफ’ में फिल्म क्रिटिक सैबाल चटर्जी ने उनके बारे में लिखा कि अगर रे एक वटवृक्ष थे तो सौमित्र इसकी शाखाएं, जो बाद में खुद एक गहरी जड़ों वाला वृक्ष बन गया। ऐसा वृक्ष जो बरसों तक बिना रुके बढ़ता रहा। अपने फूलों से एक लंबे वक्त तक देश-दुनिया की संस्कृति को महकाता रहा। 1990 के दशक के आखिर में फ्रेंच फिल्ममेकर कैथरीन बर्ग ने सौमित्र पर एक डॉक्यूमेंटरी बनाई। नाम रखा- ‘गाछ’ यानी पेड़। सैबाल लिखते हैं अब पेड़ हमारे पास नहीं है लेकिन इसके फल और फूल वर्षों तक हमारे साथ रहेंगे।

रे के दायरे के बाहर

सौमित्र चटर्जी को भले ही रे की फिल्मों से सबसे ज्यादा ख्याति और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली और उन्होंने भी रे की एक-एक फिल्म के लिए वर्षों तक इंतजार किया लेकिन इसके बाहर भी उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता से लोगों को चमत्कृत किया। न्यूज़क्लिक में सौमित्र चटर्जी को श्रद्धांजलि देते हुए बिजनेस स्टैंडर्ड के पूर्व संपादक एके भट्टाचार्य ने लिखा, “ सौमित्र को सिर्फ रे की फिल्मों में यादगार भूमिका निभाने वाले अभिनेता के तौर पर याद करना नाइंसाफी होगी। अपने छह दशक के फिल्म करियर में उन्होंने 300 से ज्यादा फिल्में कीं। रे की फिल्मों से बाहर भी उन्होंने कई फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया। वह इसकी परवाह नहीं करते थे कि रोल हीरो का है विलेन का। ‘जिंदेर बंदी’ और ‘अपरिचिता’ में उनके सामने उस दौर के सुपरस्टार उत्तम कुमार थे। कोई भी एक्टर ये फिल्में नहीं करना चाहता क्योंकि सारा क्रेडिट उत्तम कुमार ले जाते। लेकिन सौमित्र ने इसकी परवाह नहीं की। बाद में पर्दे पर दर्शकों ने देखा कि सौमित्र किस तरह उत्तम कुमार के हाथ से ये दोनों फिल्में खींच कर ले गए। सौमित्र के किसी भी फिल्म को देख कर उनके अभिनय की गहराई का अंदाजा लगाया जा सकता है। चाहे वह ‘अशनी संकेत’ का ग्रामीण पुरोहित हो या ‘गणशत्रु’ का लोगों की भलाई के लिए काम करने वाला  तर्कवादी, प्रतिबद्ध डॉक्टर।

बंगाल के अकाल पर बनी फिल्म ‘अशनी संकेत’ का दृश्य

सौमित्र चटर्जी ने एक समय में भारतीय सिनेमा की सबसे खूबसूरत महिलाओं के साथ काम किया। शर्मिला टैगोर, सुचित्रा सेन, माधवी मुखर्जी, वहीदा रहमान के साथ उन्होंने कई फिल्मों में बड़ा ही ग्रेसफुल अभिनय किया। चारुलता में माधवी मुखर्जी और अभियान में वहीदा रहमान के साथ उनके अभिनय को कौन भूल सकता है।

बलराज साहनी के अभिनय और शशि कपूर की दोस्ती के कायल

अभिनय की बुलंदियों को छूने के बावजूद सस्ती कॉमर्शियल फिल्मों की ओर उन्होंने शायद ही रुख किया। यहां तक कि बेहद समृद्ध परंपरा वाली हिंदी फिल्मों में उन्होंने अभिनय नहीं किया।

अच्छे ऑफर के बावजूद वह हिंदी फिल्में क्यों नहीं कर पाए? इस पर उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, “जिन दिनों मेरी फिल्मों के प्रति दिलचस्पी पैदा हुई उन दिनों मेरे सामने वितोरियो दी सिका और फेदेरिको फेलिनी और दूसरे नई न्यू एज फिल्म मेकर्स की फिल्में थीं, जिसने मेरे लिए एक नई खिड़की खोली। मैं इसी तरह की फिल्में करना चाहता था। हालांकि छोटी उम्र से मैं हिंदी फिल्में देखना लगा था। दिलीप साहब और कुछ हद तक राजकपूर मेरे फेवरिट एक्टर थे। लेकिन मेरे अवचेतन को जिस एक हिंदी फिल्म एक्टर ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह थे- बलराज साहनी। हिंदी फिल्म की वह अब तक बेहतरीन प्रतिभा थे। मैं आज भी उन्हें अपना आदर्श मानता हूं।”

थियेटर के बैकग्राउंड और वर्ल्ड सिनेमा की वजह से शशि कपूर के साथ उनकी अच्छी दोस्ती थी। सौमित्र ने एक इंटरव्यू में कहा था, " शशि कपूर भी थियेटर की दुनिया से आए थे। हालांकि बाद में वह फिल्मों की ओर चले गए लेकिन उन्हें पता होता था कि थियेटर और वर्ल्ड सिनेमा में क्या चल रहा है।" पिछले कुछ साल पहले उन्होंने शशि कपूर को याद करते हुए उनके साथ अपनी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर साझा की थी। इस तस्वीर के बारे में पूछे जाने पर कहा “यह तस्वीर बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में ली गई थी। यह फोटो सत्यजीत रे ने 1965 में बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में खींची थी। सौमित्र की फिल्म 'चारुलता' और शशि कपूर कि फिल्म ' शेक्सपियर वाला'  दोनों बर्लिन फेस्टिवल में दिखाई गई थीं। शशि कपूर बेहद हैंडसम, आकर्षक और जिंदादिल अभिनेता थे।”

चिर कवि सौमित्र

बंगाल के कई दिग्गज संस्कृतिकर्मियों की तरह सौमित्र फिल्मों में रह कर भी इसके ग्लैमर और तड़क-भड़क से दूर रहे। तीन दशकों तक वह सरकारी मकान में रहे। अपने आउटहाउस में बना उनकी स्टडी वह जगह थी, जहां से वह लिखने-पढ़ने का सारा काम करते थे। उनमें कोई स्टारडम नहीं था। दुनिया के नामी फिल्मकारों के चहेते सौमित्र को आराम से सब्जी खरीदते, आम लोगों से बातें करते और सड़क चलते लोगों को भी अपने घर बुला कर उनसे बात करते हुए देखा जा सकता था।

हिंदी और दूसरी भाषाओं की फिल्म न करने एक बड़ी वजह यह भी थी कि वह फिल्मों में ज्यादा व्यस्त रह कर लिखने-पढ़ने का काम नहीं रोकना चाहते थे। अभिनेता के साथ वह एक कवि और संपादक भी थे। उन्होंने आठ-दस किताबें लिखीं और उनके कई कविता-संग्रह आए। सौमित्र एक और विधा के लिए इतिहास में अपना नाम अमर कर गए हैं। उन्होंने रहस्यमयी प्रेम कविताओं के बंगाली कवि जीवनानंद दास और रवींद्र नाथ टैगोर की कविताओं के पाठ को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। उन्होंने इन कविताओं को ऐसा भावपूर्ण पाठ किया है कि आप मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। फिर वर्षों तक आपके अंदर ये कविताएं छाई रहती हैं। मानों उनका कोई नशा वर्षों तक आपको मदहोश किए हुए हो। सौमित्र चटर्जी का दायरा इतना बड़ा है कि सत्यजीत रे को छोड़ कर शायद ही मौजूदा वक्त का कोई संस्कृतिकर्मी उनके बराबर खड़ा हो सकता है।

इतना होने के बावजूद सौमित्र चटर्जी आसान जिंदगी नहीं जी रहे थे। प्रोस्टेट कैंसर से वह जूझ चके थे। उनकी पत्नी बीमार थी। बेटी उनके साथ रहती थी। नाती रणदीप बोस बाइक एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल होकर कोमा में चले गए थे। उनकी कई वित्तीय जरूरतें थीं, जिन्हें उनके लिए पूरा करना जरूरी था। लेकिन उन्होंने अपने काम की गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया। अपर्णा सेन कहती हैं कि बंगाल के निर्देशकों की ओर दिए जाने वाले कम पारिश्रमिक के बावजूद सौमित्र ने कभी भी अर्थपूर्ण फिल्मों का साथ नहीं छोड़ा। दूसरे अभिनेताओं की तरह वह कभी भी न गॉसिप करते दिखे और न ही ड्रिंक लेते दिखे। उसके उलट वह कभी डिजाइन बनाते। पेंटिंग करते, कविताएं और नाटक लिखते और उनका डायरेक्शन करते दिखे। उनकी एक कविता का ढीला-ढाला अनुवाद कुछ इस तरह है-

मेरे सपनों में जो अंधेरा

मेरे सीने तक चला आया है

ये वो सपना तो नहीं, जिसकी मुझे चाहत थी

मैं तो चाहता था लंबी यात्राएं करना

एक महादेश से दूसरे महादेश तक

प्रेम का सपना लिए

ताकि मैं एक बार तुम्हें प्यार कर सकूं

ना, ना एक बार नहीं

दो बार नहीं

लाखों-करोड़ों बार

-----

Soumitra Chatterjee
West Bengal
Indian film actor
director
playwright
writer
poet

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