NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कला
रंगमंच
भारत
राजनीति
सफ़दर भविष्य में भी प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे
12 अप्रैल, सफ़दर हाशमी जयंती और ‘राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस’ पर विशेष।
ज़ाहिद खान
12 Apr 2022
Safdar Hashmi

रंगकर्मी सफ़दर हाशमी का नाम जे़हन में आते ही ऐसे रंगकर्मी का ख़याल आता है, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी नुक्कड़ नाटक के लिए कु़र्बान कर दी। सफ़दर हाशमी ने बच्चों के लिए कई मानीख़ेज गीत लिखे, देश के ज्वलंत मुद्दों पर पोस्टर्स बनाए, फ़िल्म फे़स्टिवल्स आयोजित किए, एक टेलीविज़न धारावाहिक किया, डाक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाईं और उनके लिए गीत लिखे, सम—सामयिक लेख लिखे, ब्रेख़्त की कविताओं का बेहतरीन अनुवाद किया लेकिन उनकी असल शिनाख़्त एक थिएटर आर्टिस्ट के तौर पर ही रही।

सफ़दर हाशमी ने नुक्कड़ नाटक को हथियार की तरह इस्तेमाल किया। उन्होंने न सिर्फ़ समसामयिक मुद्दों पर गहरे व्यंग्यात्मक अंदाज़ में नुक्कड़ नाटक लिखे, बल्कि उन्हें बेहद ज़िंदादिल अंदाज़ में हिंदुस्तानी अवाम के सामने पेश किया। उनका अंदाज़ कुछ ऐसा होता था कि वे आम लोगों से सीधा रिश्ता जोड़ लेते थे। नुक्कड़ नाटक में यही सफ़दर हाशमी की कामयाबी का राज था। वह सोलह साल तक ‘जन नाट्य मंच’ (जनम) से जुड़े रहे। उनकी इस नाट्य मंडली ने नाट्य कला के एक अलग ही रूप नुक्कड़ नाटक को जनता तक सीधे पहुंचाने का सशक्त माध्यम बनाया।

एक लिहाज़ से कहें, तो सफ़दर हाशमी ने नुक्कड़ नाटक को एक नई पहचान दी। दरअसल, आज़ादी से पहले भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) ने देश में जो सांस्कृतिक आंदोलन चलाया, नुक्कड़ नाटक उसी आंदोलन की देन है। सफ़दर और उनकी नाट्य मंडली ‘जन नाट्य मंच’ ने इस नाट्य-विधा को जन-जन तक पहुंचाया। सफ़दर हाशमी के नुक्कड़ नाटकों की मक़बूलियत का आलम यह था कि उनका एक-एक नाटक सैकड़ों बार खेला गया और आज भी इन नाटकों का सफलतापूर्वक प्रदर्शन होता है। सफ़दर की ज़िंदगी में ही उनके लिखे और निर्देशित ‘औरत’, ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’, ‘राजा का बाजा’ और ‘हल्ला बोल’ जैसे नुक्कड़ नाटकों का हज़ार से ज़्यादा बार प्रदर्शन हुआ था। 12 अप्रैल, सफ़दर हाशमी का जन्मदिन, हर साल ‘राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है।

सफ़दर हाशमी ने अपनी नाट्य मंडली ‘जन नाट्य मंच’ की ओर से अक्टूबर, 1978 में पहला नुक्कड़ नाटक खेला। साल 1988 तक वे लगातार इससे जुड़े रहे। इस दौरान ‘जनम’ ने देश के तक़रीबन 90 शहरों में अलग-अलग 22 नाटकों की 4300 से ज़्यादा प्रस्तुतियां की, जिन्हें लाखों दर्शकों ने देखा। उनका नाट्य दल कम अरसे में ही भारतीय रंगमंच का अभिन्न अंग बन गया। यह वाक़ई एक बड़ी कामयाबी थी।

सफ़दर हाशमी नुक्कड़ नाटक की अहमियत को अच्छी तरह से समझते थे। साल 1917 की रूसी क्रांति, चीन की साम्यवादी क्रांति, स्पेन में गृहयुद्ध के दौरान, लैटिन अमरीका और अफ्रीका में राष्ट्रीय मुक्ति संग्राम के दौरान नाट्य मंडलियों ने अपने नुक्कड़ नाटकों से अवाम को राष्ट्रवादी ताकतों के पीछे लामबंद करने का काम किया था। खु़द हमारे देश में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) ने उपनिवेशवाद-विरोधी संघर्ष में अवाम को जोड़ने का काम किया था। यही वजह है कि सफ़दर हाशमी ने नुक्कड़ नाटक को ही अपनी बात कहने का माध्यम चुना। उन्होंने अपने नाटकों से अवाम को आंदोलित कर, संघर्षरत संगठनों के पीछे लामबंद किया। नुक्कड़ नाटक करने के पीछे सफ़दर हाशमी के ऊंचे ख़यालात और यह पुख़्ता यक़ीन था,‘‘ऐसे समय में जब सामुदायिक मनोरंजन के सभी रूप तेज़ी से गायब होते जा रहें हैं, जब दूरदर्शन और वीडियो डिब्बाबंद मनोरंजन छोटे परिवारों और अकेले दर्शकों को परोस रहे हैं, नुक्कड़ नाटक ऐसी कला को पुनर्जीवित कर रहा है, जिसका सामुदायिक स्तर पर ढेर सारे दर्शक आनंद उठा सकते हैं।’’ (किताब-‘सफ़दर’, लेख-‘नुक्कड़ नाटक के आरंभिक दस वर्ष’, लेखक-सफ़दर हाशमी, पेज-48)

इसे भी पढ़ें:  भारतीय रंगमंच का इतिहास वर्ग संघर्षों का ही नहीं, वर्ण संघर्षों का भी है : राजेश कुमार

सफ़दर हाशमी रंगकर्म की हर विधा में माहिर थे। नाटक लिखने से लेकर, उसके लिए गाने लिखना, संगीत तैयार करना, अभिनय-निर्देशन उन्होंने सब कुछ किया। नुक्कड़ नाटक में संगीत, स्पेस, वेशभूषा वगैरह के इस्तेमाल में उन्होंने नए-नए प्रयोग किये। कम ख़र्च में जनता को बेहतर पेशकश कैसे दी जाए ?, यह उनका अहम सरोकार था। उस ज़माने में जब देश में प्रोसेनियम थियेटर का बोलबाला था, सफ़दर ने अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए नुक्कड़ नाटक को बख़ूबी अपनाया। सही मायनों में वह नुक्कड़ नाट्य विधा के पहले आइडियोलॉजिस्ट थे। सफ़दर हाशमी की कविताओं और जनगीत का भी कोई जवाब नहीं। ख़ास तौर से उनकी कविता ‘‘किताबें करती हैं बातें, बीते ज़माने कीं, दुनिया की इंसानों की।’’ मुहावरे की तरह इस्तेमाल की जाती है। वहीं उनका जनवादी गीत ‘‘पढ़ना लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों’’ साक्षरता आंदोलन में नारे की तरह प्रयोग होता है। सीधी, सरल ज़बान में लिखे गए इस गीत का हर अंतरा, आम अवाम को आंदोलित करने का काम करता है। यक़ीन न हो, तो गीत की एक छोटी सी बानगी,‘‘पढ़ना लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों/पढ़ना लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालों/क ख ग घ को पहचानो, अलिफ़ को पढ़ना सीखो/अ आ इ ई को हथियार बनाकर लड़ना सीखो/...पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक़ दिलवाना है/पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है।’’

सफ़दर हाशमी के गीतों की बात चली है, तो उनके एक गीत ‘‘औरतें उठी नहीं तो जुल्म बढ़ता जाएगा/जुल्म करने वाला सीनाज़ोर बनता जाएगा।’’ का ज़िक्र और ज़रूरी है। यह गीत उन्होंने राजस्थान के दिवराला सती कांड के बाद लिखा था। कहने की ज़रूरत नहीं, यह गीत भी महिला आंदोलनों में बतौर नारा इस्तेमाल होता है। ‘औरत’, ‘खिलती कलियां’ ‘आओ, ए पर्दानशीं’ आदि गीतों में भी सफ़दर हाशमी औरतों की आज़ादी और उनके साथ गैर बराबरी के सवाल दमदारी से उठाते हैं।

सफ़दर हाशमी की जानकारी का दायरा बेहद व्यापक था। किसी भी विषय पर वे धारा प्रवाह बात कर सकते थे। यही नहीं कई भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों पर उनकी गहरी पकड़ थी। कोई भी विषय हो, उस पर वे फ़ौरन नाटक लिख दिया करते थे। सफ़दर हाशमी का मानना था, नाट्य मंडली सामूहिक लेखन पद्धति से अच्छे नुक्कड़ नाटक लिख सकती हैं। आपस में विचार-विमर्श कर सामूहिक रचना-शक्ति से बेहतरीन नाटक तैयार किए जा सकते हैं। ‘जन नाट्य मंच’ के ‘मशीन’, ‘हत्यारे’, ‘औरत’, ‘राजा का बाजा’, ‘पुलिस चरित्रम्’ और ‘काला कानून’ जैसे चर्चित नाटक इसी प्रक्रिया के तहत रचे गए थे। हालांकि, इसमें अहम रोल सफ़दर हाशमी का ही था, लेकिन उन्होंने इन नाटकों का श्रेय खु़द न लेते हुए अपनी नाट्य मंडली के सभी सदस्यों को दिया था। उनका कोई भी नाटक उठाकर देख लीजिए, उसमें एक ज़रूरी विषय और विचार ज़रूर मिलेगा। सफ़दर हाशमी के नाटक सीधे-सीधे सियासी इश्तिहार भर नहीं हैं, उनमें हास्य और तीखे व्यंग्य का समावेश मिलता है। जनता की बोली-बानी में प्रस्तुत यह नाटक दर्शकों पर गहरा असर डालते थे। उनका नाटक ‘हल्ला बोल’ मिल मज़दूरों की संघर्षपूर्ण ज़िंदगानी के यथार्थ को दिखलाता है। किस तरह से वे शोषणकारी व्यवस्था में काम करते हैं?, बावजूद इसके उनको वेतन की परेशानी आती है।

एक दशक तक लगातार नुक्कड़ नाटक करने के बाद सफ़दर हाशमी प्रोसेनियम थियेटर की तरफ भी आना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने बाक़ायदा अपनी नाट्य मंडली के लिए नाट्य-शिविर भी लगाए। ताकि उनके कलाकार इस मीडियम को भी अच्छी तरह से समझें और इसमें माहिर हों। मशहूर नाटककार हबीब तनवीर के निर्देशन में प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटक ‘मोटेराम का सत्याग्रह’ इसी सिलसिले की अगली कड़ी था, लेकिन ये सभी योजनाएं उनकी असमय मौत से परवान नहीं चढ़ सकीं। हबीब तनवीर ने अपने एक लेख में सफ़दर हाशमी के बारे में कहा था,‘‘क्रांति और आर्ट दोनों ही सफ़दर की फ़ितरत में एक साथ नक़्श हो गए थे। उनकी सारी मेहनत इन्हीं दोनों चीज़ों को समझने में लगीं, अध्ययन के ज़रिए भी और अनुभव के द्वारा भी। एक तरफ राजनीतिक, सामाजिक समस्याओं और दूसरी तरफ रंगकर्म की बारीकियों को समझने में उन्होंने अपना समय लगाया और यह काम बड़ी मेहनत, हौसलामंदी और दृढ़ता से करते रहे।’’ (किताब-‘सफ़दर’, लेख-कौन था जो मार दिया गया, लेखक-हबीब तनवीर, पेज-15)

सफ़दर हाशमी थिएटर से निकले थे। वे चाहते, तो थिएटर में ही बड़ा नाम कमा सकते थे, लेकिन उन्होंने नुक्कड़ नाटक की पथरीली राह चुनी। जिसमें वे कभी मिल मजदूरों के बीच मिल के बाहर या उनकी बस्तियों, सार्वजनिक पार्क, बस स्टॉप, बाज़ार, सड़क के छोटे-छोटे नुक्कड़ों पर अपने नाटक किया करते थे। सफ़दर हाशमी देशव्यापी स्तर पर एक सशक्त जन नाट्य आंदोलन खड़ा करना चाहते थे। इसके पीछे उनकी यह सोच थी,‘‘अपनी जीवंतता, सहज संप्रेषणीयता और व्यापक प्रभावशीलता की वजह से नाटक ही ऐसी विधा है, जो जनता के व्यापक हिस्से के बीच जनवादी चेतना और स्वस्थ्य वैकल्पिक संस्कृति को फैलाने में कारगर भूमिका निभा सकती है।’’ (किताब-‘सफ़दर’, लेख-नुक्कड़ नाटक का महत्त्व और कार्यप्रणाली, लेखक-सफ़दर हाशमी, पेज-33)

सफ़दर का सारा रंगकर्म मक़सदी रंगकर्म था। एक बेहतर समाज बनाने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी। उन्होंने हमेशा गरीब और मेहनतकश लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ी। उनके लिए इंसाफ़ की आवाज़ बुलंद की। अपने नाटकों में उनके सुख-दुःख दिखलाये। उन्हें जुल्म के ख़िलाफ़ खड़े होने को प्रोत्साहित किया।

सफ़दर हाशमी के लिए रंगकर्म मन बहलाने और बौद्धिक विलासता का ज़रिया भर नहीं था, नुक्कड़ नाटक विधा का इस्तेमाल वे जनता को जागरूक करने के लिए करते थे। प्रतिबद्ध रंगकर्म उनकी प्राथमिकता में शामिल था। इस तरह के रंगकर्म में अक्सर जोख़िम होता है, लेकिन वे इससे कभी नहीं डरे। फ़िरकापरस्त और इंसानियत विरोधी ताक़तों के ख़िलाफ़ वे बढ़-चढ़कर मोर्चा लेते रहे। उनके ख़िलाफ़ खुलकर नुक्कड़ नाटक खेले। साल 1986 में दिल्ली परिवहन निगम ने जब बस किराए में भारी बढ़ोतरी की, तो सफ़दर हाशमी ने न सिर्फ़ ‘डीटीसी की धांधली’ नामक नुक्कड़ नाटक लिखा, बल्कि दिल्ली में इसका कई जगह प्रदर्शन किया। जिसके एवज़ में दिल्ली पुलिस दमन पर उतर आई। उसने नाट्य मंडली के कलाकारों पर लाठी चार्ज से लेकर कुछ कलाकारों को थाने में बैठाया। लेकिन सफ़दर हाशमी इन ज़्यादतियों से कभी नहीं घबराए। उन्होंने नाटक करना नहीं छोड़ा।

साल 1989 की पहली तारीख़, वह काली तारीख़ थी जिसने सफ़दर हाशमी को हमसे हमेशा के लिए छीन लिया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से लगे साहिबाबाद के झंडापुर गांव में वे स्थानीय निकाय के चुनाव में माकपा उम्मीदवार के समर्थन में नुक्कड़ नाटक कर रहे थे। नाटक के दौरान प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के समर्थकों के साथ रास्ते को लेकर टकराव हुआ। झगड़ा आगे बढ़ा और सफ़दर हाशमी की हत्या कर दी गई। हत्या के वक़्त उनकी उम्र महज़ 34 साल थी।

इसे पढ़ें: सफ़दर: आज है 'हल्ला बोल' को पूरा करने का दिन

सफ़दर की असमय मौत, भारतीय जन-कला आंदोलन के लिए एक झटका थी। जाने-माने कथाकार-नाटककार भीष्म साहनी ने सफ़दर हाशमी की शहादत को याद करते हुए अपने एक लेख में कहा, ‘‘सफ़दर ने ऐसे ही जोख़िम उठाते हुए पिछले 17 साल तक इस नाट्य विधा को सक्षम बनाने में अपना योगदान दिया है, और ऐसे ही नाटक में भाग लेते हुए उसने अपने प्राणों की आहुति दी है। सफ़दर प्रेरणा का स्रोत रहा है, और वह भविष्य में भी प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।’’ (किताब-‘सफ़दर’, लेख-दो शब्द, लेखक-भीष्म साहनी, पेज-14) भीष्म साहनी की इस बात से शायद ही कोई नाइत्तेफ़ाक़ी जताए। देश में जब भी नुक्कड़ नाटक की बात होगी या कहीं नुक्कड़ नाटक खेला जायेगा, रंगकर्मी सफ़दर हाशमी ज़रूर याद किये जाएंगे। उनका जीवन और संपूर्ण रंगकर्म लोगों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी पढ़ें : प्रलेस : फ़ासिज़्म के ख़िलाफ़ फिर बनाना होगा जनमोर्चा

national street theatre day
Safdar Hashmi
Safdar Hashmi Birth Anniversary
History of Safdar Hashmi

Related Stories

सफ़दर: आज है 'हल्ला बोल' को पूरा करने का दिन

सफ़दर हाशमी की याद में...


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License