NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पुण्यतिथि पर विशेष : रेणु ने पद्मश्री को लौटाते हुए कहा था, 'पापश्री'
रेणु आज अगर होते और अपना पद्मश्री अलंकरण वापस करते तो उन्हें भी 'एवार्ड वापसी गैंग' का सदस्य ही कहा जाता! और ऐसा कहने वाले वे लोग ही होते जो 1974 के नवंबर महीने में उनके पद्मश्री अलंकरण और सरकार की वृत्ति वापस करते समय उनकी जय जयकार कर रहे थे।
जयशंकर गुप्त
11 Apr 2020
रेणु

(फणीश्वरनाथ नाथ रेणु : 4 मार्च, 1921-11 अप्रैल, 1977)

बात 1974 के नवंबर महीने की है, जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार आंदोलन अपने चरम को छू रहा था। 4 नवंबर को राजधानी पटना के आयकर गोलंबर के पास शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के साथ ही उनका नेतृत्व कर रहे जेपी पर भी पुलिस ने भारी लाठीचार्ज कर दिया था। पुलिस की लाठियों से कथाकार, साहित्यकार, स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी, मैला आंचल और परती परिकथा जैसे कालजयी उपन्यास और 'मारे गये गुलफाम' (जिस पर गीतकार शैलेंद्र ने बासु भट्टाचार्य के निर्देशन में फिल्म तीसरी कसम बनाई थी) जैसी तमाम कहानियों, रिपोर्ताज के अमर कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ नाथ रेणु का सिर भी फट गया था।

वह भी उन तमाम बौद्धिकों के साथ प्रदर्शन में शामिल थे जो बिहार आंदोलन के साथ खड़े थे। इस घटना और इस तरह की कुछ अन्य घटनाओं से क्षुब्ध होकर विरोधस्वरूप रेणु जी ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद को पत्र लिखकर उन्हें मिले अलंकरण, 'पद्मश्री' को 'पापश्री' कहते हुए वापस कर दिया था। यही नहीं, उन्होंने और बाबा के नाम से मशहूर जनकवि नागार्जुन ने भी बिहार के तत्कालीन राज्यपाल आर डी भंडारे को पत्र लिखकर बिहार सरकार से मिलने वाली 300 रुपये मासिक की आजीवन वृत्ति (पेंशन) भी वापस कर दी थी। इन पत्रों को 18 नवंबर 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित विशाल जनसभा में पढ़ा गया था। अपने लंबे भाषण में रेणु और नागार्जुन के इन पत्रों का जिक्र करते हुए भावुक हुए जय प्रकाश नारायण रो पड़े थे।

जेपी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही कहा, "परम आदरणीय नागार्जुन जी, बहनों, भाइयों और युवकों, पता नहीं क्यों मेरा हृदय आज इतना भावुक हो उठा। वैसे, इस अपार मानव समुद्र को देखकर अपनी क्षुद्रता का भान कर रहा हूं। कितना मैं अदना और छोटा हूं और आप सबके स्नेह और विश्वास का भार कितना बोझिल है। वैसे, रेणु जी आज सुबह मिले थे, राष्ट्रपति और राज्यपाल को लिखे अपने पत्रों के ड्राफ्ट पढ़कर सुनाए थे। तो मुझे इसकी पूर्व सूचना थी। लेकिन जब यहां आकर उन्होंने बिहार और देश की जनता के चरणों में इतना बड़ा आदर और 300 रु. मासिक की इस आजन्म वृत्ति का परित्याग किया तो मैं अपने को संभाल नहीं सका। नागार्जुन जी ने भी, जिन्हें हिंदी साहित्य में संघर्ष का प्रतीक माना जा सकता है, 300 रु. की आजीवन वृत्ति त्याग करने की घोषणा की। यह सारा दृश्य मेरी आंखों के सामने कई पुराने ऐतिहासिक अवसरों को जीवित खड़ा कर देता है। रेणु जी ने और नागार्जुन जी ने देश के तमाम लेखकों के सामने एक उदाहरण रखा है। एक रास्ता बताया है कि कलम भी किस प्रकार न्याय के, क्रांति के संघर्ष में हथियार बन सकती है।"

इस साल रेणु जी का जन्म शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। उनका जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के ओराही हिंगना में हुआ था। आज वह होते तो उम्र के 99 वर्ष पूरा कर सौवें वर्ष में प्रवेश कर गये होते। लेकिन उनका दुखद और असामयिक निधन 11 अप्रैल 1977 को हो गया था। मुझे याद है कि कलकत्ता (कोलकाता) से प्रकाशित आनंद बाजार पत्रिका के हिंदी साप्ताहिक 'रविवार' का पहला अंक रेणु जी को ही समर्पित था, जिसकी आमुख कथा का शीर्षक था, 'रेणु का हिंदुस्तान।'

रेणु को हिंदी का दूसरा प्रेमचंद और उनके मैला आंचल को प्रेमचंद के गोदान के स्तर का कहा जाता है। वह ग्रामीण जीवन के जन सरोकारों से जुड़े साहित्यकार, कथाकार ही नहीं थे बल्कि सामाजिक और राजनीतिक जीवन में उनका सक्रिय हस्तक्षेप भी होता था। उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम के साथ ही आज़ाद भारत में समाजवादी आंदोलन और पड़ोसी नेपाल में राणाशाही के विरुद्ध लोकतंत्र कायम करने वाले आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में वह जेल भी गये थे। आज़ाद भारत में भी कई बार जेल गये थे।

एक बार सभी राजनीतिक दलों से मोहभंग होने के बाद 1972 में उन्होंने बिहार विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था लेकिन वह बुरी तरह से चुनाव हार गये थे। चुनाव लड़ने के पक्ष में तर्क देते हुए उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था, "पिछले 20 वर्षों में चुनाव के तरीके तो बदले ही हैं पर उनमें बुराइयां बढ़ती ही गई हैं। यानी पैसा, लाठी और जाति तंत्रों का बोलबाला। अतः मैंने तय किया कि मैं खुद पहन कर देखूं कि जूता कहां काटता है। कुछ पैसे अवश्य खर्च हुए, पर बहुत सारे कटु, मधुर और सही अनुभव हुए। वैसे, भविष्य में मैं कोई और चुनाव लड़ने नहीं जा रहा हूं। लोगों ने भी मुझे किसी सांसद या विधायक से कम स्नेह और सम्मान नहीं दिया है।"

साहित्यकार के बतौर रेणु की तमाम रचनाएं चूंकि पूर्णिया जिले के ग्रामीण जीवन और खासतौर से मेला संस्कृति से जुड़ी थीं, हिंदी के कुछ आलोचकों ने उन्हें आंचलिक साहित्यकार के रूप में निरूपित कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को सीमित करने की कोशिशें भी कीं। लेकिन उनकी आंचलिकता में राष्ट्रीय परिदृश्य को देखा और समझा जा सकता है। बिहार के वरिष्ठ लेखक और टिप्पणीकार प्रेमकुमार मणि कहते हैं, "मैला आंचल केवल एक अंचल विशेष की कहानी ही नहीं बल्कि हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की खास व्याख्या भी है। मैला आंचल आजादी मिलने के तुरंत बाद की उस हलचल को दिखाता है जो भारत के गांव में आरंभ हुई थी। यह बिहार के एक गांव की कहानी है लेकिन इसे आप भारत के लाखों गांव की कहानी भी कह सकते हैं। पश्चिमी विद्वानों का मानना था कि भारत का ग्रामीण ढांचा लोकतंत्र को बाधित करेगा। उन्हें यहां लोकतंत्र की सफलता पर संदेह था लेकिन रेणु तो एक गांव के ही लोकतंत्रीकरण की कहानी कहते हैं।"

रेणु अपने मैला आंचल में 'यह आज़ादी झूठी है' का नारा भी देते हैं। यही नहीं जब सत्तर के दशक के पूर्वार्द्ध में बिहार आंदोलन शुरू होता है और 4 नवंबर 1974 को पटना में प्रदर्शनकारियों और आंदोलन के नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर पुलिस की लाठियां चलती हैं, रेणु से रहा नहीं जाता वह न सिर्फ आंदोलन में कूद पड़ते हैं, नागार्जुन एवं अन्य साहित्यकारों के साथ जेल जाते हैं, बल्कि उन्हें मिले पद्मश्री के अलंकरणऔर बिहार सरकार से उन्हें हर महीने मिलनेवाली 300 रु. की आजीवन वृत्ति को वह वापस लौटा देते हैं।राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद और राज्यपाल के नाम लिखे उनके पत्रों और उनकी भाषा को भी देखें,

"प्रिय राष्ट्रपति महोदय,

21 अप्रैल, 1970 को तत्कालीन राष्ट्रपति वाराह वेंकट गिरि ने व्यक्तिगत गुणों के लिए सम्मानार्थ मुझे पद्मश्री प्रदान किया था। तब से लेकर आज तक मैं संशय में रहा हूं कि भारत के राष्ट्रपति की दृष्टि में अर्थात भारत सरकार की दृष्टि में वह कौन सा व्यक्तिगत गुण है जिसके लिए मुझे पद्मश्री से अलंकृत किया गया।

1970 और 1974 के बीच देश में ढेर सारी घटनाएं घटित हुई हैं। उन घटनाओं में, मेरी समझ से बिहार का आंदोलन अभूतपूर्व है। 4 नवंबर को पटना में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में लोक इच्छा के दमन के लिए लोक और लोकनायक के ऊपर नियोजित लाठी प्रहार, झूठ और दमन की पराकाष्ठा थी। 

आप जिस सरकार के राष्ट्रपति हैं, वह कब तक लोक इच्छा को झूठ, दमन और राज्य की हिंसा के बल पर दबाने का प्रयास करती रहेगी? ऐसी स्थिति में मुझे लगता है कि 'पद्मश्री' का सम्मान अब मेरे लिए ‘पापश्री’ बन गया है।
साभार यह सम्मान वापस करता हूं। सधन्यवाद।

भवदीय

फणीश्वर नाथ रेणु

प्रिय राज्यपाल महोदय,

बिहार सरकार द्वारा स्थापित एवं निदेशक, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना द्वारा संचालित साहित्यकार, कलाकार, कल्याण कोष परिषद द्वारा मुझे आजीवन 300 रु. प्रतिमाह आर्थिक वृत्ति दी जाती है। अप्रैल 1972 से अक्तूबर 1974 तक यह वृत्ति लेता रहा हूं।

परंतु अब उस सरकार से, जिसने जनता का विश्वास खो दिया है, जो जन-आकांक्षा को राज्य की हिंसा के बल पर दबाने का प्रयास कर रही है, उससे किसी प्रकार की वृत्ति लेना अपना अपमान समझता हूं। कृपया इस वृत्ति को बंद कर दें। सधन्यवाद

भवदीय

फणीश्वर नाथ रेणु

पिछले वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों में बढ़ रही असहिष्णुता और 'मॉब लिंचिंग' के विरोध में बहुत सारे साहित्यकारों, रचनाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने अलंकरण और पुरस्कार वापस किए थे, तब उन्हें सत्ता संरक्षित तबकों की ओर से 'एवार्ड वापसी गैंग' और उसका सदस्य कहा जाने लगा था। आज रेणु जी की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए मन में सवाल उठता है कि रेणु आज अगर होते और अपना पद्मश्री अलंकरण वापस करते तो उन्हें भी 'एवार्ड वापसी गैंग' का सदस्य ही कहा जाता! और ऐसा कहने वाले वे लोग ही होते जो 1974 के नवंबर महीने में उनके पद्मश्री अलंकरण और सरकार की वृत्ति वापस करते समय उनकी जय जयकार कर रहे थे, उनके जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Death anniversary
Phanishwar Nath Renu
Jai Prakash Narayan
hindi literature
Hindi fiction writer
Influential writers

Related Stories

मेरे लेखन का उद्देश्य मूलरूप से दलित और स्त्री विमर्श है: सुशीला टाकभौरे

देवी शंकर अवस्थी सम्मान समारोह: ‘लेखक, पाठक और प्रकाशक आज तीनों उपभोक्ता हो गए हैं’

गणेश शंकर विद्यार्थी : वह क़लम अब खो गया है… छिन गया, गिरवी पड़ा है

वाद-विवाद; विनोद कुमार शुक्ल : "मुझे अब तक मालूम नहीं हुआ था, कि मैं ठगा जा रहा हूँ"

ओमप्रकाश वाल्मीकि सिर्फ़ दलित लेखक नहीं, राष्ट्रीय हिंदी साहित्यकार हैं: डॉ. एन. सिंह

समीक्षा: तीन किताबों पर संक्षेप में

हमें यह शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है : भगत सिंह की पसंदीदा शायरी

यादें; मंगलेश डबरालः घरों-रिश्तों और विचारों में जगमगाती ‘पहाड़ पर लालटेन’

जन्मशतवार्षिकी: हिंदी के विलक्षण और विरल रचनाकार थे फणीश्वरनाथ रेणु 

इस्मत आपा को सिर्फ़ ‘लिहाफ़’ के लिए याद करना उनके दायरे को बहुत छोटा करना है


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License