NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
स्पेशल रिपोर्ट: अपने ही पैसों के लिए भटक रहे हैं सहारा इंडिया के निवेशक, मजबूरी में ले रहे क़र्ज़
सहारा इंडिया समूह में बड़े पैमाने पर मज़दूरों, किसानों, रिक्शा चालकों, रेहड़ी-खोमचे वालों सहित निम्न मध्यवर्ग के लोगों ने गाढ़ी कमाई की बचत जमा की है। बहन या बेटी की शादी, घर बनवाने जैसे उद्देश्यों के साथ जमा की गई रकम के लिए अब उन्हें कार्यालय और कार्यकर्ताओं के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
सत्येन्द्र सार्थक
01 Dec 2020
सहारा इंडिया

“मैंने 30 रुपये प्रतिदिन की दर से सहारा में पैसे जमा किये थे, प्रति महीने दो अलग-अलग खातों में भी पैसे जमा करता था। सोचा था बहन की शादी में मदद मिल जाएगी और विपरीत परिस्थितियों में यह पैसै काम आयेंगे। 8 नवंबर 2020 को बहन की शादी की थी, लेकिन अपने ही पैसे मुझे नहीं मिले। सहारा के कार्यकर्ताओं से कहा, कर्मचारियों के आगे गिड़गिड़ाया, चिल्लाया लेकिन पैसे नहीं मिले। हार मानकर 2 लाख रुपये दोस्तों से और 40 हजार रुपये ब्याज सहित कुल 3 लाख का कर्ज लिया तब बहन शादी कर पाया। मैं कर्ज का ब्याज चुका रहा हूँ, मेरे खुद के 2 लाख रुपये सहारा में फंसे हैं। अब मुझे कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही है।”

यह कहना है गोरखपुर-बनारस हाईवे पर साइकिल मकैनिक काम करने वाले सतीश का।

गोरखपुर के नौसड़ गांव में सड़क किनारे सतीश साइकिल बनाने की गुमटी चलाते हैं। सारे पैसे सहारा में रखने का कारण पूछने पर वह बताते हैं “मेरे कई दोस्त सहारा में एजेंट के तौर पर काम करते थे, वह बार-बार बचत करने की सलाह देने के साथ ही जमा करने पर जोर देते थे, जिसे मैं लंबे समय तक टाल नहीं पाता था।”

सहारा इंडिया समूह में बड़े पैमाने पर मज़दूरों, किसानों, रिक्शा चालकों, रेहड़ी-खोमचे वालों सहित निम्न मध्यवर्ग के लोगों ने गाढ़ी कमाई की बचत जमा की है। बहन या बेटी की शादी, घर बनवाने जैसे उद्देश्यों के साथ जमा की गई रकम के लिए अब उन्हें कार्यालय और कार्यकर्ताओं के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। बहुतेरे ऐसे हैं जिन्होंने 10 रुपये से लेकर 100 रुपये प्रतिदिन, 500-3000 रुपये प्रति महीना की दर से जमा किया था। अब उनके पास केवल एक ही रास्ता बचा है कि वह परिपक्व हो चुकी रकम को फिर से सहारा समूह में फिक्स डिपोजिट कर दें।


केवल जमाकर्ता ही नहीं कार्यकर्ता भी बुरी तरह फंस गये हैं। कार्यकर्ता नागेन्द्र कहते हैं “ज्यादातर कार्यकर्ताओं ने अपने जमापूंजी का बड़ा हिस्सा सहारा में ही निवेश कर दिया था। इनकम भी बंद हो चुकी है, अपने पैसे भी फंस गये हैं और जमाकर्ताओं से जो गालियां सुननी पड़ती हैं सो अलग।”

कार्यकर्ता अनिल बताते हैं “मुझे सहारा के साथ काम करते हुए करीब 10 वर्ष हो चुके हैं। पिछले 3 वर्ष से सहारा से मुझे कोई आय नहीं हो रही थी, जमाकर्ताओं के कारण काफी तनाव भी झेलना पड़ा, लॉकडाउन में हालात बद से बदतर हो गये थे। फिलहाल कागज के पत्तल और दोना बनाने की एक मशीन लगाई है जिससे किसी तरह गुजारा हो रहा है।”

एक अन्य कार्यकर्ता ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया “29 नवंबर को मेरी बहन की शादी थी। मेरे करीब 15 लाख रुपये सहारा समूह में जमा हैं। शादी का कार्ड लगाकर कार्यालय पर आवेदन किया था, लेकिन एक भी रुपया नहीं मिला।” वह आगे कहते हैं “दोस्तों रिश्तेदारों से कर्ज लेकर मैंने शादी तो कर दी है। अपने पैसों के लिये यदि जरूरत पड़ी तो मैं कानून का भी सहारा लूंगा।”

इन्होंने बताया कि प्रशासन की सहायता लेने वाले कार्यकर्ताओं पर सहारा द्वारा कार्रवाई की जा रही है।

क्या है पूरा मामला?

सितंबर 2009 में सहारा ग्रुप की एक कंपनी प्राइम सिटी ने शेयर मार्केट में जाने की इच्छा से सेबी ( सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) में आवेदन किया। सेबी ने वित्तीय अनियमितता की आशंका में जांच शुरू की। इस दौरान सहारा की दो अन्य कंपनियों- सहारा इंडिया रियल इस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (SHICL) के बारे में सेबी को शिकायत मिली कि कंपनियों ने अनुचित तरीके से निवेश अर्जित किया है।

सेबी की जांच में सामने आया कि SIRECL और SHICL कंपनियों ने करीब 2.5 करोड़ निवेशकों से 24,000 करोड़ रुपये इकट्ठा किये थे। सेबी ने कई निवेशकों को फर्जी भी बताया था। इन तथ्यों के सामने आने के बाद सेबी ने कंपनियों के निवेश अर्जन पर प्रतिबंध लगाते हुए निवेशकों के पैसों को 15 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने को कहा। सहारा ने आदेश मानने की बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेबी के खिलाफ केस कर दिया। सेबी के आदेश पर रोक लगाने के 4 महीने बाद हाईकोर्ट ने उसे सही पाया और सहारा को पैसे लौटाने को कहा। इसके बाद सहारा सुप्रीम कोर्ट चला गया।

सुप्रीम कोर्ट ने भी सेबी के फैसले का समर्थन करते हुए सहारा को निवेशकों को 24,000 करोड़ रुपये वापस को कहा। तीन महीने का समय बीत जाने के बाद भी पैसे नहीं जमा करने पर सुप्रीम कोर्ट ने तीन किश्तों में पैसे वापस करने को कहा। सहारा ने पहली किश्त के तौर पर 5,210 करोड़ रुपये सेबी के खाते में जमा करा दिये और शेष निवेशकों के खाते में जमा करने की बात कही। लेकिन वह न तो पैसे जमा करने का सबूत दे पाया और न ही जमा पैसों का सोर्स बता पाया।

सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के बैंक खातों को सीज कर संपत्ति सील करने के आदेश दिये। इसके बाद 28 फरवरी 2014 को सुब्रत राय को लखनऊ से गिरफ्तार कर लिया गया, हालांकि मई 2016 से वह पैरोल पर बाहर हैं। 20 नवंबर 2020 को सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करके सुब्रत रॉय और उनकी दो कंपनियों को निवेशकों का 626 अरब रुपये जमा करने का निर्देश देने को कहा है। साथ ही मांग की है कि यदि सहारा यह रकम नहीं चुकाता है तो सुब्रत रॉय का पैरोल रद्द किया जाना चाहिए।

ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं जमाकर्ता व कार्यकर्ता

सहारा समूह की तरफ से कई बार अखबारों में विज्ञापन देकर निवेशकों से विश्वास बनाये रखने की अपील की गई। साथ यह इस तथ्य पर जोर दिया गया कि “निवेशकार्ताओं की जो भी देनदारियां हैं वे ब्याज सहित कुल 62,104 करोड़ की हैं जबकि उनकी तुलना में सहारा के पास 1,77,229 करोड़ की परिसंपत्तियां हैं, जोकि तीन गुना हैं।”

सहारा के इन दावों के बावजूद पैसे नहीं मिलने पर निवेशक और कार्यकर्ता दोनों ही खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। यही कारण है कि सहारा समूह के निवेशकों और कार्यकर्ताओं की संख्या में तेजी से गिरावट हो रही है। गोरखपुर के नौसड़ शाखा में सामान्य दिनों में हजारों सक्रिय कार्यकर्ता थे और प्रति महीने करीब 5 करोड़ रुपयों का व्यावसाय होता था। वर्तमान समय में सक्रिय कार्यकर्ताओं की संख्या 100 भी नहीं रह गई है और कार्यालय पर सन्नाटा पसरा रहता है।

सहारा के गोरखपुर मंडल प्रमुख शैलेन्द्र किशोर ने बताया “सहारा ने करीब 22 हजार करोड़ सेबी में जमा कर दिया हैं, लेकिन सेबी ने अभी तक केवल 105 करोड़ रुपये ही निवेशकों को वितरित किये हैं। आम निवेशकों की सुविधा को प्राथमिकता में रखकर यदि पैसों का वितरण तेजी से किया जाता तो बड़े पैमाने पर लोगों को राहत मिलती, जो नहीं हो पा रहा है। हमें निवेशकों के हित की चिंता है लेकिन कुछ कर नहीं पा रहे हैं।”

व्यावसाय को देशभक्ति से जोड़ा

सहारा ग्रुप के प्रमुख, निवेशकों और कर्मचारियों को परिवार का सदस्य और पूरे समूह को सहारा परिवार कहते हैं। सहारा ग्रुप के पत्र व पत्रिकाओं में भारत माता का चित्र प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया जाता है जो राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के भारत माता के चित्र की कल्पना से मेल खाता है। केन्द्र और राज्य सरकारों सहित राजनीतिक पार्टियों से सुब्रत रॉय के रिश्ते हमेशा ही मधुर रहे हैं। जो राष्ट्रीय स्तर पर सहारा समूह की पहचान को मजबूत करते हैं।

सहारा का व्यासाय पूरे देश में फैला हुआ है। सहारा के ग्राहकों और निवेशकों की संख्या पूरे देश में 9 करोड़ से भी अधिक है। समूह की कुल संपत्ति 2,59,000 करोड़ रुपये की है। साथ ही ब्लॉक से लेकर राज्य स्तर पर 5,000 से अधिक कार्यालय हैं जिनके माध्यम से पूरे देश में 12 लाख वेतनभोगी कर्मचारी, कार्यकर्ता जुड़े हैं।

यह आंकड़े बताते हैं कि सहारा समूह पर लगे आरोपों के बाद उसकी आर्थिक स्थिति में जो बदलाव आये हैं उससे करोड़ो लोग प्रभावित हुए हैं। समूह से जुड़े "बड़े लोग" कुछ आर्थिक नुकसान झेलने के बाद संभल सकते हैं। सवाल यह है कि सतीश जैसे जमाकर्ताओं की जमापूंजी क्या उन्हें मिल पायेगी?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Sahara India
Sahara India Group
Lockdown
Coronavirus
unemployment
Sahara group crisis
SIRECL
Supreme Court

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License