NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
स्टेन स्वामी: जब उन्होंने फादर ऑफ द नेशन को नहीं छोड़ा तो ‘फादर’ को क्या छोड़ते
जब अपनी सरकार नहीं थी तब भी, तिहत्तर साल पहले एक बूढ़े को गोली मार कर मार दिया गया था और अब जब अपनी सरकार है तो दूसरे बूढ़े को जेल में सड़ा कर मार दिया गया। जब जनता को सबक सिखाना हो तो बूढ़ों तक के भी अपने आप मरने का इंतज़ार नहीं किया जा सकता है।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
11 Jul 2021
स्टेन स्वामी
फोटो : साभार 

आखिरकार एनआईए और कोर्ट ने मिलकर देश के प्रधानमंत्री जी को बचा लिया। इन लोगों ने मिलकर देश के मुखिया को एक दुर्दांत हत्यारे से बचा लिया। सरकार जी की सरकार ने सरकार जी को एक ऐसे हत्यारे से बचा लिया जो सरकार जी की हत्या की प्लानिंग में संलिप्त था।

वह शख्स जो प्रधानमंत्री जी की हत्या की प्लानिंग की साज़िश में शामिल था, चौरासी वर्ष का था। जब गिरफ्तार किया गया तब तिरासी वर्ष का था और जब उसे मार दिया गया तब वह चौरासी वर्ष का था। वह बीमार था। इस उम्र में कोई भी बीमारी से, या फिर बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है। तो वह भी था। उसे तो अन्य छोटी-मोटी बीमारियों के साथ पारकिंसोनिज्म नामक बीमारी भी थी। इस बीमारी में बीमार व्यक्ति का शरीर, विशेष रूप से हाथ कांपने लगते हैं। और हाथ तब अधिक कांपते हैं जब वह व्यक्ति कोई काम कर रहा होता है।

स्टेन स्वामी नामक इस चौरासी वर्ष के कैदी को भी यही, पारकिंसोनिज्म की बीमारी थी। उसे पानी पीने में, अन्य चीजों को पीने में भी इस बीमारी के कारण कठिनाई होती थी। जब भी वह कोई गिलास, कप या कटोरी अपने मुंह तक ले जाता था तो उसके हाथ कांपने लगते थे। मुंह के नजदीक पहुंच कर हाथ और अधिक कांपने लगते थे। पानी, दूध या चाय, जो भी कुछ उस बर्तन में होता था, छलक जाता था। पीया तो जाता ही नहीं था, कपड़े और खराब हो जाते थे। इस बीमारी में अमूमन सभी के साथ ऐसा ही होता है।

स्टेन स्वामी ने अदालत से स्ट्रा या सिपर की मांग की। अब इतने दुर्दांत कैदी की मांग का सरकार ने विरोध तो करना ही था जो सरकार ने किया भी। और न्यायाधीश महोदय को भी उस कैदी की मांग की बारीकी से जांच करनी थी। आखिर वह कैदी स्ट्रा की नली को बंदूक की नली भी तो बना सकता था। या फिर सिपर को कुदाल बना, सुरंग खोद जेल से भाग भी सकता था। सरकार ने विरोध किया और जज साहब ने भी अगली सुनवाई तक बहुत सोचा-विचारा। फिर तब कहीं जाकर स्टेन स्वामी को सिपर की इजाजत मिली।

खैर यह तो पुरानी बात है। वह चौरासी वर्ष का व्यक्ति बीमार तो था ही, जेल में उसे कोरोना भी हो गया। उसने कई बार जमानत याचिका दायर की। कोरोना होने से पहले भी और कोरोना होने के बाद भी। उसने जमानत मांगी बीमारी की वजह से। पर सरकार ने कहा कि उसकी बीमारी का कोई ठोस सबूत नहीं है। वही सरकार जिसने उसे बिना किसी ठोस सबूत के यूएपीए में जेल में डाला हुआ था, उस चौरासी वर्ष के वृद्ध व्यक्ति से, जिसे पारकिंसोनिज्म की बीमारी थी, सरकार और कोर्ट बीमारी का ठोस सबूत मांग रहे थे।

स्टेन स्वामी सरकार को और कोर्ट को अपनी बीमारी का ऐसा कोई सबूत नहीं दे पाया कि उसे जमानत मिल पाती। वह सबूत नहीं दे पाया और जेल में उसकी बीमारी इतनी बढ़ गई कि उसे सिर्फ अस्पताल में ही भर्ती नहीं करना पड़ा अपितु वेंटीलेटर पर भी डालना पड़ा। सच तो यह है कि सरकार उसके मरने तक उसके अपराध का तो कोई ठोस सबूत नहीं दे पाई पर उसने बीमारी से मर कर, सरकार को और कोर्ट को अपनी बीमारी का ठोस सबूत जरूर दे दिया।

जहां तक सरकार के द्वारा दिये जाने वाले सबूत की बात है, सरकार तो सबूत बना भी सकती है और दे भी सकती है। भीमा कोरेगांव मामले को ही लें। इस केस में सरकार ने सबूत बना भी लिए हैं और कोर्ट में दाखिल भी कर दिए हैं। अभियुक्तों के कम्प्यूटर में, उनकी मेल में मेल प्लांट कर दी गईं हैं। ऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। मेरी इतनी औकात कहां कि मैं सरकार के खिलाफ ऐसा-वैसा कुछ कह भी सकूं। ऐसा तो सरकार जी के परम मित्र देश अमरीका की एक सुप्रसिद्ध आईटी जांच एजेंसी ने जांच करने के बाद कहा है।

यह स्टेन स्वामी भी अजीब था। आदिवासियों के बीच काम करता था। उन्हें बताता था कि तुम आदिवासी हो अर्थात यहां के, भारत के सबसे पुराने वासी हो, रहने वाले हो। उनसे बोलता था कि इन जंगलों पर, पहाड़ों पर पहला अधिकार तुम्हारा है। झूठा कहीं का! जैसे सरकार जी का, सरकार का कोई अधिकार ही नहीं है। अरे पागल! ये सब, ये जंगल, पहाड़, जमीन, ये तो सरकार जी के ही हैं या फिर उनके दोस्तों के। सरकार जी तो पहले ही कह चुके हैं। एक देश, एक धर्म, एक भाषा, एक खाना, एक गाना, एक पहनावा, और बहुत सी चीजें एक ही हैं और मालिक भी एक ही है। और वह मालिक है सरकार, मतलब सरकार जी।

सबसे बड़ा देशद्रोह है लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना। जब सरकार जी नहीं चाहते कि लोगों को जागरूक किया जाए तो लोगों को जागरूक करना तो सरकार की मुखालिफत करना ही हुआ न! तो यह बहुत ही बड़ा देशद्रोह है। यह आदिवासियों की, दलितों की, पिछड़ों की, अल्पसंख्यकों की लड़ाई लड़ना बहुत ही बड़ा देशद्रोह है। और उस देशद्रोही को, जो यह लड़ाई लड़ेगा, सबक तो सिखाना ही पड़ेगा। अब आरोप भले ही जो मर्जी लगाया गया हो, स्टेन स्वामी को भी इसी बात का, जागरूकता फैलाने का सबक सिखाया जा रहा था।

सरकार जी की पार्टी और उनकी पार्टी के पापा-दादा सभी की यही परिपाटी रही है कि जो न समझे, जो न माने, जो न सुधरे उसे सिधार दो, स्वर्ग सिधार दो। जब अपनी सरकार नहीं थी तब भी, तिहत्तर साल पहले एक बूढ़े को गोली मार कर मार दिया गया था और अब जब अपनी सरकार है तो दूसरे बूढ़े को जेल में सड़ा कर मार दिया गया। जब जनता को सबक सिखाना हो तो बूढ़ों तक के भी अपने आप मरने का इंतजार नहीं किया जा सकता है।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Satire
Political satire
Stan Swamy
Father Stan Swamy
UAPA
Bhima Koregaon
elgar parishad
Narendra modi
BJP

Related Stories

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

उर्दू पत्रकारिता : 200 सालों का सफ़र और चुनौतियां

तिरछी नज़र: सरकार-जी, बम केवल साइकिल में ही नहीं लगता

विज्ञापन की महिमा: अगर विज्ञापन न होते तो हमें विकास दिखाई ही न देता

तिरछी नज़र: बजट इस साल का; बात पच्चीस साल की

…सब कुछ ठीक-ठाक है

तिरछी नज़र: ‘ज़िंदा लौट आए’ मतलब लौट के...

राय-शुमारी: आरएसएस के निशाने पर भारत की समूची गैर-वैदिक विरासत!, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी हमला

बना रहे रस: वे बनारस से उसकी आत्मा छीनना चाहते हैं


बाकी खबरें

  • असद रिज़वी
    CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा
    06 May 2022
    न्यूज़क्लिक ने यूपी सरकार का नोटिस पाने वाले आंदोलनकारियों में से सदफ़ जाफ़र और दीपक मिश्रा उर्फ़ दीपक कबीर से बात की है।
  • नीलाम्बरन ए
    तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है
    06 May 2022
    रबर के गिरते दामों, केंद्र सरकार की श्रम एवं निर्यात नीतियों के चलते छोटे रबर बागानों में श्रमिक सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं।
  • दमयन्ती धर
    गुजरात: मेहसाणा कोर्ट ने विधायक जिग्नेश मेवानी और 11 अन्य लोगों को 2017 में ग़ैर-क़ानूनी सभा करने का दोषी ठहराया
    06 May 2022
    इस मामले में वह रैली शामिल है, जिसे ऊना में सरवैया परिवार के दलितों की सरेआम पिटाई की घटना के एक साल पूरा होने के मौक़े पर 2017 में बुलायी गयी थी।
  • लाल बहादुर सिंह
    यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती
    06 May 2022
    नज़रिया: ऐसा लगता है इस दौर की रणनीति के अनुरूप काम का नया बंटवारा है- नॉन-स्टेट एक्टर्स अपने नफ़रती अभियान में लगे रहेंगे, दूसरी ओर प्रशासन उन्हें एक सीमा से आगे नहीं जाने देगा ताकि योगी जी के '…
  • भाषा
    दिल्ली: केंद्र प्रशासनिक सेवा विवाद : न्यायालय ने मामला पांच सदस्यीय पीठ को सौंपा
    06 May 2022
    केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच इस बात को लेकर विवाद है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में रहेंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License