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स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
अध्ययन : स्वास्थ्य सुविधाएं तो छोड़िए देश के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य का ज़रूरी ढांचा भी नहीं है
बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देश की जनता की मूलभूत ज़रूरत और अधिकार है लेकिन देश की आज़ादी के 72 साल बाद भी देश की सत्ताधारी सरकारें बड़े-बड़े वादों के अलावा कुछ दे नहीं पायी हैं। हालत यह है कि देश के कई राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं का पर्याप्त बुनियादी ढांचा भी उपलब्ध नहीं हैं ।
पुलकित कुमार शर्मा
14 Jan 2020
public health

भारत के ग्रामीण इलाके में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करने के लिए 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन शुरू किया गया। साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं किस आधार पर उपलब्ध कराई जायेंगी, इसका विवरण भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (आई. पी. एच. एस.) में किया गया। जैसे कि मैदानी इलाके में पांच हजार लोगों की आबादी पर एक हेल्थ सब सेंटर होना चाहिए। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की वार्षिक रिपोर्ट में स्वास्थ्य मंत्रालय ने खुद लिखा है कि देश के ग्रामीण इलाकों में आई. पी. एच. एस. के मानकों का पालन नहीं किया गया है। इसकी मुख्य वजह यह है कि मानकों के लिए जरूरी बुनियादी ढाँचों का विकास ग्रामीण इलाकों में नहीं हुआ है।

ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया कराने के लिए सरकार की तरफ से सब सेंटर, प्राथमिक हेल्थ सेंटर और कम्युनिटी हेल्थ सेंटर बनाने का प्रावधान है। जिसके तहत मैदानी क्षेत्रों में 5,000 लोगों पर एक सब सेंटर, 30,000 लोगों पर एक प्राथमिक हेल्थ सेंटर और 1,20,000 लोगों पर एक कम्युनिटी सेंटर का प्रावधान रखा गया है।

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सब सेंटर

सरकार की तरफ से आम जनता को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने की सबसे छोटी इकाई सब सेंटर होती है। सब सेंटर के अंतर्गत मातृ और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण, टीका करण, दस्त नियंत्रण, स्वास्थ्य जागरूकता जैसी सेवाएं प्रदान करने से जुड़े काम सौंपे जाते हैं।

एक करोड़ से ज्यादा ग्रामीण जनसंख्या वाले 17 मैदानी राज्यों की बात करें तो काफी राज्यों में स्थिति बुरी दिखाई पड़ती है। इनमें से सिर्फ 7 राज्य ही ऐसे हैं जहाँ (आई. पी. एच. एस.) के मानक के अनुसार पर्याप्त सब सेंटर हैं तथा 10 राज्य ऐसे हैं जहाँ प्रति सब सेंटर लोगों की संख्या मानक से ज्यादा है।

इसमें मध्य प्रदेश में औसतन 5302, ओडिशा में औसतन 5660, पंजाब में औसतन 6198, महाराष्ट्र में औसतन 6206, पश्चिम बंगाल में औसतन 6327, असम में औसतन 6397, हरियाणा में औसतन 6816, झारखंड में औसतन 7404, उत्तर प्रदेश में औसतन 8521, बिहार में औसतन 10857 लोगों पर एक सब सेंटर हैं। जबकि आई. पी. एच. एस. के आबादी का मानक 5000 लोगों पर एक सब सेंटर का है।

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प्राथमिक हेल्थ सेंटर

प्राथमिक हेल्थ सेंटर ग्रामीण समुदाय और चिकित्सा अधिकारी के बीच पहला संपर्क बिंदू है। ग्रामीण आबादी की स्वास्थ्य की देखभाल, बीमारियों की रोकथाम और उपचार के लिए सबसे पहले सम्पर्क बिंदू की तरह काम करता है। प्राथमिक हेल्थ सेंटर का राज्य सरकारों द्वारा न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (एम एन पी) बुनियादी न्यूनतम सेवाओं (बी एम एस) कार्यक्रम के तहत स्थापित और रखरखाव किया जाता है। एक प्राथमिक सेंटर में अमूमन एक मेडिकल ऑफिसर के साथ 14 पैरामेडिकल और स्टाफ के तौर पर दूसरे लोग होते हैं और मरीजों के लिए चार से छह बेडों की व्यवस्था की जाती है। आई. पी. एच्. एस. के तहत मैदानी इलाकों में प्रति 30 हजार की आबादी पर एक प्राथमिक हेल्थ सेंटर का प्रावधान है।

1 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण आबादी वाले 17 मैदानी राज्यों में 6 राज्य ऐसे हैं जिनमें आई. पी. एच. एस. के तहत प्राथमिक हेल्थ सेंटर हैं। लेकिन बाकी 11 राज्यों की बुरी स्थिति है।

इनमें आंध्र प्रदेश में औसतन 30687 लोगों पर एक प्राथमिक हेल्थ सेंटर है। असम में औसतन 31405, तेलंगना में औसतन में 33570, महाराष्ट्र में औसतन 36215,पंजाब में औसतन 42327, हरियाणा में औसतन 47955, उत्तर प्रदेश में औसतन 48289, मध्य प्रदेश में औसतन 50671, बिहार में औसतन 56882 लोगो, पश्चिम बंगाल में औसतन 71769, झारखंड में औसतन 95603 लोगों पर एक प्राथमिक हेल्थ सेंटर है। जबकि आई. पी. एच्. एस. के मानक के तहत 30000 लोगों पर एक प्राथमिक हेल्थ सेंटर होना चाहिए।

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कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र)-

कम्युनिटी हेल्थ सेंटर का रख-रखाव एम एन पी / बी एम एस कार्यक्रम के तहत राज्य सरकार के द्वारा किया जाता है सी.एच.सी. के लिए जरूरी है कि वह मेडिकल विशेषज्ञों यानी सर्जन, फिजिशियन, स्त्री रोग विशेषज्ञ और बाल रोग विशेषज्ञ के साथ 21 पैरामेडिकल और अन्य स्टाफ द्वारा समर्थित हो। आई. पी. एच. एस. के आधार पर मैदानी इलाकों में 1,20,000 लोगों पर तथा पहाड़ी इलाकों में 80,000 हजार लोगो की संख्या पर एक कम्युनिटी हेल्थ होना चाहिए।

एक करोड़ से ज्यादा ग्रामीण जनसंख्या वाले 17 मैदानी राज्यों की में सिर्फ 4 राज्य ही ऐसे हैं जहां आई. पी. एच्. एस. के मानकों के आधार पर कम्युनिटी हेल्थ सेंटर हैं बाकी 13 राज्य ऐसे हैं जिसकी स्थिति बहुत ख़राब है।

इनमें पंजाब में औसतन 121095, छत्तीसगढ़ में औसतन 130463, हरियाणा में औसतन 156172, झारखंड में औसतन 166606, असम में औसतन 172729 लोगो, आंध्र प्रदेश में औसतन 182371 लोगो, महाराष्ट्र में औसतन 182881, पश्चिम बंगाल में औसतन 188291, कर्नाटक में औसतन 191306 , मध्य प्रदेश में औसतन 192024 उत्तर प्रदेश में औसतन 212718, तेलंगना में औसतन 237201 लोगों एक कम्युनिटी सेंटर है। जबकि आई. पी. एच्. एस. के मानक के तहत 120000 लोगो पर एक कम्युनिटी हेल्थ सेंटर होना चाहिए।

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आंकड़ों से पता चलता है कि देश में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। हालाँकि इसके साथ जो स्वास्थ्य सेवा केंद्र चल रहे हैं, उनमें पर्याप्त डॉक्टर, न्यूनतम उपकरण, दवाईयाँ और सही इलाज की मौजूदा हालत को जोड़ दी जाए तो स्थिति और बदतर दिखती है। अब आप ही सोचिये कि इस देश में सीएए-एनआरसी जैसे पहल ज़रूरी हैं या लोगों की बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देना।

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