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मज़दूर-किसान
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राजनीति
अध्ययन: यूपी में गन्ना किसान को इस बार 3,434 करोड़ के नुकसान का अनुमान!
स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादे के हिसाब से देखें तो किसानों को उनकी लागत में 50% जोड़कर मूल्य नहीं दिया जा रहा है। किसान संगठनों के हिसाब से देखें तो ये नुकसान और भी ज़्यादा है।
पुलकित कुमार शर्मा
03 Jan 2020
यूपी में गन्ना किसान

पिछले 3 सालों से गन्ने के मूल्य में कोई वृद्धि नहीं की गयी है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की लागत से तुलना की जाये तो सरकारी आकड़ों के अनुसार आने वाली फसल में किसानों को लगभग 3,434 करोड़ रुपये का नुकसान होने वाला है।

हाल ही में वर्ष 2019-20 की फ़सल के मूल्य निर्धारित किये गए थे जिसमें गन्ना किसानों को लागत का 50 प्रतिशत जोड़कर भी मूल्य नहीं दिया जा रहा है। भारत सरकार, कृषि मंत्रालय के विभाग (कृषि लागत एवं मूल्य आयोग) द्वारा जारी आकड़ों के अनुसार गन्ने में आने वाली लागत C2, 231 रुपये/क्विंटल तय की गयी है। लागत C2 में लागत की 50% की वृद्धि जोड़कर 346 रुपये /क्विंटल मूल्य होता है लेकिन सरकार द्वारा सामान्य वर्ग के गन्ने का मूल्य 2017-18 में 315 रुपये/क्विंटल तय किया गया था जिसमे कोई वृद्धि नहीं की गयी है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में इस साल लगभग 26.79 लाख हेक्टेयर ज़मीन में गन्ना पैदा होगा।अगर सरकार के हिसाब से ही देखा जाये तो इस वर्ष उत्तर प्रदेश में अनुमानित गन्ने की पेराई में किसानों को लगभग 3434 करोड़ रुपये का घाटा आने वाला है।

वही राष्ट्रीय किसान मज़दूर संगठन, जिला बिजनौर के अध्यक्ष अचल शर्मा ने गन्ने में आने वाली अनुमानित लागत 312 रुपये /क्विंटल निकाली है जिसका लागत + 50% वृद्धि पर 467 रुपये / क्विंटल मूल्य होता है लेकिन राष्ट्रीय किसान मज़दूर संगठन सरकार से मांग कर रही हैं की कम से कम 435 रुपये/क्विंटल के रेट से किसानों को मूल्य मिलना चाहिए।

वर्ष 2019-20 में उत्तर प्रदेश चीनी मिलों द्वारा गन्ने की अनुमानित पेराई लगभग 10,900 लाख क्विंटल की होगी अगर सरकार द्वारा 435 रुपये/क्विंटल के रेट से मूल्य नहीं मिला तो प्रति क्विंटल किसान को 120 रुपये का नुकसान होगा। इसका मतलब आने वाली फसल में किसानों को 13,080 करोड़ का नुकसान का सामना करना पड़ेगा।

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अचल शर्मा द्वारा अनुमानित लागत के आंकड़े बताते हैं एक एकड़ ज़मीन को किराये पर लेने में आने वाला खर्च 40,000 रुपये का है जिसमें बीज बोने से पहले ज़मीन की जुताई व् गुढ़ाई का खर्च 5,000 रुपये/एकड़ का है। फिर इसमे लगभग 10,000 रुपये का बीज का खर्च आता है और साल भर में 4,500 रुपये का खर्च गन्ने की सिंचाई में आता है। पौधों की अच्छी उन्नति के लिए 4,000 रुपये उर्वरक खाद में खर्च होते हैं तथा 5,000 रुपये का खर्च पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले वाले कीटों से बचाव के लिए कीटनाशक दवा में आता है। और लगभग 25,000 रुपये का खर्च जब गन्ना तैयार हो जाता है उसकी छुलाई व ढुलाई में आता है। इन सब खर्च को जोड़ा जाये तो एक एकड़ में लगभग 93,500 रुपये का खर्च आता हैं और एक एकड़ ज़मीन में गन्ने का उत्पादन 300 क्विंटल तक का होता है। अगर प्रति क्विंटल गन्ने की लागत निकाली जाये तो 312 रुपये /क्विंटल की आती हैं जिसमें सरकार द्वारा 315 रुपये /क्विंटल ही सरकार द्वारा गन्ने का भुगतान किया जा रहा है।

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इस तरह देखें तो किसानों को सिर्फ़ लागत ही मिल पाई। उसकी मेहनत उसका मुनाफा तो किसी ने सोचा ही नहीं। इसी को स्वामीनाथन कमेटी कहा था। जिसमें किसानों को उसकी लागत से 50 फीसदी ज़्यादा कीमत देने की सिफारिश की गई।

अखिल भारतीय किसान सभा के पश्चिम उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष रामपाल सिंह ने कहा देश के आर्थिक सुधार के लिए किसान की आय में सुधार बहुत जरूरी है। क्योंकि देश की लगभग 50% आबादी कृषि पर आधारित है। उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा गन्ने उगाने वाला प्रदेश है। गन्ना, किसानों की आय का मुख्य स्रोत है। अगर गन्ने के मूल्य में सुधार नहीं किया जायेगा तो किसानों की आमदनी पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा जिसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी होगा।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा जारी आंकड़ों में जहाँ 2015-16 लागत C2 249 रुपये/क्विंटल थी जो 2016 -17 में घट कर 242 रुपये/क्विंटल हो गयी थी 2017-18 में यह लागत और घटकर 234 रुपये/क्विंटल पर आयी थी। 2018-19 में थोड़ी बढ़ी परन्तु 2015-16 की तुलना में कम रही। 2019-20 में यही लागत घट कर 231 रुपये/क्विंटल रह गयी। इसका मतलब यह होता हैं 2015 -16 के बाद से 2019 -20 तक सरकारी आंकड़ों के अनुसार लागत C2 में गिरावट आयी है परन्तु अगर हम धरातल पर वास्तविकता देखें तो पाते है कि कृषि में आने वाली सभी प्रकार की लागतों में लगातार वृद्धि हुई है |

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा जारी लागत C2(रुपये /क्विंटल)

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कृषि लागत एवं मूल्य आयोग रिपोर्ट में, बहुत अधिक मात्रा में गन्ने की सप्लाई, गन्ना उत्पादित ज़मीन में लगातार बढ़ोतरी और अन्तरराष्ट्रीय स्तर बहुत अधिक मात्रा में गन्ने के उत्पादन का हवाला देते हुए वर्ष 2019-20 में गन्ने के मूल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं की गयी हैं लेकिन सवाल यह निकलता हैं क्या इन कारणों से किसान की लागत में रुपये/क्विंटल गिरावट आयी है क्योकि किसानों के अनुसार लागत तो हर साल बढ़ रही है।

गुड़ की फ़ैक्टरियों में गन्ने का विवरण

ऊपर दिए सभी आंकड़े चीनी मीलो में होने वाली पेराई के हैं इनसे अलग कृषि विशेषज्ञों का कहना हैं कि कुल उत्पादित गन्ने का लगभग एक तिहाई गन्ना, गुड़ बनाने वाली फेक्ट्रियों में जाता हैं जिसका औसतन मूल्य 225 रुपये/क्विंटल है। पैसे की जरूरत और नई फ़सल को उगाने के कारण लगभग 90 रुपये/क्विंटल का किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है। वर्ष 2019-20 में उत्तर प्रदेश में अनुमानित गन्ने का उत्पादन 2156 लाख टन का है जिसका एक तिहाई 7186 लाख क्विंटल का होता है। 90 रुपये/क्विंटल के नुकसान पर किसानों का अनुमानित घाटा 6,468 करोड़ का होगा।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना हैं किसानों को उनकी लागत का दोगुना दाम दिया जायेगा लेकिन हकीक़त यह हैं कि उनको कुल लागत में 50% जोड़कर मूल्य नहीं दिया जा रहा है। इस स्थिति से सरकार की नीयत साफ नजर आती है कि मौजूदा बीजेपी सरकार किसान के पक्ष में कहाँ खड़ी है।

सरकार की गलत नीतियों के विरोध में उत्तर प्रदेश के किसानों ने ग्रामीण भारत बंद का एलान किया है। 8 जनवरी को सभी किसान मिलकर लखनऊ में विरोध करेंगे

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