NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मुस्लिम महिलाओं की नीलामीः सिर्फ क़ानून से नहीं निकलेगा हल, बडे़ राजनीतिक संघर्ष की ज़रूरत हैं
बुल्ली और सुल्ली डील का निशाना बनी औरतों की जितनी गहरी जानकारी इन अपराधियों के पास है, उससे यह साफ हो जाता है कि यह किसी अकेले व्यक्ति या छोटे समूह का काम नहीं है। कुछ लोगों को लगता है कि सख्त कानूनी कार्रवाई ही इसका इलाज है। उन्हें समझना चाहिए कि हिंदुत्व के इस आक्रामक अभियान को इतनी आसानी से नहीं रोका जा सकता है।
अनिल सिन्हा
13 Jan 2022
muslim women
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

समाज में आगे बढ़कर काम करने वाली और सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने वाली मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी कराने वालों के खिलाफ कार्रवाई धीमी गति से चल रही है। देश के सजग लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिख कर मामले का स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह भी किया है। लेकिन इस अपराध की वैचारिक जड़ों को ढूंढने तथा समझने का काम अभी अधूरा है। इतना तो साफ हो गया है कि यह सिर्फ सांप्रदायिक नफरत में बह कर मुस्लिम औरतों के सम्मान से छेड़छाड़ का मामला नहीं है। और यह भी कि कट्टरपंथी हिदुत्व के इन समर्थको ने सिर्फ नाजीवाद से प्रेरित होकर ऐसा नहीं किया है। ये लोग कट्टरपंथी हिंदुत्व के संगठित अभियान के हिस्सा हैं और उनका लक्ष्य दूरगामी है। निशाना बनी औरतों की जितनी गहरी जानकारी इन अपराधियों के पास है, उससे यह साफ हो जाता है कि यह किसी अकेले व्यक्ति या छोटे समूह का काम नहीं है। कुछ लोगों को लगता है कि सख्त कानूनी कार्रवाई ही इसका इलाज है। उन्हें समझना चाहिए कि हिंदुत्व के इस आक्रामक अभियान को इतनी आसानी से नहीं रोका जा सकता है। 

असल में, फासीवाद विरोध की राजनीति को नई शक्ल देने की जरूरत है जिसमें महिलाएं आगे की कतार में हों। हमारे सामने यह सवाल है कि क्या मौजूदा राजनीतिक संगठन या महिलाओं के संगठन इस फासीवादी अभियान का मुकाबला करने में सक्षम हैं?
एक ऐसे समय में आक्रामक हिंदुत्वादियों ने खुल कर एक हिटलरवादी या नाजीवादी राह पकड़ी है जब हिंदुत्व अपना समर्थन गंवाने लगा है। यह सही है कि नफरत और हिंसा को आधार बनाने वाली विचारधारा ने भारतीय मानस को दूषित करने में बड़ी सफलता हासिल कर ली है, उसे आगे बढ़ने के लिए उन्माद पैदा करने के नए तरीकों की जरूरत आन पड़ी है। 

हिंदुत्व के कमजोर होने की गति को पहचानना है तो पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों को देखना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय मंत्रिमंडल और आरएसएस के पूरे तंत्र की कसरत का नतीजा क्या निकला? बेशुमार पैसा, मीडिया और बाहुबल का साथ भी भाजपा को जिता नहीं पाया। उनका प्रचार अभियान छिछले स्तर के मुस्लिम-विरोध, महिला-विरोध और हर प्रगतिशील सोच के विरोध से भरा था। ममता बनर्जी सत्ता-विरोधी लहर से जूझ रहीं थीं, फिर भी उन्हें लोगों ने भारी विजय दी।

मोदी-मैजिक का नाम देकर मीडिया ने 2014 से जो तमाशा खड़ा किया था, उसका हश्र हम राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा  से लेकर कर्नाटक के विधान सभा चुनावों में देख चुके हैं। जोड़-तोड़ से सरकार बनाना और बात है। यह मैजिक अब स्टंट में बदल चुका है। उत्तर प्रदेश में सरकारी तंत्र के जरिए बसें भर कर लाने, पूजा-पाठ, सेना के कार्यक्रमों आदि उपायों से भीड़ नहीं जुटाई जा सकी। फिरोजपुर की खाली कुर्सियां हिंदुत्व की घटती साख की गवाही दे रही हैं। सुरक्षा-चूक की असिलयत भी सुप्रीम कोर्ट की जाँच में सामने आ ही जाएगी।

लेकिन हिंदुत्व की घटती लोकप्रियता का यह अर्थ नहीं है कि इस विचारधारा की जड़ें कमजोर हो गई हैं। इसने देश की एक बड़ी आबादी के मन में जहर भर दिया है। यह सिर्फ मुसलमानों तथा दूसरे अल्पसंख्यकों के बारे में नहीं है। यह समाज के वंचित तबकों-दलित, पिछड़ों, आदिवासियों तथा औरतों के लिए भी है। यह उनके अधिकारों तथा आजादी के सवालों को देशद्रोही गतिविधियों का हिस्सा मानता है। इनके साथ खड़े होने वाले उदार विचारों के लोग उनके नंबर एक दुश्मन हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि विकास, राम मंदिर, तीन तलाक, नागरिकता कानून संशोधन और धारा 370 को चुनावी राजनीति में इस्तेमाल करने से संघ परिवार का हिंदू राष्ट्र बनाने का लश्य पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा है। बजंरग दल, राम सेना जैसे अनेक संगठनों के जरिए फैलाए जा रहे आक्रामक हिंदुत्व से भी काम नहीं चल रहा है।

संघ परिवार मॉब लिंचिंग, चर्चों पर हमले, नमाज के स्थलों को निशाना बनाने, लव जिहाद के नाम पर अंतरधार्मिक शादियों का रास्ता बंद करने का कार्यक्रम भी चलाता रहा है। औरतों की आजादी पर हमला भी उनके अभियान का प्रमुख हिस्सा है जिसमें लिबास की नैतिकता से जोड़ने, वैलेंटाइन डे मनाने का विरोध और रोमियों स्क्वैड  के नाम पर लड़के-लड़कियों को मिलने-जुलने से रोकना कार्यक्रम शामिल है। तानाशाही तथा सैन्यवादी तंत्र बनाने के उसके लक्ष्य में सबसे बड़ी बाधा आजादी के आंदोलन की विचारधारा है। औरतों ने आजादी के आंदोलन के दौरान और आजादी के बाद जो हासिल किया है उसे मिटाना उनका लक्ष्य है।

डसका यह अभियान फासीवादी इटली तथा नाजीवादी जर्मनी में औरतों की आजादी तथा उनकी बराबरी को सिलसिलेवार करने के अभियान से मिलता-जुलता है। यही नहीं फासीवाद तथा नाजीवाद के पक्ष में औरतों की एक आबादी को खड़ा भी किया गया था। जर्मनी में महिलाओं की यह आबादी तो यहूदियों के सफाए और नाजी सैन्य अभियानों में भागीदार भी बनी। नाजी पार्टी ने पहले तो औरतों के प्रगतिशील संगठनों को छिन्न-भिन्न किया। उन पर वैचारिक हमले किए और उन्हें तोड़ने की साजिश की। फिर नाजियों ने जर्मनी की औरतों से वह जगह छीन ली जो विश्वविद्यालयों से लेकर राजनीति में उन्होंने हासिल की थी।

अंत में, उन्हें घर संभालने वाली मां और पत्नी की पुरूष के पीछे चलने वाली भूमिका अपनाने के लिए मानसिक और वैचारिक तौर पर मजबूर किया गया। मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी की आरोपी हिंदुत्ववादी ने नाजी जर्मनी में ‘‘आर्यों’’ की आबादी बढ़ाने के लिए प्रेरित करने वाली पोस्टर को सीधे कॉपी कर भी सोशल मीडिया में डाला था। भारत में मुसलामानों की आबादी को लेकर चलाई जा रही बहस की प्रेरणा का स्रोत हम नाजी जर्मनी में यहूदियों की अबादी पर चलने वाली बहस में देख सकते हैं। नाजियों की आर्यवंशी माता की इस छवि को औरतों की हिदुत्ववादी छवि में हम पाते हैं। इटली में औरतों के अधिकार कथित राष्ट्रहित में छीने गए थे और जर्मनी में यह काम आर्यों की रक्त-शुद्धता के नाम पर किया गया। भारत में हिदू राष्ट्र के नाम पर औरतों की बराबरी छीनने की साजिश है।

आरएसएस ने महिलाओं के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं वे हैं मातृत्व, नेतृत्व और कर्तृत्व। उसे परिवार में माता और पत्नी का दयित्व निभाना है और इसी भूमिका में नेतृत्व में आना है। यही लक्ष्य मुसोलिनी और हिटलर ने निर्धारित किए थे। यह संघ परिवार के इतिहास में हम आसानी से दे सकते हैं। आरएसएस अपनी स्थापना के सौ साल पूरा करने की दहलीज पर है और हिंदू महासभा अपने सौ साल पूरे कर चुका है। लेकिन इतने सालों में उन्होंने औरतों की आजादी का कोई कार्यक्रम नहीं चलाया और न ही उन्हें नेतृत्व की पांत में उन्हें खड़ा किया।

दूसरी ओर भारत की आजादी का आंदोलन है जिसने सरला रानी चौधरी, एनी बेसेंट, सरोजनी नायडू, सुचेता कृपलानी से लेकर कमलादेवी चट्टोपाध्याय, मृदुला साराभाई, गोदावरी पारूलेकर, हाजरा बेगम तथा अरूणा आसफ अली जैसी आगे की पंक्ति में खड़ी महिलाएं पैदा कीं। यह सावित्री बाई फुले और फतिमा शेख  जैसी नारी-मुक्ति में अपना जीवन लगाने वाली समाज-सुधारकों की लंबी परंपरा का विस्तार ही था। हिदू महासभा और आरएसएस के खाते में ऐसा कुछ नहीं है।

आजादी के बाद भी इसने साध्वी ऋतंभरा, प्रज्ञा ठाकुर जैसी आग उगलने वाली महिलाओं का तबका ही खड़ा किया है। दूसरी ओर मान्यवर कांशीराम को मायावती जैसी महिला को आगे लाने का श्रेय जाता है तो कांग्रेस के पास भी इंदिरा गांधी से लेकर ममता बनर्जी को मौका देने का इतिहास है। आजादी के आंदोलन ने हिंदी में सुभद्रा कुमारी चौहान तथा महादेवी वर्मा जैसी कवियों को जन्म दिया। यही दूसरी भाषाओं में भी दिखाई देता है। गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह से लेकर अगस्त क्रांति तक लगातार महिलाओं को संघर्ष में नेतृत्वकारी भूमिका दी। घर की चारदीवारियों से निकल कर सत्याग्रह तथा पिकेटिंग में खुल कर हिस्सा लेने के लिए उन्हें तैयार किया।

आजादी के आंदोलन ने उपनिवेशवाद के विरोध की नई नैरेटिव खड़ी की थी। यह खुले विचारों की थी, लेकिन यूरोपीय सोच की नकल नहीं थी। इसके मुकाबले हिंदू महासभा और आरएसएस की विचारधारा थी जिसका मूल स्रोत इटली का फासीवाद और जर्मनी का नाजीवाद है। पश्चिमीकरण बनाम भारतीयता को इसने झूठा नैरेटिव खड़ा किया है। असल में, भारतीयता के नाम पर वह जो थोपना चाहता है वह बौद्ध, जैन तथा कर्मकांड के खिलाफ उभरे विचारों से लेकर तथा भक्ति आंदोलन की भारत की समृद्ध परंपरा के विपरीत है। यह एक ओर फासीवादी है और दूसरी ओर सामंतवादी। यह भारत की प्रगतिशील परंपरा और पश्चिम की प्रगतिशील परंपरा, दोनों के खिलाफ है।

भारतीय संस्कृति को नए तरीके से देखने का सूत्र डॉ. राममनोहर लोहिया ने सुझाया है। उनका कहना था कि इस देश का आदर्श सीता-सावित्री नहीं, द्रौपदी होनी चाहिए। भारतीय नारी द्रौपदी जैसी होनी चाहिए जिसने कभी भी किसी पुरूष से दिमागी हार नहीं खाई। हिंदुत्ववादियों का हमला भी उन्हीं औरतों पर है जो पुरूष से दिमागी हार नहीं खाती हैं।

मातृत्व को लेकर भी डॉ. लोहिया का यह कथन याद आता है जिसमें वह कहते हैं कि आज के हिंदुस्तान में एक मर्द और एक औरत शादी करके सात-आठ बच्चे पैदा करते हैं उनके बनिस्बत मै उनकों पसंद करूंगा जो बिना शादी किए एक भी नहीं या एक ही पैदा करते हैं।
डॉ. आंबेडकर का कहना था कि कोई भी संघर्ष अधूरा है जिसमें औरतों की शक्ति नहीं हो।

हिंदुत्ववाद, पुरूषों से दिमागी हार नहीं खाने वाली महिलाओें की आवाज दबाना चाहता है। उसका अभियान नफरत और हिंसा के आधार पर बना एक नाजी तंत्र खड़ा करने के लिए है जिसमें औरत का दर्जा दूसरे नंबर का का हो। इसका मुकाबला व्यापक राजनीतिक संघर्ष से ही हो सकता है। देश के अलग-अलग महिला  संगठनों को नाजी जर्मनी के अनुभवों से सीखना चाहिए और अपनी राजनीति में व्यापक एकता लानी चाहिए। उन्हें संघ परिवार के औरत संबंधी विचारों से टकराना होगा। इसके लिए आजादी के आंदोलन के विचारों से बेहतर प्रेरणा क्या हो सकती है जिसने हर मोड़ पर औरतों की बराबरी देने की कोशिश की?

ये भी पढ़ें: विचार: शाहीन बाग़ से डरकर रचा गया सुल्लीडील... बुल्लीडील

Criminal Law
Law and Technology
women's rights
Bulli Bai
Sulli Deals

Related Stories

राज्यपाल प्रतीकात्मक है, राज्य सरकार वास्तविकता है: उच्चतम न्यायालय

ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) क़ानून और न्याय की एक लंबी लड़ाई

तलाक़शुदा मुस्लिम महिलाओं को भी है गुज़ारा भत्ता पाने का अधिकार 

मेरे मुसलमान होने की पीड़ा...!

दलित और आदिवासी महिलाओं के सम्मान से जुड़े सवाल

नफ़रत का डिजिटलीकरण

सुल्ली डील्स और बुल्ली बाई: एप्स बने नफ़रत के नए हथियार

‘क्लब हाउस चैट’ मामले में एक और गिरफ़्तारी, ‘बिस्मिल्ला’ के नाम से आईडी चला रहा था आरोपी राहुल कपूर  

बुल्ली और सुल्ली डील के बाद ‘क्लब हाउस चैट’ का मामला, हरियाणा से तीन आरोपी गिरफ़्तार

बुल्ली बाई और सुल्ली डील जैसे ऐप्स क्या दर्शाते हैं?


बाकी खबरें

  • BIRBHUMI
    रबीन्द्र नाथ सिन्हा
    टीएमसी नेताओं ने माना कि रामपुरहाट की घटना ने पार्टी को दाग़दार बना दिया है
    30 Mar 2022
    शायद पहली बार टीएमसी नेताओं ने निजी चर्चा में स्वीकार किया कि बोगटुई की घटना से पार्टी की छवि को झटका लगा है और नरसंहार पार्टी प्रमुख और मुख्यमंत्री के लिए बेहद शर्मनाक साबित हो रहा है।
  • Bharat Bandh
    न्यूज़क्लिक टीम
    देशव्यापी हड़ताल: दिल्ली में भी देखने को मिला व्यापक असर
    29 Mar 2022
    केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के द्वारा आवाह्न पर किए गए दो दिवसीय आम हड़ताल के दूसरे दिन 29 मार्च को देश भर में जहां औद्दोगिक क्षेत्रों में मज़दूरों की हड़ताल हुई, वहीं दिल्ली के सरकारी कर्मचारी और…
  • IPTA
    रवि शंकर दुबे
    देशव्यापी हड़ताल को मिला कलाकारों का समर्थन, इप्टा ने दिखाया सरकारी 'मकड़जाल'
    29 Mar 2022
    किसानों और मज़दूरों के संगठनों ने पूरे देश में दो दिवसीय हड़ताल की। जिसका मुद्दा मंगलवार को राज्यसभा में गूंजा। वहीं हड़ताल के समर्थन में कई नाटक मंडलियों ने नुक्कड़ नाटक खेलकर जनता को जागरुक किया।
  • विजय विनीत
    सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी
    29 Mar 2022
    "मोदी सरकार एलआईसी का बंटाधार करने पर उतारू है। वह इस वित्तीय संस्था को पूंजीपतियों के हवाले करना चाहती है। कारपोरेट घरानों को मुनाफा पहुंचाने के लिए अब एलआईसी में आईपीओ लाया जा रहा है, ताकि आसानी से…
  • एम. के. भद्रकुमार
    अमेरिका ने ईरान पर फिर लगाम लगाई
    29 Mar 2022
    इज़रायली विदेश मंत्री याइर लापिड द्वारा दक्षिणी नेगेव के रेगिस्तान में आयोजित अरब राजनयिकों का शिखर सम्मेलन एक ऐतिहासिक परिघटना है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License