न्यूज़क्लिक पर ईडी की छापेमारी के बहाने हो रहे हमले के ख़िलाफ़ देश-समाज की तमाम लोकतांत्रिक आवाज़े उठी हैं। न सिर्फ़ पत्रकार बल्कि अन्य लोगों ने भी लिखकर, बोलकर अपनी एकजुटता जाहिर की है। तमाम साथी पत्रकारों ने एकजुटता में अपने लेख व अन्य सामग्री भेजी है या सोशल मीडिया पर साझा की है। ऐसे ही एक साथी पत्रकार उपेंद्र चौधरी ने #standwithnewsclick हैशटैग के साथ एक कविता लिखी है- सच, डर और छापे। आइए आज ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं उनकी यही कविता।
सच, डर और छापे
राज़ी नहीं होने पर
डर जाता है राजा
दलील नहीं होने पर
सिहर जाता है इंसाफ़
मूक नहीं होने पर
बिफर जाती है मनमानी
अंधेरा नहीं होने पर
ठिठक जाते हैं दस्यु
उंगलियां उठ जाने पर
बिखर जाते हैं साम्राज्य
मगर,
असहमतियों
दलीलों
बेबाकियों
रौशनी
और
उंगलियों के उठ जाने के बीच
दमक उठता है सच
हांफ़ने लगता है झूठ
बिदक उठता है प्रतिशोध
तपतपाने लगता है आपा
फिर एक दिन
भरम का चरम रचते हुए
पड़ने लगता है छापा
- उपेंद्र चौधरी
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