NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
इतवार की कविता : कंटीले तार लम्बी नुकीली कीलों के घेरे में लोकतंत्र
दिल्ली की सरहदों समेत पूरे देश में किसान आंदोलन जारी है। “उन्हें मालूम था/ उनकी मुठभेड़/ ताक़त से है/ तब भी इंतज़ार है/ अच्छी ख़बर का”... वाकई अच्छी ख़बर का सबको इंतज़ार है। एक किसान से लेकर एक कवि तक। तो आइए इसी सिलसिले में ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं वरिष्ठ कवि और संस्कृतिकर्मी शोभा सिंह की नयी कविता।  
न्यूज़क्लिक डेस्क
21 Feb 2021
कंटीले तार लम्बी नुकीले कीलों के घेरे में लोकतंत्र

कंटीले तार लम्बी नुकीली कीलों के घेरे में लोकतंत्र

 

बेहद ठंडा

पथरीलापन

अचानक छू गया

गर्म रजाई में

जब ख़्याल में उतरे

हज़ारों हज़ार किसान

खुले आकाश तले

बर्फ़ीली हवाओं में

मज़बूत इरादों की दीवार बनाए

धारा के विपरीत

हौसले के आवेग की

लहरों के साथ

तन कर खड़े

प्रचलित किसान की

परम्परागत छवि को तोड़ते

आज की दुनिया में

सब से अलग

आंदोलन को इंसानियत के

काबिल बनाते

अपने संघर्ष में

उजाले की गति भरते

पूरी आज़ादी की शान से

लहराते एकता का तिरंगा

नसों में लहू के साथ

जीतने का जोश भरते

अपने मुद्दो पर अडिग

विनम्र अनुशासित

धर्म निरपेक्ष भाईचारे से बंधे

सरकार के तीन कृषि-क़ानूनों के ख़िलाफ़

लोकतांत्रिक ढंग से लामबंद

 

आती हैं ख़बरें

उन पर ज़ुल्म बढ़ने की

शहर का अंधिकांश सुविधाभोगी वर्ग

सिमटा है डर के खोल में

और

दिल्ली के बॉर्डर ने

निर्भीक उत्साह से छलकती

गुलज़ार आवाज़ें

स्त्रियों, युवा, बुज़ुर्ग और बच्चों की

किसान विरोधी क़ानून वापस लो

तब तक हम वापस नही जाएगें

अब यहीं हमारा डेरा है

छह महीने का राशन है

आगे और जुड़ेगा

 

अन्नदाता की अपील है

हमें दया की भीख नही

अपना हक़ चाहिए

 

हड्डियाँ छेदती इस ठंड से

वाकिफ़ हैं हम

हमें डराओ नही

पूस की शीत लहरी में ही

फसलों की रखवाली करते हैं

शरद में सितारों की छाँव तले

खेतों में पानी लगाते

घने कोहरे के भीतर धंस

बदलाव की पीली रौशनी में

श्रम साधना

ये बारिश, आधियां, धूप

हमारी दोस्त हैं

आज स्त्री मन की तहों में भी

इन क़ानूनों के ख़िलाफ़

विद्रोह की गर्जना है

हवाओं में दूर तक

बीज की तरह बिखर जाएगी

 

ये किसान स्त्रियां

हमारी सबसे मज़बूत बराबर की साथी

हर मोर्चे पर सक्रिय

पितृसत्ता की काली छाया से मुक्त

होती हुई

सही ख़बर के लिए

अपना अख़बार तक निकालती बेटियां

 

तुम्हारे शब्द बाणों से

घायल हुए हम

हमें कई नामों से नवाज़ा

आंतकवादी, खालिस्तानी, देशद्रोही

गद्दार, टुकड़े-टुकड़े गैंग और भी बहुत कुछ

हमारे आत्म सम्मान पर

घन चोट

 

जीवन को बचाने के लिए

मुट्ठी भर अनाज से

जुड़ता है हमारा सुख

उसे अडानी अम्बानी जैसे

अपने संरक्षित पूंजीपति को

बेच देना चाहते हो

अपनी ज़मीन नहीं देंगे

अपनी मेहनत की फसलें

जमाखोरी के गोदामों में

सड़ने नहीं देंगे

नहीं चाहिए ग़ुलामी

हम सब मिल कर

देंगे चुनौती

 

जैसे जंगल, ज़मीन नदी, गांव से

बेदख़ल किया

आदिवासी, दलित को

अब यही खेल हमसे

नहीं बिल्कुल नहीं

सलामत रखनी है अपनी धरती

 

सामने एक लक्ष्य

उनकी जायज़ मांगे

यह किसान उतना ही

देशभक्त है

जितना सरहद पर लड़ता जवान

जो तिरंगे के लिए शहादत देकर

तिरंगे में लिपट

किसानों के आंगन में

भेजा जाता रहा है

 

लोकतंत्र की जीवंतता का प्रतीक है

यह आंदोलन

तुम्हारे टी.वी. एंकर क्यों हमारे लिए

विषैले वायरस छोड़ते हैं

धैर्य से हम सब

सरकारी वार्ता में

शामिल होते रहे

बस

झूठे आश्वासनों में फंसे नहीं

अपने आंदोलनकारी साथियों की मौत को

शहादत का दर्जा देते

मन की बेचैनी में टीस थी

लोकतंत्र में यह हत्या लगती

 

उनके धीरज

सघन वट वृक्ष की फैली जड़ें

धरती के सीने में उतरी हुईं

इस फ़ौलादी एकता को

बांटना, काटना और कुचल देना

मुश्किल

 

तमाम साज़िशों में

सिद्धहस्त सत्ता

गणतंत्र दिवस की घटना

घटाई गई

संघर्ष की लोकप्रिय छवि को

कलंकित किया

सच पर झूठ की परतें

चढ़ाते रहे

दम्भ के हमले से

आहत

किसान नेता

अपना विकल दर्द

पलकों में ढांप नहीं पाए

यह आंसू

जन-जन के रक्त में घुल

सैलाब बन उमड़ा

किसानों के स्वाभिमान पर चोट थी

आंदोलन परवान चढ़ा

पूरे वेग से

आत्मविश्वास की लगन से

नारे दिशाओं में गूंजने लगे

“ज़ुल्मी जब जब ज़ुल्म करेगा

सत्ता के हथियारों से

चप्पा-चप्पा गूंज उठेगा

इंक़लाब के नारों से...”

हमारी हार लोकतंत्र की हार है

इसी लोकतंत्र में

हम फतेहयाब होंगे

जो संघर्ष में मरते हैं

वे इतिहास में ज़िंदा रहते हैं।

 

किसानों से डरी सत्ता

बॉर्डर पर खाइयां कीले  कंटीले तार दीवार

बहुपरत की सीमेंटेड बैरिकेडिंग

सर्मथक, आवश्यक सुविधाओं की पहुंच

बाधित

एक फोन की दूरी पर हूं कि जुमलेबाज़ी

और संचार माध्यम काट दिया है

किसानों ने कहा

यह लम्बे संघर्ष की कसौटी है

हम कांटो के पास फूल रोपेंगे

लाख घना अंधेरा हो

हम उम्मीद नहीं छोड़ते

तुम्हारा किया, आंदोलन का मज़ाक बनाना

सब याद रक्खा जाएगा

यह बेमिसाल इतिहास रच रहे थे

ताकि घरों के चूल्हे

जलते रहें

प्रेम और न्याय के पक्ष में

खड़े लोग

आबाद रहें

मनुष्यता के नए शब्द

गढ़े जा रहे थे

पूरे विश्व के आंदोलनजीवी

उन्हें मालूम था

उनकी मुठभेड़

ताक़त से है

तब भी इंतज़ार है

अच्छी ख़बर का।

 

-    शोभा सिंह

इसे भी पढ़ें :  सच, डर और छापे

इसे भी पढ़ें :  इतवार की कविता : सत्ता, किसान और कवि

इसे भी पढ़ें :  'कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गाँव के...' बल्ली सिंह चीमा की कविता

इसे भी पढ़ें :   इतवार की कविता : साधने चले आए हैं गणतंत्र को, लो फिर से भारत के किसान

इसे भी पढ़ें :  माना कि राष्ट्रवाद की सब्ज़ी भी चाहिए/ लेकिन हुज़ूर पेट में रोटी भी चाहिए

Sunday Poem
Hindi poem
farmers protest
Farm Bills
kisan andolan
कविता
हिन्दी कविता
इतवार की कविता

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

किसानों को आंदोलन और राजनीति दोनों को साधना होगा

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License