NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
इतवार की कविता: “काश कभी वो वक़्त ना आए/ जब ये दहक़ां लौट के जाएँ/ गाँव की हदबंदी कर लें…”
दिल्ली की सरहद पर किसान आंदोलन अपने सौ दिन पूरे कर चुका है। इन सौ दिनों में किसानों ने क्या कुछ नहीं झेला। ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते और सुनते हैं इन्हीं सब हालात को बयान करती शायर और वैज्ञानिक गौहर रज़ा की नई नज़्म ‘हदबंदी’।
न्यूज़क्लिक डेस्क
07 Mar 2021

दिल्ली की सरहद पर किसान आंदोलन अपने सौ दिन पूरे कर चुका है। इन सौ दिनों में किसानों ने क्या कुछ नहीं झेला, देशद्रोह के आरोप से लेकर पुलिस की लाठियां तक। वो कील-कांटे, दीवारें भी देखीं जो दिल्ली ‘सल्तनत’ ने उनके आगे खड़ी कर दीं। लेकिन फिर भी किसानों का हौसला और उम्मीद दोनों बरकरार हैं। आज ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते भी हैं और सुनते भी हैं इन्हीं सब हालात को बयान करती शायर और वैज्ञानिक गौहर रज़ा की नई नज़्म ‘हदबंदी’।

हदबंदी

 

घर में चैन से सोने वालों

संघर्षों की पथरीली राहों पर चलना

बिल्कुल भी आसान नहीं है

ये दहक़ां जो सड़कों पर हैं

इन के लिए भी

खेतों को, खलियानों को 

या बाग़ों को, चौपालों को

छोड़ के अपने हक़ की ख़ातिर

दिल्ली की सरहद तक आना

बिल्कुल भी आसान नहीं था

 

काश के ऐसा होता, दिल्ली

तुम ने बाहें खोली होतीं

इनको गले लगाया होता

ज़ख्मों पर कुछ मरहम रखते

इनके दुःख को साझा करते

और कुछ अपने ज़ख़्म दिखाते

इन से कहानी, इनकी सुनते

अपनी भी रूदाद सुनाते

 

काश के ऐसा होता, दिल्ली

तुम इनको मेहमान समझते

तुम इनको भगवान समझते

बाहें खोल के स्वागत करते

गर ये नहीं तो इतना करते

तुम इनको इंसान समझते

काँटों के ये जाल ना बुनते

पत्थर की दीवार ना चुनते

कीलों के बिस्तर ना बिछाते

उन पर तुम इल्ज़ाम ना धरते

तरह तरह के नाम ना धरते

 

काश के ऐसा होता हमदम

संघर्षों के इन गीतों में

एक नग़मा दिल्ली का होता

काश के आज़ादी की पहली

जंग की यादें ताज़ा होतीं

काश के तुम को याद ये रहता

मेरठ के जब बाग़ी पहुँचे

तुम ने क्या सम्मान किया था

दहक़ानों के उन बेटों पर

जान को भी क़ुर्बान किया था

काश कभी वो वक़्त ना आए

जब ये दहक़ां लौट के जाएँ

गाँव की हदबंदी कर लें

काँटों के कुछ जाल बिछाएँ

कीलों के बिस्तर फैलाएँ

और तुम देश के राज सिंहासन पर बैठे तनहा रह जाओ

-         गौहर रज़ा

           25-02-2021

इसे भी पढ़ें-सुनें-

तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो/ अब ये सैलाब हैं/ और सैलाब तिनकों से रुकते नहीं

Sunday Poem
poem
Hindi poem
Gauhar Raza
farmers protest

Related Stories

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

मुस्लिम विरोधी हिंसा के ख़िलाफ़ अमन का संदेश देने के लिए एकजुट हुए दिल्ली के नागरिक

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

ऐतिहासिक किसान विरोध में महिला किसानों की भागीदारी और भारत में महिलाओं का सवाल

पंजाब : किसानों को सीएम चन्नी ने दिया आश्वासन, आंदोलन पर 24 दिसंबर को फ़ैसला

लखीमपुर कांड की पूरी कहानी: नहीं छुप सका किसानों को रौंदने का सच- ''ये हत्या की साज़िश थी'’

इतवार की कविता : 'ईश्वर को किसान होना चाहिये...

किसान आंदोलन@378 : कब, क्या और कैसे… पूरे 13 महीने का ब्योरा


बाकी खबरें

  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते
    29 May 2022
    उधर अमरीका में और इधर भारत में भी ऐसी घटनाएं होने का और बार बार होने का कारण एक ही है। वही कि लोगों का सिर फिरा दिया गया है। सिर फिरा दिया जाता है और फिर एक रंग, एक वर्ण या एक धर्म अपने को दूसरे से…
  • प्रेम कुमार
    बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर
    29 May 2022
    शिक्षाविदों का यह भी मानना है कि आज शिक्षक और छात्र दोनों दबाव में हैं। दोनों पर पढ़ाने और पढ़ने का दबाव है। ऐसे में ज्ञान हासिल करने का मूल लक्ष्य भटकता नज़र आ रहा है और केवल अंक जुटाने की होड़ दिख…
  • राज कुमार
    कैसे पता लगाएं वेबसाइट भरोसेमंद है या फ़र्ज़ी?
    29 May 2022
    आप दिनभर अलग-अलग ज़रूरतों के लिए अनेक वेबसाइट पर जाते होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे पता लगाएं कि वेबसाइट भरोसेमंद है या नहीं। यहां हम आपको कुछ तरीके बता रहें हैं जो इस मामले में आपकी मदद कर…
  • सोनिया यादव
    फ़िल्म: एक भारतीयता की पहचान वाले तथाकथित पैमानों पर ज़रूरी सवाल उठाती 'अनेक' 
    29 May 2022
    डायरेक्टर अनुभव सिन्हा और एक्टर आयुष्मान खुराना की लेटेस्ट फिल्म अनेक आज की राजनीति पर सवाल करने के साथ ही नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र के राजनीतिक संघर्ष और भारतीय होने के बावजूद ‘’भारतीय नहीं होने’’ के संकट…
  • राजेश कुमार
    किताब: यह कविता को बचाने का वक़्त है
    29 May 2022
    अजय सिंह की सारी कविताएं एक अलग मिज़ाज की हैं। फॉर्म से लेकर कंटेंट के स्तर पर कविता की पारंपरिक ज़मीन को जगह–जगह तोड़ती नज़र आती हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License