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हम बच तो जाएंगे, लेकिन कितना बच पाएंगे ?
“कितना बचेगा धरती पर धैर्य/ और थाली में अनाज/ थाली पीटने के काम आएगी या रोटी परोसने के...?” ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं कवि और पत्रकार श्रुति कुशवाह की नई कविता, जो इस कोरोना समय की क्रूर सच्चाइयों को बेहद संवेदनशील ढंग से हमारे सामने रखती है।
न्यूज़क्लिक डेस्क
03 May 2020
इतवार की कविता
'प्रतीकात्मक तस्वीर' फोटो साभार: Medium

हम बच तो जाएंगे
लेकिन कितना बच पाएंगे ?

कितना बचेगा
धरती पर धैर्य
और थाली में अनाज
थाली पीटने के काम आएगी
या रोटी परोसने के ?

दीये का प्रकाश
घर में करेगा उजियारा
या फैलाएगा मूढ़ता का अंधकार
एक साथ रोशन दीये
जला पाएंगे लाचारियाँ ?

जीवन में क्या बचेगा
प्रेम या प्रश्न
प्रश्नों की सूली चढ़ा प्रेम
कितनी साँसें ले पाएगा
प्रेमविहीन जीवन
कितना जीवन होगा ?

बचने के बाद
क्या बच पाएगी
रीढ़ की हड्डी
गर्दन में लचक
क्या सिर उठाने की ताक़त बच पाएगी
हमारे बच जाने के बाद...

श्रुति कुशवाह

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COVID-19
Corona virus epidemic
Lockdown
Lockdown crisis
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Hunger Crisis

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