NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
बुलंदियों पे पहुँचना कोई कमाल नहीं, बुलंदियों पे ठहरना कमाल होता है
राहत इंदौरी के बाद शायर अशोक साहिल भी हमें छोड़कर चले गए। बीती 24 अगस्त को उनका मेरठ के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह गुर्दे में संक्रमण के चलते काफी समय से बीमार चल रहे थे। 1955 में उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में जन्में अशोक कुमार भगत ने शायरी की दुनिया में अशोक साहिल के नाम से अपनी पहचान बनाई। आज ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं उनकी रचनाएं-
न्यूज़क्लिक डेस्क
06 Sep 2020
अशोक साहिल
फोटो साभार : faceinews

क़ितआ

नज़र नज़र में उतरना कमाल होता है

नफ़स नफ़स में बिखरना कमाल होता है

बुलंदियों पे पहुँचना कोई कमाल नहीं

बुलंदियों पे ठहरना कमाल होता है

ग़ज़ल

1.

मेरी तरह ज़रा भी तमाशा किए बग़ैर

रो कर दिखाओ आँख को गीला किए बग़ैर

 

ग़ैरत ने हसरतो का गरेबाँ पकड़ लिया

हम लौट आए अर्ज़-ए-तमन्ना किए बग़ैर

 

चेहरा हज़ार बार बदल लीजिए मगर

माज़ी तो छोड़ता नहीं पीछा किए बग़ैर

 

कुछ दोस्तों के दिल पे तो छुरियाँ सी चल गईं

की उस ने मुझ से बात जो पर्दा किए बग़ैर

2.

अब इस से पहले कि दुनिया से मैं गुज़र जाऊँ

मैं चाहता हूँ कोई नेक काम कर जाऊँ

 

ख़ुदा करे मिरे किरदार को नज़र न लगे

किसी सज़ा से नहीं मैं ख़ता से डर जाऊँ

 

ज़रूरतें मेरी ग़ैरत पे तंज़ करती हैं

मिरे ज़मीर तुझे मार दूँ कि मर जाऊँ

 

बहुत ग़ुरूर है बच्चों को मेरी हिम्मत पर

मैं सर झुकाए हुए कैसे आज घर जाऊँ

 

मिरे अज़ीज़ जहाँ मुझ से मिल न सकते हों

तो क्यूँ न ऐसी बुलंदी से ख़ुद उतर जाऊँ

 

-   अशोक साहिल

(कविताएं साभार : रेख़्ता )

इसे भी पढ़ें : तुम कैसे मारोगे-कितनों को मारोगे/तुम्हारे पास इतनी बंदूकें नहीं/जितने हमारे पास क़लम हैं

इसे भी पढ़ें : ख़रीदो, ख़रीदो, चमन बिक रहा है

इसे भी पढ़ें : …‘सुंदरता के दुश्मनो, तुम्हारा नाश हो !’

इसे भी पढ़ें : वो मुझको मुर्दा समझ रहा है, उसे कहो मैं मरा नहीं हूं

इसे भी पढ़े : 15 अगस्त: इतने बड़े हुए मगर छूने को न मिला अभी तक कभी असल झण्डा

इसे भी पढ़े : ...पूरे सिस्टम को कोरोना हो गया था और दुर्भाग्य से हमारे पास असली वेंटिलेटर भी नहीं था

Sunday Poem
poem
Hindi poem
Poet Ashok sahil
कविता
हिन्दी कविता
इतवार की कविता

Related Stories

वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

इतवार की कविता: वक़्त है फ़ैसलाकुन होने का 

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

...हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    वर्ष 2030 तक हार्ट अटैक से सबसे ज़्यादा मौत भारत में होगी
    23 May 2022
    "युवाओं तथा मध्य आयु वर्ग के लोगों में हृदय संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं जो चिंताजनक है। हर चौथा व्यक्ति हृदय संबंधी रोग से पीड़ित होगा।"
  • आज का कार्टून
    “मित्रों! बच्चों से मेरा बचपन का नाता है, क्योंकि बचपन में मैं भी बच्चा था”
    23 May 2022
    अपने विदेशी यात्राओं या कहें कि विदेशी फ़ोटो-शूट दौरों के दौरान प्रधानमंत्री जी नेताओं के साथ, किसी ना किसी बच्चे को भी पकड़ लेते हैं।
  • students
    रवि शंकर दुबे
    बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?
    23 May 2022
    उत्तराखंड में एक बार फिर सवर्ण छात्रों द्वारा दलित महिला के हाथ से बने भोजन का बहिष्कार किया गया।
  • media
    कुश अंबेडकरवादी
    ज़ोरों से हांफ रहा है भारतीय मीडिया। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पहुंचा 150वें नंबर पर
    23 May 2022
    भारतीय मीडिया का स्तर लगातार नीचे गिर रहा है, वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 150वें नंबर पर पहुंच गया है।
  • सत्येन्द्र सार्थक
    श्रम क़ानूनों और सरकारी योजनाओं से बेहद दूर हैं निर्माण मज़दूर
    23 May 2022
    निर्माण मज़दूर राजेश्वर अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं “दिल्ली के राजू पार्क कॉलोनी में मैंने 6-7 महीने तक काम किया था। मालिक ने पूरे पैसे नहीं दिए और धमकी देकर बोला ‘जो करना है कर ले पैसे नहीं दूँगा…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License