NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
साहित्य-संस्कृति
भारत
‘इतवार की कविता’ : यह सदी किसके नाम
“अन्न का उजाला”, एक शानदार रूपक है। जिसे रचा है वरिष्ठ कवि और संस्कृतिकर्मी शोभा सिंह ने और जिसके जरिये उन्होंने सत्ता द्वारा रचे गए आज के अंधेरे को रेखांकित किया है, उसे चुनौती दी है। वह कहती हैं-“उनके तिलस्म को तोड़ते किसान/ जो अन्न का उजाला/ हमारी दुनिया में भरते…”। आइए इतवार की कविता में पढ़ते हैं किसान आंदोलन को समर्पित उनकी यह नई कविता- “यह सदी किसके नाम”
न्यूज़क्लिक डेस्क
06 Jun 2021
‘इतवार की कविता’ : यह सदी किसके नाम
फोटो : साभार

यह सदी किसके नाम

 

बेबाक नज़र थी

  बातें

    मीठे चश्मे के पानी-सी साफ़

    सब की ज़रूरत रोटी

    सदियों से

          सबको रोटी जोड़ती

          व्यापक एकता का सूत्र

          जो कभी बनी थी

          क्रांति का आह्वान संदेश

 

कठोर बिजली बादल पानी की गरज से

सवाल थे

क्यों

वे अपना मुल्क बेच रहे

अपना ज़मीर गिरवी

अब हमारी रोटी तक

बेच देना चाहते

भूख की सौदागिरी

वे खूंखार-अंधेरे के व्यापारी

वे सीधे सामने नहीं आते

अपने संरक्षक से

अपने हित के क़ानून पास करवाते

लूट को क़ानूनी जामा पहना

हड़प लेना चाहते

हमारी ज़मीनें

छीन लेना चाहते

हमारे बच्चों का भविष्य

फैलाते ख़ौफ़ का राज

लालच का साम्राज्य

उनके तिलस्म को तोड़ते

किसान

जो अन्न का उजाला

हमारी दुनिया में भरते

जो लोक + जमा तंत्र की

   साज़िश

चुनावों में जीत की

दम्भी हेकड़ी

को

समझ बूझ गए

उनकी कतारों में

वक़्त के उस ताने-बाने में

आंदोलन की पुख़्ता बुनावट

डेरा डालो घेरा डालो

की रणभेरी बज रही थी लगातार...

स्त्री पुरुष का भेदभाव नहीं

सब समान, अगुआ भूमिका में

अपनी गरिमा के साथ

स्त्री किसान, पुरुष किसान

बने आंदोलन के सिपाही

इन्सानियत से भरपूर

संज़ीदगी की ढेर सारी

  हुंकारें,  एकताबद्ध

अपनेपन का सरमाया

  बेमिसाल

उधर

बीतते हर दिन

गुपचुप साज़िशें

रचते सत्ता के गुर्गे

सुरक्षा के गोल छल्लों पर

  नफ़रती हिंसा के

  तीर चलाते

  दुष्प्रचार करते

 

अपनी सामर्थ्य भर-आंदोलनकारी

षड्यंत्र की पहचान करते

उसे बेनक़ाब करते

लड़ाई अनवरत जारी रहती

 

गोदी मीडिया

आंदोलन की ख़बरों की

गहरी उपेक्षा करता

सत्ता की चाल

         किसान उपेक्षा से थक हार

         वापस लौट जाएं

   समय का कड़वा सच यह भी

यदि किसान हारा

तो देश हार जाएगा

लोकतंत्र हार जाएगा

यह धरती की पीढ़ियां

हार जाएंगी

 कड़ी मेहनत, क़ुर्बानियों के बाद

देश को ग़ुलामी से आज़ादी मिली

यह दूसरे किस्म की आज़ादी की

    जंग है आरपार की

    जीतने के दृढ़ संकल्प के साथ

बेशक वे हाथों से

कलमें छीन लें

अभिव्यक्ति की सारी आज़ादी छीन

जेलों में डाल दें

अन्नदाता की अगली कतारें तैयार हैं

  आंदोलन के विस्तार को रोकना

नामुमकिन

दहशत की ख़ौफ़नाक परछाइयों के बीच

राह तलाशती आज़ाद रूहें

अपने को खोल रहीं

बंदिशों, वर्जनाओं से मुक्त

  आज़ाद कर रहीं समूह को

देशप्रेम, लोकतंत्र बचाने का सपना

हज़ारों हज़ार आंखों में

अटल ध्रुव तारे सा झिलमिलाता

 

हां, विपरीत मौसम की चपेट

   झेलते

पहलू में बैठने वाले साथियों को

खो देने का भारी दुख

थकते हैं वे

उन्हें गहरी नींद की दरकार

धरती अपना हरियाला आंचल

  बिछा देती

उनकी थकन को

दरख़्तों की प्राणदायिनी हवा

   हर लेती

जत्थे के जत्थे

मज़दूर किसान स्त्रियां

भोर की उजास फूटते ही

ताज़ा दम हो उठते

अपने सृष्टि बीजों को

अपनी विरासत सौंपते

अंधेरे युग में

           रोशनी की बातें करते

कहते ग़ाफ़िल नहीं होना

मुकम्मल दुनिया के लिए

लड़ना ज़रूरी क्यों

पूरे आत्मविश्वास से

लड़ाई लंबी है

 

इक्कीसवीं सदी

           हमारे नाम

           लिखी जाएगी

           देखना   । ।       

 

शोभा सिंह

(कवि-संस्कृतिकर्मी)

इसे भी पढ़ें : 'इतवार की कविता' : आएंगे सरदारजी...

Sunday Poem
Hindi poem
poem
farmers protest

Related Stories

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

ऐतिहासिक किसान विरोध में महिला किसानों की भागीदारी और भारत में महिलाओं का सवाल

पंजाब : किसानों को सीएम चन्नी ने दिया आश्वासन, आंदोलन पर 24 दिसंबर को फ़ैसला

लखीमपुर कांड की पूरी कहानी: नहीं छुप सका किसानों को रौंदने का सच- ''ये हत्या की साज़िश थी'’

इतवार की कविता : 'ईश्वर को किसान होना चाहिये...

किसान आंदोलन@378 : कब, क्या और कैसे… पूरे 13 महीने का ब्योरा

जीत कर घर लौट रहा है किसान !


बाकी खबरें

  • कृष्णकांत
    भारत को मध्ययुग में ले जाने का राष्ट्रीय अभियान चल रहा है!
    10 May 2022
    भारत किसी एक मामले में फिसला होता तो गनीमत थी। चाहे गिरती अर्थव्यवस्था हो, कमजोर होता लोकतंत्र हो या फिर तेजी से उभरता बहुसंख्यकवाद हो, इस वक्त भारत कई मोर्चे पर वैश्विक आलोचनाएं झेल रहा है लेकिन…
  • सोनाली कोल्हटकर
    छात्रों के ऋण को रद्द करना नस्लीय न्याय की दरकार है
    10 May 2022
    छात्र ऋण अश्वेत एवं भूरे अमेरिकिर्यों को गैर-आनुपातिक रूप से प्रभावित करता है। समय आ गया है कि इस सामूहिक वित्तीय बोझ को समाप्त किया जाए, और राष्ट्रपति चाहें तो कलम के एक झटके से ऐसा कर सकते हैं।
  • khoj khabar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब झूठ मत बोलिए, सरकारी आंकड़ें बोलते- मुस्लिम आबादी में तेज़ गिरावट
    09 May 2022
    खोज ख़बर में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बताया कि किस तरह से अंतर्राष्ट्रीय negative ranking से घिरी नरेंद्र मोदी सरकार को अब PR का भरोसा, मुस्लिम आबादी का झूठ NFHS से बेनक़ाब |
  • एम.ओबैद
    बीपीएससी प्रश्न पत्र लीक कांड मामले में विपक्षी पार्टियों का हमला तेज़
    09 May 2022
    8 मई को आयोजित बिहार लोक सेवा आयोग के 67वीं संयुक्त (प्रारंभिक) प्रतियोगी परीक्षा का प्रश्न पत्र लीक होने के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई है। इसको लेकर विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर हमला करना शुरू कर…
  • सत्यम् तिवारी
    शाहीन बाग़ ग्राउंड रिपोर्ट : जनता के पुरज़ोर विरोध के आगे झुकी एमसीडी, नहीं कर पाई 'बुलडोज़र हमला'
    09 May 2022
    एमसीडी की बुलडोज़र कार्रवाई का विरोध करते हुए और बुलडोज़र को वापस भेजते हुए शाहीन बाग़ के नागरिकों ने कहा कि "हम मुसलमानों के दिमाग़ पर बुलडोज़र नहीं चलने देंगे"।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License