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सुप्रीम कोर्ट : प्रवासी कामगारों की चिंता, एनजीओ की तारीफ़, केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश
उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद रेलवे ने राज्यों को पत्र लिखकर उनसे कहा है कि वे प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए 10 जून तक श्रमिक विशेष ट्रेनों के लिए ‘‘समग्र शेष’’ मांग उपलब्ध कराएं।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट/भाषा
09 Jun 2020
सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केन्द्र और राज्यों को निर्देश दिया कि कोविड-19 की वजह से पलायन करने वाले कामगारों को 15 दिन के भीतर उनके पैतृक स्थान पहुंचाया जाये और इनके पुनर्वास के लिये इनकी कौशल क्षमता का आकलन करने के बाद रोजगार की योजनाएं तैयार की जायें। इसी के साथ न्यायालय ने कहा कि कामगारों के साथ पुलिस और दूसरे प्राधिकारियों को मानवीय तरीके से पेश आना होगा क्योंकि वे पहले से ही विपदाओं का सामना कर रहे हैं। यही नहीं न्यायालय ने कामगारों की मदद के लिये एनजीओ की सराहना की।

उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद रेलवे ने राज्यों को पत्र लिखकर उनसे कहा है कि वे प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए 10 जून तक श्रमिक विशेष ट्रेनों के लिए ‘‘समग्र शेष’’ मांग उपलब्ध कराएं।

उच्चतम न्यायालय ने बेहद ज़रूरी हस्तक्षेप किया है लेकिन इसे बहुत देर से उठाया गया कदम या हस्तक्षेप ही माना जा रहा है, क्योंकि इस बीच प्रवासी मज़दूर और अन्य कामगार इतनी ज़्यादा मुश्किलें झेल चुके हैं कि उसका बयान करना भी मुश्किल है। इसके अलावा अब पैदल या किसी न किसी तरह ये प्रवासी अपने गांव घर भी पहुंच गए हैं और अब उनके पास वहां भी रोज़गार की चुनौती है।

 न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने लॉकडाउन के दौरान पलायन कर रहे कामगारों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लिये गये मामले में वीडियो कांफ्रेन्सिंग के जरिये अपने फैसले में विस्तृत निर्देश दिये।

पीठ ने केन्द्र को निर्देश दिया कि इन श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिये अतिरिक्त रेलगाड़ियों की मांग किये जाने पर 24 घंटे के भीतर राज्यों को ट्रेनें उपलब्ध करायी जायें।

न्यायालय ने लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन करने के आरोपों में इन कामगारों के खिलाफ आपदा प्रबंधन कानून के तहत दर्ज शिकायतें वापस लेने पर विचार करने का भी संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश दिया।

पीठ ने प्राधिकारियों को उन कामगारों की पहचान करने का निर्देश दिया जो अपने पैतृक स्थान लौटना चाहते हैं और उन्हें भेजने सहित सारी कवायद मंगलवार से 15 दिन के भीतर पूरी की जाये।

पीठ ने इस मामले को जुलाई में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करते हुये कहा कि इन कामगारों के कल्याण और रोजगार की योजनाओं का समुचित प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कोरोना वायरस महामारी के कारण देश में लागू लॉगडाउन के दौरान अपने अपने पैतृक स्थानों की ओर जा रहे कामगारों की दुर्दशा का स्वत: संज्ञान लिया था। न्यायालय ने मामले में पांच जून को केन्द्र और राज्य सरकारों का पक्ष सुनने के बाद कहा था कि इस पर नौ जून को आदेश सुनाया जायेगा।

श्रमिक विशेष ट्रेनों की शेष मांग 10 जून तक उपलब्ध कराएं राज्य : रेलवे

उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद रेलवे ने राज्यों को पत्र लिखकर उनसे कहा है कि वे प्रवासी मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए 10 जून तक श्रमिक विशेष ट्रेनों के लिए ‘‘समग्र शेष’’ मांग उपलब्ध कराएं।

रेलवे के अनुसार वह एक मई से लेकर अब तक 4,347 श्रमिक विशेष ट्रेनों के जरिए लगभग 60 लाख लोगों को उनके गंतव्य राज्यों में पहुंचा चुका है।

न्यायालय ने श्रमिकों के साथ पुलिस की ज्यादतियों का संज्ञान लिया

इसी के साथ उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौर में देश में लागू लॉकडाउन के दौरान रोजगार गंवाने की वजह से अपने पैतृक स्थलों की ओर जाने के लिये बाध्य हुये कामगारों के साथ पुलिस और दूसरे प्राधिकारियों को मानवीय तरीके से पेश आना होगा क्योंकि वे पहले से ही विपदाओं का सामना कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पलायन करने वाले इन कामगारों के साथ पुलिस और सुरक्षाबलों की ज्यादतियों का संज्ञान लिया और कहा कि संबंधित पुलिस महानिदेशक या पुलिस आयुक्त इस बारे में उचित निर्देश जारी कर सकते हैं।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘रोजगार के अवसर खत्म होने की वजह से पहले से ही बेहाल ये कामगार अपने पैतृक स्थान जाने के लिये बाध्य थे। ऐसी स्थिति में आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे इन कामगारों के साथ पुलिस और दूसरे प्राधिकारियों को मानवीय तरीके से पेश आना होगा।’’

पीठ ने अपने 30 पेज के आदेश में कहा, ‘‘रिकार्ड में उपलब्ध सामग्री से हम यह भी नोटिस करते हैं कि राज्यों के पुलिस अधिकारी, अर्द्धसैनिक बल अपनी तैनाती के स्थानों पर शानदार काम कर रहे हैं लेकिन पलायन कर रहे इन कामगारों के मामले में कुछ ज्यादतियों की घटनायें भी हुयी हैं।’’

न्यायालय ने कहा कि पुलिस और प्रशासन के ज्यादातर अधिकारी पूरी मेहनत और निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं लेकिन फिर भी कुछ खामियों की ओर ध्यान देकर उन्हें दूर करने के लिये कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

कोविड-19 महामारी के दौरान कामगारों की मदद के लिये एनजीओ भरपूर सराहना के पात्र

उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी की वजह से पलायन कर रहे कामगारों की हरसंभव मदद के लिये मंगलवार को गैर सरकारी संगठनों की भूरि भूरि सराहना की और कहा कि वैसे तो प्रवासी श्रमिकों की देखभाल सरकार की जिम्मेदारी थी लेकिन इन संगठनों ने इसमें उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।

शीर्ष अदालत ने पलायन कर रहे कामगारों की मदद के लिये आगे आकर अहम भूमिका निभाने वाले व्यक्तियों की प्रशंसा की ओर कहा कि इन श्रमिकों की परेशानियों से विचलित समाज ने जबर्दस्त समर्पण का परिचय दिया।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह ने अपने आदेश में कहा कि वैसे तो पलायन कर रहे इन कामगारों की मदद करने की जिम्मेदारी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेशों की थी लेकिन कठिनाई की इस घड़ी में गैर सरकारी संगठनों और व्यक्तियों ने इनकी परेशानियां कम करने में महत्वपूर्ण योगदान किया और इसमें अहम भूमिका अदा की है।

पीठ ने कहा, ‘‘इस महामारी से संघर्ष करने के साथ ही पलायन कर रहे श्रमिकों की मदद करने और उनके लिये अपने पैसों से खाना-पानी और उनके जाने का बंदोबस्त करने के लिये ये गैर सरकारी संगठन भरपूर सराहना के पात्र हैं।’’

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अब यह आवश्यक है कि राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश अपने अधिकारियों तथा पर्यवेक्षकों के मामले में उचित कार्रवाई करें ताकि कामगारों के लिये तैयार की गयी योजनाओं और कल्याणकारी उपायों का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंच सके।

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय सांविधानिक अदालतें हैं और कामगारों के मौलिक अधिकारों के हनन का संज्ञान लेना उनके अधिकार क्षेत्र में था। पीठ ने कहा ‘‘ हमें इसमे कोई संदेह नहीं है कि संबंधित प्राधिकारियों के जवाब सहित सारे पहलुओं पर विचार के बाद उन मामलों में आगे कार्यवाही होगी।’’

शीर्ष अदालत ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश उसके समक्ष यही दावा कर रहे हैं कि वे केन्द्र और संबंधित प्राधिकारियों के आदेशों, दिशा-निर्देशों, नीतियों और निर्णयों का पालन कर रहे थे और आवश्यक कदम उठा रहे थे।

पीठ ने कहा कि नीतियों और मंशा के बारे में किसी प्रकार का अपवाद नहीं हो सकता लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि इन नीतियों और आदेशों पर अमल की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गयी है, वे प्रभावी और सही तरीके से इन योजनाओं को लागू करें।

न्यायालय ने कहा कि इस मामले में विभिन्न हस्तक्षेपकर्ताओं ने योजनाओं और नीतियों के अमल में खामियों और कमियों का उजागर किया है।

पीठ ने कहा कि राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की जिम्मेदारी सिर्फ अपनी नीति, उपायों और धन आबंटन का हवाला देने तक नहीं है बल्कि कठोर सतर्कता बरतते हुये यह सुनिश्चित करने की भी है कि क्या इन योजनाओं और उपायों का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंच रहा है।

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