NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कानून
समाज
भारत
राजनीति
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा
सेक्स वर्कर्स को ज़्यादातर अपराधियों के रूप में देखा जाता है। समाज और पुलिस उनके साथ असंवेदशील व्यवहार करती है, उन्हें तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाखों सेक्स वर्कर्स की ज़िंदगी बदलने की उम्मीद है।
सोनिया यादव
27 May 2022
Supreme Court

“सेक्स वर्कर्स को कानून से बराबर संरक्षण का अधिकार है।...इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि प्रोफेशन कोई भी हो, संविधान के आर्टिकल 21 के तहत भारत के हर नागरिक को एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है।”

ये जरूरी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स को लेकर दिए अपने एक ऐतिहासिक आदेश के दौरान की। कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर्स के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव न करके उनके साथ सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सेक्स वर्क यानी की वेश्यावृत्ति एक पेशा है और सेक्स वर्कर्स कानून के अनुसार सम्मान और समान सुरक्षा की हकदार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस से कहा कि अपनी सहमति से सेक्स वर्कर के तौर पर काम करने वालों के खिलाफ न तो उन्हें दखल देना चाहिए और न ही कोई आपराधिक कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।

बता दें कि भले ही वेश्यावृत्ति भारत में वैध है लेकिन इससे जुड़ी ज्यादातर गतिविधियां मसलन कोठे चलाना, सेक्स के लिए उकसाना और बिचौलिये का काम करना आदि अपराध है। इसका नतीजा यह होता है कि यौनकर्मियों को पुलिस के साथ आए दिन उलझना पड़ता है। अक्सर देखा गया है कि सेक्स वर्कर्स को ज्यादातर अपराधियों के रूप में देखा जाता है। समाज और पुलिस उनके साथ असंवेदशील व्यवहार करती है, उन्हें तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है।

मालूम हो कि साल 2011 में कोलकाता में एक सेक्स वर्कर के संबंध में आपराधिक शिकायत दर्ज हुई थी। इस शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई 2011 को अपना एक आदेश जारी कर सेक्स वर्कर्स से जुड़े मुद्दों के लिए एक पैनल का गठन किया था। पैनल को ट्रैफिकिंग रोकने, सेक्स वर्क छोड़ने की इच्छा रखने वाली सेक्स वर्कर्स का पुनर्वास यानी रिहैबिटेशन और अपनी मर्जी से सम्मान के साथ सेक्स वर्कर्स के रूप में काम करने के लिए अनुकूल परिस्थितियों के निर्माण जैसे पहलुओं पर ध्यान देना था।

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण सिफारिशें

इस पैनल ने साल 2016 में सभी स्टेकहोल्डर्स से बातचीत और परामर्श करने के बाद एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसके बाद जब मामला सुनवाई के बाद सूचीबद्ध किया गया था, तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि पैनल की सिफारिशें विचाराधीन थीं और उनको शामिल करते हुए एक मसौदा कानून सरकार ने पब्लिश किया था। लेकिन 2016 से आज 2022 हो गया और इन सिफारिशों के आधार पर सरकार ने कोई कानून नहीं बनाया।

अब इसी तथ्य के मद्देनजर जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच जिसमें जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ए एस बोपन्ना शामिल थे, ने गाइडलाइन्स जारी करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत मिली शक्ति का प्रयोग किया है। कोर्ट ने राज्यों और केंद्र सरकार को पैनल द्वारा की गई इन सिफारिशों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया है।

* संविधान के अंतर्गत दिया गया सम्मान के साथ जीने का मौलिक अधिकार सेक्स वर्कर्स को भी समान रूप से मिला है, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पुलिस को सेक्स वर्कर्स के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए और मौखिक या शारीरिक रूप से उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए।

* बेंच ने आदेश दिया कि जब भी किसी वेश्यालय पर छापा मारा जाए तो सेक्स वर्कर्स को "गिरफ्तार या दंडित या परेशान" नहीं किया जाना चाहिए, "क्योंकि स्वेच्छा से सेक्स वर्क अवैध नहीं है, केवल वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है।"

* कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर्स के बच्चे को सिर्फ इस आधार पर मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में है। कोर्ट ने कहा "मानव गरिमा का मौलिक अधिकार सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों को भी है।"

* यदि कोई नाबालिग वेश्यालय में या सेक्स वर्कर के साथ रहता पाया/पायी जाता है, तो यह नहीं माना लिया जाना चाहिए कि बच्चे की ट्रैफिकिंग की गई है। "यदि सेक्स वर्कर का दावा है कि वह उसका बेटा/बेटी है, तो यह निर्धारित करने के लिए टेस्ट किया जा सकता है कि क्या वह दावा सही है। यदि यह दावा सही है तो नाबालिग को जबरन मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए।"

* यौन उत्पीड़न की शिकार सेक्स वर्कर्स को तुरंत चिकित्सा और कानूनी देखभाल सहित हर सुविधा दी जानी चाहिए। अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि अगर सेक्स वर्कर खासकर किसी ऐसे अपराध को लेकर शिकायत दर्ज करवाए जो यौन उत्पीड़न से जुड़ा हो तो उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

* कोर्ट ने कहा कि मीडिया को इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए कि गिरफ्तारी, छापेमारी और रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान कोई सेक्स वर्कर की पहचान उजागर न करें, चाहे वह सर्वाइवर हों या आरोपी. ऐसी कोई भी तस्वीर पब्लिश या प्रसारित न करें जिससे ऐसी पहचान का खुलासा हो।

* सेक्स वर्कर्स द्वारा प्रोटेक्शन के लिए किए गए उपाय, जैसे कॉन्डम का उपयोग, पुलिस द्वारा उनके "अपराध" के खिलाफ सबूत के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।

* अदालत ने पुलिस को संवेदनशील होने की अपील करते हुए कहा कि ये देखा गया है कि सेक्स वर्कर्स के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है। ऐसा लगता है कि वे एक ऐसा वर्ग हैं जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है।

कोर्ट में ये भी बात रखी कि सेक्स वर्कर्स के आधार कार्ड नहीं बनाए जा रहे हैं क्योंकि वे अपना निवास पते का प्रमाण पेश नहीं कर पा रही हैं। इस बात को सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया। सुप्रीम कोर्ट ने यूआईडीएआई को नोटिस जारी कर इस संबंध में घर का पता ना होने की स्थिति में उसे खत्म करने के संबंध में उनके सुझाव मांगे थे ताकि सेक्स वर्कर्स को आसानी से आधार कार्ड जारी किए जा सकें।

यूआईडीएआई ने अपने हलफनामे में ये प्रस्तावित किया था कि जो सेक्स वर्कर राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन की सूची में हैं और वे आधार कार्ड के लिए आवेदन करती हैं लेकिन उनके पास निवास प्रमाण नहीं है तो उन्हें आधार कार्ड जारी किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सेक्स वर्कर का आधार कार्ड बनाया जा रहा है तो उनके आधार कार्ड पर किसी भी तरह से ऐसे चिह्नित नहीं किया जा सकता जिससे पता लगे कि वे सेक्स वर्कर हैं।

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी मदद का दिया था आदेश

गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी के कारण सेक्स वर्कर्स को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। इसे लेकर भी अदालत में याचिका दायर है, मामले की अगली सुनवाई 27 जुलाई को होनी है, तब तक इन गाइडलाइन्स पर केंद्र सरकार को जवाब भी देना है। कई अलग-अलग आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 10 लाख यौनकर्मी हैं। इनमें से ज्यादातर ना तो वोट दे सकती हैं, ना बैंक खाते खोल सकती हैं और ना ही इन्हें राज्यों से गरीब लोगों को मिलने वाली सुविधाओं का लाभ मिलता है। इनके पास जरूरी दस्तावेजों का नहीं होना इसकी वजह है और अक्सर ये कर्ज के जाल में फंस जाती हैं जहां साहूकार इनसे मनमाना ब्याज वसूलने के साथ ही परेशान भी करते हैं।

बहरहाल, बीते साल ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि पंजीकृत यौनकर्मियों को राशन कार्ड और वोटर आईडी कार्ट जारी किए जाएं और उनका आधार पंजीकरण भी किया जाए। अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक ऐतिहासिक आदेश सामने आया है जिसका दूरगामी परिणाम होने के साथ ही सेक्स वर्कर्स की जिंदगी और सम्मान पर प्रभाव देखने को मिलेगा।

Supreme Court
Sex Workers
Equal Rights for Sex Workers
Constitution of India
Constitutional right
article 21
Fundamental Rights

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ

राज्यपाल प्रतीकात्मक है, राज्य सरकार वास्तविकता है: उच्चतम न्यायालय

राजीव गांधी हत्याकांड: सुप्रीम कोर्ट ने दोषी पेरारिवलन की रिहाई का आदेश दिया

मैरिटल रेप : दिल्ली हाई कोर्ट के बंटे हुए फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, क्या अब ख़त्म होगा न्याय का इंतज़ार!

राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट: घोर अंधकार में रौशनी की किरण

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश

क्या लिव-इन संबंधों पर न्यायिक स्पष्टता की कमी है?

उच्चतम न्यायालय में चार अप्रैल से प्रत्यक्ष रूप से होगी सुनवाई

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 


बाकी खबरें

  • hemant soren
    अनिल अंशुमन
    झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार
    18 May 2022
    एक ओर, राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के कई अहम फैसलों पर मुहर नहीं लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर, हेमंत सोरेन सरकार ने पिछली भाजपा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार-घोटाला मामलों की न्यायिक जांच के आदेश…
  • सोनिया यादव
    असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?
    18 May 2022
    असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है। प्रशासन बाढ़ की रोकथाम के लिए मौजूद सरकारी योजनाओं को समय पर लागू तक नहीं कर पाता, जिससे आम जन को ख़ासी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है।
  • mundka
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुंडका अग्निकांड : क्या मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं?
    18 May 2022
    मुंडका, अनाज मंडी, करोल बाग़ और दिल्ली के तमाम इलाकों में बनी ग़ैरकानूनी फ़ैक्टरियों में काम कर रहे मज़दूर एक दिन अचानक लगी आग का शिकार हो जाते हैं और उनकी जान चली जाती है। न्यूज़क्लिक के इस वीडियो में…
  • inflation
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?
    18 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार शर्मा सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार के पास महंगाई रोकने का कोई ज़रिया नहीं है जो देश को धार्मिक बटवारे की तरफ धकेला जा रहा है?
  • बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    18 May 2022
    ज़िला अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए स्वीकृत पद 1872 हैं, जिनमें 1204 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं, जबकि 668 पद खाली हैं। अनुमंडल अस्पतालों में 1595 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 547 ही पदस्थापित हैं, जबकि 1048…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License