NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
केवल अमेरिकी राष्ट्रपति का चेहरा बदला है, अमेरिका की नियत नहीं!
क्या नए राष्ट्रपति आने के बाद अमेरिका की विदेश नीति भी बदल जाएगी?
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
17 Nov 2020
लेयिला टोंक (यूएसए)
लेयिला टोंक (यूएसए), लंग्स I, 2020

आख़िरकार, बेहद अनिश्चितता के बाद, 1917 की अक्टूबर क्रांति की सालगिरह पर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विरोध में पड़ने वाले मतों की संख्या बढ़ती गई और ट्रम्प को एहसास हो गया कि -70 करोड़ से अधिक मत जीतने के बावजूद- वे फिर से नहीं चुने जाएँगे। उनके प्रतिद्वंद्वी, जो बाइडेन, चार दशकों से सार्वजनिक पद पर हैं और उनका अपना रिकॉर्ड है, जिससे किसी को भी भ्रमित नहीं होना चाहिए। हालाँकि यह बाइडेन के समर्थन से कहीं ज़्यादा ट्रम्प के ख़िलाफ़ एक चुनाव था। बल्कि, यह दुनिया भर के नव-फ़ासीवादियों के ख़िलाफ़ एक लोकप्रिय मत था, जो ट्रम्प के द्वारा नस्लवाद, स्त्री-द्वेष और समाज को विभाजित करने वाली अन्य विकृत सामाजिक रूढ़ियों पर आधारित उनके घृणित एजेंडे के प्रचार से आनंदित होते हैं। चुनाव में ट्रम्प की हार का तत्काल प्रभाव भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो जैसे लोगों पर नहीं पड़ा है; हम देख रहे हैं कि महामारी के दौरान दोनों के लचर प्रदर्शन के बावजूद उनकी वोट संख्या ऊपर की ओर गई है। लेकिन, उनकी अत्यधिक ज़हरीली सोच अब व्हाइट हाउस के मंच से प्रसारित नहीं होगी। 

बतौर राष्ट्रपति बाइडेन व्हाइट हाउस की दीवारों पर पुती ज़हर को तो धो डालेंगे, लेकिन उत्तरी अटलांटिक देशों के सत्तारूढ़ अभिजनों और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के अधिकारियों के हित में काम करने वाली संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार के द्वारा दुनिया पर बरपाए जाने वाले "सामान्य" आतंक उनके शासन में भी जारी रहेगा। जनवरी 2021 में बाइडेन द्वारा पदभार सँभाल लिए जाने के बाद की परिस्थितियों को लेकर किसी प्रकार का  भ्रम नहीं होना चाहिए। अहम मुद्दों पर न के ही बराबर बदलाव होगा, जैसे क्यूबा, ईरान और वेनेजुएला जैसे देशों के ख़िलाफ़ अवैध प्रतिबंध; फ़िलिस्तीन का सफ़ाया करने की इज़रायली परियोजना को खुली छूट; चीन के ख़िलाफ़ व्यापार युद्ध; बढ़ती असमानता और सामाजिक पतन को लेकर उपेक्षा; और संयुक्त राज्य अमेरिका को गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा में बदलने से इनकार करना जारी रहेगा। बाइडेन और उनकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस 'बहुपक्षीयता’ की भाषा ज़रूर बोलेंगे, लेकिन वे उस भाषा का उपयोग दुनिया के सभी देशों को मज़बूत करने के लिए नहीं बल्कि जी-7 और नाटो के माध्यम से उत्तरी अटलांटिक गठबंधन प्रणाली को मज़बूत करने के लिए करेंगे। रूढ़िवादी सीनेटर मिच मैककॉनेल के द्वारा संचालित रिपब्लिकन सीनेट में बाइडेन की अध्यक्षता तेज़ी से आगे बढ़ रहे चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी कुलीन वर्ग के हितों को बढ़ावा देना जारी रखेगा। इतिहास हमें आशावादी होने की अनुमति नहीं देता है; समानता पर आधारित एक बेहतर दुनिया बनाने का हमारा महान संघर्ष जारी रहना चाहिए।

कोरोनाशॉक और पेट्रीआर्की पुस्तिका का आवरण चित्र। 

‘हम सामान्य स्थिति में नहीं लौटेंगे’, पिछले साल चिली के प्रदर्शनकारियों ने कहा था, 'क्योंकि सामान्य स्थिति ही समस्या थी।’ इसके अलावा, महामारी के संदर्भ में देखें तो सामान्य स्थिति में वापसी संभव ही नहीं है। पिछले महीने के आख़िरी दिनों में, यू एन विमेन की कार्यकारी निदेशक फुमज़िले म्लम्बो-न्गकुका ने एक लेख लिखा है, जिसमें यह दिखाने की कोशिश की है कि कैसे महामारी ने दुनिया भर की महिलाओं को प्रभावित किया है। यू एन विमेन के शोध में पाया गया है कि साल 2021 में, 4 करोड़ 70 लाख महिलाएँ और लड़कियाँ 'COVID-19 के परिणामस्वरूप अत्यधिक ग़रीबी में जा सकती हैं।' इसके बाद अत्याधिक ग़रीब महिलाओं और लड़कियों की कुल संख्या 43.5 करोड़ हो जाएगी। उन्होंने लिखा कि 'निर्धारित और लक्षित कार्रवाई के बिना अनगिनत मुसीबतें सामने आएँगी।'

पिछले हफ़्ते, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान से 'कोरोनाशॉक और पितृसत्ता' के नाम से एक अध्ययन प्रकाशित हुआ; इस अध्ययन में महामारी और लॉकडाउन के लैंगिक प्रभाव को समझने की कोशिश की गई है। इस ऐतिहासिक अध्ययन पर शोध और लेखन करने वाले समूह में अर्जेंटीना, ब्राज़ील, भारत, दक्षिण अफ़्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका से हमारे टीम के सदस्य शामिल थे; हमारी उप निदेशक रेनाटा पोर्टो बुगनी के निर्देशन में इस समूह ने काम किया। इस शोध कार्य में कई अन्य संगठनों के साथ-साथ ब्राज़ील की वर्ल्ड मार्च ऑफ़ विमेन, चिली की 8 एम फ़ेमिनिस्ट कोऑर्डिनेशन, दक्षिण अफ़्रीका की यंग नर्सेज़ इंडाबा ट्रेड यूनियन और अबाहलाली बासे म्जोंडोलो, भारत की अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति, अर्जेंटीना की यूनियन ऑफ़ वर्कर्स ऑफ़ द पॉपुलर इकोनॉमी (यूटीईपी) और यू एन विमेन ने अपनी राय दी है। यह अध्ययन विशेष रूप से दक्षिणी गोलार्ध के देशों में, इस महामारी के सामाजिक प्रभावों पर लिखी गई सबसे व्यापक रिपोर्टों में से एक है।

इस अध्ययन को तीन भागों में बाँटा गया है। पहले भाग में लॉकडाउन के परिणामस्वरूप कामकाजी महिलाओं के सामने खड़े हुए आर्थिक व्यवधानों का विवरण दिया गया है; इस भाग में दिखाया गया है कि किस तरह महिलाओं -जिन में से अधिकतर की मंदी के कारण नौकरी चली गई- को घर के ग़ैर-मान्यता प्राप्त देखभाल कार्यों का अतिरिक्त बोझ भी उठाना पड़ा है। इस भाग में वैश्विक पितृसत्तात्मक अर्थव्यवस्था में हाशिए पर रहने वाले अनौपचारिक श्रमिकों (जिनमें अधिकतर महिलाएँ हैं) और LGBTQIA+ लोगों की चुनौतियों को रेखांकित किया गया है। इस संकट का सबसे बड़ा प्रभाव यही पड़ा है कि ग़रीबी भी स्त्रीलिंग हो गई है। न केवल महिलाओं ने अपनी नौकरी खोई है, बल्कि हमने देखा कि बड़े पैमाने पर श्रमिक पलायन करने को मजबूर हुए हैं और भारत से लेकर ब्राज़ील तक ग़रीबों को उनके घरों से बेदख़ल कर दिया गया। इस उथल-पुथल का सामाजिक बोझ मुख्य रूप से कामकाजी वर्ग की महिलाओं के कंधों पर आ गया है।

एज़रेना मरवान (मलेशिया), अंटाइटल्ड, 2020। 

अध्ययन का दूसरा भाग देखभाल के कामों पर केंद्रित है और दर्शाता है कि कैसे प्रजनन कार्यों का बोझ ज़्यादातर महिलाओं पर पड़ता है। यू एन विमेन की म्लम्बो-न्गकुका ने लिखा है, 'नारीवादी वर्षों से कह रहे हैं कि देखभाल अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था की नींव है’। उन्होंने लिखा है कि ‘अब, कोविड-19 ने जिस तरह से देखभाल अर्थव्यवस्था को सार्वजनिक चेतना का हिस्सा बनाया है वैसा पहले कभी नहीं हुआ था'। हमारा अध्ययन इस दृष्टिकोण की पुष्टि करता है और इस 'अदृश्य’ कार्य के लिए पारिश्रमिक दिए जाने या इस कार्य का पड़ोस में स्थापित सहकारी समितियों के निर्माण के माध्यम से समाजीकरण करने की हमारी माँग को आगे बढ़ाने का आह्वान करता है। रेनाटा पोर्टो बुगनी ने मुझसे कहा, देखभाल तक पहुँच ‘अब विशेषाधिकार न रहकर मानवाधिकार बनना चाहिए’। उन्होंने कहा कि ‘किसी भी और बात से पहले ये ज़रूरी है कि देखभाल कार्यों को परिवार के लैंगिक दायित्वों से बाहर लाकर मज़बूती से सामाजिक क्षेत्र में स्थापित किया जाए’।

हमने देखा कि 'प्रतिच्छाया महामारी' अर्थात् लॉकडाउन के दौरान बढ़ती पितृसत्तात्मक हिंसा के बारे में चर्चा पहले ही शुरू हो चुकी है। अध्ययन के तीसरे भाग में, हमारी टीम ने लॉकडाउन की विस्तारित अवधि में बढ़ी इस हिंसा की जटिलताओं और विशेषताओं का विवरण दिया गया है। पोर्टो बुगनी ने कहा, उन्नत औद्योगिक देशों में सामाजिक नेटवर्क की अनुपस्थिति और नव-फ़ासीवादियों के स्त्री-द्वेषी उपदेशों ने 'रोज़मर्रा की नशृंसता और हिंसा की क्रूरता के लिए उपजाऊ ज़मीन’ उपलब्ध करवाई है।

अध्ययन के अंतिम खंड में दुनिया भर के नारीवादी संगठनों के संघर्षों से निकली अठारह माँगों की सूची है। ये माँगें संपूर्ण मानवता और हमारी पृथ्वी के हितों को निजी मुनाफ़ों और उनके अंतहीन संचय के लिए पितृसत्ता के इस्तेमाल से ऊपर रखती हैं। पोर्टो बुगनी ने कहा, ‘समाज विनाश की कगार पर है। हम इस संदेश को अधिक-से-अधिक आगे पहुँचाना चाहते हैं कि अतीत से विरासत में मिली ग़ैर-बराबरियों और मुसीबतों से छुटकारा पाने का समय आ गया है; हम नये भविष्य के लिए ज़रूरी आदर्शलोक बनाना चाहते हैं’।

एली गोमेज़ अल्कोर्टा। 

एली गोमेज़ अल्कोर्टा, अर्जेंटीना सरकार में महिला, लिंग और विविधता मंत्रालय की मंत्री, ने इस अध्ययन की प्रस्तावना लिखी है। गोमेज़ अलकोर्टा एक वकील हैं, जो दशकों से दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के संघर्ष में शामिल रही हैं। उनके द्वारा लिखी गई प्रस्तावना हमारे दस्तावेज़ के लिए महत्वपूर्ण है। उनके अपने अनुभवों के साथ-साथ अर्जेंटीना के नारीवादी आंदोलन के अनुभव इस प्रस्तावना में दर्ज हैं:

कोविड-19 महामारी ने नारीवादी और समाजवादी आंदोलनों के द्वारा बहुत समय से उठाए जा रहे मुद्दों को हमारे सामने स्पष्ट तरीक़े से ला दिया है। सबसे पहला मुद्दा यह है कि हम एक ऐसी व्यवस्था में रहते हैं जो असमानता, बहिष्करण, घृणा और भेदभाव के उन स्तरों तक पहुँच गया है कि लगता है जैसे यह 'सामान्य' या 'प्राकृतिक' हो। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि यदि हम इस 'सामान्य स्थिति’ को भंग नहीं करते हैं, तो हम सीधे इस ग्रह और पूरी मानवता के विनाश की ओर तेज़ी से बढ़ते जाएँगे। दूसरा, वैश्विक स्तर पर, COVID-19 ने राज्य के महत्व को स्पष्ट कर दिया है, एक बार फिर राज्य के हस्तक्षेप की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है -किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं, बल्कि एक ऐसे राज्य का हस्तक्षेप जो लोगों और उनके स्वास्थ्य की देखभाल करता है और जो जीवन को संरक्षित करता है। इसके साथ ही महामारी ने ऐतिहासिक रूप से स्त्रीत्व का हिस्सा माने जाने वाले, सामाजिक और आर्थिक रूप से कमतर माने जाने वाले और तेज़ी से अनिश्चितता की ओर धकेले जा रहे देखभाल कार्यों को जिस तरह से सुर्ख़ियों में ला दिया है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। 

हमारे समय से पहले लड़े गए संघर्षों और पैट्रिया ग्रांडे ('महान मातृभूमि') और पूरी दुनिया की हमारी बहनों के द्वारा लड़े जा रहे संघर्षों के दम पर, हमें इस संकट से एक बेहतर समाज के रूप में उभरने के लिए काम करना चाहिए, हमें हर सामान्य कृत्य को बहस के लिए खोलने की दिशा में काम करना चाहिए; और यह सुनिश्चित करने का काम करना चाहिए कि ये बहसें और विचार-विमर्श जनमत, प्रगतिशील और नारीवादी शर्तों पर हों।

साम्राज्यवाद-विरोधी पोस्टर प्रदर्शनी का चौथा और अंतिम विषय है 'हाइब्रिड युद्ध'। वेनेज़ुएला में नेशनल असेंबली इलेक्शन से पहले के हफ़्ते में यह प्रदर्शनी लॉन्च की जाएगी। वेनेज़ुएला एक ऐसा देश है जो अमेरिका के नेतृत्व में साम्राज्यवादी शक्तियों के द्वारा लगाए गए क्रूर हाइब्रिड युद्ध के सामने मज़बूती से खड़ा रहा है। इस प्रदर्शनी के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें; आप इस प्रदर्शनी में हिस्सा लेने के लिए अपना पोस्टर 19 नवंबर तक भेज सकते हैं।

मारिया बेलेन रोका पामिच, शोधकर्ता, ब्यूनस आयर्स कार्यालय

मैंने कल्पित भविष्य:  महामारी के समय में दोराहे और चुनौतियाँ का समन्वय किया है, यह लेखों का संकलन जो महामारी के कारणों, निकट भविष्य तथा राजनीतिक विकल्पों के बारे में सोचने के लिए बिंदुओं का निर्धारण करता है। भविष्य के बारे में सोचने की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में, महामारी ने हमें जहाँ छोड़ दिया है, हम लैटिन अमेरिकी संगोष्ठी आयोजित कर रहे हैं, जिसे 'कल्पित भविष्य' (Imagined Futures) भी कहा जाता है। इसके अलावा, 'लोकप्रिय अर्थव्यवस्था' (औपचारिक श्रम बाज़ार से बाहर किए गए श्रमिकों द्वारा विकसित आर्थिक निर्वाह की रणनीतियों) के बारे में एक कार्यकारी समूह के साथ, हम बहिष्कृत श्रमिकों के आंदोलन और लोकप्रिय अर्थव्यवस्था के बहस के अनुभव के बारे में एक नोटबुक को अंतिम रूप दे रहे हैं

doland Trump
Joe Biden
America
Corona
America foreigen policy
Chile

Related Stories

बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल

अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ इज़राइल को किया तैनात

नाटो देशों ने यूक्रेन को और हथियारों की आपूर्ति के लिए कसी कमर

यूक्रेन में छिड़े युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध का मूल्यांकन

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

पड़ताल दुनिया भर कीः पाक में सत्ता पलट, श्रीलंका में भीषण संकट, अमेरिका और IMF का खेल?


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License