NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
''मजदूरों का संवैधानिक अधिकार छीनना उन्हें आधुनिक गुलाम बनाने जैसा है''
2 दिसंबर को दासता या गुलामी उन्मूलन दिवस के दिन भारत की राजधानी दिल्ली में सैकड़ो की संख्या में निर्माण मज़दूरों ने प्रदर्शन किया।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
03 Dec 2019
protest

2 दिसंबर को दासता या गुलामी उन्मूलन दिवस के दिन भारत की राजधानी दिल्ली में सैकड़ो की संख्या में निर्माण मज़दूरों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों ने कहा कि लंबे समय के संघर्ष के बाद जो उन्हें संवैधानिक अधिकार मिला है,उसे वर्तमान सरकार छीनने का प्रयास कर रही है। जो उन्हें आधुनिक गुलाम बनाने की तैयारी है।  

2 दिसंबर 1949 के दिन ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव तस्करी को रोकने और लोगों के शोषण को खत्म करने के लिए अपने कन्वेंशन में प्रस्ताव पास किया था। इसके बाद, 18 दिसंबर 2002 के संकल्प 57/195 द्वारा यूएन सभा ने गुलामी और उसके उत्थान के खिलाफ संघर्ष के रूप में 2004 को अंतरराष्ट्रीय वर्ष के तौर पर याद करते रहने के लिए अधिसूचित किया। तब से ही यह दिन गुलामी के वर्तमान रूपों को खत्म करने पर केंद्रित है, जैसे कि व्यक्तियों की तस्करी, यौन शोषण, बाल श्रम, और जबरन शादी को रोकने के लिए।
 
निर्माण मज़दूर की राष्ट्रीय अभियान समिति ने दो दिंसबर को निर्माण मज़दूरों की माँगो को लेकर एक मांग पत्र और प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा। जिसमें मांग की गई थी कि मज़दूरों के हक़ में बने कानूनों को न खत्म किया जाए। क्योंकि अगर सरकार ऐसा करती है तो लगभग देश के लगभग 10 करोड़ निर्माण मज़दूर प्रभावित होंगे।

इन्होंने सरकार द्वार प्रस्तावित लेबर कोड का भी विरोध किया, क्योंकि अगर यह लागू हो जाता है, तो निर्माण मज़दूरों के लिए 1996 में बने दोनों कानून खत्म हो जाएंगे। उनका कहना था कि यह कानून मज़दूरों के 30 साल के लंबे संघर्ष के बाद मिला था।

मज़दूर नए लेबर कोड का विरोध क्यों कर रहे हैं: -

निर्माण मज़दूरों के लिए सबसे बड़ा संकट है की अगर यह कनून खत्म हो जाएगा तो देश में वर्तमन में कार्यरत 36 निर्माण मज़दूर कल्याण बोर्ड बंद हो जाएंगे। इस बोर्ड के तहत पंजीकृत 4 करोड़ निर्माण मज़दूरों का पंजीकरण रद्द हो जाएगा।

इससे निर्माण मज़दरों को जो भी हितलाभ मिलते हैं वह सब बंद हो जाएगा। जैसे मज़दूरों को पेंशन, मज़दूरों के बच्चों को शिक्षा के लिए मिलने वाला लाभ।  इसके अलावा  समाजिक सुरक्षा के कई लाभ है जो उन्हें वर्तमान के कानून से मिलती है, वो सभी खत्म हो जाएंगे।
image 1_2.JPG
अभी सभी निर्माण मज़दूरों को निर्माण पर एकत्रित किए गए सेस के पैसे से पेंशन या अन्य लाभ दिए जाते हैं लेकिन अब नए कानून के मुतबिक मज़दूरों को अपनी कमाई का एक हिस्सा पेंशन के लिए जमा करना होगा। जोकि उनके लिए मुमकिन नहीं है क्योंकि उन्हें औसतन महीने में 15 दिन का ही काम मिल पता है,जिससे उनका मासिक आय न्यूनतम वेतन से भी काफी कम रहता है। जिससे उनके परिवार का निर्वाह ही बहुत ही कठिनाई से होता है तो वह पेंशन के लिए अपना योगदान कैसे देंगे।

इसलिए मज़दूरों के संगठनों ने साफ किया की अभी जो व्यवस्था है वही मज़दूरों  के लिए उचित है ।1996 के कानून के मुताबिक निर्माण पर 1% का सेस मज़दूरों  के सामजिक सुरक्षा के लिए लिया जाता है। अभी वर्तमान में एक अनुमान के मुताबिक 33 हज़ार करोड़ रुपये की राशि है, इस कोष में जमा हैं। जिस पर लाखो रूपये का ब्याज़ आता है। सरकारों की गिद्ध नज़र इस मोटी राशि पर है, हर सरकार इसे हड़पने की कोशिश करती है। यह राशि मज़दूरों  के लिए खर्च होनी चाहिए, लेकिन सरकार के नए प्रस्ताव के मुताबिक  यह किसी और मद में भी खर्च किया जा सकता है। जिसका मज़दूर संगठन विरोध कर रहा है।

5 दिंसबर को देश के हज़ारो निर्माण मज़दूर केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में पारित लेबर कोड बिल और निर्माण मज़दूरों की समस्याओ को लेकर संसद पर विरोध प्रदर्शन करेंगे। जिस दौरन निर्माण मज़दूर देशभर से एकत्रित किए गये लाखो हस्तक्षार भी सरकार को सौपेंगे।

Labour Right
workers protest
Constitutional right
Narendra modi
Labour Code
Labour Code Bill
Labor unions
Central Government
Workers Strike

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

लुधियाना: PRTC के संविदा कर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

दिल्ली: बर्ख़ास्त किए गए आंगनवाड़ी कर्मियों की बहाली के लिए सीटू की यूनियन ने किया प्रदर्शन


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License