NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
तालाबीरा : आदिवासियों के विरोधों के बावजूद अडानी का खनन कार्य जारी
दिसंबर में अडानी की कोयला खनन परियोजना के लिए 40,000 से अधिक पेड़ों को काट दिया गया। इसको लेकर ग्रामीण अपने वन अधिकारों के लिए अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं।
सुमेधा पाल
13 Feb 2020
Talabira
Image Credit: Thewire

ओडिशा के मुंडा पाड़ा में संबलपुर औद्योगिक क्षेत्र के भीतर मौजूद गोंड और मुंडा जनजाति के लोग राज्य का हरित फेफड़ा कहे जाने वाले क्षेत्र तालाबीरा वन की रक्षा के लिए एक अकेली लड़ाई लड़ रहे हैं।

इस क्षेत्र में अडानी समूह की खनन गतिविधि के विस्तार के कारण इसका हरित वन समाप्ति के कगार पर है। खुले गड्ढे वाली कोयला खदान की स्थापना के लिए 9 और 10 दिसंबर को तालाबीरा वन में 40,000 से अधिक पेड़ काट दिए गए। आदिवासी समुदायों द्वारा जारी विरोध आंदोलन के बावजूद इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों में तेज़ी आई है।

वन अधिकार समाप्त, आदिवासी दावा ख़ारिज :

विरोध स्थल से अनंत ने बातचीत में कहा, "कुल कवर किया जाने वाला क्षेत्र लगभग 4,000 एकड़ भूमि है, जिसमें से 54% वन भूमि है जो लगभग 2,500 एकड़ भूमि है।" न्यूज़क्लिक से बात करते हुए एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, “खनन कार्य शुरू हो गई है और हमारे पेड़ काट दिए गए हैं। कल्पना कीजिए कि हम कितनी भूमि गंवा देंगे?”

ये कोयला खनन परियोजना पूरी तरह से वन-निर्भर लगभग सात गांवों को अपने दायरे में ले लेगी जो 10,000 से अधिक आदिवासियों को प्रभावित कर रहा है जिसमें सबसे अधिक प्रभावित संबलपुर और झारसुगुड़ा हुआ है। अनंत कहते है, “ये प्रतिरोध हमारे लिए मजबूरी है क्योंकि हमें अपनी भूमि को लेकर अंधेरे में रखा गया था।

हमें भूमि के दावों पर कोई जवाब नहीं दिया गया जो हमने दायर किए थे। पूरे गांवों में एक जैसा पैटर्न है। पतरापाली में हम 2012 से विशिष्ट वन अधिकारों की मांग कर रहे हैं जो अभी भी मंज़ूर नहीं किए गए हैं। ग्राम सभा की प्रक्रिया ने सामुदायिक अधिकारों को नज़रअंदाज़ कर दिया जबकि सरकार इसे भूमि के "क़ानूनी" अधिग्रहण के रूप में पेश कर रही है। हालांकि, हमारे लिए, ग्राम सभा की मंज़ूरी "जालसाज़ी" से अधिक कुछ भी नहीं है।"

11 दिसंबर को, स्थानीय अधिकारियों ने कथित रूप से तालाबीरा से 3 किलोमीटर दूर पतरापाली गांव में काटे गए पेड़ को स्थानांतरित कर दिया और उन्होंने जंगलों को नष्ट करने की धमकी दी जो ग्रामीणों ने पिछले चार दशकों से संरक्षित किए हैं।

मार्च 2019 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने तालाबीरा II और III कोयला ब्लॉक नामक ओपन-कास्ट कोयला खनन परियोजनाओं के लिए 1,038 हेक्टेयर वन भूमि को हटाने की मंज़ूरी प्रदान की। प्रस्तावित परियोजना निवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन (एनएलसी) इंडिया की है और यह ओडिशा के झारसुगुड़ा और संबलपुर ज़िलों में स्थित है। दिलचस्प बात यह है कि एनएलसी ने 2018 में अडानी ग्रुप के साथ माइन डेवलपमेंट और ऑपरेटर कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था।

इस क्षेत्र को ग्रामीणों द्वारा 40 से 50 वर्षों तक सक्रिय रूप से संरक्षित किया गया है। ऐसा करने के लिए ग्राम समुदायों ने पारंपरिक ग्राम वन समितियों का गठन किया है जो दशकों से इन वनों की रक्षा कर रही हैं। इसकी रक्षा के लिए या तो समुदाय के सदस्यों द्वारा गश्त की जा रही है या ग्रामीणों द्वारा स्वैच्छिक योगदान के माध्यम से चौकीदारों द्वारा किया जाता है।

इस क्षेत्र में वनों का विनाश भी वन अधिकार अधिनियम (एफ़आरए) 2006 का घोर उल्लंघन है। नेशनल पीपल्स मूवमेंट (एनएपीएम) के अनुसार पतरापाली गांव पहले ही सामुदायिक वन अधिकार के दावे प्रस्तुत कर चुका है जो अभी भी लंबित हैं। इसके अलावा ग्रामीणों ने कहा कि जिले के अधिकारियों ने खनन करने के लिए एक फ़र्ज़ी ग्राम सभा की सहमति प्राप्त कर ली।

30 जुलाई 2009 को एक एमओईएफ एंड सीसी सर्कुलर के अनुसार फॉरेस्ट डायवर्जन से पहले ग्राम सभा की सहमति प्राप्त करनी होगी। वास्तव में ग्राम समुदायों ने कोयला-खदान के लिए वनों के प्रस्तावित डायवर्जन को अस्वीकार करते हुए सशक्त ग्राम सभा प्रस्ताव पारित किए हैं। इस प्रकार, इस परियोजना के चरण II की मंजूरी ग़ैर-क़ानूनी है और न केवल एफ़आरए बल्कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (पीओए), 1989 का उल्लंघन करता है, क्योंकि अधिकांश आबादी एससी/एसटी है। धरातल पर सक्रिय कार्यकर्ताओं का कहना है कि वन अधिकारी एफआरए के तहत ग्रामीणों और ग्राम सभा को दिए गए अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने में विफल रहे, जिससे आदिवासी समुदाय के अधिकारों का ह्रास हुआ।

स्थानीय लोग कॉरपोरेट दिग्गज द्वारा किए जा रहे “री-प्लांटेशन” वादों के बारे में आश्वस्त नहीं हैं और अपने प्रतिरोध को जारी रखते हुए सरकार के उदासीन रवैये का सामना कर रहे हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Talabira: Adani’s Mining Work in Odisha Commences Despite Tribal Protests

tribal rights
Talabira
Odisha
Adani
Mining
Coal mining India
Adivasi resurgence
Adivasi Lives Matter.

Related Stories

लाखपदर से पलंगपदर तक, बॉक्साइड के पहाड़ों पर 5 दिन

ओडिशा के क्योंझर जिले में रामनवमी रैली को लेकर झड़प के बाद इंटरनेट सेवाएं निलंबित

विज्ञापन में फ़ायदा पहुंचाने का एल्गोरिदम : फ़ेसबुक ने विपक्षियों की तुलना में "बीजेपी से लिए कम पैसे"  

स्पेशल रिपोर्ट: पहाड़ी बोंडा; ज़िंदगी और पहचान का द्वंद्व

गोवा चुनाव: राज्य में क्या है खनन का मुद्दा और ये क्यों महत्वपूर्ण है?

जम्मू में जनजातीय परिवारों के घर गिराए जाने के विरोध में प्रदर्शन 

किसानों और सरकारी बैंकों की लूट के लिए नया सौदा तैयार

कोरबा : रोज़गार की मांग को लेकर एक माह से भू-विस्थापितों का धरना जारी

तेल एवं प्राकृतिक गैस की निकासी ‘खनन’ नहीं : वन्यजीव संरक्षण पैनल

आरटीआई अधिनियम का 16वां साल: निष्क्रिय आयोग, नहीं निपटाया जा रहा बकाया काम


बाकी खबरें

  • आज का कार्टून
    आम आदमी जाए तो कहाँ जाए!
    05 May 2022
    महंगाई की मार भी गज़ब होती है। अगर महंगाई को नियंत्रित न किया जाए तो मार आम आदमी पर पड़ती है और अगर महंगाई को नियंत्रित करने की कोशिश की जाए तब भी मार आम आदमी पर पड़ती है।
  • एस एन साहू 
    श्रम मुद्दों पर भारतीय इतिहास और संविधान सभा के परिप्रेक्ष्य
    05 May 2022
    प्रगतिशील तरीके से श्रम मुद्दों को उठाने का भारत का रिकॉर्ड मई दिवस 1 मई,1891 को अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरूआत से पहले का है।
  • विजय विनीत
    मिड-डे मील में व्यवस्था के बाद कैंसर से जंग लड़ने वाले पूर्वांचल के जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल के साथ 'उम्मीदों की मौत'
    05 May 2022
    जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल की प्राण रक्षा के लिए न मोदी-योगी सरकार आगे आई और न ही नौकरशाही। नतीजा, पत्रकार पवन जायसवाल के मौत की चीख़ बनारस के एक निजी अस्पताल में गूंजी और आंसू बहकर सामने आई।
  • सुकुमार मुरलीधरन
    भारतीय मीडिया : बेड़ियों में जकड़ा और जासूसी का शिकार
    05 May 2022
    विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय मीडिया पर लागू किए जा रहे नागवार नये नियमों और ख़ासकर डिजिटल डोमेन में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और अवसरों की एक जांच-पड़ताल।
  • ज़ाहिद ख़ान
    नौशाद : जिनके संगीत में मिट्टी की सुगंध और ज़िंदगी की शक्ल थी
    05 May 2022
    नौशाद, हिंदी सिनेमा के ऐसे जगमगाते सितारे हैं, जो अपने संगीत से आज भी दिलों को मुनव्वर करते हैं। नौशाद की पुण्यतिथि पर पेश है उनके जीवन और काम से जुड़ी बातें।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License