NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
समाज बदलने की बात करो, या चुप रहो
कम्युनिस्ट घोषणापत्र के अंत में मार्क्स और एंगेल्स ने दस अनंतिम योजनाओं की एक सूची दी है। यह सूची 1848 में तैयार की गई थी, लेकिन आज भी ये न केवल समकालीन है, बल्कि आवश्यक भी है। रेड बुक्स डे के अवसर पर तमिलनाडु में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बत्तीस संस्थापकों में से एक एन. शंकरैया  ने इन घोषणाओं का पाठन किया।
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
29 Feb 2020
एन. शंकरैया
एन. शंकरैया तमिल में कम्युनिस्ट घोषणापत्र पढ़ते हुए, 20 फरवरी 2020, चेन्नई, भारत

लाल किताब दिवस (Red Books Day), 21 फरवरी 2020, से पहले की रात को, भारत के तमिलनाडु में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बत्तीस संस्थापकों में से एक, एन. शंकरैया, ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र का एम. शिवलिंगम द्वारा किया गया, नया तमिल अनुवाद पढ़ा। 98 साल के कॉमरेड शंकरैया ने कहा कि उन्होंने पहली बार 18 साल की उम्र में इस घोषणापत्र को पढ़ा था। वर्षों से वो इस किताब को बार-बार पढ़ते रहे हैं, क्योंकि हर बार इसका पाठ कुछ नया सिखाता है। और कुछ ऐसा -जो दुख की बात है- कि चिरआयु लगता है।

घोषणापत्र के अंत में, मार्क्स और एंगेल्स ने दस अनंतिम योजनाओं की एक सूची दी है, जो किसी भी उदार व्यक्ति को समझ में आनी चाहिए। यह सूची 1848 में तैयार की गई थी, लेकिन आज भी ये न केवल समकालीन है, बल्कि आवश्यक भी है। इस सूची में पहली माँग, भू-संपत्ति के उन्मूलन की है - एक ऐसी माँग जो आज ब्राजील में कृषि सुधार पर बहस के माहौल में लगातार उठायी जा रही है, और जो दक्षिण अफ्रीका में बड़े स्तर के भू-निष्कासन की ऐतिहासिक ग़लती को सुधारने के लिए मुआवजे के बिना भूमि-नियमन पर 2018 से चल रही  बहसों में परस्पर दबाव डाल रही है (इस संदर्भ में मार्च 2020 में विधायिका के प्रस्तावों की उम्मीद की जा रही है)।

इस सूची में विरासत के अधिकार के उन्मूलन और आरोही कराधान की माँगें हैं, जो कि धन के भद्दे विनियोग को रोकने और अधिशेष धन की पुनरावृत्ति करने के समाजवादी उपाय हैं। धन और कॉर्पोरेट कर बढ़ाने की मांग संयुक्त राज्य अमेरिका में उठ रही है, जहां डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य बर्नी सैंडर्स ने कहा है कि धन की असमानता लोकतंत्र को दूषित करती है। नई दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जयति घोष ने लिखा है कि वैश्विक वित्तीय गोपनीयता को समाप्त करने की ज़रूरत है ताकि अति-समृद्ध लोगों और बहुराष्ट्रीय निगमों के छुपे हुए धन का बेहतर हिसाब लगाया जा सके।

विनिर्माण और कृषि क्षेत्र की अति-महत्वपूर्ण माँगों की सम्मुचित सूची के बाद, मार्क्स और एंगेल्स की अब आम धारणा बन चुकी आख़िरी माँग थी, सभी बच्चों के लिए सार्वजनिक विद्यालयों में मुफ्त शिक्षा। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया के आधे देशों में 50% से अधिक युवा उच्च माध्यमिक विद्यालय पूरा नहीं कर पाए हैं, जबकि 50% गरीब बच्चों ने प्राथमिक विद्यालय पूरा नहीं किया है। यूनेस्को ने सुझाव दिया है कि शिक्षा पर ख़र्च के संदर्भ में 6% सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक अच्छा मानक है। लेकिन दुनिया के केवल एक चौथाई देश ही GDP का 6% या उससे ज़्यादा शिक्षा क्षेत्र में ख़र्च करते हैं और अधिकतर जीडीपी के 3% से अधिक खर्च नहीं करते हैं।

घोषणापत्र के लिखे जाने के एक सौ बहत्तर साल बाद भी इसकी मूलभूत कल्पना आज भी सार्थक है।
image_1.JPG

रेड बुक्स डे की तस्वीर

इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सोवियत संघ के पतन और मार्क्सवाद-साम्यवाद को बदनाम करने की कोशिशों के बावजूद समाजवादी और साम्यवादी ताक़तों का आकर्षण बना हुआ है। भले ही ‘समाजवादी’ से पहले ‘लोकतांत्रिक’ शब्द जोड़ना पड़े या ‘कम्युनिस्ट’ शब्द हटाना ही पड़े, सच यही है कि मौजूदा स्थिति, जिसमें धन की भरमार है, लेकिन अत्यधिक सामाजिक असमानता है, से लोग नाराज़ हैं। पूँजीवाद और उससे उत्पन्न संकट के अप्रभावी समाधानों से कई अरबों लोगों की —यहाँ तक कि पश्चिम में भी— पूँजीवाद पर आम सहमति टूटने लगी है। पिछले साल के एक गैलप सर्वेक्षण ने दिखाया कि संयुक्त राज्य अमेरिका के 43% निवासियों को लगता है कि समाजवाद उनके देश के लिए अच्छा होगा। यही अमेरिकी राष्ट्रपति पद के शुरूयाती सर्वेक्षणों में बर्नी सैंडर्स के लिए बड़े समर्थन में नज़र आ रहा है।

हमें रेड बुक्स डे के अच्छे प्रदर्शन का अनुमान लगाने के लिए किसी गैलप सर्वेक्षण की ज़रूरत नहीं थी। दक्षिण कोरिया से वेनेजुएला तक, दसियों हज़ार लोग सार्वजनिक स्थानों पर अपनी-अपनी भाषाओं में घोषणापत्र पढ़ने के लिए एकत्र हुए। तमिलनाडु (भारत) रेड बुक्स डे का मुख्य-केंद्र था; 30000 लोगों ने सार्वजनिक जगहों पर- स्कूलों, गाँव की गलियों, ट्रेड यूनियन कार्यालयों में- घोषणापत्र पढ़ा। दक्षिण अफ्रीका में घोषणापत्र को सेसोथो में पढ़ा गया था; ब्राजील में इसे भूमिहीन श्रमिक आंदोलन (MST) की बस्तियों और स्कूलों में पढ़ा गया; और नेपाल में इसे सड़कों पर और किसान यूनियन कार्यालयों में पढ़ा गया। कई लोगों ने पहली बार घोषणापत्र पढ़ा, जबकि अन्य लोगों - जैसे कॉमरेड शंकरैया - ने प्रेरणा लेने और सिद्धांतिक ज्ञान दोहराने के लिए इसे फिर से पढ़ा।
image 1_14.JPG
image 2_12.JPG
image 3_8.JPG

रेड बुक्स डे की तीन तस्वीरें

मई 1991 में, जब सोवियत संघ का विघटन शुरू हुआ तब नाटककार टोनी कुशनर ने अपने शानदार नाटक एंजेल्स इन अमेरिका का प्रदर्शन शुरू किया। इस नाटक के दूसरे भाग का शीर्षक पेरेस्त्रोइका - पुनर्गठन के लिए रूसी शब्द है; ‘पुनर्गठन’ ही USSR के विनाश का कारण बना था। नाटक की शुरुआत जनवरी,1986 में क्रेमलिन के प्रतिनिधियों की सभा से होती है। दुनिया का सबसे बूढ़ा बोल्शेविक अलेक्सी अंतडिल्लुवीयनोविच प्रलापसरिआनोव बोल रहा है।

वह अपने साथियों को बताता है कि जब वो छोटा था, तो ‘निर्भीक, श्रेष्ठ, सर्वग्राही रचना जैसे एक सुंदर सिद्धांत’ से बहुत प्रभावित हुआ था। इस सिद्धांत को मार्क्सवाद कहते हैं। वो ‘इस सिद्धांत के बच्चों’ से पूछता है ‘अब तुम्हारा क्या सुझाव हैं?’ ‘ इसकी जगह तुम क्या लाओगे? बाजार के प्रलोभन? अमेरिकी चीज़बर्गर? बुखारिन का अल्पकालिक-अस्थायी व न्यून पूँजीवाद! नेप- नेप करने वाले! विशाल प्रजाति के वामन बच्चे!’ वह निकोलाई बुखारीन और सोवियत संघ में 1922 से 1928 तक चली नई आर्थिक नीति (NEP), जिसके दौरान वहाँ मिश्रित अर्थव्यवस्था विकसित हुई, को संदर्भित करता है।

कम से कम बुखारीन के पास नई आर्थिक नीति लाने के बौद्धिक कारण थे, लेकिन इतने लम्बे समय का सोवियत संघ रहने के बाद इसकी ज़रूरत के क्या कारण हो सकते हैं? ‘यदि सांप नई केंचुली तैयार होने से पहले ही पुरानी केंचुली उतार दे’ तो बूढ़ा बोल्शेविक कहता है, ‘वो अनावृत्त हो जाएगा; दुनिया की अराजक शक्तियों का शिकार होगा; केंचुली के बिना वो वंचित रहेगा, निर्बोध हो जाएगा और मर जाएगा। क्या तुम्हारे पास, मेरे नन्हे सपोलों, नई केंचुली तैयार है?’  नई केंचुली के अभाव में सोवियत संघ टूटने के बाद वहाँ के नागरिकों की आय कम होती गयी, सामान्य जन-जीवन और स्वास्थ्य में भी गिरावट आई। फास्ट फूड और मॉल संस्कृति की चमकदार रोशनी से सबकुछ जगमगा ज़रूर उठा, लेकिन अस्वस्थता और गरीबी ने लोगों को घेर लिया; अलगाव और अशांति समाज का अभिन्न अंग बन गए हैं।
image c.JPG
गीली कोरज़ेव, म्यूटेंट्स, 1990-93

बूढ़ा बोल्शेविक, कॉमरेड शंकरैया की तरह, जीवन के ऐसे सिद्धांत में विश्वास रखता है जो मनुष्यों को मुनाफ़े से आगे रखता है और लालच की बजाय संवेदनशीलता सिखाता है। दूसरी ओर पूँजीवाद का मानना है कि  मनोवैज्ञानिक-सामाजिक रवैए को लोभ, या ज़्यादा वैज्ञानिक भाषा में, मुनाफ़ा बढ़ाने तक सीमित किया जा सकता है; जैसे किसी व्यवसायी की भावनात्मक परिधि, मानवीय व्यवहार के अंतर्विरोधों को परिभाषित कर सकती हो। लेकिन इंसान लालच से बहुत कुछ ज्यादा है; हम प्यार करते हैं, हम सोचते हैं, हम समझते हैं, और सबसे अहम- हम चिंता करते हैं। हमारे पास सहानुभूति और हमदर्दी जताने की अपार क्षमता है।

बुर्जुआ राजनेताओं की लाभ बढ़ाने के लिए जनता की मूलभूत आवश्यकताओं (स्वास्थ्य देखभाल, बड़ी देखभाल, चाइल्डकैअर, शिक्षा) के सार्वजनिक खर्च में कटौती करने की मितव्ययिता-नीतियां पूंजीवादी दर्शन से ही जन्मी हैं। पितृसत्ता के कारण, परिवारों, बच्चों और बुजुर्गों की प्राथमिक देखभाल करने का भार महिलाओं पर है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, महिलाएँ और लड़कियाँ प्रत्येक वर्ष 1250 करोड़ घंटे बच्चों की देख-भाल के अवैतनिक काम में लगाती हैं; ऑक्सफैम की गणना के अनुसार, यह काम प्रति वर्ष लगभग  $10.8 ट्रिलियन के बराबर होता है; लेकिन याद रहे कि ये अवैतनिक काम है, ये काम लालच से नहीं, बल्कि प्यार की भावना से प्रेरित है और पितृसत्ता की अनिवार्यताओं में किया जाता है।

महिलाओं और लड़कियों द्वारा किए जाने वाले इस अवैतनिक काम की कुल क़ीमत वैश्विक तकनीक उद्योग के तीन गुना से भी ज़्यादा है, लेकिन फिर भी -क्योंकि लाभ भगवान है - टेक उद्योग को अवैतनिक देखभाल कार्य-क्षेत्र की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। आने वाले राग-द्वेष को बूढ़े बोल्शेविक ने भाँप लिया था। वह जानता था कि उस 'सुंदर सिद्धांत' का परित्याग विघटन की ओर ही ले जाएगा।
image  c.JPG
एसेला डे लॉस सैंटोस तामायो

23 जनवरी 2020 की सुबह, एसेला डे लॉस सैंटोस तामायो का निधन हो गया। उनकी उम्र 90 साल थी। एसेला - जैसे उन्हें सब जानते थे- जीवन भर क्यूबा की क्रांति के लिए प्रतिबद्ध रहीं। अपने ओरिएंट विश्वविद्यालय में छात्र-कार्यकर्ता के रूप में काम करने के दिनों में ही एसेला ने उस 'सुंदर सिद्धांत' की स्पष्ट समझ विकसित कर ली थी। उन्होंने 26 जुलाई के आंदोलन और आगे चल कर 1956 में सैंटियागो में एक सशस्त्र कार्रवाई में भाग लिया जिसका उद्देश्य था अधिकारियों का ध्यान हटाना ताकि ग्रांमा नामक जलयान से आ रहे फिदेल कास्त्रो और गुरिल्लों का एक समूह उतरकर अपना विद्रोह शुरू कर सके।

सेलिया सैन्चेज़ और विल्मा एस्पिन के साथ एसेला ने, सिएरा मेस्ट्रा में गुरिल्ला को मजबूत करने के लिए सेनानियों की वहाँ पहुँचने में मदद की। अगस्त 1958 में एसेला ओरिएंट प्रांत में विद्रोही सेना के दूसरे पूर्वी डिवीजन में शामिल  हो गयीं; कमांडर राउल कास्त्रो ने उन्हें वहाँ विद्रोह से घिरे क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्थित करने के लिए कहा। एसेला ने सेनानियों के लिए चार सौ क्रांतिकारी स्कूलों और अध्ययन समूहों की स्थापना में मदद की। उस 'सुंदर सिद्धांत' को इन स्कूलों और शिक्षा कार्यक्रमों में बड़ा स्वरूप मिला।

क्यूबा की क्रांति के बाद, एसेला नई कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं। विल्मा एस्पिन के साथ, उन्होंने क्यूबा की महिला फेडरेशन का नेतृत्व किया और अपना जीवन पितृसत्ता और होमोफोबिया के खिलाफ संघर्ष में लगाया। 1966 में, एसेला मटैंजस में कैमिलो इन्फुएगोस शिक्षण और सैनिक स्कूल की निदेशक बनीं; ये स्कूल क्यूबा के संदर्भ में उस 'सुंदर सिद्धांत' के विकास का प्रमुख संस्थान था। 1970 में, एसेला शिक्षा मंत्रालय में शामिल हुईं और बाद में इसकी मंत्री भी बनीं।

एसेला जैसे लोग जनता की सेवा करने की भावना और उस ‘सुंदर सिद्धांत’ के लिए प्रतिबद्धता को अपनी वर्दी के रूप में पहनते हैं; इस ‘सुंदर सिद्धांत’ को खोजने का एक मुनासिब स्त्रोत कम्युनिस्ट घोषणापत्र है।

फ़ैनन पर चर्चा: अगले हफ़्ते जोहैनेस्बर्ग (दक्षिणी अफ़्रीका) में ड़ोसीयर 26 के विमोचन के उपलक्ष में फ़ैनन की राजनीति पर विचार गोष्टी होगी

Communist Manifesto
tamil nadu
Karl Marx
Red books day
Labour
Labour Right

Related Stories

तमिलनाडु : विकलांग मज़दूरों ने मनरेगा कार्ड वितरण में 'भेदभाव' के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया

मज़दूर दिवस : हम ऊंघते, क़लम घिसते हुए, उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे

5 साल में रोज़गार दर 46 फ़ीसदी से घटकर हुई 40 फ़ीसदी

पिछले 5 साल में भारत में 2 करोड़ महिलाएं नौकरियों से हुईं अलग- रिपोर्ट

सीपीआईएम पार्टी कांग्रेस में स्टालिन ने कहा, 'एंटी फ़ेडरल दृष्टिकोण का विरोध करने के लिए दक्षिणी राज्यों का साथ आना ज़रूरी'

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

तमिलनाडु राज्य और कृषि का बजट ‘संतोषजनक नहीं’ है


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License