NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
लॉकडाउन : तमिलनाडु में जाति आधारित हिंसा की क़रीब 30 बड़ी घटनाएं
रिपोर्ट्स के मुताबिक़, तिरुवन्नमलाई ज़िले के कुछ गांवों में, ऊंची जाति के लोगों ने दलित कॉलोनियों के बाहर कांटे बिछा दिए हैं ताकि वे घर से न निकल पाएं।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
14 May 2020
covid

कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान देश भर में उत्पीड़ित तबक़ों का संकट कई गुना बढ़ गया है। तमिलनाडु में, लॉकडाउन के दौरान दलितों पर अत्याचार के नए रूप देखे गए हैं। मदुरै स्थित एक एनजीओ एविडेंश द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 25 मार्च से शुरू हुई देशव्यापी तालाबंदी के बाद राज्य में जाति आधारित हिंसा की कम से कम 30 बड़ी घटनाएं घटी हैं। एक्टिविस्ट बताते हैं कि कई जगहों पर कुछ स्वर्ण जाती के बाहुबली लोगों ने दलितों के साथ मारपीट कर लॉकडाउन का फ़ायदा उठाया है।

ए. कथिर, एवीडेंश के कार्यकारी निदेशक ने कहा, “तमिलनाडु को अत्याचारी राज्य घोषित कर देना चाहिए। यहाँ जाति की स्थिति किसी अन्य किसी राज्य की तरह नहीं है।”

कथिर ने सवाल उठाते हुए कहा की “लॉकडाउन में यह कैसे संभव है कि अधिकतर घटनाओं में 40-50 के समूहों में स्वर्ण लोग हमला कर रहे हैं?"

पिछले चार दिनों के भीतर, चार दलितों को मौत के घाट उतार दिया गया है। सम्मान के नाम पर हत्या, सामूहिक हमले, बलात्कार और उत्पीड़न सब कुछ हो रहा है। अध्ययन के अनुसार समाज में घरेलू हिंसा बढ़ गई है। जाति आधारित हिंसा भी अब बढ़ रही है, और लॉकडाउन के कारण पीड़ित लोग ठीक से शिकायत भी  दर्ज़ नहीं करा पा रहे हैं। अगर कोई आरोपी एससी/एसटी प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज एक्ट के तहत, यदि जमानत के लिए पेश होता हैं, तो इसके सुनवाई के बारे में पीड़ित को सूचित करना होता है। लेकिन उच्च न्यायालय ने कह दिया है कि वायरस के चलते अब आरोपियों को पेश होने की जरूरत नहीं है। लोग अब इसका फ़्ायदा उठा रहे हैं और जमानत की अर्जी दाखिल कर हैं। सरकार को इस पर नीतिगत निर्णय लेना चाहिए।

इसके साथ ही, अपराध की भयावहता भी बढ़ गई है। कथिर ने कहा, "एक महीने में औसतन 100 मामले एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज हो रहे हैं।" "इनमें से ज्यादातर मामले मामूली घटनाएं हैं लेकिन चार से पांच मामले बड़े अपराध की श्रेणी में आते हैं। लेकिन इस महीने, हम जिन 30 घटनाओं की यहाँ बात कर रहे हैं, वे सभी बड़ी हैं। इसलिए यह क्रूर अपराधों में तेज़ी से वृद्धि को दर्शाता है।"

 

29 मार्च को, अरानी के मोरप्पनथंगल गाँव में एम॰ सुधाकर, जो ओड़दार जाति से थे, की हत्या उनके प्रेमिका के रिश्तेदारों ने कर दी जो वन्नियार जाति के थे। महिला के पिता सहित दो अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

21 अप्रैल को, एक एमबीए स्नातक मुरुगानंदम, जो पुदुक्कोट्टई जिले के करंबक्कुडी से एक दलित थे, जिन्होंने अपनी प्रेमिका भानुप्रिया से शादी की, उसके बाद भानुप्रिया के रिश्तेदारों ने उन पर हमला किया था। यद्यपि रिश्तेदारों ने उसका अपहरण भी कर लिया था, लेकिन भानुप्रिया को एवीडेंश द्वारा किए गए प्रयासों के माध्यम से बचाया लिया गया था।

24 अप्रैल को, वेलिचम टीवी चैनल के एक रिपोर्टर आदिसुरेश पर इसलिए हमला किया गया क्योंकि उसने शहर में डॉ॰ बीआर अंबेडकर के चित्र को नुकसान पहुंचाने वाले एक समूह के बारे में रिपोर्टिंग की थी।

8 मई को देवर समुदाय से संबंधित एक समूह ने तूतिकोरिन के उदयकुलम गाँव में ए॰ पलवेसम और उनके दामाद आर॰ थंगराज की कर्ज के मामले में हुए विवाद के बाद हत्या कर दी गई। एविडेंश के अनुसार, उसी दिन सेलम में, एक दलित, विष्णुप्रियायन की हत्या उच्च जाति लोगों द्वारा कर दी गई थी।

महामारी ने सामान्य भेदभाव को बढ़ावा दिया है जिससे उत्पीड़ित जातियों के लोगों पर अत्याचार बढ़ा है उनका जीवन और भी कठिन बना दिया है। जैसे-जैसे स्थिति बिगड़ रही है, कई प्रवासी श्रमिक- उनमें से अधिकांश निचली जातियों के, जो अपने पैतृक गांवों में लौट आए हैं, उन्हें भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, लौटे हुए लोगों को क्वारंटाईन में भेज दिया जाता है, लेकिन उनके परिवार के सदस्यों को इस तरह के भेदभाव का खामियाजा भुगतना पड़ता है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, तिरुवन्नमलाई जिले के कुछ गांवों में, ऊंची जाति के लोगों ने दलित कॉलोनियों के बाहर कांटे लगा दिए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं।

काथिर ने कहा, “नीलाकोट्टई में, ऐसी घटनाएं हुई हैं जहां दुकान वाली दलितों रोज़मर्रा की वस्तुओं की आपूर्ति करने से इनकार कर दिया है, इस धारणा के कारण कि वे लोग साफ नहीं हैं। सफाई कर्मी, मैला ढोने वाले, नौकरानियों ... के बारे में भी यही धारणा है कि वे साफ लोग नहीं हैं। इस तरह के भेदभाव हैं। यह कई गुना बढ़ गए हैं। सभी के घरों में बाथरूम नहीं हैं। सभी सरकारी बाथरूम उपयोग के काबिल नहीं हैं, इसलिए वे अभी भी खुले में शौच के लिए जाते हैं। अब वे घर के बाहर कदम नहीं रख सकते हैं, और इसलिए उनके हालात काफी कठिन हो गए हैं।”

जबकि, तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा (TNUEF) के अध्यक्ष पी॰ संपत बताते हैं कि भेदभाव को रोकने का एकमात्र तरीका मौजूदा कानूनों को सख्ती से लागू करना है।

उन्होंने कहा कि इस महामारी में भी जातिवाद नहीं रुका है। बहुत सारे दलित जो प्रवासी श्रमिक हैं, वे अब घर लौट रहे हैं और दूसरे तबके इससे नाराज़ हैं।

उन्होंने आगे कहा, “दुर्भाग्य से, जातिगत भेदभाव का कोई खास समय नहीं होता है। यह हर समय रहता है। भारत में जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ कानूनों की कोई कमी नहीं है। बहुत सारी ऐसी धाराएं हैं जिनके तहत लोगों पर मुकदमा दर्ज़ किया जा सकता है। अन्य देशों में जाति जैसे मुद्दे नहीं हैं, लेकिन उनके पास उतने कानून नहीं हैं जितने भारत में अपने देश में नस्लवाद से लड़ने के लिए है। लेकिन सरकार को इन कानूनों को लागू करना चाहिए। सरकार को इस तरह से काम करना चाहिए कि इस तरह की गतिविधियों में लिप्त लोग समाज में शांति से नहीं रह पाएं।”

कथिर ने आगे कहा कि, "दुनिया लॉकडाउन में है, लेकिन जातिवाद अभी भी ज़िंदा है। सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। उन्हौने कहा कि डॉक्टरों पर हमला करने वाले लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत मामला दर्ज किया जाता है। लेकिन दलितों के ख़िलाफ़ हो रहे हमलों पर क्यों कोई चिंता नहीं है? वे कैसे बड़े समूहों में हमला करने के जुर्रत कर सकते हैं? यह शर्म की बात है कि लोग कोरोना वायरस से मरने को तैयार हैं लेकिन जातिवाद को नहीं छोड़ेंगे। कोरोना वायरस समाज को स्कैन कर रहा है। यह कुछ लोगों के लिए बहुत ही ख़राब हालात पैदा कर रहा है। जाति कोरोना वायरस से कहीं अधिक ख़तरनाक है।"

COVID-19
COVID-19 lockdown
caste atrocities . Caste Atrocities in Tamil Nadu
Tamil Nadu Caste Violence

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

महामारी के दौर में बंपर कमाई करती रहीं फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License