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भारत
राजनीति
तेजप्रताप यादव की “स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स” महज मज़ाक नहीं...
तेजप्रताप को जो लोग शुरू से जानते हैं, वे यह भी जानते है कि वे बिहार की राजनीति को एन्जॉय करते हैं। लालू फैमिली से होने के कारण उनके पास कुछ विशेषाधिकार हैं, लेकिन राजनीति अपने साथ कुछ दायित्व भी ले कर आती है। तेजप्रताप यादव को भी यह दायित्व समझना होगा।
शशि शेखर
29 Apr 2022
Tej Pratap Yadav

धरती का पहला क्रांतिकारी वह नवजात होता है, जो भूख लगाने पर रो कर अपने विरोध, अपनी इच्छा को जाहिर करता है। रह-रह कर तेजप्रताप यादव के दिल से जो आवाज निकलती सुनाई देती है, वह इसी नवजात की तरह है। एक ऐसी आवाज जो “अपनों” की बीच “परायों” के बढ़ते हस्तक्षेप को थामने की कोशिश करती हो। एक ऐसी आवाज जो “सेंस ऑफ़ इनजस्टिस” को भांप कर दिल से निकल ही जाती है। सवाल है कि क्या तेजप्रताप यह सब कुछ नादानी में करते है या जानबूझ कर या फिर वो जो करते है, उसे इंसान की “स्वाभाविक प्रतिक्रया” भर कहा जाना चाहिए।

“अपनों” के विरूद्ध

राजद (लालू) फैमिली के बड़े बेटे होने के बाद भी तेजप्रताप यादव की जगह पार्टी की कमान तेजस्वी यादव संभालते हैं। मीसा भारती लालू प्रसाद यादव की सबसे बड़ी संतान हैं। वह भी राजनीति में हैं, लेकिन उनकी राजनीति दिल्ली में है। निश्चित ही, लालू प्रसाद यादव ने तेजस्वी यादव को ले कर जो निर्णय लिया होगा, उसकी अपनी वजहें रही होंगी। फिर, लालू प्रसाद यादव अपने परिवार को बेहतर जानते-समझते हैं। किसे क्या जिम्मेदारी दी जानी चाहिए, इसका निर्णय वही बेहतर कर सकते हैं। उन्होंने ऐसा किया भी। इस निर्णय को “परिवार” ने माना भी। स्वयं तेजप्रताप यादव ने घोषणा की कि तेजस्वी उनके अर्जुन है और उनका मकसद है, अपने भाई को मुख्यमंत्री बनाना।

फिर वो कौन “अपने” हैं, जिससे तेजप्रताप यादव खफा रहते है। यह भी कोई सीक्रेट नहीं है। खुद तेजप्रताप यादव नाम ले कर कह चुके हैं कि कुछ बाहरी लोग (तेजस्वी यादव के सालाहकार संजय यादव) हैं, जिन्होंने तेजस्वी यादव के इर्द-गिर्द एक जाल बन रखा हैं, जिसकी वजह से कई बार या कहे कि हर बार तेजप्रताप की मांग, बात, सलाह अनसुनी रह जाती है। संजय यादव तेजस्वी यादव के आज सबसे करीबी है। सलाहकार है। चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी बनाई रणनीति का भी असर था कि राजद का प्रदर्शन बेहतरीन रहा। तेजप्रताप यादव ने स्वयं कहा है कि संजय यादव उनके और उनके भाई के बीच एक दीवार के जैसे काम करते हैं।

ऐसा कहने के पीछे क्या ठोस कारण थे, उस पर तो बस कयास लगा सकते है लेकिन इतना स्पष्ट है कि संजय यादव और तेजस्वी यादव जिस शैली की राजनीति कर रहे है या करना चाहते है, उसमें तेजप्रताप स्टाइल ऑफ़ पॉलिटिक्स के लिए कोई जगह नहीं है। यानी, जो दूरी मीडिया या पोलिटिकल क्लास को दिख रही है, वह इन दोनों भाइयों के “स्टाइल ऑफ़ पॉलिटिक्स” में अंतर की वजह से भी है।

यहाँ आ कर तेजप्रताप फिर से अकेले पड़ जाते है। मीसा भारती एक तो दिल्ली में रहती है, दूसरा वो कमोबेश तेजस्वी यादव का नेतृत्व स्वीकार करने के बाद हस्तक्षेप की राजनीति की जगह सहयोग की राजनीति कर रही हैं। पटना की राजनीति में तेजस्वी यादव के बाद चाहे संजय यादव हो या बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, इन लोगों से तेजप्रताप यादव का विरोध जगजाहिर है। और यही वो वजहें हैं, जिसके कारण मीडिया लालू परिवार में फूट, भाइयों में द्वेष जैसे जुमले गढ़ता है। लेकिन, भाइयों के बीच ऐसा कुछ है, सतह पर कभी नहीं दिखा। उलटे, तेजप्रताप ने ऐसी किसी भी अफवाह पर यह कह कर विराम लगाया कि उनकी जिन्दगी का मकसद है अपने छोटे भाई को मुख्यमंत्री बनाना। लेकिन, यहाँ समस्या ये है कि लालू फैमिली के बड़े बेटे होने के कारण पार्टी के भीतर एक स्वाभाविक प्रभाव अवश्य तेजप्रताप यादव चाहते होंगे। फिर चाहे टिकट बंटवारे का निर्णय हो या संगठन में किसी की भूमिका तय करने का मसला। इस मामले में तेजप्रताप यादव की राय का कितना सम्मान किया जाता होगा, उनकी राय कितनी मानी जाती होगी, इसी में सारी समस्या छुपी हुई है।

समस्या कहाँ है?

2019 का लोकसभा चुनाव। तेजप्रताप यादव ने अपने लिए लोकसभा की दो सीटें माँगी थी। शिवहर और जहानाबाद। उनकी मांग ठुकरा दी गयी और उस वक्त लालू प्रसाद यादव ने बहुत ही करीने से इस मामले को संभाला था। उन्होंने अपने ख़ास सैयद फैसल अली को शिवहर से टिकट दे दिया था। इस तरह उस वक्त मामला शांत कर दिया गया। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी तेजप्रताप यादव ने अपने लोगों के लिए कुछ सीटें माँगी थी। चंपारण के एक डॉक्टर उनके ख़ास मित्र हैं, जिन्हें पीपरा विधानसभा क्षेत्र से टिकट मिलने की उम्मीद थी। इस उम्मीद पर उक्त डॉक्टर महोदय काफी सालों से तेजप्रताप यादव की मंडली के सदस्य बने रहे। ऐन मौके पर टिकट नहीं मिला क्योंकि वह सीट कम्युनिस्ट पार्टी के खाते में चली गयी। तेजप्रताप यादव ने अपनी मंडली के एक युवा को छात्र राजद का अध्यक्ष बनाया था। जगदानंद सिंह ने उक्त छात्र अध्यक्ष को हटा कर किसी और को अध्यक्ष बना दिया। यह तेजप्रताप यादव के लिए असहनीय था और उन्होंने अपना अलग ही एक छात्र संगठन बना लिया। इसके बाद वे जगदानंद सिंह पर हमलावर भी हुए। उन्हें तानाशाह तक बताया।

अब सवाल उठाता है कि सही कौन, गलत कौन? हो सकता है कि तेजप्रताप के कैंडिडेट में कमी रही हो, लेकिन यह भी तो सही नहीं कहा जा सकता कि आप अपने एक विधायक, पूर्व मंत्री और लालू फैमिली के बड़े बेटे से बिना सलाह-मशविरा किए, उनके कैंडिडेट को इस तरह पार्टी से निकाल दे। यह काम जगदानंद सिंह जी चाहते तो बातचीत कर के, सलाह मशविरा कर के भी कर सकते थे। बीच का रास्ता निकाल सकते थे। लेकिन, अगर उन्होंने तेजप्रताप यादव के कैंडिडेट को सिर्फ इसलिए बिना सलाह किए निकाला कि उन्हें तेज प्रताप यादव को “हैसियत” बतानी थी, तो यह सरासर गलत माना जाना चाहिए।

हो सकता है कि तेजप्रताप यादव में नेतृत्व या संगठन की क्षमता उतनी न हो जितनी जगदा बाबू में हो या तेजस्वी यादव में, लेकिन बिहार की जातीय राजनीति में लालू फैमिली से होने के कारण ही सही, तेजप्रताप यादव एक “फैक्टर” तो है ही।

राजद भले इस “फैक्टर” को नकार दे, लेकिन विपक्ष (भाजपा) ने कभी इस “फैक्टर” को सार्वजनिक तौर पर नहीं नकारा है। ऐसे में, किसी दिन तेजप्रताप यादव “डार्क हॉर्स” बन कर निकल जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।

90 के “तेज” बनाम 21वीं सदी के “तेज”

तेजप्रताप यादव के साथ बस एक ही समस्या है। वे 90 के दशक के लालू स्टाइल ऑफ़ पॉलिटिक्स से काफी प्रभावित दिखते हैं। ताजा उदाहरण, अपने आवास पर एक पत्रकार के साथ उनका व्यवहार है, जिसे सोशल मीडिया पर सबने देखा कि वे कैसे उक्त पत्रकार को 2 मिनट के लिए बिना माइक के कमरे के भीतर चल कर बातचीत करने को कहते है और उक्त पत्रकार उलटे पाँव वहाँ से भागते दिखाते है।

यह तेजप्रताप यादव की राजनीति के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता। उन्हें इस मामले में अपने पिता से सीखना चाहिए कि कथित “जंगलराज” के आरोप झेलते हुई भी कभी लालू प्रसाद यादव किसी पत्रकार के खिलाफ नहीं हुए। हालांकि, इसी वीडियो में तेजप्रताप यह कहते हुए सुने जा सकते है कि मैंने तो सिर्फ उन्हें बात करने के लिए बुलाया था, लेकिन वे भाग गए। उनका पत्रकार पर आरोप है कि वह उनके खिलाफ साजिश करते है, उन्हें बदनाम करते है। हो सकता है कि यह सच हो। फिर भी तेजप्रताप यादव का आचरण सही नहीं था। वे अगर सोचते है कि उक्त पत्रकार ने कुछ गलत लिखा बोला है, तो वे मानहानि का मुकदमा कर सकते है, लेकिन कमरे के भीतर चल कर 2 मिनट बात करने का अर्थ बिहार में क्या होता है या हो सकता है, यह सब जानते हैं।

इसके ठीक उलट तेजस्वी यादव का मीडिया के प्रति व्यवहार तब भी सरल बना हुआ है, जब खुलेआम मीडिया उनके और उनके परिवार के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित रहता है। इन दोनों भाइयों के बीच यह अंतर, जनता के बीच काफी अलग सन्देश ले जाता है। इसके अलावा, सदन के भीतर या सदन के बाहर, तेजस्वी यादव जिस गंभीरता और समझदारी से मुद्दों को रखते हैं, सत्ता पक्ष पर हमलावर होते वक्त भी जिस शालीनता का परिचय देते है, वह उनकी परिपक्वता को दर्शाता है। यहीं आ कर तेजप्रताप यादव पिछड़ जाते हैं।

भारतीय मीडिया को हमेशा से ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले एक चौधरी देवी लाल, एक लालू यादव की तलाश रहती है। भारतीय राजनीति और लुटियंस जोन की एलीट मीडिया हमेशा से ग्रामीण भारत को ले कर पूर्वाग्रह से ग्रसित रही है। नार्थ इंडिया में उसने हमेशा से एक ऐसा नेता की खोज करने की कोशिश की है, जिसका मजाक उड़ाया जा सके, जिसके बहाने जाति विशेष, वर्ग विशेष, क्षेत्र विशेष का मजाक उड़ाया जा सके। मौजूदा वक्त में मीडिया को तेजप्रताप यादव के रूप में ऐसा ही एक नेता मिला हुआ है। तेजप्रताप यादव को अपनी छवि पर ध्यान देने की जरूरत होगी। उन्हें खुद को मिल रहे मीडिया अटेंशन से लगता होगा कि उनकी यही छवि सबसे अच्छी है, जब वे कभी कृष्ण या कभी शिव बनते है। लेकिन, दुर्भाग्य से वे मीडिया की चतुराई को नहीं जान-समझ सकते। मीडिया दोधारी तलवार है। एक तरफ, जब वो आपको अटेंशन दे रहा होता है, उसी वक्त उसकी दूसरी धार आपकी छवि को इतना नुकसान पहुंचा रही होती है, जिसका एहसास आपको नहीं होता। राहुल गांधी जैसे नेता की छवि मीडिया की इस दोधारी तलवार से बच नहीं सकी, तेजप्रताप यादव तो फिर भी अभी तक राज्य स्तर के ही नेता हैं।

“तेज” के लिए आगे क्या?

तेजप्रताप यादव को जो लोग शुरू से जानते हैं, वे यह भी जानते है कि तेजप्रताप यादव बिहार की राजनीति को एन्जॉय करते हैं। लालू फैमिली से होने के कारण उनके पास कुछ विशेषाधिकार हैं, इस नाते वे राजनीति का पूर्ण मजा लेते रहे हैं, लेते रहना चाहते हैं। इसमें कोई बुराई है भी नहीं। दिक्कत सिर्फ इतनी है कि मजा लेते-लेते वे यह भूल जाते हैं कि राजनीति अपने साथ कुछ दायित्व भी ले कर आती है। और उस दायित्व को पूरा करने वाला ही असली राजनेता बनता है।

तेजप्रताप यादव को यह दायित्व समझना होगा। उन्हें अपनी राजनीतिक वास्तविकता समझनी होगी। उन्हें ये समझना होगा कि आगे उनके लिए राजनीतिक भविष्य उतना ही कठिन हो सकता है, जितना आसान इस वक्त दिख रहा है। उन्हें खुद को साबित करना होगा, बार-बार साबित करना होगा।

लेकिन, यह काम पटना में बैठ कर, अपने बनाए मित्र मंडली के बीच रह कर नहीं किया जा सकता। ऐसे लोगों के बीच रह कर नहीं किया जा सकता, जो लोग उन्हें सोशल मीडिया का स्टार बना कर उन्हें गुमराह करते हैं। बिहार छोड़िये, राजद के भीतर भी अगर उन्हें लंबे समय तक प्रासंगिक बने रहना है तो उन्हें बिहार की जमीन पर उतरना होगा। दुर्भाग्य से, वे यह काम मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये करना चाहते हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Bihar
Lalu Prashad Yadav
Tejashwi Yadav
Tej Pratap Yadav
Rashtriya Janata Dal
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