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राजनीति
अभी केवल बेल मिली है लड़ाई लंबी है : नितिन राज
आख़िर कौन है यह 23 वर्षीय नौजवान नितिन राज जो पिछले एक साल से सत्ता और पुलिस की दमनकारी नीति का शिकार बना हुआ है, यह जानना बेहद जरूरी है, जरूरी इसलिए क्योंकि ऐसे उदाहरण हमें सत्ता के उस चरित्र तक ले जाते हैं जहां हम साफ़ तौर पर यह देख सकते हैं कि संघर्षशील ताकतों को किस हद तक रौंदा जा रहा है।
सरोजिनी बिष्ट
27 Mar 2021
अभी केवल बेल मिली है लड़ाई लंबी है : नितिन राज
ज़मानत मिलने पर जेल से बाहर आते हुए नितिन राज। फोटो : सोशल मीडिया से साभार

लखनऊ: आखिरकार लंबी जद्दोजहद के बाद नितिन को करीब ढाई महीने बाद बेल मिल ही गई। जेल से बाहर आने के बाद इधर लगातार मेरी कोशिश रही कि उससे बात हो जाए, पर बार बार मोबाइल नंबर मिलाने पर भी जब उसके नंबर पर कोई रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा था तो यह बात समझते देर न लगी कि शायद अभी तक उसका मोबाइल पुलिस के ही कब्जे में है। खैर कभी कोशिश के बाद एक ऐसा नंबर हाथ लगा जिस पर नितिन से बात हो सकती थी। वह नंबर उनके दादा जी का था। सोचा, पता नहीं अभी वे बात करने की स्थिति में है भी की नहीं, और जैसी जानकारी भी मिल रही थी कि फिलहाल अभी वह किसी से मुलाक़ात या बातचीत से दूर है। स्वाभाविक भी लगा, ज़ाहिर है ऐसी स्थिति में किसी की भी मनोदशा कुछ समय शांति से परिवार के साथ समय बिताने की हो ही सकती है, इसलिए यह तय किया कि कुछ दिन बातचीत न करना ही बेहतर विकल्प है।

जेल से बाहर आने के कुछ दिन बाद जब नितिन को फोन लगाया तो आवाज़ में वही गर्मजोशी और जज्बे में वही बुलंदी महसूस हुई जो एक कॉमरेड में होनी चाहिए। हाल चाल पूछने के बाद जब मैंने यह कहा कि तुम पर एक स्टोरी करना चाह रही हूं, क्या तुम इसके लिए सहमत हो, तो उसने  तुरन्त सहमति दे दी।

फाइल फोटो, सोशल मीडिया से साभार

आख़िर कौन है यह 23 वर्षीय नौजवान नितिन राज जो पिछले एक साल से सत्ता और पुलिस की दमनकारी नीति का शिकार बना हुआ है, यह जानना बेहद जरूरी है, जरूरी इसलिए क्योंकि ऐसे उदाहरण हमें सत्ता के उस चरित्र तक ले जाते हैं जहां हम साफ तौर पर यह देख सकते हैं कि संघर्षशील ताकतों को किस हद तक रौंदा जा रहा है। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके नितिन छात्र संगठन आइसा से जुड़े हुए हैं। अपने क्रांतिकारी तेवरों के साथ न केवल छात्रों के मुद्दों पर मुखर रहे, बल्कि हर उस तबके की भी लड़ाई में अग्रणी भूमिका में भी दिखाई दिए जो समाज के हाशिए पर पड़ा है। स्वाभाविक है ऐसी ताकतें हमेशा तानाशाह सरकार के निशाने पर रहती हैं। हमारे सामने ऐसे अनेकों नाम मौजूद हैं जो केवल इसलिए इस सरकार की हिट लिस्ट में दर्ज हैं क्योंकि वे सरकार की गलत नीतियों और दमन के ख़िलाफ़ खुलकर बोलने की हिम्मत रखते हैं, क्योंकि वे समाज के वंचित और जरूरतमंद वर्ग की आवाज़ हैं। नितिन भी इनमें से एक है और यही कारण है कि वह पिछले एक साल से अपने खिलाफ पुलिस द्वारा लगाई ऐसी धाराओं को झेल रहा है जो उसका अपराध रहा ही नहीं।

पिछले साल मार्च में जब नितिन की गिरफ्तारी हुई थी,   उस दिन को याद करते हुए वे कहते हैं, गिरफ्तारी से ज्यादा अपहरण जैसा महसूस हो रहा था। वे बताते हैं, यही मार्च का महीना था और घंटाघर में CAA और NRC के खिलाफ आंदोलन चल रहा था। आंदोलन को समर्थन देते हुए लगभग हर रोज उनका वहां जाना होता था। 15 मार्च, जिस दिन गिरफ्तारी हुई, उस दिन भी वे वहां मौजूद थे और अन्य साथियों के साथ मिलकर भगत सिंह शहादत दिवस की तैयारियों को लेकर बात कर रहे थे। उनके मुताबिक उन्हें कभी यह एहसास नहीं हुआ कि पुलिस उन पर नजर रख रही है। वे कहते हैं आंदोलन हमेशा शांतिपूर्ण चलता था और हम सब आंदोलनकारी शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखते थे, हिंसा या उपद्रव हमारे आंदोलन का हिस्सा कभी रहा ही नहीं। उस दिन भी सब कुछ ठीक चल रहा था।   23 मार्च का कार्यक्रम तय करके जब वे अपने घर जा रहे थे कि अचानक एक कार आकर उनका रास्ता रोक लेती है,  वे कहते हैं एक पल तो वे शॉक्ड हो गए कि आख़िर किसकी कार है, इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते दो पुलिस वाले कार से उतरते हैं, उनसे उनका नाम पूछते हैं और उन्हें जबरदस्ती कार में बैठाने के लिए घसीटने लगते हैं, पुलिस के इस रवैए से हैरान वे जब अपनी मदद को फोन लगाने लगते हैं तो पुलिस द्वारा न केवल उनका फोन छीन लिया जाता है बल्कि उन्हें मारा भी जाता है और जबरदस्ती उन्हें कार में बैठा दिया जाता है। वे कहते हैं पूरा दृश्य अपहरण जैसा था, उन्हें लग रहा था कि जैसे उनका किडनैप किया जा रहा है लेकिन पुलिस उन्हें क्यूं गिरफ़्तार कर रही है, उन्हें समझ नहीं आ रही था।

फाइल फोटो सोशल मीडिया से साभार

नितिन कहते हैं न तो वे उपद्रवी थे न ही कोई हिंसा हुई थी फिर आख़िर पुलिस उन्हें गिरफ्तार क्यूं कर थी सिर्फ इसलिए कि उन्होंने आंदोलन के बीच नारे और पोस्टर लगाए थे, तो नारे लगाना इतना बड़ा अपराध हो गया। उनके मुताबिक जब तक पुलिस उन्हें घसीटते हुए गाड़ी में बैठा रही थी तब तक वे यह तक नहीं बता रही थी कि किस जुर्म के तहत उन्हें अरेस्ट किया जा रहा है। हद तो तब हो गई जब पुलिस कहती है यह आंदोलन महिलाओं का आंदोलन है इसमें तुम जैसे छात्रों का क्या काम। पुलिस के मुताबिक उसके द्वारा शांति भंग की गई, लेकिन शांति भंग जैसी कौन सी बात हुई, इसका जवाब पुलिस के पास भी नहीं था। गिरफ्तार कर पुलिस सीधे उन्हें ठाकुरगंज थाने ले गई। पूरी रात वहीं रखा और परिवार तक को ख़बर नहीं करने दिया गया तो वहीं परिवार पूरी रात नितिन की खोज में लगा रहा। अगले दिन सुबह कोर्ट ले जाया गया और वहां से 16 मार्च को जेल भेज दिया गया।

नितिन पर धारा 145, 147, 149, 188, 253, 427, 505 (बी) भारतीय दंड संहिता एवं धारा 7 क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट एवं धारा 66 आईटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज है।

वे कहते हैं उनके ख़िलाफ़ केस को मजबूत बनाने के लिए गिरफ्तारी की आधी रात एक अन्य युवक को भी पुलिस पकड़ कर ले आई ताकि उसे मेरा साथी बताया जा सके। जिसे थाने लाया गया था वह भी आंदोलन समर्थक था। केस कहीं से भी कमजोर न लगे इसके लिए पुलिस ने नितिन के साथ अन्य नामों को भी शामिल किया। नितिन बताते हैं आधी रात को जिस युवक को पुलिस पकड़ कर लाई थी मेरा साथी बताने के लिए उस पर पहले भी गुंडा एक्ट के तहत पुलिस मामला दर्ज कर चुकी थी। दिसम्बर, 2019 को परिवर्तन चौक पर हुई हिंसा का गुनहगार मानते हुए उन पर केस दर्ज था। पुलिस का पूरा प्रयास था कि उसे नितिन का साथी बताया जाए जबकि नितिन उसे जानते तक नहीं थे कुल मिलाकर पुलिस की यह भरसक कोशिश थी कि किसी भी तरह से नितिन के ख़िलाफ़ एक मजबूत केस बनाया जाए ताकि उनकी गिरफ्तारी पर सवाल न उठे।

सोलह दिन जेल में रहने के बाद एक अप्रैल 2020 को उन्हें पैरोल पर छोड़ दिया गया। करोना के चलते कोर्ट बन्द थे तो इसलिए करीब नौ महीने तक नितिन को बेल नहीं मिल पाई।

पैरोल की अवधि खत्म होने पर 12 जनवरी 2021 को नितिन ने स्वयं पुलिस के समक्ष सरेंडर कर दिया। वे कहते हैं उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें कुछ दिन के अंदर जमानत मिल जाएगी लेकिन उस पर भी दो महीने लग गए। पिछले मार्च से लेकर इस मार्च तक पूरा एक साल किस मानसिक हालात में बीता, इस सवाल के जवाब पर वे कहते हैं जब आपको जबरदस्ती गुनहगार बना दिया जाता हो तो मानसिक तनाव होना स्वाभाविक है, इस पूरे दौर में परिवार भी बहुत मानसिक तनाव में रहा। नितिन के परिवार में मां पिताजी बहन और दादा जी हैं। वे बताते हैं तनाव था और मुझसे ज्यादा परिवार को, क्यूंकि हम आज जिस खतरनाक दौर में हैं वहां सत्ता को चुनौती देने वाली हर ताकत के ख़िलाफ़ साजिशें रचना इस शासकीय तंत्र का चरित्र बन चुका है और उस पर वामपंथी विचारधारा का होना इस तंत्र में सबसे बड़ा गुनाह बन चुका है, तो वे मेरे ख़िलाफ़ किसी भी हद तक जा सकते हैं, इसका डर परिवार को हमेशा रहता था। यदि आप महिला हैं तो आपका चरित्रहनन करने से लेकर और पुरुष हैं तो आपको उग्रवादी बताने तक कुछ भी इस सिस्टम में संभव है। वे कहते हैं मैंने अपने तनाव पर कभी डर को हावी नहीं होने दिया क्योंकि हम जानते हैं कि जीत अंत में सच्चाई की ही होगी।

इस जेल यात्रा से भी पहले भी नितिन मई 2017 में 27 दिन की जेल काट चुके हैं। मसला बस इतना भर था कि लखनऊ यूनिवर्सिटी आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कुछ छात्रों ने काला झंडा दिखाया था जिसमें सब की गिरफ्तारी हुई इसमें नितिन भी शामिल थे। 

इसमें दो राय नहीं कि नितिन एक होनहार छात्र रहे हैं पिछले एक साल के मानसिक तनाव के दौर में भी उन्होंने न तो अपनी विचारधारा से समझौता किया न ही पढ़ाई से जिसका नतीजा यह हुआ कि उस दौर में भी उन्होंने नेट, पीएचडी और जेएनयू से सिनेमा स्टडी में एमफिल करने के लिए प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की। नितिन बताते हैं कि उनकी कुछ किताबें, 900 रुपये और मोबाइल अभी तक पुलिस के पास है।

वे कहते हैं लंबे समय तक बेल न मिलने के कारण वे दिल्ली भी न जा सके लेकिन अब ऑनलाइन क्लासेज ले रहे हैं। हालांकि इन सब झंझट के चलते वे समय से क्लासेज नहीं कर पाए। काफी कोर्स छूट जाने के कारण जो कोर्स उनका दो साल में पूरा होना था अब 6 महीना और अतिरिक्त लग जाएगा। वे कहते हैं अभी वे अपना पूरा समय अपनी पढ़ाई को दे रहे हैं लेकिन ऐसा हरगिज नहीं कि इस पूरे कठिन दौर ने उनके हौसले पस्त कर दिए हैं, बल्कि इस पूरे दौर ने उनके अंदर लड़ने की और ताकत पैदा कर दी है।

नितिन हंसकर कहते हैं ताकत और हौसला तो बचाए रखना ही होगा क्योंकि अभी केवल बेल मिली है लड़ाई लंबी है दौर इससे बुरा समय भी आ सकता है।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

UttarPradesh
Nitin Raj
UP police
UP Government
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