NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है
जब तक जनता के रोजी-रोटी-स्वास्थ्य-शिक्षा के एजेंडे के साथ एक नई जनपक्षीय अर्थनीति, साम्राज्यवादी वित्तीय पूँजी  से आज़ाद प्रगतिशील आर्थिक राष्ट्रवाद तथा संवैधानिक अधिकारों व सुसंगत सामाजिक न्याय की राजनीति  नहीं उभरेगी, तब तक संघ-भाजपा की चुनौती खत्म नहीं होने वाली।
लाल बहादुर सिंह
26 May 2022
protest
फाइल फोटो।

मौजूदा हालात को लेकर हर जगह अमन और इंसाफ-पसंद नागरिक समाज में गहरी बेचैनी, चिंता और कुछ करने की तात्कालिकता का अहसास दिख रहा है। वह प्रतिरोध की मानसिक तैयारी के दौर से गुजर रहा है। तमाम शहरों में लोकतान्त्रिक जनसंगठनों और नागरिक समाज की बैठकें हो रही हैं। रास्तों और उपायों की तलाश हो रही है। हाल ही में दिल्ली में हुए सफल प्रतिरोध पूरे देश के लिए प्रेरक हैं।

यह स्वागत योग्य है और उम्मीद जगाता है कि आने वाले दिनों में यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी तथा फासीवादी आक्रामकता के विरुद्ध सशक्त एकजुट प्रतिरोध खड़ा होगा।

दरअसल, देश में हालात अधिकाधिक चिंताजनक होते जा रहे हैं। एक ओर आर्थिक संकट-महंगाई, बेरोजगारी असहनीय बनी हुई है। इसे हल कर पाने में नाकाम सत्तारूढ़ हिंदुत्व की ताकतों ने  देश को गहरे दुःस्वप्न और अनिश्चित अंधकारमय भविष्य की अंधेरी सुरंग में धकेल दिया है।

मुस्लिम पहचान से जुड़े सारे सवालों को एक साथ उछाल दिया गया है। हिजाब और नमाज से लेकर मदरसा, ज्ञानवापी-मथुरा, कुतुब मीनार-ताजमहल तक, कॉमन सिविल कोड तक, सर्वोपरि बुलडोजर उनके दमन और अपमान के प्रतीक में बदल दिया गया है। तेज होते नफरती माहौल में मुस्लिम समुदाय की हिफ़ाज़त और इज़्ज़त-आबरू के लिए बेहद चिंताजनक स्थिति पैदा हो गयी है। जाहिर है अल्पसंख्यक समुदाय में असुरक्षा-बोध गहराता जा रहा है।

बड़ी विपक्षी राजनीतिक पार्टियां सहमी हुई, पस्त ( demoralised ) और किंकर्तव्यविमूढ़ हैं और उन्हें कोई उपाय सूझ नहीं रहा है। सारी संवैधानिक संस्थाएं संघ परिवार की खतरनाक परियोजना की सहायक बन गयी है। न्यायपालिका भी यदा-कदा अपने महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के बावजूद इस फासीवादी मार्च को रोक नहीं पा रही है।

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आज जो कुछ हो रहा है, वह मूलतः राजनीतिक चुनौती है। हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है, यह न कोई धार्मिक अभियान है, न देशभक्ति का मिशन है। इनके कथित सांस्कृतिक ( हिन्दू ) राष्ट्रवाद का धर्म, संस्कृति और सच्चे देशप्रेम से कोई लेना देना नहीं है। ।  इतिहास की झूठी-सच्ची घटनाओं और कथानकों के आधार पर भोली-भाली जनता  के अंदर मुसलमानों के खिलाफ साम्प्रदायिकता का जहर भर कर ध्रुवीकरण का खेल हो रहा है।धर्म और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लबादे में दरअसल यह विशुद्ध राजनीति है।

इस चुनौती का जवाब भी मूलतः राजनीतिक होगा, न्यायिक प्रक्रिया अथवा उदारवादी धार्मिक सद्भाव की अपीलें इससे नहीं निपट पाएंगी ; क्योंकि यह परिस्थिति पैदा ही हुई है, सेकुलर राजनीति के समर्पण और पतन ( Ideological retreat and political degeneration ) से।

गैर-भाजपा पार्टियों के राज में जैसे -जैसे  स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों का क्षरण होता गया, नवउदारवादी नीतियों के दौर में जैसे-जैसे आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में साम्राज्यवाद-विरोधी सम्प्रभु राष्ट्रवाद का परित्याग किया गया, पाकिस्तान-विरोध को राष्ट्रवाद की धुरी बनाया गया, समतामूलक आदर्शों को तिलांजलि दी गयी, पहचान की अवसरवादी राजनीति उभरी, धार्मिक पहचानों का राजनीति के लिए इस्तेमाल शुरू हुआ, विपक्षी पार्टियां आकंठ भ्रष्टाचार में डूबती गईं, उनके लोकतांत्रिक चरित्र का पतन हुआ, राज-काज में चौतरफा काले कानूनों और अधिनायकवाद का बोलबाला हुआ, उसने धीरे- धीरे संघ-भाजपा के उभार के लिए उर्वर वैचारिक जमीन तैयार कर दी, जिसका शातिर tactical political manoeuvres के माध्यम से कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करते हुए संघ-भाजपा एक hegemonic force बन गए।

विपक्ष की ओर से किसी बेहतर भविष्य के सपने के अभाव में वे बेरोजगार युवाओं को बड़े पैमाने पर अपने विषाक्त अभियान में शामिल करने में सफल हुए हैं। जिन्हें कभी उन्होंने रोजगार देने का वायदा किया था आज उन मासूम नौजवानों के अंदर जहर भर कर उन्हें फासीवादी तोप का चारा बनाया जा रहा है।

जाहिर है जब तक जनता के रोजी-रोटी-स्वास्थ्य-शिक्षा के एजेंडे के साथ एक नई जनपक्षीय अर्थनीति, साम्राज्यवादी वित्तीय पूँजी  से आज़ाद प्रगतिशील आर्थिक राष्ट्रवाद तथा संवैधानिक अधिकारों व सुसंगत सामाजिक न्याय की राजनीति  नहीं उभरेगी, तब तक संघ-भाजपा की चुनौती खत्म नहीं होने वाली।

लोकतान्त्रिक ताकतों के सामने आज चुनौती दुहरी है। एक ओर यह लड़ाई एक नए सकारात्मक एजेंडा और नैरेटिव को समाज में स्थापित करने की लड़ाई है, जिसकी जड़ें मेहनतकश जनता के जीवन के वास्तविक सवालों में हों और जो आज़ादी की लड़ाई के साझी शहादत-साझी विरासत-साझी नागरिकता के मूल्यों से लोगों को अनुप्राणित और प्रेरित कर सके तथा उस पर खड़े होकर, जो उनके false नैरेटिव का, उनके छद्म राष्ट्रवाद का पर्दाफाश करे और उनके नफरती, विभाजनकारी, करपोरेटपरस्त, अधिनायकवादी एजेंडा को पीछे धकेल सके।

ऐसे वैकल्पिक एजेंडा और नैरेटिव के आधार पर उभरने वाली आंदोलनात्मक तथा राजनीतिक प्रक्रिया ही अंततः संघ-भाजपा की hegemony को ध्वस्त कर सकती है।

लोकतान्त्रिक संगठनों तथा नागरिक समाज के सामने दुहरा कार्यभार है। एक ओर उन्हें उक्त राजनीतिक प्रक्रिया में उत्प्रेरक ( catalyst ) तथा मददगार की भूमिका निभाना है और ऐसा वातावरण बनाना है कि विपक्ष की सभी भाजपा-विरोधी राजनीतिक ताकतें जनता के एजेंडा के आधार पर संयुक्त लड़ाई में उतरने के लिए बाध्य हों ताकि 2024 में भाजपा सत्ताच्युत हो।

वहीं फौरी तौर पर उनके सामने समाज में अमन और भाईचारे के माहौल को बिगाड़ने वाली कार्रवाइयों के खिलाफ तथा मुसलमानों एवं अन्य असहमत लोगों के ऊपर सरकारी दमन एवं संघ-भाजपा से  जुड़े/प्रेरित vigilante समूहों, संगठनों के हमलों  के खिलाफ जमीनी प्रतिरोध खड़ा करने की चुनौती है।

इसके लिए सभी लोकतान्त्रिक जनसंगठनों/आंदोलनों ( छात्र-युवा, महिला, सांस्कृतिक,  मेहनतकश, दलित संगठनों समेत ) तथा नागरिक समाज की व्यापकतम सम्भव एकता समय की मांग है। विशेषकर युवाओं तथा मेहनतकश तबकों के बीच सघन अभियान चलाना होगा और उन्हें प्रतिरोध की मुख्य शक्ति के बतौर खड़ा करना होगा। अंततः फ़ैसला सड़क पर जनता के संगठित लोकतांत्रिक प्रतिरोध से ही होगा, जिसे गोलबन्द करने में डिजिटल प्रचार माध्यमों तथा सांस्कृतिक अभियान की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

लोकप्रिय प्रचार के माध्यम से जनता के बीच यह बहस खड़ी करनी होगी कि हमें बेहतर भविष्य के रास्ते तलाशने हैं और उस पर बढ़ना है या इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ना और अतीत के score settle करने हैं !

यह सच है कि हमारे विविधतापूर्ण समाज के लंबे अतीत में शासकों/वर्चस्वशाली ताकतों ने अपनी राजनीति के तहत अनगिनत मंदिर-मस्जिद-बौद्ध मंदिर ढहाए हैं, दमन और भेदभाव किये हैं अथवा एक धर्म के अंदर विभिन्न समुदायों के ऊपर तरह तरह के अत्याचार हुए हैं। फिर हमें आज क्या करना है ? क्या अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़कर, उन सारे मामलों पर बदला लेना है, स्कोर settle करना है और वह भी हमारे आज के देशवासी भाई-बहनों से, उन मासूम लोगों से जिन्होंने वे अपराध कभी किये ही नहीं ?

निर्विवाद रूप से यह रास्ता राष्ट्रीय विखंडन और गृह-युद्ध का रास्ता है, यह फासीवादी तानाशाही, बेलगाम कारपोरेट-राज, मेहनतकश जनता के लिये आर्थिक तबाही, राजनीतिक अधिकारविहीनता और सामाजिक अन्याय का रास्ता है।

दूसरा रास्ता आज की, हमारे वर्तमान की चुनौतियों से जूझते हुए, बेहतर भविष्य के निर्माण का- राष्ट्रीय एकता, समृद्धि, सबके लिए खुशहाल, गरिमामय जीवन का रास्ता है।

अब हमें तय करना है कि इन दो में से किस रास्ते पर हमें बढ़ना है, किधर जाना है ! हमें बेहतर भविष्य के रास्ते तलाशने हैं और उस पर बढ़ना है या अतीत का बदला लेने के लिए मुकम्मल बर्बादी के रास्ते पर जाना है।

नियति ने इतिहास के वर्तमान मोड़ पर हमारे राष्ट्र के लिए ये दो ही भवितव्य तय किये हैं। तीसरा कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। यह सम्भव नहीं है कि हम अतीतोन्मुखी होकर अपने वर्तमान और भविष्य के सवालों को हल कर पाएं, पीछे की ओर चलते हुए अपनी आगे की मंजिल पर पहुंच पाए। यह सम्भव नहीं है कि हम नफरत में उबलते, गृहयुद्ध के साये में जीते एक हिंसक समाज भी रहें और खुशहाली और समृद्धि के रास्ते पर बढ़ते  विश्वगुरु भी बन जाँय।

हमारे राष्ट्र और समाज के उज्ज्वल भविष्य के लिये लोकतान्त्रिक ताकतों को जनता की संगठित ताकत के बल पर फासीवादी ताकतों को शिकस्त देने की चुनौती कबूल करना होगा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।)

democracy
civil society
Civil society protest
Inflation
unemployment
government policies
Modi Govt
Save Democracy

Related Stories

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

अनुदेशकों के साथ दोहरा व्यवहार क्यों? 17 हज़ार तनख़्वाह, मिलते हैं सिर्फ़ 7000...

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ भारत बंद का दिखा दम !

बिहार बजट सत्र: विधानसभा में उठा शिक्षकों और अन्य सरकारी पदों पर भर्ती का मामला 

झारखंड: राज्य के युवा मांग रहे स्थानीय नीति और रोज़गार, सियासी दलों को वोट बैंक की दरकार

बार-बार धरने-प्रदर्शन के बावजूद उपेक्षा का शिकार SSC GD के उम्मीदवार


बाकी खबरें

  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License