NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
कोरोना से भी तेज़ फैल रहा है भारत में अमीर और ग़रीब का फ़ासला
अगर 140 अरबपतियों पर दस प्रतिशत वेल्थ टैक्स लगा दिया जाए तो इस पैसे से लगातार छह महीने तक देश भर में मनरेगा की योजना चलाई जा सकती हैं।
अजय कुमार
16 Apr 2021
कोरोना से भी तेज़ फैल रहा है भारत में अमीर और गरीब का फ़ासला
Image courtesy : The Guardian

कोरोना में जहां एक तरफ हाहाकार मचा है तो वहीं दूसरी तरफ अमीर और अधिक अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और अधिक गरीब। यहीं पर भारत की प्रशासनिक और सरकारी तंत्र की सबसे गहरी असफलता सामने नजर आती है और लगता है कि सब कुछ भ्रष्टाचार में सना हुआ है। अगर सरकारी रवैया का आचरण भ्रष्ट ना होता और सरकार पूरे देश के जनकल्याण को ध्यान में रखकर सरकारी काम करती तो अमीरी गरीबी का यह फासला ना होता। हम डटकर कोरोना जैसी परेशानी से जूझ रहे होते। 

कोरोना से हो रही मौतें कोरोना से ज्यादा इस वजह से हो रही हैं कि भारत के स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा बहुत कमजोर है। यह केवल कोरोना के मामले में ही नहीं है बल्कि दूसरी बीमारियों के मामले में भी हैं। लोग बीमारी से ज्यादा इस वजह से मरते हैं कि सही समय पर उन्हें अस्पताल, डॉक्टर और दवाई की सुविधाएं नहीं मिलती हैं। लोग स्वास्थ्य सुविधाओं तक न पहुंच पाने से मर जा रहे हैं। यह स्वास्थ्य सुविधाएं सुधर सकती थी अगर भारत की सरकारी नीति अमीरों को अमीर करने के लिए नहीं बल्कि जनता तक जरूरी सुविधाएं पहुंचाने की होती। 

सरकारें इसलिए बनाई जाती हैं कि संसाधनों का बंटवारा सबके हिस्से हो लेकिन होता बिल्कुल इसके उलट है। अधिकतर लोग अपनी पूरी जिंदगी मरने के हालात में जीने के लिए अभिशप्त बन जाते हैं तो वहीं पर मुट्ठी भर लोगों के हिस्से में सारे संसाधन सिमट जाते हैं।

साल 2021 में जारी फोर्ब्स की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल कुल भारतीय अरबपतियों की संख्या 140 रही। यह पिछले साल 102 थी। अगर सभी 140 अरबपतियों की कुल संपत्ति जोड़ी जाए तो यह करीब 596 अरब डॉलर यानी 44.28 लाख करोड़ रुपए होगी। 

इन 140 लोगों की भारत की 135 करोड़ की आबादी में हिस्सेदारी महज 0.000014 बनती हैं। और इनके पास देश के कुल जीडीपी का पांचवा हिस्सा यानी 22.7 फ़ीसदी हिस्सा है। पिछले साल जब जीडीपी कोरोना की वजह से 0 से -7.7 पर पहुंच गया तो उस समय इन 140 अरबपतियों की कुल संपदा भारत की कुल संपदा की तकरीबन 90 फ़ीसदी थी।

इन 140 अरबपतियों में से सबसे ऊपर वाली कैटेगरी में मौजूद 3 अरबपतियों की कुल संपत्ति इन 140 अरबपतियों की कुल संपत्ति के तकरीबन 25 फ़ीसदी है। जिसमें अंबानी और अडानी दोनों शामिल हैं। जिनके खिलाफ किसानों ने जमकर अपना गुस्सा जाहिर किया था कि देश सरकार नहीं बल्कि यह लोग मिलकर चला रहे हैं सरकार तो महज कठपुतली की तरह इनका हुकुम मानती है। अंबानी और अडानी की कुल संपत्ति पंजाब और हरियाणा के कुल जीडीपी से अधिक है। इस महामारी के साल में मुकेश अंबानी ने हर सेकंड तकरीबन एक लाख 13 हजार करोड़ रुपए की कमाई की। यानी पंजाब की छह कृषि परिवारों की कुल महीने की आमदनी से ज्यादा।

इन 140 अरबपतियों में से तकरीबन 24 ऐसे अरबपति हैं जिन्होंने इस कोरोना महामारी के दौरान हेल्थकेयर सेक्टर से सबसे अधिक कमाई की। यानी महामारी कमाई के लिहाज से इनके लिए वरदान की तरह साबित हुआ।

सरकार इन अरबपतियों के जरिए ही देश के विकास की योजना बनाती है। इसलिए उन्हें कॉरपोरेट टैक्स पर छूट देती है। लाख कहने पर भी इन पर वेल्थ टैक्स नहीं लगाती। अगर सरकार इन पर 10 फ़ीसदी वेल्थ टैक्स लगाती तो इस पैसे से लगातार छह साल तक मनरेगा की योजना चलाई जा सकती है।

यह भारत में अमीर लोगों की स्थिति है। जिस पर किसी भी मीडिया घराने में कभी भी किसी तरह की बहस नहीं होती है। ना ही किसी तरह का हो हल्ला होता है। लोग केवल चुनाव के नशे में डूबे हुए हैं। यह लोग करते क्या है? 

सरकार को लगता है कि विकास नाम की चिड़िया तभी उड़ेगी जब बड़े बड़े कॉरपोरेट घरानों को सस्ते दरों पर लोन मिल जाएगा।बड़े बड़े कॉरपोरेट घराने को सस्ते दरों पर लोन मिलता है। लोन तो मिल जाता है लेकिन आम लोगों की जेब में पैसा नहीं होता इसलिए वह खर्च नहीं करते। अंत में जा करके यह लोन का पैसा स्टॉक मार्केट में लगता है। कॉरपोरेट घराने पैसे से पैसा बनाने के काम में अपनी कमाई करते हैं। जब सस्ता लोन बैंकों के जरिए दिया जाता है तो छोटी बचत दरों पर मिलने वाले ब्याज दर को घटा दिया जाता है। छोटी बचत दरों पर पैसा लगाने वाले लोग भारत के निम्न मध्यम वर्ग के लोग होते हैं। यानी अंत में जाकर मार निम्न मध्यम वर्ग के लोगों पर ही पड़ती है। 

कई सारी रिपोर्ट बताती है कि इसको कोरोना के दौरान धन्नासेठों और पूंजीपतियों के फायदे में कोई कमी नहीं आई। बल्कि उनका मुनाफा बढ़ा है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अपना उद्यम चलाने के लिए उनकी लागत कम हुई। उन्होंने कोरोना के नाम पर लोगों को नौकरियों से निकाला और जो लोग पहले से मौजूद थे उनकी सैलरी कम की। इस तरह से उन्हें घाटा नहीं सहना पड़ा बल्कि वह मुनाफे में ही रहे। 

भारत की अमीरी का एक ऐसा चित्र है जो अगर ध्यान से दिमाग में बैठ गया तो भारत के कई सारी परेशानियों का जवाब मिल जाता है। जैसे कि रोजगार क्यों नहीं है? लोग शहर छोड़कर गांव में भागने के लिए क्यों मजबूर हो रहे हैं? लोगों की जीवन दशा इतनी बुरी क्यों है? हॉस्पिटल में बेड ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटिलेटर की कमी क्यों है? जानकार क्यों यह कह रहे हैं कि कोरोना की रफ्तार को अगर सही से थामा नहीं गया तो भारत की स्वास्थ्य सुविधाएं इतनी जर्जर हैं कि बहुत सारे लोग मरने के लिए अभिशप्त हो सकती है।

अगर अब भी यह बात नहीं समझ में आई तो गरीबी के आंकड़े देख लीजिए। कार्यबल में शामिल 86 फ़ीसदी पुरुषों और 94 फ़ीसदी महिलाओं की महीने की कमाई 10 हज़ार रुपये से कम हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य पर हम ग़रीब देशों की तरह सार्वजनिक ख़र्च (1.25%  के आसपास) करते हैं। 40 फ़ीसदी से अधिक आबादी खेती पर निर्भर है। कुपोषण, प्रदूषण, बीमारी, अवसाद, ग़रीबी, हिंसा, उत्पीड़न, अपराध में हम शीर्ष पर हैं। गंभीर बीमारियों की दवा-दारू कराने में हर साल लाखों लोग ग़रीब हो जाते हैं। दुनिया के सबसे ग़रीब 26 सब-सहारन अफ़्रीकी देशों से ज़्यादा ग़रीब हमारे उत्तर और पूर्व के आठ राज्यों में है। देश की सबसे ग़रीब 10 फ़ीसदी आबादी 2004 के बाद से लगातार क़र्ज़ में है। भारत में गरीबी की यह हालत है। अब जरा सोचिए कि कोरोना की वजह से इस आबादी को कितना कुछ सहन करना पड़ता होगा। हर रोज इसकी कमर टूटती होगी और हर रोज यह अपने कमर पर मायूसी का प्लास्टर लगवाता होगा। 

अंत में चलते-चलते इस भयंकर अमीरी और गरीबी की खाई से पैदा होने वाली परेशानियों को संक्षिप्त तरीके से समझने के लिए डॉक्टर अंबेडकर का वह कथन याद कीजिए जिसमें वह कहते हैं कि उनका मानना है कि लोकतंत्र की पहली और सबसे जरूरी शर्त है कि बड़े पैमाने की गैर-बराबरी न हो। अगर बड़े पैमाने पर गैर बराबरी होगी तो लोकतंत्र में किसी भी तरह का न्याय संभव नहीं है।

COVID-19
Coronavirus
Poor People's
poverty
Hunger Crisis
Corona Crisis
Gap between rich and poor
Deference between Poor and Rich

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License