NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
 ‘सबक़’ सिखाते हुए न्यायपालिका को संदेश है जस्टिस मुरलीधर का तबादला
12 फरवरी को कोलिजियम ने ट्रांसफर की फाइल आगे बढ़ाई। 15वें दिन 26 फरवरी को इस पर एक्शन हुआ।फैसला कोलिजियम का है लेकिन वक्त सत्ताधारी दल के लिए सटीक है।
प्रेम कुमार
28 Feb 2020
 मुरलीधर का तबादला

जस्टिस एस मुरलीधर के ट्रांसफर को लेकर पैदा हुए विवाद में दो बातें महत्वपूर्ण हैं- एक जो बीजेपी कह रही है कि यह कोलिजियम की सिफारिश पर तय प्रक्रिया के अनुरूप लिया गया फैसला है। और, दूसरा जो कांग्रेस कह रही है कि यह न्यायपालिका में ईमानदारी से काम करने वालों को दबाने की कोशिश है। इन दोनों महत्वपूर्ण बातों के बीच यह प्रश्न और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि जब प्रक्रिया में कोलिजियम है तो आरोप केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर क्यों?

जस्टिस मुरलीधर को दिल्ली हाईकोर्ट से पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में तबादला करने की अधिसूचना राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद 26 फरवरी की रात जारी की गयी। जबकि, उसी तारीख को दिन में जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली में हालात बिगड़ने के लिए बीजेपी नेताओं के भड़काऊ भाषणों पर सख्त तेवर दिखाए थे। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता और जस्टिस मुरलीधर के बीच तीखा संवाद देखने को मिला था।

तबादले की अधिसूचना से पहले जस्टिस मुरलीधर के तेवर से ऐसा संदेश लेने की आज़ादी हमें थी कि चूंकि उनके तबादले की बात कोलिजियम कर रहा है और इस पर दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन विरोध जताते हुए पुनर्विचार की मांग कर रहा था तो कहीं न कहीं इस प्रक्रिया से खुद जस्टिस मुरलीधर भी नाखुश रहे होंगे। मगर, तबादले की अधिसूचना के बाद यह संदेश मिलता दिख रहा है कि सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर की याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस मुरलीधर ने जिस तरीके से बीजेपी नेताओँ के उत्तेजक भाषणों पर डीसीपी राजेश देव को डांट पिलाई, उससे केंद्र की बीजेपी सरकार आहत हो गयी।

12 फरवरी को कोलिजियम ने ट्रांसफर की फाइल आगे बढ़ाई। 15वें दिन 26 फरवरी को इस पर एक्शन हुआ। न इसे समय से पहले और न ही इसे देरी से उठाया गया कदम बताया जा सकता है। मगर, क्या उपयुक्त समय कहा जा सकता है? कतई नहीं। एक जस्टिस के ट्रांसफर के लिए यह समय कतई सही नहीं कहा जा सकता। इसका संदेश गलत जाता है। संदेश यह निकलता है कि ट्रांसफर या ऐसे ही किसी मामले में प्रक्रिया अगर लंबित है तो ‘विरोधी स्वर’ अंजाम भुगतने को तैयार रहें। निश्चित रूप से कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रियाएं यही कहती दिख रही हैं चाहे वह प्रियंका गांधी के ट्वीट हों या फिर राहुल गांधी के, और इसी तरह कांग्रेस के प्रेस कॉन्फ्रेंस हों।

महत्वपूर्ण बात यह भी है कि एस मुरलीधर को ट्रांसफर करने के लिए कोलिजियम बहुत पहले से बेचैन रहा है। दिसंबर 2018 को सबसे पहले कोलिजियम में यह प्रस्ताव आया। तब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई थे जो कोलिजियम का नेतृत्व कर रहे थे। जनवरी 2019 में भी ऐसी कोशिश हुई। मगर, कोलिजियम को सफलता नहीं मिल सकी। तब कोलिजियम में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एन वी रमन्ना और जस्टिस अरुण मिश्रा थे। कोलिजियम में इस कोशिश पर मतभेद लगातार दिखे।

फरवरी 2020 में चीफ जस्टिस एसए बेवड़े के नेतृत्व वाले कोलिजियम ने एक बार फिर मुरलीधर के तबादले की कोशिश की। इस वक्त कोलिजियम में रंजन गोगोई की जगह जस्टिस भानुमती और जस्टिस एके सीकरी की जगह जस्टिस आर.एफ नरीमन जुड़ चुके थे। अब कोलिजियम में कोई मतभेद नहीं था, लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट के बार एसोसिएशन ने इस पर विरोध जताया। विरोध की वजह तबादला नहीं, बल्कि प्रोन्नति रहा है। वरिष्ठता के आधार पर जस्टिस मुरलीधर का तबादला हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर होना चाहिए, लेकिन कोलिजियम ने ऐसी सिफारिश नहीं की।

फैसला कोलिजियम का है, वक्त सत्ताधारी दल के लिए सटीक है। पूरी कोलिजियम व्यवस्था ही सवालों के घेरे में आ जाती है। मोदी सरकार ने इस कोलिजियम सिस्टम को खत्म करने की पहल की थी जब उसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया। फिर भी केंद्र सरकार ने हार नहीं मानी। एक समय ऐसा आया जब कॉलिजियम के चार सदस्यों ने 12 जनवरी 2018 को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर न्यायपालिका को ही आईना दिखाने का काम किया। उन्होंने संविधान को खतरे में बताया।

बाद के दिनों में कोलिजियम का स्वरूप बदलता चला गया। केंद्र के साथ तकरार की घटनाएं भी हुईं। मगर, यह तकरार क्रमश: केंद्र सरकार के साथ मेल-जोल में बदलता चला गया। एक समय जस्टिस केएम जोसेफ को वरीयता का नुकसान हुआ क्योंकि कोलिजियम की अनुशंसा के विरुद्ध वरीयता का आधार केंद्र सरकार ने बदल दिया। माना यही गया कि उत्तराखण्ड में हरीश रावत की सरकार बहाल करने के आदेश के कारण वे राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार बने। स्वास्थ्य के आधार पर केएम जोसफ तबादले की मांग करते रहे, लेकिन वह भी अनसुना कर दिया गया।

2014 में कोलिजियम ने वकील गोपाल सुब्रमण्यम के नाम की संस्तुति जज के लिए की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने उसे मानने से इनकार कर दिया। माना यही गया कि सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ केस में न्यायालय के सहायक रहने की वजह से केंद्र सरकार का यह रुख रहा। इस मामले में अमित शाह मुख्य आरोपित थे।

मद्रास हाईकोर्ट की महिला चीफ जस्टिस विजया के ताहिलरमानी का तबादला अपेक्षाकृत छोटे मेघालय हाईकोर्ट कर दिया गया। उन्होंने इस पर पुनर्विचार की अपील की, मगर कोलिजियम ने उनकी नहीं सुनी। आखिरकार ताहिलरमानी ने इस्तीफे का रास्ता चुना। ताहिल रमानी ने गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर हुए बिलकिस बानो केस में सामूहिक दुष्कर्म के सभी 11 दोषियों की सज़ा बरकरार रखी थी। गुजरात दंगे से जुड़े इस मामले को भी ताहिलरमानी के अनुचित तबादले से जोड़ा जाता है। तबादले के वक्त वह देश में मुख्य न्यायाधीशों की वरीयता सूची में टॉप पर थीं।

कर्नाटक हाईकोर्ट जज जयंत पटेल ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर किए जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था। हालांकि उन्होंने इस्तीफे की कोई वजह नहीं बतायी थी। मगर, वे भी गुजरात हाईकोर्ट मेंजज रहते हुए इशरत जहां मामले में सीबीआई जांच के निर्देश दे चुके थे।

उदाहरण कई और भी हैं जो कोलिजियम पर केंद्र सरकार के दबाव का आभास कराते हैं। देखने में यह जरूर लगता है कि वरिष्ठ जजों के तबादले के अधिकार कोलिजियम के पास हैं, लेकिन जजों से जुड़ी घटनाएं और उनके हितों को नुकसान पहुंचाते फैसले बताते हैं कि उन्हें भी ‘सबक’ सिखाया जाता है। इसी वजह से यह सवाल उठता है कि जस्टिस एस मुरलीधर का तबादला क्या सामान्य तबादला है? एक कोशिश जो 2018 से चल रही थी, वह 2020 में सफल होती है। और, उसकी टाइमिंग ऐसी है जो न सिर्फ भुक्तभोगी न्यायाधीश के लिए ‘सबक’ है बल्कि दूसरों के लिए संदेश भी।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

Justice Muralidhar
Delhi High court
Delhi Violence
Justice Muralidhar Transfer
Punjab and Haryana High Court
president ramnath kovind
BJP
kapil MIshra
anurag thakur
Parvesh Verma
Hate Speeches

Related Stories

दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License