NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
लॉकडाउन का सबसे बुरा प्रभाव असंगठित श्रमिकों पर
तमिलनाडु में केवल 13 लाख निर्माण मज़दूरों का पंजीकरण है, जबकि 51 लाख श्रमिक राज्य के निर्माण क्षेत्र व नियतकालीन श्रम में कार्यरत हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 10 करोड़ निर्माण मजदूरों में केवल 3.5 करोड़ पंजीकृत हैं। पर प्रशासन के अनुसार जो पंजीकृत नहीं हैं उन्हें राहत नहीं मिलेगी।
बी सिवरामन
30 Mar 2020
असंगठित श्रमिकों
Image courtesy: Counterview

वर्धराजन वेंकटरमन, एक छोटे उद्योगपति और चेन्नई रोटरी के सदस्य हैं। वे और उनके कुछ मित्रों ने तमिलनाडु के अलग-अलग शहरों से जुड़े साथियों का एक whatsapp ग्रुप बना लिया है। ये लॉकडाउन (lockdown) के दौर में फंसे प्रवासी मज़दूरों की मदद कर रहे हैं।

उन्होंने न्यूज़क्लिक के लिए बात करने पर बताया कि पश्चिम बंगाल के बर्धवान के 35 मजदूर, जो चेन्नई के छोटे और micro उद्योग में कार्यरत थे, का क्या हाल था। इससे आपको अंदाज़ा लग जाएगा कि केंद्र और राज्य सरकारें प्रवासी श्रमिकों के प्रति क्या रुख रखती हैं। लॉकडाउन से एक दिन पूर्व वे चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पहुंचकर बर्धवान के लिए रेलगाड़ी पर चढ़ने आए तो पता चला गाड़ियां बंद हैं। उन्होंने तय किया कि स्टेशन पर ही रुकेंगे, जहां और भी 2000 श्रमिक घर जाने के लिए एकत्र थे। पर भोर में जीआरपी का एक दस्ता आकर सबको खदेड़ने लगा।

रोटरी क्लब को पता चला तो उन्होंने भोजन उपलब्ध करा दिया, पर इन्हें ठहराने की कोई जगह नहीं मिली। अंत में केरल के कुछ लोगों ने सहानुभूति दिखाते हुए अपने लॉज के बेसमेंट में 2 दिन ठहरने की अनुमति दी, पर वहां खाना नहीं पहुंच पाया क्योंकि रोटरी की गाड़ी को पुलिस ने रोक दिया। पता करने पर राजस्व विभाग ने बताया कि कोडमबाकम के एक सामुदायिक केंद्र में भोजन बांटा जा रहा है, पर यह तो 20 किलोमीटर दूर था; दो बार जाने आने का मतलब रोज़ 80 किलोमीटर चलना; फिर मजदूरों के पास कर्फ़्यू पास (curfew pass) भी नहीं थे। भारतीय रेलवे के इस क्रूर बर्ताव से उनके रुख का पता चलता है। आखिर मज़दूर वहीं रुकते तो रेहड़ी वालों से कुछ लेकर अपना और उनका पेट भी भर लेते। रेलवे की केटरिंग भी खुल जाती तो सोने में सुहागा हो जाता क्योंकि गाड़िया बंद ही थीं। सही ढंग से स्क्रीनिंग करके श्रमिकों को स्पेशल ट्रेनों से घर भी भेजा जा सकता था। जो संस्थाएं खाना बांटना चाहती थीं उनके साथ अपराधी जैसा बर्ताव किया गया, जबकि उन्हें पास दिये जा सकते थे।

मोदी सरकार ने राहत पैकेज की घोषणा की, पर क्या इससे असंगठित और अनौपचारिक श्रमिकों की समस्या का समाधन हो सका? आर. गीता, जो असंगठित मजदूर यूनियनों के महासंघ की राष्ट्रीय सचिव हैं और निर्माण मजदूर पंचायत संघम की संयुक्त सचिव हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि 15 किलो अन्न, 1 किलो दाल और 1 लीटर तेल तो लॉकडाउन तक भी पर्याप्त नहीं है, 3 महीने की तो बात ही छोड़ दें। बहुत से प्रवासी नियतकालिक हैं-वे ढाबों पर खाते थे, पर अब वे भूखे हैं और सरकार ने उन तक खाना पहुंचाने की व्यवस्था नहीं की।

फिर, उन्हीं निर्माण मज़दूरों को राहत मिल रही है जो निर्माण मज़दूर कल्याण कोष (Construction Labour Welfare Fund) में पंजीकृत हैं। पर तमिलनाडु में केवल 13 लाख निर्माण मज़दूरों का पंजीकरण है, जबकि 51 लाख श्रमिक राज्य के निर्माण क्षेत्र व नियतकालीन श्रम में कार्यरत हैं। राष्ट्रीय स्तर पर 10 करोड़ निर्माण मजदूरों में केवल 3.5 करोड़ पंजीकृत हैं। पर प्रशासन के अनुसार जो पंजीकृत नहीं हैं उन्हें राहत नहीं मिलेगी। सरकारी नीति-नियम क्या संकट के दौर में भुखमरी भी नहीं देखेंगे? इस समय सरकार को ऐसे नियम ताक पर रखकर आखरी मज़दूर तक राहत पहुंचानी चाहिये।’’

तमिल देसीय पेरियक्कम के अध्यक्ष, पी. मणियरसन ने तंजावुर के दसियों हजार प्रवासी मजदूरों की दयनीय स्थिति बयान की; ये केरल के बागानों में और सड़क-निर्माण का काम करने जाते हैं। इनका मुद्दा दो राज्यों के बीच का कांटा बन गया, क्योंकि ढेर सारे प्रवासी श्रमिक कोइम्बाटूर के पास वलयार चेकपोस्ट पर फंस गये। इसका कारण था दोनों राज्यों के सरकारों की अदूरदर्शिता। केरल के मुख्यमंत्री पिनरयी विजयन के सराहनीय काम के बावजूद केरल में स्थानीय प्रशासक तमिलनाडु के मजदूरों को वापस भगा रहे थे।

दूसरी ओर तमिलनाडु के अधिकारी सरहद सील करके उन्हें घुसने नहीं दे रहे थे, इसलिये कि केरल में संक्रमण अधिक था और उनके राज्य में आ जाएगा। मणियरसन ने कहा,‘‘हमने मांग की है कि दोनों राज्यों के आला-अधिकारी आपस में बात करें, स्क्रीनिंग की व्यवस्था करें और सुचारू रूप से सभी श्रमिकों को उनके घरों तक भिजवाएं।” उन्होंने पूछा “यदि उत्तर प्रदेश सरकार 1000 बसों की व्यवस्था करके मजदूरों को दिल्ली से वापस ला सकती है, तो तमिलनाडु सरकार क्यों नहीं?’’ (हालांकि उत्तर प्रदेश में दशा और ख़राब है। और मज़दूरों को वापस लाने को लेकर जो दावे किए जा रहे हैं वे सच से कोसो दूर हैं।)

आर. रामू बंगलुरु के चमड़ा उद्योग में काम करते हैं; वे मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हैं। रामू ने बताया कि चमड़ा उद्योग काफी समय से बैठता जा रहा था और करोना वायरस का बहाना लेकर अब मालिक श्रमिकों को जबरन छुट्टी (lay off)  दे रहे हैं। उन्हें कोई मुआवजा तक नहीं मिला, पूरी पगार मिलना तो दूर की बात है; जबकि सरकार ने ऐसा करने का निर्देश दिया है। इन्हें बकाया वेतन भी नहीं दिया गया। अप्रैल प्रथम सप्ताह आते ही मजदूरों को 5000 रुपये एक कोठरी के देने पड़ेंगे, वरना उन्हें निकाल दिया जाएगा। करीब 75-80 प्रतिशत श्रमिक, जिनकी संख्या करीब 3 लाख होगी और जो सूती व चमड़े के पोशाक बनाने वाली इकाइयों में कार्यरत हैं नियमित मजदूर नहीं हैं। ये piece rate पर कमाते हैं या दैनिक वेतनभोगी हैं, हालांकि इन्हें साप्ताहिक या मासिक पगार मिलती है। सरकार के निर्देश में स्पष्ट नहीं है कि अस्थायी या दैनिक वेतनभोगियों को भी पूरा वेतन मिलेगा, और यदि ऐसा नहीं किया जाता तो मालिकों पर जुर्माना लगेगा।

महाराष्ट्र राज्य श्रमिक संघ के महासचिव श्री उदय भट्ट ने बताया कि श्रमिक मुम्बई छोड़कर भागने लगे क्योंकि देश में सबसे अधिक करोना वायरस संक्रमित लोग यहीं से थे। उन्हें जीविका के संकट के साथ-साथ lockdown से परेशानी हुई। सरकार प्रवासियों के लिए न तो यातायात व्यवस्था कर रही है न ही उनके दरवाजे तक खाना पहुंचाया गया। दूसरे किस्म का स्वास्थ्य संकट भी पैदा हुआ है। मुम्बई में ढेर सारे प्राइवेट अस्पताल हाल के दिनों में खुले थे और लोग जरूरत पड़ने पर इनमें जाते भी थे। अब संकट के दौर में ये सारे अस्पताल बंद कर दिये गए। प्रवासी मजदूर जिन सरकारी असपतालों में जाते थे, उनमें भयानक भीड़ है, और इससे संक्रमण का खतरा बढ़ेगा। यदि वे पहुंच भी गए तो डाक्टर और स्टाफ नहीं मिलते क्योंकि उन्हें स्क्रीनिंग के काम में लगा दिया है,’’वे बोले। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने राज्य सरकार को इन मसलों पर संयुक्त रूप से ज्ञापन दिया, पर यह संकट कब तक चलेगा इसपर अनिश्चितता है। अप्रैल प्रथम सप्ताह तक कुछ चीजें स्पष्ट हों तो और मांगों व पहलकद्मियों पर विचार करें।

श्रम मामलों के अध्येता अमित बसोले,जो बंगलुरु के अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में Centre for Sustainable Employment के निदेशक हैं, ने न्यूज़क्लिक के साथ एक अपील साझा की है, जो उन्होंने civil society activists निखिल डे, ज्यां द्रेज़ और 200 अन्य साथियों के साथ तैयार किया है और मांग की है कि सरकार को तुरंत पका हुआ भोजन, साबुन, दवाएं और सैनिटरी पैड आदि घर-घर पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिये। उन्होंने यह भी मांग की है कि फंसे हुए प्रवासियों को घर ले जाने के लिए sanitized यातायात सुविधाओं का प्रबंध किया जाए।

(लेखक श्रम और आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)

India Lockdown
Coronavirus
COVID-19
Tamilnadu
unorganised workers
Labour
Construction Labour Welfare Fund
Centre for Sustainable Employment

Related Stories

चिली की नई संविधान सभा में मज़दूरों और मज़दूरों के हक़ों को प्राथमिकता..

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

यूपी चुनाव: बग़ैर किसी सरकारी मदद के अपने वजूद के लिए लड़तीं कोविड विधवाएं

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

यूपीः योगी सरकार में मनरेगा मज़दूर रहे बेहाल

सड़क पर अस्पताल: बिहार में शुरू हुआ अनोखा जन अभियान, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जनता ने किया चक्का जाम

लखनऊ: साढ़ामऊ अस्पताल को बना दिया कोविड अस्पताल, इलाज के लिए भटकते सामान्य मरीज़


बाकी खबरें

  • पुलकित कुमार शर्मा
    आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?
    30 May 2022
    मोदी सरकार अच्छे ख़ासी प्रॉफिट में चल रही BPCL जैसी सार्वजानिक कंपनी का भी निजीकरण करना चाहती है, जबकि 2020-21 में BPCL के प्रॉफिट में 600 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। फ़िलहाल तो इस निजीकरण को…
  • भाषा
    रालोद के सम्मेलन में जाति जनगणना कराने, सामाजिक न्याय आयोग के गठन की मांग
    30 May 2022
    रालोद की ओर से रविवार को दिल्ली में ‘सामाजिक न्याय सम्मेलन’ का आयोजन किया जिसमें राजद, जद (यू) और तृणमूल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में देश में जाति आधारित जनगणना…
  • सुबोध वर्मा
    मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात
    30 May 2022
    बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई से पैदा हुए असंतोष से निपटने में सरकार की विफलता का मुकाबला करने के लिए भाजपा यह बातें कर रही है।
  • भाषा
    नेपाल विमान हादसे में कोई व्यक्ति जीवित नहीं मिला
    30 May 2022
    नेपाल की सेना ने सोमवार को बताया कि रविवार की सुबह दुर्घटनाग्रस्त हुए यात्री विमान का मलबा नेपाल के मुस्तांग जिले में मिला है। यह विमान करीब 20 घंटे से लापता था।
  • भाषा
    मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया
    30 May 2022
    पंजाब के मानसा जिले में रविवार को अज्ञात हमलावरों ने सिद्धू मूसेवाला (28) की गोली मारकर हत्या कर दी थी। राज्य सरकार द्वारा मूसेवाला की सुरक्षा वापस लिए जाने के एक दिन बाद यह घटना हुई थी। मूसेवाला के…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License