NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
संविधान और अमन पसंद जनता पर हिंदुत्व के हमले का साल 2019
इस साल आम आदमी के जीवन की दुश्वारियां तो बढ़ी ही हैं, भारतीय संविधान और हमारे स्वाधीनता आंदोलन के तमाम उदात्त मूल्य बुरी तरह लहूलुहान हुए हैं। यही नहीं, यह साल भारतीय अर्थव्यवस्था के अभूतपूर्व रूप से चौपट होने के तौर पर भी याद किया जाएगा।
अनिल जैन
31 Dec 2019
hindutva

हर कैलेंडर वर्ष अपने दामन में तमाम तरह की अच्छी-बुरी यादें समेटे विदा होता है। ये यादें अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को लेकर भी होती हैं और राष्ट्रीय घटनाओं को लेकर भी। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक, विज्ञान और खेल आदि क्षेत्रों जुड़ी खट्टी-मीठी यादों की वजह से उस साल को याद किया जाता है। कभी-कभी भीषण प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित आपदाओं के लिए भी कोई साल इतिहास में यादगार साल के तौर पर दर्ज हो जाता है।

तो वर्ष 2019 को किस ख़ास बात के लिए याद किया जाएगा या इस वर्ष की कौन सी ऐसी बात है जिसकी यादें भारतीय इतिहास में दर्ज हो जाएंगी? यह सवाल जब आज से कुछ सालों बाद पूछा जाएगा तो जो लोग इस देश से, देश के संविधान से, इस देश की विविधताओं से, इस देश की आज़ादी के संघर्ष का नेतृत्व करने और कुर्बानी देने वालों से प्यार करते हैं, उनके लिए इस सवाल का जवाब देना बहुत आसान होगा।

ऐसे सभी लोगों का यही जवाब होगा कि यह साल भारतीय संविधान पर एक नफ़रतभरी विचारधारा के क्रूर आक्रमण का साल था। इस आक्रमण से आम आदमी के जीवन की दुश्वारियां तो बढ़ी ही हैं, भारतीय संविधान और हमारे स्वाधीनता आंदोलन के तमाम उदात्त मूल्य बुरी तरह लहूलुहान हुए हैं। यही नहीं, यह साल भारतीय अर्थव्यवस्था के अभूतपूर्व रूप से चौपट होने के तौर पर भी याद किया जाएगा। इस साल को चुनाव आयोग, रिजर्व बैंक, न्यायपालिका जैसी संवैधानिक संस्थाओं के सरकार के समक्ष समर्पण के लिए तो खास तौर पर याद किया जाएगा।

संभव है कि हिंदुत्ववादी विचारधारा के संगठन इस साल को अपने लिए एक उपलब्धियों से भरा साल घोषित कर ले। वैसे हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़त तो 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से ही मिलने लगी थी, लेकिन उसके दूरगामी नतीजे 2019 में आना शुरू हो गए। साल की शुरुआत ही ऐसी घटना से हुई जो हिंदुत्व की पहले की राजनीति की फसल काटने जैसी थी।

हुआ यूं कि मोदी सरकार ने महबूबा मुफ्ती की सरकार गिरा दी और जम्मू-कश्मीर मे राज्यपाल का शासन लगा दिया। भाजपा-पीडीपी की साझा सरकार के समय में ही वहां के हालात बिगड़ने लगे थे और पत्थरबाजी तथा आतंकवादी वारदातों में इजाफा होने लगा था। निर्वाचित सरकार की बर्खास्तगी के बाद हालात और खराब हो गए, इतने खराब कि 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सुरक्षा बलों के एक वाहन पर आत्मघाती हमला हो गया और उसमें चालीस से ज्यादा जवानों की मौके पर ही मौत हो गई।

यह हमला स्पष्ट रूप से मोदी सरकार की और हमारे सुरक्षा तंत्र की एक बड़ी विफलता थी। लेकिन आम चुनाव नज़दीक देख कर मोदी सरकार ने अपनी इस नाकामी पर पर्दा डालने के लिए इसके बहाने राष्ट्रवाद का एक नैरेटिव बुनना शुरू किया और उसे पुख्ता करने के लिए उसने 26 फरवरी, 2019 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के बालाकोट मे सर्जिकल स्ट्राइक कर दी। दावा किया गया कि वहां कायम आतंकवादियों के अड्डे नष्ट करने के लिए की गई इस कार्रवाई में सैकड़ों आतंकवादी मारे गए। हालांकि यह कार्रवाई विवादास्पद रही और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने बताया कि इसमें एक भी आदमी नहीं मरा। लेकिन भारत के अखबारों तथा टीवी चैनलों के एक बड़े हिस्से के सहारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी ने ऐसा माहौल बनाया कि बेरोजगारी और डूबती अर्थव्यवस्था के बावजूद उन्होंने चुनाव की बाजी जीत ली।

इस चुनाव ने एक ओर हिंदुत्व को पांच साल की और उम्र दे दी तो दूसरी ओर उसने कांग्रेस के पुनर्जीवन की उम्मीद पर सवालिया निशान खड़े कर दिए। राज्य विधानसभाओं के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राहुल गांधी के आगे जा रहे रथ को उनके ही सिपहसालारों ने रोक दिया। पार्टी के बड़े नेताओं ने उनका साथ नहीं दिया और कांग्रेस भाजपा को कोई बडी चुनौती नही दे पाई। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होने के नाते वह समूचे विपक्ष को इकट्ठा करने की भूमिका निभाने भी विफल रही। जाहिर है 2019 की सबसे बड़ी घटना मोदी सरकार की वापसी थी और विपक्ष का दारुण पराभव।

लेकिन इस चुनाव को राष्ट्रवाद के मुद्दे पर नहीं, बल्कि हिंदू राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लडा गया। यह जग जाहिर है कि भारत में पाकिस्तान के नाम का इस्तेमाल सांप्रदायिक राजनीति के लिए और देश के मुसलमानों को डराने के लिए होता है। मोदी सरकार ने इसका जमकर इस्तेमाल किया। चुनाव में भाजपा का हिंदुत्ववादी चेहरा और भी स्पष्ट रूप से सामने आया। आतंकवादी गतिविधियों की आरोपी को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया और वह आराम से चुनाव जीत गई। वह आज भी भाजपा में बनी रहकर गोडसे की जय-जयकार कर रही है।

सारे नकारात्मक और विभाजनकारी मुद्दों का सहारा लेकर सत्ता में आई मोदी सरकार ने दूसरी पारी के पहले साल में ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। उसने मुसलमानों के भले के नाम पर अपने बहुमत के दम पर तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाया, जिसके कई पहलुओं को लेकर विवाद है। इसके अलावा संवैधानिक प्रक्रिया को सिरे से नजरअंदाज कर जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत मिले विशेष दर्जे को खत्म करने के अपने जनसंघ कालीन मंसूबे को पूरा किया। यही नहीं, इस सिलसिले में उसने उसने जम्मू-कश्मीर का विभाजन कर उसे केंद्र शासित राज्य भी बनाकर उसे एक तरह से खुली जेल में तब्दील कर दिया।

आर्थिक मोर्चे पर इसने कमजोर पडी अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के नाम पर एक ओर कॉरपोरेट सेक्टर को ढाई लाख करोड़ से ज्यादा की रियायत टैक्सों तथा दूसरे माध्यमों से दे दी और आगे भी छूट देने आश्वासन दिया। दूसरी ओर उसने मुनाफा कमा रहे सरकारी उपक्रमों औने-पौने दामों पर निजी क्षेत्र को बेचने का सिलसिला शुरू कर दिया है। बेरोजगारी और महंगाई बढ़ने तथा जीडीपी के नीचे खिसकने का सिलसिला इतना तेज़ है कि यह साल इस मामले में भी रिकार्ड बनाने का इतिहास रच रहा है।

हिंदुत्व की विचारधारा के तहत शासन किस तरह चलता है, इसकी बानगी मोदी के पिछले कार्यकाल में दिखाई पडी थी। इस साल उसका नग्न रूप सामने आता रहा। उसने देश की संवैधानिक संस्थाओं को अपने राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल करने तथा उनकी स्वायत्तता को नष्ट करना जारी रखा। विपक्ष के नेताओं के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) तथा सीबीआई का इस्तेमाल बदस्तूर जारी रहा। इस सिलसिले में सबसे नाटकीय रहा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को गिरफ्तार कर लंबे समय तक जेल में रखना। उनके घर जाकर मीडिया के सामने उन्हें गिरफ्तार किया गया ताकि सरकार की नीति की आलोचना की कोई अन्य नेता हिम्मत न कर पाए। सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें बडी मशक्कत के बाद जमानत दी।

संवैधानिक संस्थाओं के क्षरण के मामले में भी इस साल ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ डाले। चुनाव आयोग का हाल तो यह रहा कि पिछले सारे चुनाव आयुक्तों की उपलब्धियों को मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोडा ने धक्का पहुंचाया। चुनाव में मोदी और अमित शाह ने बेशुमार पैसे खर्च किए और सेना समेत धर्म तथा जाति का खुल कर इस्तेमाल किया, लेकिन चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की। उसने चुनाव की तारीखों का ऐलान भी कथित तौर पर मोदी की सुविधाओं के हिसाब से किया।

पिछले कई सालों से मीडिया में सभी दलों को उचित स्थान देने तथा पेड न्यूज के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की कोशिश चुनाव आयोग कर रहा था। इस बार तो कई चैनलों और अखबारों ने सरकार और सत्तारूढ दल के मुखपत्र की तरह काम किया, लेकिन आयोग ने कुछ नहीं किया। कुल मिलाकर अगर यह आरोप लगाया जाए कि चुनाव आयोग एक तरह से भाजपा के गठबंधन का हिस्सा बन गया, तो कुछ ग़लत न होगा।

सबसे अजब हाल रहा सुप्रीम कोर्ट का। इसने अयोध्या विवाद पर एक ऐसा फैसला दिया जो इतिहास में अपने अजीबोगरीब तर्क के लिए याद रखा जाएगा। इसने विवादित जगह हिंदुओं को सौंप दी जबकि बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति रखने और मस्जिद को ढहाने को आपराधिक कृत्य माना। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मुस्लिम समुदाय ने स्वीकार कर लिया है, जिससे दशकों पुराना यह विवाद लगभग खत्म हो गया है, लेकिन अपराध के आरोपियों को विवादित भूमि सौंपने और राममंदिर बनाने देने के फैसले को न्यायसंगत मानने में लोगों को सदैव कठिनाई होगी।

हालांकि साल के अंतिम दौर में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों से यह संकेत भी मिला कि लोगों का राष्ट्रवाद की चाशनी में लिपटी भाजपा की हिंदुत्व यानी विभाजनकारी राजनीति से मोहभंग हो रहा है। इन तीनों ही राज्यों के चुनाव भाजपा ने अपने उग्र हिंदुत्व के एजेंडे पर लड़े और तीनों राज्यों में न सिर्फ उसकी ताकत घटी बल्कि महाराष्ट्र और झारखंड में उसे सत्ता भी गंवानी पड़ी। हरियाणा में भी वह बहुमत से दूर रही लेकिन जोड़तोड़ और सौदेबाजी के जरिये उसने जैसे तैसे सरकार बना ली।

महाराष्ट्र जैसे प्रमुख राज्य न सिर्फ भाजपा के हाथ से निकल गया बल्कि वहां हुई एक बेमिसाल राजनीतिक घटना के लिए भी यह साल याद किया जाएगा। इस घटना के नियंता रहे महाराष्ट्र के कद्दावर नेता शरद पवार। उन्होंने शिवसेना जैसी भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी और हिंदुत्ववादी पार्टी को भाजपा की छतरी से बाहर निकाल लिया। आदिवासी बहुल झारखंड राज्य ने भी मोदी और शाह के नफरत में डूबे हिंदुत्व के एजेंडे और उनकी कॉपोरेटपरस्त नीतियों को खारिज कर भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया।

इसी बीच साल खत्म होते-होते देश के लोगों को धर्म के आधार पर बांटने वाले एक और कार्यक्रम को मोदी सरकार ने अंजाम दे दिया है। नागरिकता कानून में संशोधन और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) तैयार करने इरादे ने देश में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। दुनिया के दूसरे देशों में भी सरकार के इन कदमों की तीखी आलोचना हो रही है, लेकिन इस सबसे बेपरवाह होकर सरकार देश में आंदोलनरत नागरिक समाज और विपक्षी दलों का निर्ममता से दमन कर रही है। इस समय देश का जो परिदृश्य बना हुआ है वह आने वाले साल में हालात और ज्यादा संगीन होने के संकेत दे रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

Hindutva
Hindutva Agenda
hindutva terorr
Constitution of India
indian economy
Narendra modi
BJP
RSS
hindu-muslim
Religion Politics

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License