NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
“तब ट्रैक्टर और किसान नोट पर था, अब ट्रैक्टर और किसान रोड पर है”
सड़क से सोशल मीडिया तक लड़े जा रहे किसान आंदोलन के दौरान किसानों से जुड़े रिश्तों को ताज़ा करने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है। और इसी कड़ी में ये नोट भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।
नाज़मा ख़ान
21 Dec 2020
“तब ट्रैक्टर और किसान नोट पर था, अब ट्रैक्टर और किसान रोड पर है”

हरियाली की कहानी बयां करता एक किसान जो ट्रैक्टर पर सवार नए सवरे का ऐलान कर रहा था। उगता सूरज कृषि प्रधान देश में तकनीक और तरक्की की तरफ़ दौड़ते भारत की तस्वीर रही होगी।

लाइट ग्रीन कलर का एक मुड़ा-तुड़ा पांच रुपये का नोट मेरे पर्स की जेब में कब से पड़ा है इसका अंदाज़ा मुझे भी नहीं। लेकिन इसपर मेरा ध्यान उस वक़्त गया जब सोशल मीडिया पर अचानक ये नोट वायरल होने लगा और मैं भी उसमें कुछ तलाशने लगी।  सड़क से सोशल मीडिया तक लड़े जा रहे किसान आंदोलन के दौरान किसानों से जुड़े रिश्तों को ताज़ा करने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है। और इसी कड़ी में ये नोट भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। हालांकि पांच रुपये का नोट ही नहीं बल्कि कई ऐसे नोट और सिक्के भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जाने लगे जो खेत, खलिहान और किसान से जुड़े हैं। 

नोटों की इन तस्वीरों के साथ ही ध्यान खींचने वाले कैप्शन भी लिखे गए। किसी ने लिखा - ''तब ट्रैक्टर और किसान नोट पर था, अब ट्रैक्टर और किसान रोड पर है''। जबकि किसी ने लिखा - ''एक समय वो भी था जब भारतीय नोट पर देश का पेट भरने वाले अन्नदाता की फ़ोटो होती थी।''

आख़िर,  किसान और करेंसी का नाता क्या है? नोटों पर छपी तस्वीरों की क्या अहमियत होती है? आना से पैसा और पैसे से रुपये के सफ़र में देश के इतिहास की लंबी कहानी है। नोटों पर छपे चित्र उस दौर के बारे में बहुत कुछ कहते हैं।

मैंने भी कुछ किताबों को खंगाला,  मुसलमान शासक मोहम्मद बिन क़ासिम के गंगा के मैदान पर दस्तक देते ही जो सोने के सिक्के जारी किए गए उनपर भले ही उसका नाम छपा था लेकिन सीधी तरफ़ परंपरागत रूप से लक्ष्मी की मूर्ति अंकित रही। जबकि मोहम्मद गौरी के भी सोने के सिक्कों पर सांड और घुड़सवार छपे थे। ये सिक्के 10वीं सदी से भारत में चलन में थे इससे यह पता चलता है कि इन सिक्कों में किसी तरह की मुस्लिम विचारधारा को नहीं थोपा गया। साथ ही उनमें भारत के टकसालियों के साथ पहले से चली आ रही इस व्यवस्था का संकेत है कि वो तत्कालीन शासक के नाम से सिक्कों की व्यवस्था करते थे। ( किताब: हरीशचंद्र वर्मा, मध्यकालीन भारत भाग- 1)

नोटों और सिक्कों का चलन में आना जाना और उनकी मार्केट वेल्यू उस वक़्त के राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था के बारे में भी बहुत कुछ बताती हैं। ज़रा याद कीजिए कि आपने आख़िरी बार एक रुपये का नोट कब देखा था? और क्या आप ये रीकॉल कर पा रहे हैं कि उसपर क्या छपा था?  क्या आपको याद है कि दस रुपये से छोटे नोट को आपने आख़िरी बार कब अपने पर्स में तह लगाकर समेटा था? एक रुपये की वेल्यू लगता है अब सिर्फ़ शगुन का रुपया बनकर रह गया है। 

आज छोटे नोट और सिक्कों की बात कॉमन मैन जैसी हो गई है जो मौजूद तो हैं लेकिन जिनका कोई वजूद नहीं। छोटे नोटों की बात तो रहने दें यहां तो रातों-रात बड़े नोटों की वेल्यू ख़त्म हो जाती है और जिसका ताज़ा उदाहरण काला धन लाने और आतंकवाद की कमर तोड़ने के नाम पर लिया गया नोटबंदी का कथित “ऐतिहासिक” फ़ैसला था। जैसा कि कहा जाता है कि करेंसी देश की सिर्फ़ आर्थिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक कहानी भी बयां करती है। तो क्या नोटबंदी के राजनीतिक कारणों की पड़ताल की गई? नोटबंदी ने कैसे समाज के ताने-बाने को हिलाकर रख दिया क्या हम कभी  भूल पाएंगे? क्या पूरा देश अपने ही पैसों के लिए कैसे लाइन में खड़ हो गया था कोई भूल सकता है? क्या वो सौ मौतें ( सरकारी आंकड़ों में कितनी मौतें थी पता नहीं)  जो नोटबंदी के नाम पर लिखी गईं उनके परिवार वाले भूल पाएंगे? 

कृषि क़ानून की बदौलत एक बार फिर खेत-खलिहान और किसान चर्चा में हैं। और सरकार भी जानती है कि उसने जिस तरह NRC, CAA के प्रदर्शनकारियों को डील किया था वैसे वो किसानों का प्रदर्शन नहीं रोक सकती। ये सर्द मौसम गवाह है उस ज़ुल्म का जिसे NRC के नाम पर दिल्ली ने देखा था। पर किसानों को NRC, CAA की क्रोनोलॉजी नहीं समझायी जा रही बल्कि उन्हें उन्हीं की वेशभूषा में भरोसा दिलाया जा रहा है कि "हम आपके साथ हैं"। सरकार भले ही किसानों के साथ खड़े होने का दावा कर रही हो लेकिन किसानों को ये विश्वास क्यों नहीं हो पा रहा?  वैसे विश्वास तो किसानों को अब उन लोगों पर भी नहीं रहा जिनका काम ही लोगों की आवाज़ बनना है (पत्रकार) इसलिए ये काम भी किसानों ने अपने हाथ में ले लिया है। 'किसान एकता मोर्चा' नाम से किसानों ने अपना एक हैंडल बनाया है जो हर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर है। साथ ही 'ट्रॉली टाइम्स' नाम का अख़बार भी निकाला जा रहा है।  

ख़ैर, बात पांच रुपये के वायरल नोट से निकली थी, सो बैक टू द पाइंट, मैं इंतज़ार कर रही थी कि कोई न्यूज़ चैनल इस वायरल नोट की भी पड़ताल करे, क्या पता इसी बहाने उन्हें जानने को मिल जाता कि आख़िर क्यों किसान की तस्वीर नोट पर है? क़रीब-क़रीब हर चैनल में वायरल पोस्ट की तह तक जाने के दावे (पर कितने सच्चे हैं क्या पता?) किए जाते हैं लेकिन कौन इन नोटों पर छपे खलिहानों की ख़ुशबू महसूस कर पाया, क्या पता? क्या वायरल पोस्ट को ठोक-बजा कर पुख़्ता होने का स्टैंप चेप देने वालों ने ये जानने की कोशिश की होगी कि कैसे किसान अपने खेतों को पसीने से सींचते हैं और उस मिट्टी के बन जाते हैं जिसपर सर्दी-गर्मी भी बेअसर हो जाती है। क्या नोट में चिप के फ़ायदे गिनाने वालों ने पिछले सालों के उन डेटा को भी खंगालने की कोशिश की होगी जिसमें सूखा- बाढ़ और क़र्ज़ ने ना जाने कितने किसानों के लिए सिर्फ़ मौत को चुनने का आख़िरी रास्ता छोड़ा था? 

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे खेत खलिहानों की तस्वीर वाले ये नोट आज के नहीं हैं। संभवतया ये लाल बहादुर शास्त्री के दौर के हैं। क्योंकि वही थे जो किसान और खलिहान के बारे सबसे ज़्यादा सोचते थे।  हमें 60 के उस दशक को बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए जब शास्त्री जी के प्रयास से गेहूं के लिए अमेरिका पर निर्भर रहने वाले भारत ने पंजाब और हरियाणा की अगुवाई में हरित क्रांति कर देश को ख़ुशहाल बना दिया था और शास्त्री जी के नारे ''जय जवान जय किसान'' की गूंज हर तरफ़ सुनाई दे रही थी यहां तक की फ़िल्मों में भी। 

बेशक, फ़िल्में हर दौर में समाज का आईना रही हैं और जब लाल बहादुर शास्त्री ने ''जय जवान जय किसान'' का नारा दिया तो उसकी झलक भी फ़िल्मों में दिखी। अब बिमल रॉय की फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' का 'शंभू महतो' मिल के आड़े आने वाली अपनी दो बीघा ज़मीन के लिए दम नहीं तोड़ता और ना ही मदर इंडिया का सुखी लाल अपने बही-खातों में किसानों की ज़िन्दगी को रेहन रख पाता है। बल्कि अब मनोज कुमार 'भारत' बन फ़िल्म 'उपकार'  में गाते हैं ''मेर देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती''। 

वाक़ई, किसान ने अपनी मेहनत और सरकार ने अपने जतन से देश की मिट्टी को सोना उगलने वाली बना दिया लेकिन मौसम की मार और सरकारी नीतियों ने किसान को एक बार फिर बेबस बना दिया है। लेकिन ये किसान भी क़सम खाकर बैठे हैं और सिंघु बॉर्डर पर तो ये किसान अक्सर कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए गाते हैं -  साड्डा हक़ एत्थे रख। 

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

farmers protest
Farm bills 2020
farmer crisis
agricultural crises
Indian old currency
Farmers and currency

Related Stories

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

ऐतिहासिक किसान विरोध में महिला किसानों की भागीदारी और भारत में महिलाओं का सवाल

पंजाब : किसानों को सीएम चन्नी ने दिया आश्वासन, आंदोलन पर 24 दिसंबर को फ़ैसला

लखीमपुर कांड की पूरी कहानी: नहीं छुप सका किसानों को रौंदने का सच- ''ये हत्या की साज़िश थी'’

इतवार की कविता : 'ईश्वर को किसान होना चाहिये...

किसान आंदोलन@378 : कब, क्या और कैसे… पूरे 13 महीने का ब्योरा

जीत कर घर लौट रहा है किसान !

किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत , 11 को छोड़ेंगे मोर्चा


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    विश्व आर्थिक मंच पर पेश की गई ऑक्सफोर्ड इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौर में फूड फ़ार्मा ऑयल और टेक्नोलॉजी कंपनियों ने जमकर कमाई की।
  • परमजीत सिंह जज
    ‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप
    26 May 2022
    पंजाब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना है, और भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ना अभी बाक़ी है, लेकिन पार्टी के ताज़ा क़दम ने सनसनी मचा दी है।
  • virus
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या मंकी पॉक्स का इलाज संभव है?
    25 May 2022
    अफ्रीका के बाद यूरोपीय देशों में इन दिनों मंकी पॉक्स का फैलना जारी है, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मामले मिलने के बाद कई देशों की सरकार अलर्ट हो गई है। वहीं भारत की सरकार ने भी सख्ती बरतनी शुरु कर दी है…
  • भाषा
    आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद
    25 May 2022
    विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग अवधि की सजा सुनाईं। सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    "हसदेव अरण्य स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल"
    25 May 2022
    हसदेव अरण्य के आदिवासी अपने जंगल, जीवन, आजीविका और पहचान को बचाने के लिए एक दशक से कर रहे हैं सघंर्ष, दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License