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हिंदुत्व में कोई भी संगठन छोटा नहीं, कल हाशिये पर रहे समूह आज मुख्यधारा में हैं
इस हफ़्ते दिल्ली के जंतर-मंतर पर सिर्फ़ एक ही कट्टरपंथी ने हत्यारे नारे नहीं लगाए। यह एक सुचारू तंत्र के एजेंट का काम था, जिसका काम सामाजिक ध्रुवीकरण को ईंधन देना है।
स्मृति कोप्पिकर
12 Aug 2021
हिंदुत्व में कोई भी संगठन छोटा नहीं, कल हाशिये पर रहे समूह आज मुख्यधारा में हैं
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

रविवार शाम को बिताने के कई बेहतर तरीके हो सकते हैं, लेकिन ट्विटर पर जारी एक बातचीत ने मेरी उत्सुकता बढ़ा दी। यह बातचीत सिडनी में बैठे भारतीय मूल के एक शख़्स ने संचालित की थी। इसमें एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी शामिल थे, जो सर्विस में रहने के दौरान ही अपना भगवा रंग साफ़ कर चुके थे। इसके अलावा बातचीत में दूसरे "सभ्यतावादी हिंदू" भी शामिल थे, यह लोग खुद को इसी तरह पुकार रहे थे। बातचीत का थाप सुनी-सुनाई थी- कैसे भारतीय संविधान, हिंदू धर्म को दबाता है और क्यों हिंदुओं को 'समान अधिकारों' के लिए संघर्ष करना चाहिए।

कुछ घंटे पहले संसद के पास जंतर-मंतर पर एक समूह इकट्ठा हुआ था, जो जोर-शोर से नारे लगाते हुए कह रहे थे कि जब मुस्लिमों को काटा जाएगा, तब वे 'राम-राम' चिल्लाएंगे और जिसे भी भारत में रहना होगा, जय श्री राम कहना होगा। भारत जोड़ो आंदोलन के तले तमाम पुरुष, महिलाएं और बच्चे इस कार्यक्रम में इकट्ठा हुए थे। शायद यहां जोड़ो में 'ज' की जगह 'त' होना चाहिए था।

इस कार्यक्रम के एक आयोजक बीजेपी दिल्ली के पूर्व प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय थे। उपाध्याय और उनके साथियों को घटना के 48 घंटे बाद गिरफ़्तार किया गया। जबकि घटना का वीडियो भी वायरल हो चुका था और नारे लगाने के दौरान घटनास्थल पर खुद पुलिस मौजूद थी। दिल्ली पुलिस को इस नरसंहार के आह्वान वाले नारों के मामले में "अज्ञात लोगों" के खिलाफ़ भी केस दर्ज करने के लिए बड़े स्तर के जनआक्रोश की जरूरत पड़ी। अब इस पर बहस की जा सकती है कि क्या पुलिस इस मामले में न्याय दिलवा पाएगी या नहीं। सैद्धांतिक तौर पर इन लोगों को गिरफ़्तार किया जा सकता था, लेकिन उन लोगों का क्या जो नियमित ढंग से दूसरे प्लेटफॉर्म पर नफ़रत फैलाते रहते है? ट्विटर के अलावा, क्लबहॉउस एक ऐसी जगह है, जहां हिंदू उत्पीड़न, सभ्यतावादी सर्वोच्चता और अल्पसंख्य विरोधी भाषणबाजी का घोल तैयार किया जाता है। 

अब तक इन छोटे-छोटे कट्टरपंथी समूहों को पहचानना आसान था। लेकिन अब यह लोग मुख्यधारा में आ गए हैं। पूरे भारत में यह लोग सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में फैल चुके हैं। हो सकता है यह लगो अपना जुड़ाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ना दिखाएं, जो हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का मूल स्त्रोत है, लेकिन यह लोग उसी की भाषा बोलते हैं और हर मौके पर उसी एजेंडे के ऊपर काम करते हैं। अकादमिक जगत से जुड़े कई लोगों और लेखकों ने आरएसएस को एक 'कई सिर वाले हाइड्रा' की तरह का संगठन कहा है। आरएसएस कई संगठनों को स्थापित करता है और कई को प्रोत्साहन देता है। लेकिन जैसे ही यह संगठन उसके लिए दिक्कतें पैदा करने लगते हैं, वह इनसे पल्ला झाड़ लेता है।  

छोटे हों या ना हों, चाहे किसी शख़्स के द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर चलाए जाएं या ट्रस्ट द्वारा, ऐसे हिंदुत्ववादी समूह हमेशा, खासतौर पर 2014 के बाद से मुख्यधारा का हिस्सा रहे हैं। जिन सिद्धातों को लेकर यह समूह चलते हैं, जिस तरह की बातचीत यह संगठन करते हैं, उनकी नीति और मीडिया एजेंडा के संबंध और जिस तरीके से बिना सजा के यह लोग संविधान का उल्लंघन करते आए हैं, यह लोग कभी भारत के सामाजिक-राजनीतिक हासिए पर नहीं, बल्कि मुख्यधारा में रहे हैं। "मोदी के प्रभाव वाले भारत" में जिन विचारों और मतों को यह संगठन प्रसारित करते हैं, वे अब नया सामान्य बन चुके हैं। उनकी योजना अब भारत की योजना है, उनके द्वारा कही गई बातें ही सच हैं। अगर यह मुख्यधारा नहीं है, तो क्या है?

2002 में गुजरात दंगों के तुरंत बाद उत्तरप्रदेश में हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया गया था, कई सालों तक इसे हाशिए के कट्टरपंथी समूह कहकर नकारा जाता रहा है, खासकर दिल्ली और मुंबई के अंग्रेजी मीडिया ने ऐसा किया। इसके संस्थापक योगी आदित्यनाथ गोरखपुर मठ के महंत थे। हिंदुत्व की खुलकर वकालत करने वाले योगी 2017 से मुख्यमंत्री हैं। उनकी राजनीतिक ऊंचाई से इस संगठन में आम दिलचस्पी बढ़ गई। अब संगठन का दावा है कि उसकी सदस्यता लाखों में पहुंच चुकी है। जब आदित्यनाथ लोकसभा में सांसद थे, तब उनका "लव जिहाद" के नारे को गंभीरता से नहीं दिया गया। अब जिस राज्य में उनकी सरकार है, वहां यह कानून है।

कई उदाहरण मौजूद

बजरंग दल को भी हाशिये का कट्टरपंथी समूह माना जाता था। 1980 के मध्य से आखिरी तक इस संगठन को कुछ भटके लोगों का कार्यक्रम कहकर खारिज कर दिया जाता रहा। बहुत बाद में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे बीजेपी नेताओं के ज़मीनी काडर के तहत हिंदुओं को इकट्ठा करने और राम जन्मभूमि के लिए भावनाओं को तेज करने में इसके किरदार को पहचान मिली।

विदेश में बीजेपी का मित्र संगठन विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन इस विमर्श को हाशिये से मुख्यधारा तक चलाते रहे हैं।

सावरकर और गोडसे की विरासत वाले अभिनव भारत को 2006 में भारतीय सेना के एक रिटायर्ड मेजर द्वारा पुनर्गठित किया गया। इस संगठन के रक्षा क्षेत्र से भी संबंध थे, संगठन का नाम मालेगांव बम धमाकों में सामने आया था। धमाकों की कड़ी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर तक पहुंची। आंतकी गतिविधियों में आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को बाद में भोपाल से 2019 का लोकसभा टिकट दिया गया। अभिनव भारत अपना संबंध आरएसएस से नहीं जोड़ सकता, लेकिन यह आरएसएस की विचारधार फैलाने का काम करता है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और दिल्ली में इसे कट्टरपंथी समूह माना जाता रहा है। इसी तरह सनातन संस्था या श्रीराम सेना की कहानी है।

समझ की यही गलती सूरज पाल अमू के साथ की गई थी, जिसके राजपूत करणी सेना संगठन ने तब कुलीनों की दुनिया को हैरान कर दिया था, जब संगठन ने एक फिल्म में एक किरदार निभाने के चलते अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के सिर पर 10 करोड़ रुपये का ईनाम रख दिया था। अमू को इसका इनाम हरियाणा में बीजेपी प्रवक्ता का पद देकर दिया गया। पिछले महीने ही अमू ने पटौदी में हुई महापंचायत में मुस्लिमों के खिलाफ़ नरसंहार को उकसाने वाले नारे लगाए थे। घटना का वीडियो है, पुलिस भी घटनास्थल पर मौजूद थी, लेकिन अमू अब भी आजाद हैं और बीजेपी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उनकी महापंचायत ट्विटर या क्लबहॉउस रूम की तरह ही है, जिसमें सोशल मीडिया का जाल मौजूद नहीं है।

इसी तरह की एक शख्सियत स्वामी नरसिंहानंद सरस्वती हैं, जिनके मुस्लिमों से नफरत वाले वीडियो अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर वायरल हुए हैं। ऐसा लगता है जैसे उनके चेलों की बड़ी संख्या है। नरसिंहानंद भी बिल्कुल आजाद हैं और उनके ऊपर भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की।

एक-दूसरे की मदद करते हैं हिंदुत्ववादी संगठन

जब हिंदुत्ववादी संगठनों को हाशिये के या धूर्त संगठन करार दिया जाता था, तबसे काफ़ी पानी बह चुका है। हिंदुत्ववादी नेटवर्क में कोई भी चीज छोटी या धूर्त नहीं होती। यहां दिखाई देता है कि कई निचले संगठन भी अपनी ताकत दिखाते हैं और एक्का-दुक्का जगहों पर नफ़रती भाषण देते रहते हैं। लेकिन वृहद तौर पर वे हिंदुत्व नेटवर्क का हिस्सा बने रहते हैं, जिसके शीर्ष पर आरएसएस है। जहां से बीजेपी को राजनीतिक ताकत मिलती है। नेटवर्क द्वारा इन ईकाईयों का गठन और पोषण किया जाता है, जो अलग-अलग मुंह से एक ही भाषा बोलते हैं। हर संगठन स्वतंत्र है, लेकिन फिर भी यह सारे भारत के 'हिंदूकरण' के अभियान का हिस्सा हैं। पत्रकार     और लेखक धीरेंद्र झा इन्हें आरएसएस की "शैडो आर्मी" कहते हैं।

कुछ संगठन एक बैठक कक्ष में समा जाते हैं। तो कुछ का दावा होता है कि उनके लाखों सदस्य हैं। कुछ संगठनों की बीजेपी के ऊपरी नेताओं तक सीधी पहुंच है, वहीं दूसरे इस बात से संतोष में हैं कि प्रधानमंत्री मोदी उन्हें ट्विटर पर फॉलो करते हैं। ऐसे कई संगठन आपको उनके आकार, क्षेत्र और प्रभाव के चलते हाशिये के संगठन दिख सकते हैं, लेकिन कोई गलती मत कीजिए; यह संगठन अपनी ताकत आज की मुख्यधारा की हिंदुत्व विचारधारा से अर्जित करते हैं और इसके सामान्यीकरण के साथ-साथ हिंदुत्व की विचारधारा को वैधानिकता दिलाने में भी मदद करते हैं। हिंदू युवा वाहिनी का लव जिहाद का एजेंडा आज ना केवल उत्तरप्रदेश बल्कि देश के कई बीजेपी शासित राज्यों में कानून बन चुका है। 

क्लब हॉउस या ट्विटर पर काम करने वाले समूह अपंजीकृत, प्राथमिक तौर पर अंग्रेजी बोलने वाले शहरी कुलीन लोगों के समूह हैं, जो हिंदू उत्पीड़न का विमर्श तेज करता है। उनके मैदान पर स्थित सहयोगी संगठन करणी सेना या भारत जोड़ो आंदोलन हैं। शब्दों में अंतर हो सकता है, लेकिन उनका मतलब एक ही है; धर्म और संस्कृति के मामले में हिंदुओं को समान अधिकार है, हिंदु अपनी ही ज़मीन पर दूसरे दर्जे के नागरिक बन चुके हैं और सेकुलर संविधान एक पवित्र दस्तावेज़ नहीं है।

दो तरह के समूह या संगठन एक दूसरे का पोषण करते हैं। उनका संदेश कई बार लचीले मीडिया द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर लोगों तक पहुंचा दिया जाता है। सारी चीजें सामाजिक ध्रुवीकरण में मदद करती हैं, जो अब पूरे देश में देखा जा सकता है। यहां तक कि जब यह संगठन उथल-पुथल मचाते नज़र आते हैं, तब भी वे हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे होते हैं। स्वतंत्र और सामूहिक तौर पर यह संगठन और समूह देश का सामाजिक-राजनीतिक तापमान बढ़ा रहे होते हैं, जिसमें तार्किक बहस मुश्किल हो जाती है। उनकी हिंदू उत्पीड़न और मुस्लिमों (या ईसाईयों) को अलग-थलग दिखाने का अभियान उनके दर्शकों को वैधानिक दिखाई पड़ता है। स्पष्ट है कि इससे बीजेपी के लिए वोट बंटोरने में सहूलियत होती है और आरएसएस को रोमांच पैदा होता है, जिसकी बड़ी डिज़ाइन भारत के हिंदूकरण की है। 

तो इस स्थिति में कैसे प्रधानमंत्री मोदी अमू या उपाध्याय की निंदा कर सकते हैं और कैसे पुलिस उनके खिलाफ़ गंभीर कदम उठा सकती है? बल्कि ऐसे लोग बीजेपी के अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं से प्रेरणा लेते हैं, जिनकी "देशद्रोहियों" को गोली मारने का आह्वान उनके कैबिनेट मंत्री बनने के बीच में नहीं आया। 

बड़ी डिज़ाइन में कोई भी संगठन धूर्त या हाशिये का संगठन नहीं है। हर किसी का एक किरदार है। आखिर मूल स्त्रोत् और उसको मानने वाले एम एस गोलवलकर से प्रेरणा लेते हैं, जिन्होंने "वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइन्ड (1938)" में नाजियों द्वारा यहूदियों के नरसंहार को सही ठहराया था। उन्होंने लिखा था, "....जर्मनी ने यहूदी जाति को हटाकर अपने देश का शुद्धिकरण किया है। राष्ट्रीय गर्व यहां सबसे ऊंचा दिखाई देता है। जर्मनी ने यह भी दिखाया है कि कैसे अलग-अलग जातियों और संस्कृतियों की, जिनके मतभेद जड़ों तक मौजूद हैं, उनकी एकजुटता लगभग असंभव होती है। यह हिंदुस्तान को सीखने और लाभ उठाने के लिए अच्छा पाठ है।"

लेखिका मुंबई आधारित वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं। वे राजनीति, शहर, मीडिया और लैंगिक मुद्दों पर लिखती हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

There is no Fringe in Hindutva, Yesterday’s Outliers are Mainstream Today

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