NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कश्मीरः यह किसका लहू है कौन मरा
कश्मीर से अब कोई ख़बर नहीं आती। कश्मीर की जनता के दुख-दर्द, यातना व संघर्ष की ख़बर नहीं आती। ख़बर अगर आती भी है, तो ख़ून से सनी लाशों की।
अजय सिंह
26 Jul 2020
कश्मीर

कश्मीर से अब कोई ख़बर नहीं आती। कश्मीर की जनता के दुख-दर्द, यातना व संघर्ष की ख़बर नहीं आती। ख़बर अगर आती भी है, तो ख़ून से सनी लाशों की। मुठभेड़ हत्याओं (एनकाउंटर किलिंग) की : और यह ख़बर भी भारतीय सेना के हवाले से आती है, उसकी प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से।

हर मुठभेड़ के बाद भारतीय सेना (या कश्मीर पुलिस या सीआरपीएफ़) प्रेस विज्ञप्ति जारी करती है, जिसे कॉमा या फ़ुलस्टाप बदले बग़ैर ख़बर के तौर पर जस-का-तस जारी कर दिया जाता है। उसे हमारा समाचार माध्यम लपक लेता है, बिना कोई सवाल-जवाब या जांच-पड़ताल किये। कश्मीर में सेना की किसी कार्रवाई पर उंगली नहीं उठायी जा सकती, न यह पूछा जा सकता है कि जिन मुठभेड़ों में विद्रोहियों (मिलिटेंट) के मारे जाने का दावा किया जाता है, क्या वे वाक़ई मुठभेड़ में मारे गये या उन्हें घेर कर मार डाला गया। कश्मीर में किसी भी मुठभेड़ घटना की स्वतंत्र जांच नहीं होती। वहां सेना ही क़ानून है, सेना ही ख़बर एजेंसी है। कश्मीर में सिर्फ़ सेना की आवाज़ सुनायी देती है। बाक़ी सारी आवाज़ों को ग़ायब करा दिया गया है।

कश्मीर में स्वतंत्र, खोजपरक, सवाल पूछनेवाली, निर्भीक पत्रकारिता को सेना की बंदूक के बल पर दफ़ना दिया गया है। अगर ऐसा न होता, तो यह सवाल ज़रूर पूछा जाता कि जनवरी से जून 2020 के बीच छह महीने में जो 120 मिलिटेंट (विद्रोही) कश्मीर में सेना के साथ तथाकथित मुठभेड़ों में मारे गये, उसके पीछे की वास्तविकता क्या है। क्यों सभी मारे गये और किसी को ज़िंदा नहीं पकड़ा गया? क्या सेना को खुली छूट मिली है कि मार डालो-जला डालो-नष्ट कर दो?

ग़ौरतलब है कि जनवरी-जून 2020 के बीच मारे गये विद्रोहियों में सबसे ज़्यादा 48 विद्रोही सिर्फ़ एक महीने में—जून में—मारे गये। 18 जुलाई तक मारे गये विद्रोहियों की कुल संख्या 130 तक जा पहुंची। सिर्फ़ लाशों की संख्या बढ़ती जा रही है, और इसके साथ क़ब्रिस्तानों की भी तादाद बढ़ रही है। कश्मीर के—ख़ासकर दक्षिणी कश्मीर के—कई इलाके क़ब्रिस्तान नज़र आते हैं। मारे गये विद्रोहियों की लाशों को सेना उनके परिवार वालों को नहीं सौंपती, बल्कि ख़ुद ही उन्हें अज्ञात जगहों पर दफ़ना देती है। मुठभेड़ स्थलों के पास स्थानीय निवासी सेना के खिलाफ़ बराबर प्रदर्शन करते हैं।

लगभग सभी मुठभेड़ों की कहानियां एक जैसी होती हैं, जिन्हें सेना प्रेस के लिए जारी करती है। यह कहानी कुछ इस तरह होती है : किसी इलाके में विद्रोहियों की मौजूदगी की ख़ुफ़िया सूचना के आधार पर सेना ने केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल और जम्मू-कश्मीर पुलिस के साथ मिलकर उस इलाक़े को घेर लिया, जब लक्षित इलाक़े की तरफ़ बढ़ा जा रहा था या विद्रोहियों से आत्मसमर्पण के लिए कहा जा रहा था, तभी छुपे हुए विद्रोहियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं। जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने भी गोलियां चलायीं, मुठभेड़ में इतने विद्रोही मारे गये। कोई सेना से यह नहीं पूछता कि आपकी सभी मुठभेड़ कहानियां एक जैसी क्यों होती हैं! स्वतंत्र जांच-पड़ताल है नहीं, सेना को कठघरे में खड़ा किया नहीं जा सकता, लिहाजा सेना को हर तरह की खुली छूट मिली हुई है।

एक बात ध्यान देने की है—और यह गंभीर मसला है—कि जनवरी-जून 2020 के बीच कश्मीर घाटी में मारे गये 120 विद्रोहियों  में 90 प्रतिशत से ज़्यादा लोग स्थानीय नौजवान थे। यह कहना है जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारियों का। इसका मतलब यह हुआ कि मारे गये लोगों में 90 प्रतिशत से ज़्यादा नौजवान कश्मीरी मां-बाप के बच्चे थे। और अगर कश्मीर को हम भारत का हिस्सा मानते हैं, तो ये भारतीय नागरिक थे, जो भारतीय सेना के हाथों मारे गये। उनकी दास्तान कौन लिखेगा?

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Jammu and Kashmir
Jammu
Kashmir
Kashmir Police
CRPF
Indian army

Related Stories

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

कश्मीरी पंडितों के लिए पीएम जॉब पैकेज में कोई सुरक्षित आवास, पदोन्नति नहीं 

यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा

आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद

क्यों अराजकता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है कश्मीर?


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License