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भारत
राजनीति
सफ़ूरा के लिए उठे हजारों हाथ....यौनिक हिंसा के ख़िलाफ़ ‘हल्ला बोल’
“सफ़ूरा के खिलाफ अभद्र महिला विरोधी दुष्प्रचार, हम सब महिलाओं पर हमला है।  इसलिए लॉकडाउन के अंदर से ही हम सफ़ूरा को प्यार और साझेदारी भेज रहे हैं। CAA विरोधी कार्यकर्ताओं की रिहाई मांग रहे हैं, और कपिल मिश्रा पर तुरंत कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।”     
सरोजिनी बिष्ट
08 May 2020
हल्ला बोल

कौन बदन से आगे देखे औरत को
सब की आंखे गिरवी हैं इस नगरी में

                                          हमीदा शाहीन

एक सत्ताईस अट्ठाईस साल की नौजवान लड़की, सफ़ूरा ज़रगर, जो दिल्ली की एक जानी मानी यूनिवर्सिटी जामिया की पीएचडी की छात्रा हैं साथ ही एक सोशल एक्टिविस्ट भी। पिछले साल दिसंबर में जामिया के छात्र छात्राओं पर हुई पुलिस बर्बरता के ख़िलाफ़ इस सिस्टम से लड़ती हैं, सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ बेख़ौफ़ हो आवाज़ बुलन्द करती हैं, ज़ाहिर है उनका इतना करना ही सत्ता की आंखों का कांटा बन जाने के लिए काफी है।

इसी बीच दिल्ली में कुछ अराजक और सांप्रदायिक तत्वों द्वारा इस साल फ़रवरी में दंगा भड़काया जाता है। और कुछ समय बाद शुरू होता है दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तारियों का सिलसिला। इन्हीं गिरफ्तारियों के बीच दस अप्रैल को आतंकवाद निरोधी कानून UAPA (अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट)  के तहत सफ़ूरा की गिरफ्तारी होती है और उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया जाता है। इसी बीच उनकी प्रेग्नेंसी की ख़बर सामने आती है। जैसे ही यह खबर सामने आती है मानो दक्षिणपंथी ट्रोल बिरादरी को बैठे-बिठाए मनमाफिक एक ऐसा मुद्दा मिल जाता है जो उनकी कई दिनों से दबी नफ़रत ही भावनाओं को उड़ान देने के लिए काफी थी। फेसबुक और ट्विटर पर सफ़ूरा के चरित्रहनन की ऐसी आंधी चल पड़ी जिसने "मनुष्य" होने की सब हदों को पार कर दिया और यह जता दिया कि हमारे इस सभ्य समाज का एक हिस्सा इस क़दर मानसिक गिरावट की गिरफ़्त में आ चुका है कि उनकी इस गिरावट के सामने हमारे शब्दकोश के बेशर्म और असभ्य शब्द भी बौने हो गए हैं।

हैरत नहीं कि भाजपा के एक नेता कपिल मिश्रा के महिला विरोधी ट्वीट ने सोशल मीडिया में ऐसा वातावरण पैदा कर दिया कि सफ़ूरा के ख़िलाफ़ आग उगलने वाले यह भूल गए कि वे सफ़ूरा का नहीं अपने कृत्यों से अपना ही चरित्र हनन कर रहे हैं।

सफ़ूरा के मामले ने एक बार फिर उस दक्षिणपंथी मानसिकता का पर्दाफ़ाश किया है जो यह कहती है कि यदि तुम शत्रु को तर्क से हरा नहीं सकते तो सीधे उसके चरित्र पर हमला कर दो और शत्रु अगर कोई महिला हो तो तब तो शिकार करना और आसान हो जाता है।

इस पूरे मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग की भूमिका बेहद निराशाजनक नज़र आई। ट्रोल करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय केवल एक ट्वीट कर अपना पल्ला झाड़ दिया जो आयोग महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए ही बना है।

देश भर में महिलाओं ने उठाया सफ़ूरा ज़रगर का मुद्दा और भाजपा नेता कपिल मिश्रा पर कार्रवाई की मांग करते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग और प्रधान मंत्री से जवाब मांगा।

गुरुवार, 7 मई को देश भर में  महिला संगठन ऐपवा के साथ साझेदारी दिखाते हुए अन्य जनवादी प्रगतिशील संगठनों ने भी सफ़ूरा ज़रगर के साथ  एकजुटता दिखाई। लगातार सफ़ूरा पर हो रही यौन उत्पीड़न की टिप्पणियों पर प्रहार करते हुए महिलाओं ने न केवल अपने अपने घरों से अपना प्रतिवाद जारी रखा बल्कि फेसबुक ट्विटर पर भी ऐसी अभद्र टिप्पणी करने वालों के ख़िलाफ़ जमकर माहौल बनाया और कपिल मिश्रा की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की। हाथों में बैनर तख्तियां लिए महिलाओं ने #with safoora against slander स्लोगन के साथ सोशल प्लेटफार्मों पर  केवल अपना प्रतिवाद दर्ज किया बल्कि इस पूरे मामले में चुप्पी साधे महिला आयोग से भी सवाल किए और प्रधानमंत्री से भी।

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उत्तर प्रदेश ऐपवा राज्य सचिव कुसुम वर्मा

उत्तर प्रदेश ऐपवा राज्य सचिव कुसुम वर्मा ने इस प्रतिवाद दिवस पर बात करते हुए कहा कि भाजपा आईटी सेल ने सोशल मीडिया पर सफ़ूरा का चरित्र हनन चलाया, उनकी गर्भावस्था और विवाह के बारे में अश्लील दुष्प्रचार चलाया। इस दुष्प्रचार में "We Support Narendra Modi" वाले Facebook पेज़ की भूमिका को देख, इसे संघ और भाजपा का "बॉयज़ लॉकर रूम" कहा जा रहा है। उन्होंने कहा कि ये कैसी न्यायव्यवस्था है कि एक गर्भवती महिला तो जेल में है, उसकी तबीयत ठीक नहीं और खुलेआम दंगा भड़काने वाला और सफ़ूरा का चरित्र हनन करने वाला बाहर आज़ाद है सिर्फ़ इसलिए कि वह सत्ता पक्ष से ताल्लुक रखता है।

ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने अपने वीडियो के जरिये राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा से सवाल किया कि सफ़ूरा के मामले में आपका काम ट्वीट भर कर देने से पूरा नहीं हो जाता, बल्कि आपको तो स्वयं उसके लिए बेल की मांग करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ दंगा भड़काने के पुख़्ता सबूत हैं उसकी गिरफ्तारी नहीं होती जबकि सफ़ूरा के खिलाफ कोई सबूत अभी तक सामने नहीं आया और उसको गिरफ्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया जाता है जबकि वह तीन महीने की गर्भवती है।

अपने वीडियो के जरिए कविता ने देश के प्रधानमंत्री से भी सवाल किया कि आखिर कपिल मिश्रा पर आप कब बोलेंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री के ‘बेटी बचाओ-बेटी बढ़ाओ’ नारे की भी याद दिलाई।

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इसी तरह देश भर में महिलाओं ने अपने-अपने घरों में बैठकर  धरना दिया तथा तख्तियों, नारों, और वीडियो के जरिए इन सवालों को उठाया. इस आंदोलन में ऐपवा सहित अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति, एन एफ आई डब्ल्यू, लोकतांत्रिक जनपहल, महिला हिंसा के विरुद्ध नागरिक पहल, मुस्लिम महिला मंच, जन जागरण शक्ति संगठन, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, बिहार घरेलू कामगार यूनियन, डब्ल्यू एस एस, अ भा महिला सांस्कृतिक संगठन, ए एस डब्ल्यू एफ, स्त्री मुक्ति संगठन, बिहार महिला समाज, सब शामिल रहे।

महिलाओं ने कहा है कि सफ़ूरा के खिलाफ अभद्र महिला विरोधी दुष्प्रचार, हम सब महिलाओं पर हमला है।  इसलिए लॉकडाउन के अंदर से ही हम सफ़ूरा को प्यार और साझेदारी भेज रहे हैं। CAA विरोधी कार्यकर्ताओं की रिहाई मांग रहे हैं, और कपिल मिश्रा पर तुरंत कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

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लाज़िम है कि हम तो पूछेंगे

चूंकि देश के प्रधानमंत्री और महिला आयोग इस पूरे मामले में कपिल मिश्रा की भूमिका पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसलिए महिला संगठनों ने प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष से सवाल करते हुए कहा है कि-

  • भाजपा नेता कपिल मिश्रा द्वारा सफ़ूरा के गर्भावस्था पर भद्दे ट्वीट पर आप चुप क्यों? उनपर कार्रवाई क्यों नहीं?
  • जहां ग्रीन और ऑरेंज ज़ोन में भी गर्भवती महिलाओं से कहा जा रहा है कि वे घर में रहें, तो गर्भवती सफ़ूरा को कोरोना के ख़तरे के समय तिहाड़ जेल में क्यों रखा गया?
  • दिल्ली दंगों को भड़काने के आरोपी कपिल मिश्रा गिरफ़्तार क्यों नहीं? CAA विरोधी महिला आंदोलन में सक्रिय सफ़ूरा, इशरत, गुलफ़िशा जेल में क्यों?

सवाल तो वाजिब हैं, लेकिन जवाब कब और कितना आएगा इस पर संशय होना स्वाभाविक है। पर जवाब मिले, न मिले, सवाल तो सिस्टम और सत्ता से होते रहना चाहिए और तब जबकि मामला एक महिला के चरित्रहनन से जुड़ा हो उस पर लगातार यौनिक हमले हो रहे हो और हमला करने वाले और कोई नहीं बल्कि सत्ता पक्ष के ही पैरोकार हों। 

(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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