NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
खेल
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
विक्रम और बेताल: सरकार जी और खेल में खेला
सरकार जी खेलों की दुनिया को पैसे की दुनिया से अलग ही रखते थे। वे जानते थे कि खिलाड़ी अपनी नैसर्गिक प्रतिभा से ही आगे बढ़ता है न कि सरकारी सहायता से। इसीलिए उन्होंने खेल में सरकारी मदद को सिर्फ़ खेल मैदानों और खेल पुरस्कारों के नाम बदलने तक ही सीमित रखा।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
15 Aug 2021
विक्रम और बेताल: सरकार जी और खेल में खेला
 तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। 

आधी रात का समय था। अमावस्या की रात थी और श्मशान भूमि में घनघोर अंधेरा छाया हुआ था। कहीं दूर से सियारों की 'हुंआ हुंआ' की आवाजें आ रहीं थीं। ऐसे में ही राजा विक्रमादित्य एक बार फिर ऊपर पेड़ पर चढ़े और वृक्ष की शाखा पर लटके बेताल को शाखा पर से उतार कर अपने कंधे पर लाद लिया।

विक्रमादित्य जब बेताल को अपने कंधे पर लाद कर चलने लगे तो बेताल ने कहा "राजा, तुम बहुत ही ढीठ हो। तुम ऐसे ही नहीं मानोगे। ये कठिन रास्ता आराम से कट जाए, इस लिए मैं तुम्हें जम्बूद्वीप के भारत खण्ड के राजा ‘सरकार जी’ की एक और कहानी सुनाता हूं। लेकिन राजा, अगर तुमने बीच में मौन भंग किया तो मैं वापस चला जाऊंगा"।

बेताल ने कहानी शुरू की राजा 'सरकार जी', बचपन से ही खेलों का शौकीन था। हालांकि उसका गांव गंगा नदी के तट से सैकड़ो मील दूर था पर वह हर रोज गंगा जी के तट पर खेलने जाता था कि मां गंगा मुझे बुला रही है। खेलते खेलते बालवीर सरकार जी और उसके साथी गेंद नदी में फेंक देते थे और फिर सरकार जी उस गेंद को नदी में से निकाल कर लाता था और अपने मित्रों को 'इंप्रेस' करता था। यह फेंकने और इंप्रेस करने का खेल सरकार जी और उनके मित्रों को बचपन से ही पसंद था और वे रोज यह खेल खेलते थे। सरकार जी की यह पसंद उनके राजा बनने के बाद भी जारी रही।

राजा बनने के बाद भी सरकार जी का खेल प्रेम बना रहा। यह फेंकने का खेल जो सरकार जी को बचपन से ही पसंद, उसे सरकार जी ने आगे चलकर भी बहुत बढ़ावा दिया। बालवीर सरकार जी को गेंद नदी में फेंकने का खेल पसंद था पर अब वह राजा, सरकार जी बहुत लम्बी और बहुत ऊंची फेंकने लगा था। इतना अधिक कि उसकी प्रजा उसे प्यार से 'फेंकू' ही कहने लगी थी। और वह भी खूब लम्बी लम्बी फेंकने लगा था। वह हजारों लाखों करोड़ की फेंकता था। कभी बीस लाख करोड़ की तो कभी एक लाख छयत्तर हजार करोड़ की। और कभी कुछ कम हुई तो पैंतीस हजार करोड़ की। सरकार जी ने फेंकने में सारे विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिए थे।

सरकार जी की देखा-देखी उनके मंत्री और दरबारी भी फेंकने में माहिर होने लगे थे। चुनाव नामक एक पुराने दंगल को तो फेंकने की प्रतियोगिता में ही बदल दिया गया था। चुनावों में सभी ऊंची ऊंची और लम्बी लम्बी फेंकते थे। चुनाव नाम की वह प्रतियोगिता गांवों के लेवल से होकर राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जाती थी। राजा सरकार जी की टीम उनमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती थी और राजा साहेब उन प्रतियोगिताओं में लम्बी लम्बी फेंकते थे। कई बार तो इतनी लम्बी फेंकते थे कि बंगाल के खेल में फेंकी गई दिल्ली तक पहुंच जाती थी।

सरकार जी को अन्य खेल भी पसंद थे। उन खेलों के लिए भी उन्होंने बहुत कुछ किया था। अपने सूबे के एक पुराने खेल मैदान में थोड़ा बहुत विकास कर उसका नाम 'सरकार जी स्टेडियम' ही रख दिया था और देश की राजधानी के एक स्टेडियम का नाम तो बिना कोई सुधार किए ही सुधार दिया था और उसका नाम अपने एक दिवंगत मंत्री के नाम पर रख दिया था। ऐसे ही एक खेल पुरस्कार का नाम भी एक भूतपूर्व राजा के नाम से बदल कर एक महान खिलाड़ी के नाम पर रख दिया था। खेलों के लिए इतना उल्लेखनीय योगदान पहले कभी भी किसी भी राजा ने नहीं किया था।

राजा सरकार जी खेलों की दुनिया को पैसे की दुनिया से अलग ही रखते थे। वे जानते थे कि खिलाड़ी अपनी नैसर्गिक प्रतिभा से ही आगे बढ़ता है न कि सरकारी सहायता से। इसीलिए उन्होंने खेल में सरकारी मदद को सिर्फ खेल मैदानों और खेल पुरस्कारों के नाम बदलने तक ही सीमित रखा। खेलों के लिए पैसा वे कम ही खरचते थे जिससे कि खिलाड़ी अपनी प्रतिभा से ही आगे बढ़ें न कि पैसे की मदद से। वैसे भी सरकार जी को पैसा खर्च करने के लिए और भी बहुत सारी जगह थीं। जैसे सरकार जी अपने लिए वाहन खरीदने में ही हजारों करोड़ खर्च कर देते थे और नया नवेला राजमहल बनवाने में भी।

और हां! खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार जी एक और काम करते थे कि जब भी कोई खिलाड़ी शानदार प्रदर्शन करता था तो उसे कबूतर द्वारा संदेश अवश्य भेजते थे। वे जब भी किसी खिलाड़ी को कबूतर द्वारा संदेश भेजते थे तो यह अवश्य ध्यान रखते थे कि वह संदेश अखबारनवीसों और इतिहासकारों के सामने ही लिखा जाए और उनके सामने ही भेजा जाए। इससे खिलाड़ी की हो न हो, सरकार जी की वाहवाही अवश्य हो जाती थी।

इन सब के अलावा सरकार जी के प्रिय खेल छुपम छुपाई और पकड़म पकड़ाई भी थे। राज्य के सारे के सारे संस्थान इन्हीं खेलों को खेलने में लगे रहते थे। कुछ संस्थाएं छुपम छुपाई में तो कुछ पकड़म पकड़ाई में, तो कुछ दोनों खेलों को खेलने में। भले ही आम आदमी को सरकार जी के इन खेलों से परेशानी हो पर सरकार जी को ये खेल अच्छे लगते थे। राजन, अब तुम अपनी मंजिल तक पहुंचने ही वाले हो, इसलिए मैं इस कहानी को यहीं समाप्त करता हूं। छुपम छुपाई और पकड़म पकड़ाई खेल की कहानी कभी और सुनाऊंगा।

कहानी समाप्त कर बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा, "राजा, यद्यपि यह प्रश्न कठिन है पर मुझे विश्वास है कि तुम इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दे सकते हो। तो राजन बताओ कि राजा सरकार जी के शासन काल में चार वर्षीय विश्व प्रतियोगिता में किस खेल में स्वर्ण पदक मिला। यदि तुमने समझते हुए भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम्हारे सिर के टुकड़े टुकड़े कर दूंगा"।

राजा विक्रमादित्य ने सोच कर उत्तर दिया, "बेताल, इस प्रश्न का उत्तर कठिन अवश्य है पर असंभव नहीं। किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने में उस खिलाड़ी के अथक श्रम और दृढ़ निश्चय का हाथ रहता है जिसका श्रेय किसी भी राजा को हरगिज नहीं दिया जा सकता है। जहां तक रही तुम्हारे प्रश्न की बात, तुमने कहानी में ही सब स्पष्ट कर दिया है। चार वर्षीय विश्व प्रतियोगिता में फेंकने की किसी प्रतियोगिता में ही खिलाड़ी को प्रथम स्थान मिला होगा"।

इतना सुनते ही, बेताल ने कहा "राजा, तुम वास्तव में ही बहुत बुद्धिमान हो और तुमने सरकार जी की कहानी पूरी तल्लीनता से सुनी है। तुमने बिल्कुल ठीक उत्तर दिया है। लेकिन तुमने बोल कर मौन भंग कर दिया इसलिए मैं वापस जा रहा हूं"। और बेताल उड़ कर वृक्ष की शाखा पर लटक गया।

(व्यंग्य स्तंभ ‘तिरछी नज़र’ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Satire
Political satire
Olympic
sports
Sports in India
Central Government
Narendra modi
sports ministry

Related Stories

मेरी टिप्पणियों को अपने गंदे एजेंडा को आगे बढ़ाने का माध्यम न बनायें : नीरज चोपड़ा

नये इंडिया को सोना मिला- धन्यवाद मोदी जी!

ओलंपिक में महिला खिलाड़ी: वर्तमान और भविष्य की चुनौतियां

टोक्यो ओलंपिक: चार दशक बाद ओलंपिक सेमीफाइनल में जगह बनाने से एक कदम दूर भारतीय हॉकी टीम

जापान ने भारतीय ओलंपिक दल पर कड़े नियम लगाये, आईओए ने कहा, ‘‘अनुचित और भेदभावपूर्ण’’

रोनाल्डो के कोका कोला बोतल हटाने वाले प्रकरण को थोड़ा खुरच कर देखिए!

कहानी अंतर्राष्ट्रीय कराटे खिलाड़ी की, जो अब खेत मज़दूरी कर रही हैं

आईपीएल 2021: भ्रम के बुलबुले और दिमाग़ में भूंसे भरे हुए आदमज़ाद

किसानों के समर्थन में ‘भारत बंद’ सफल, बीजेपी शासित राज्यों में भी रहा असर, कई नेता हिरासत में या नज़रबंद रहे


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License