NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
तिरछी नज़र : मंदी में ‘फरारी’ कार!
सरकार नहीं चाहती है कि हमें बढ़ती बेरोजगारी का पता चले, और हमें दुख पहुंचे। या फिर हमें शिक्षा में हो रही गिरावट की भनक लगे और हम अवसाद में चले जायें। सरकार बस एक अच्छे अभिभावक की तरह यह चाहती है कि हम उसके द्वारा पकड़ाये गये खिलौने हिन्दू-मुसलमान में उलझे रहें।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
19 Jan 2020
tirchi nazar
प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार : rediff.com

मेरा एक मित्र है, वह आकंठ कर्ज में डूबा हुआ है। पर उसका रहन-सहन! आप एक बार उसके यहाँ हो आएं, तो आपकी आँखें खुली की खुली रह जाएंगी। हर नई  से नई चीज है उसके घर में। इसका कारण यह है कि वह आधुनिक अर्थशास्त्र का महान ज्ञाता है। दुनिया का बड़ा से बड़ा अर्थशास्त्री भी उसके सामने पानी भरता है। उसके पास बहुत सारे क्रेडिट कार्ड हैं। वह जो भी खरीदता है, क्रेडिट कार्ड से कर्ज ले कर खरीदता है।

logo tirchhi nazar_14.PNG

कर्ज चुकता करने के लिए भी और क्रेडिट कार्ड ले रखा है और सूद चुकाने के लिए भी एक और क्रेडिट कार्ड। मूल अदा करने में भले ही देर हो जाए, पर सूद चुकता करने में उससे कभी चूक नहीं होती। उसकी इसी साख से साहूकार बैंक भी उसके कायल हैं और उसे कर्ज देने में ज्यादा आनाकानी नहीं करते। कुछ जरूरतमंद बैंक तो उसे कर्ज देने उसके घर तक आ जाते हैं। और वह भी कभी नहीं चाहता है कि इस चक्र से निकला जाए। पर हां, अपने घर में अपने बीवी बच्चों को वह अपनी आर्थिक स्थिति की भनक तक नहीं लगने देता है। इस मामले में बहुत ही अच्छा गृहस्वामी है मेरा वह मित्र।

कुछ ऐसा ही हाल हमारे देश का भी है। देश भी मंदी में आकंठ डूबा है। पर आश्चर्य यह है कि यह सब अचानक कैसे हो गया! अभी, पिछले साल मई में जब चुनाव हुए थे तब तक तो देश की खराब आर्थिक स्थिति की कोई चर्चा ही नहीं थी। चुनाव हुए, लेकिन चुनावों में आर्थिक स्थिति को किसी ने भी मुद्दा ही नहीं बनाया, न सरकार ने और न ही विरोधियों ने। ये इतने सारे नेता हैं न, बताते रहे कि तुम हिन्दू हो तो असली समस्या मुसलमान हैं, और एकमात्र हल है राम मंदिर बनाना। और भाजपा की स्थिर पूर्ण बहुमत वाली सरकार ही राम मंदिर बनवाने में सहायता कर सकती है।

अब जब मस्जिद-मंदिर समस्या उच्चतम न्यायालय द्वारा सुलझा ली गई है तो कुछ और तो होना चाहिये हिन्दू-मुसलमान करने के लिए। वैसे तो गौरक्षा और गौमांस हैं, लव जिहाद है हिन्दू-मुसलमान करने के लिए पर वे इतने असरदार नहीं हो पा रहे हैं। ये साल भर एक छोटे स्तर पर यहां वहां चलते रहते हैं पर बड़े पैमाने पर हिन्दू-मुसलमान करने के लिए एक बड़ा मुद्दा चाहिए। इसीलिए अब सीएए और एनआरसी का खेल शुरू कर दिया है हिन्दुओं और मुसलमानों को हिन्दू-मुसलमान खेल में उलझाने के लिए।

जब से सीएए और एनआरसी की बात शुरू हुई है सब जगह इसके विरुद्ध धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकार चाहती भी यही है। लोग बाग बिजी रहें इस तरह की चीजों में। जब तक इस तरह की चीजें चलती रहेंगी, हिन्दू-मुसलमान होता रहेगा। और जब तक हिन्दू-मुसलमान होता रहेगा इस भाजपाई सरकार को लगता है कि वह बनी रहेगी। पर इस बार ये धरना प्रदर्शन सरकार की उम्मीद से अधिक ही हो गया है।

लेकिन इसमें इस सरकार की शायद कोई गलती नहीं है। ये तो यह सब हमारे भले के लिए ही करती है। यह सरकार जानती है कि इस देश की अनपढ़, जाहिल और नासमझ जनता के सामने मंदी जैसी गूढ़ आर्थिक समस्याओं का जिक्र करना भैंस के सामने बीन बजाने जैसा है। सरकार जानती है कि सेठों की बीवियों के गहने बनवाओ, गहने तुड़वाओ के तरह ही जनता को हिन्दू-मुसलमान में व्यस्त रखना चाहिए। हमें तो इन नेताओं का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि ये हमें देश की गंभीर समस्याओं में उलझा कर हमारा सुख-चैन नहीं छीनना चाहते हैं। देश की सारी समस्याओं का बोझ ये अपने कन्धों पर ही उठाए रख रहे हैं।

पर अब तो देश में मंदी का होना जगजाहिर हो चुका है। सरकार इस मंदी से उबरने के लिए मुस्तैदी से उपाय कर रही है। एक तरफ कारपोरेट टैक्स कम कर रही है तो दूसरी ओर पैसा कमाने के लिए अपने नवरत्नों को बेचने के प्रबंध किए जा रहे हैं। कुछ की बोली लग रही है बाकी भी बिकने के लिए तैयार हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकार हमें मंदी जैसी गंभीर समस्या से ही अलग रखना चाहती है। वह तो एक अच्छे गृहस्वामी की तरह से हमें अन्य सारी कठिनाइयों से भी दूर रखना चाहती है। वह नहीं चाहती है कि हमें बढ़ती बेरोजगारी का पता चले, और हमें दुख पहुंचे। या फिर हमें शिक्षा में हो रही गिरावट की भनक लगे और हम अवसाद में चले जायें। सरकार बस एक अच्छे अभिभावक की तरह यह चाहती है कि हम उसके द्वारा पकड़ाये गये खिलौने हिन्दू-मुसलमान में उलझे रहें।

अरे! अपने मित्र की कथा सुनाते सुनाते, पता नहीं मैं कहां से कहां पहुंच गया। अब आपको अधिक बोर न कर अपने मित्र की कहानी का का अंत बता ही देता हूँ। उसके धंधे पर तो पहले ही बैकों का कब्ज़ा हो गया था, कल रात एक बैंक ने उसके माकन पर भी कब्ज़ा कर लिया। मेरे मित्र को अपने बीवी-बच्चों के साथ किस्तों में खरीदी गई फरारी कार में रात बितानी पड़ी। बेचारा !

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Satire
Political satire
unemployment
Economic Recession
Rising recession
indian economy
Indian economic slowdown
GDP
Nirmala Sitharaman
Narendra modi
BJP

Related Stories

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

जनवादी साहित्य-संस्कृति सम्मेलन: वंचित तबकों की मुक्ति के लिए एक सांस्कृतिक हस्तक्षेप

उर्दू पत्रकारिता : 200 सालों का सफ़र और चुनौतियां

तिरछी नज़र: सरकार-जी, बम केवल साइकिल में ही नहीं लगता

विज्ञापन की महिमा: अगर विज्ञापन न होते तो हमें विकास दिखाई ही न देता

तिरछी नज़र: बजट इस साल का; बात पच्चीस साल की

…सब कुछ ठीक-ठाक है

तिरछी नज़र: ‘ज़िंदा लौट आए’ मतलब लौट के...

राय-शुमारी: आरएसएस के निशाने पर भारत की समूची गैर-वैदिक विरासत!, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी हमला


बाकी खबरें

  • वसीम अकरम त्यागी
    विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी
    26 May 2022
    अब्दुल सुब्हान वही शख्स हैं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के बेशक़ीमती आठ साल आतंकवाद के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बिताए हैं। 10 मई 2022 को वे आतंकवाद के आरोपों से बरी होकर अपने गांव पहुंचे हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा
    26 May 2022
    "इंडो-पैसिफ़िक इकनॉमिक फ़्रेमवर्क" बाइडेन प्रशासन द्वारा व्याकुल होकर उठाया गया कदम दिखाई देता है, जिसकी मंशा एशिया में चीन को संतुलित करने वाले विश्वसनीय साझेदार के तौर पर अमेरिका की आर्थिक स्थिति को…
  • अनिल जैन
    मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?
    26 May 2022
    इन आठ सालों के दौरान मोदी सरकार के एक हाथ में विकास का झंडा, दूसरे हाथ में नफ़रत का एजेंडा और होठों पर हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का मंत्र रहा है।
  • सोनिया यादव
    क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?
    26 May 2022
    एक बार फिर यूपी पुलिस की दबिश सवालों के घेरे में है। बागपत में जिले के छपरौली क्षेत्र में पुलिस की दबिश के दौरान आरोपी की मां और दो बहनों द्वारा कथित तौर पर जहर खाने से मौत मामला सामने आया है।
  • सी. सरतचंद
    विश्व खाद्य संकट: कारण, इसके नतीजे और समाधान
    26 May 2022
    युद्ध ने खाद्य संकट को और तीक्ष्ण कर दिया है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि यूक्रेन में जारी संघर्ष का कोई भी सैन्य समाधान रूस की हार की इसकी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License