NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
तिरछी नज़र : जब हिंसा ही देशभक्ति बन जाए…
जेएनयू में गुंडों में देशभक्ति भरने की इस प्रक्रिया में पुलिस भी गुंडों की सहयोगी थी। पुलिस या तो खुद गुंडागिरी करती है या फिर गुंडों का सहयोग करने लगती है।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
12 Jan 2020
JNU Attack

पिछले रविवार की शाम को 'देशभक्त' गुंडों ने जेएनयू में उधम मचाया। उनके समर्थक जेएनयू के बाहर भारत माता की जय, वंदेमातरम जैसे नारे लगा रहे थे और अंदर गुंडे छात्रों और अध्यापकों को पीट रहे थे। यानी देशभक्ति के नारों के साथ की गई गुंडई भी देशभक्ति होती है। गुंडों में देशभक्ति भरने की यह प्रक्रिया काफी रोचक है।

logo tirchhi nazar_13.PNG

जेएनयू में गुंडों में देशभक्ति भरने की इस प्रक्रिया में पुलिस भी गुंडों की सहयोगी थी। पुलिस या तो खुद गुंडागिरी करती है या फिर गुंडों का सहयोग करने लगती है। यूपी में और जामिया में पुलिस ने खुद गुंडागर्दी की तो जेएनयू में गुंडागर्दी करने का काम गुंडों को दे दिया। पुलिस का चरित्र ही कुछ ऐसा बन गया है। क्योंकि पुलिस का पाला गुंडों से ही पड़ता है, इसीलिए या तो वह स्वयं गुंडई पर उतर आती है या फिर गुंडों का सहयोग करने लगती है।

इस जेएनयू के 'टुकड़े टुकड़े गैंग' को सरकारी गुंडों द्वारा देशभक्ति सिखाना जरूरी भी था। ये जेएनयू का 'टुकड़े टुकड़े गैंग' बात बात पर आज़ादी की बात करता है, जैसे कि देश में आज़ादी ही न हो। पर मेरा देश, भारत देश तो 1947 में ही आज़ाद हो चुका है। तो फिर किस बात की आज़ादी? हमारी स्वतंत्रता को तिहत्तरवां वर्ष चल रहा है। और ये लोग आज भी आज़ादी की बात करते हैं!!

यह 'टुकड़े टुकड़े गैंग' के लोग बात करते हैं, गरीबी से आज़ादी की। यह देश को कितनी तोड़ने वाली बात है। हमारे देश में अमीर और गरीब कितने सौहार्द से रहते हैं। सदियों से रहते आये हैं और आज भी रहते हैं। जब हमारा देश सोने की चिडिय़ा होता था तब से रहते आये हैं। जब घी और दूध की नदियां बहती थीं, तब भी अमीर और गरीब हमारे देश में साथ साथ, सौहार्दपूर्ण तरीके से रहते थे। और आज जब खाने के लाले पड़े हैं तब भी रह रहे हैं।

कभी इतिहास पढ़ा है इन 'टुकड़े टुकड़े गैंग' के सदस्यों ने! क्या कहीं भी इतिहास में दर्ज है कि हमारे देश में कभी भी, सतयुग से लेकर अब कलयुग तक, अमीर और गरीब में युद्ध हुआ हो! इस अमीर और गरीब के प्रश्न को उठा कर ये 'टुकड़े टुकड़े गैंग' देश का बंटवारा करना चाहता है। यानी कालाहांडी अलग देश हो और मुम्बई अलग देश। यानी मुम्बई में भी बांद्रा अलग और धारावी अलग।

आखिर इस 'टुकड़े टुकड़े गैंग' की मंशा क्या है? अरे भई, सरकार गरीबी दूर कर गरीबों को अल्पसंख्यक नहीं बनाना चाहती है। तो फिर देश में गरीबों को अमीरों के साथ इसी सौहार्दपूर्ण तरीक़े से रहने दो। देश के टुकड़े टुकड़े मत करो। सरकार किसी भी ऐसी ओछी, घिनौनी हरकत को बरदाश्त नहीं करेगी जो गरीब बहुसंख्यक समुदाय को अमीर अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काये।

ये 'टुकड़े टुकड़े गैंग' चाहता है कि सबको मुफ्त शिक्षा मिले। सब लोग पढ़ें लिखें और वो भी मुफ्त में, या फिर नाममात्र के शुल्क में। यानी पढ़ाई हो गरीबों की, पर खर्च होंं अमीरों के, मिडिल क्लास के द्वारा दिये गए टैक्स के पैसे। उच्च शिक्षा ग्रहण करें गरीबोंं के बच्चे, करोड़ों अरबों रुपये खर्च हों सरकार के। शिक्षा के साथ लगभग फ्री हॉस्टल मिले और हो सके तो स्कोलरशिप भी मिले। यह 'टुकड़े टुकड़े गैंग' क्या सरकार को इतना बेवकूफ समझ बैठा है!

इस सरकार ने उच्च शिक्षा के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ ऐमीनैंस खोले हैं। मोदी जी की सरकार से पहले किसी भी सरकार ने एक भी इंस्टीट्यूट ऑफ ऐमीनैंस नहीं खोला था। बताईये खोला था क्या? शिक्षा के क्षेत्र में जो सत्तर साल में नहीं हुआ वह इस सरकार ने कर दिखाया है। इन इंस्टीट्यूट्स ऑफ ऐमीनैंस में सरकारी तो हैं ही प्राइवेट भी हैं।

यानी गरीब के बच्चों को और अमीर के बच्चों को बराबर का मौका मिले (वैसे अमीर के बच्चे को अधिक मौका है, सरकारी में बराबर का मौका है तो प्राइवेट में सारा मौका)। पर यह 'टुकड़े टुकड़े गैंग' सरकार की इतनी सुंदर, सोची समझी शिक्षा नीति में गतिरोध पैदा कर रहा है। 'टुकड़े टुकड़े गैंग' चाहता है कि देश पढ़े लिखे और अनपढ़ों के बीच भी बंट जाये।

'टुकड़े टुकड़े गैंग' तो यह भी चाहता है कि भूख से कोई न मरे। अब यह भी क्या सरकार की जिम्मेवारी है। कोई कब, कहां और कैसे मृत्यु को प्राप्त होगा, यह तो विधि का विधान है। सरकार इसमें क्या कर सकती है। क्या सरकार 'टुकड़े टुकड़े गैंग' के बहकावे में आ कर विधि का विधान बदल दे। और वैसे भी देश में अन्न की, खाद्यान्न की कोई कमी तो है नहीं। मिल जरूर रहा है भले ही महंगा मिले। अब लोग खा ही नहीं पा रहे हैं, तो यह लोगों की ही कमी है। सरकार उसमें क्या कर सकती है।

देश में तो इतना कुछ है खाने के लिए कि लोग मोटापे से परेशान हो रहे हैं। डायटिंग कर रहे हैं। और यह टुकड़े टुकड़े गैंग भुखमरी से आज़ादी चाहता है। क्या यह टुकड़े टुकड़े गैंग देश में भरे पेट वालों और भुखमरों के बीच में भी बंटवारा करना चाहता है।

ये 'टुकड़े टुकड़े गैंग' वाले बात करते हैं रोजगार की। यानी बेरोजगारी दूर हो। पढ़ें और पढ़ाई खत्म करते ही नौकरी मिल जाये। सरकार पढ़ाये भी और नौकरी भी दे। अरे भई, सरकार है, आपकी नौकर नहीं। प्रधानसेवक प्रधान पहले हैं और सेवक बाद में। और फिर सरकार ने जो नई नौकरियां पैदा की हैं, गौरक्षकों की, मॉब लिंचिंग करने वालों की, और अब देशद्रोहियों को गुंडई द्वारा सीधा करने की। इन नौकरियों को नहीं करोगे तो बेरोजगारी कैसे खत्म होगी।

अब देश को एक रखना है, बंटवारा होने से बचाना है तो इन्हें सबक सिखाना ही होगा। देशभक्त गुंडे ही इन्हें सबक सिखा सकते हैं। जब गुंडे गुंडई पर उतर आयें और हिंसा कर देशद्रोहियों को सबक सिखाने लगें तो लाज़मी है कि पुलिस को उसमें सहयोग करना ही होगा। और जहां तत्काल एक्शन लेना हो, गुंडों का प्रबंध न हो पाये, तो पुलिस ही गुंडागर्दी पर उतर आये, यही तो देशभक्ति है!

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Satire
Political satire
JNU
JNU attacked
JNU Violence
Violence is patriotism
delhi police
टुकड़े टुकड़े गैंग
BJP
modi sarkar

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

उर्दू पत्रकारिता : 200 सालों का सफ़र और चुनौतियां

तिरछी नज़र: सरकार-जी, बम केवल साइकिल में ही नहीं लगता

विज्ञापन की महिमा: अगर विज्ञापन न होते तो हमें विकास दिखाई ही न देता

तिरछी नज़र: बजट इस साल का; बात पच्चीस साल की

…सब कुछ ठीक-ठाक है

तिरछी नज़र: ‘ज़िंदा लौट आए’ मतलब लौट के...

राय-शुमारी: आरएसएस के निशाने पर भारत की समूची गैर-वैदिक विरासत!, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी हमला

तिरछी नज़र: ओमीक्रॉन आला रे...

तिरछी नज़र: ...चुनाव आला रे


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License