NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
तिरछी नज़र : "हम देखेंगे...", कि हमें कुछ भी न दिखे
देखते रहने वालों का सिर्फ़ देखते रहना उन्हें फलीभूत भी हो रहा है, इनाम भी दिला रहा है। यकीन न हो तो इनाम पाने वालों से पूछ लीजिये, गोगोई जी से पूछ लीजिये। जैसे देखते रहना गगोई जी को फलीभूत हुआ है, वैसे ही सब देखते रहने वालों को फलीभूत हो, मेरी सरकार से यही प्रार्थना है।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
22 Mar 2020
modi
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक प्रसिद्ध नज़्म (कविता) है "हम देखेंगे.."। आजकल आंदोलनों के दिनों में बहुत गायी जा रही है। फ़ैज़ साहब ने यह नज़्म पाकिस्तानी सैनिक शासन के ख़िलाफ़ लिखी थी। पर हमारे ताज़ातरीन हुक्मरानों को लगता रहा है कि यह कविता उनके शासन के खिलाफ ही लिखी गई है। जैसे चोर की दाढ़ी में तिनका है। शुरू में तो उन्होंने कानपुर आईआईटी में इस कविता को गाने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ अदालती केस भी दर्ज करा दिये। पर अब हुक्मरान स्वयं यही मानने लगे हैं कि "हम देखेंगे", पर बस देखते रहेंगे कि हम कुछ भी न देखें।

tirchhi nazar_2.PNG.jpeg

दिल्ली में दंगे हुए। हिन्दू मुसलमानों को और मुसलमान हिन्दुओं को मारते रहे। वाहन जलाते रहे। मकान और दुकानें लूटते रहे। केंद्र सरकार की नुमाइंदगी कर रही दिल्ली पुलिस बस देखती रही। यहां तक कि कोई और न देख पाये इसलिए खंबों पर लगे सीसीटीवी कैमरे भी तोड़ डाले। विचार वही था कि हम देखेंगे, और बस सिर्फ़ हम ही देखेंगे। कोई और न देख पाये। हम देखेंगे और ऐसे देखेंगे जैसे कि कुछ भी नहीं देख रहे। जब देख कर भी कुछ नहीं देखेंगे तो करेंगे कुछ भी नहीं। बस देखेंगे और हाईकमान को बतायेंगे, पर, पर करेंगे कुछ नहीं। हम देखते रहेंगे और ऑर्डर का इंतजार करेंगे। जब ऑर्डर मिलेगा तभी कुछ करेंगे वरना तब तक हम बस देखेंगे।

इससे पहले भी दिल्ली पुलिस "हम देखेंगे" की कायल थी। जेएनयू हास्टल में छात्रों पर हमला हुआ। ड़ंडे लेकर छात्र अछात्र वहां के छात्रों को पीटने पहुंचे। पुलिस देखती रही। पीटने वाले पीट पाट कर आराम से मेन गेट से निकल गये, और पुलिस बस देखती रही। पुलिस का काम बस देखने का था, वही बस "हम देखेंगे"। पुलिस ने बस देखा और ऊपर बताया। देखते देखते दो महीने से अधिक बीत गये। ऊपर से कोई ऑर्डर नहीं आया, अभी तक नहीं आया। इसलिए पुलिस ने कुछ किया नहीं, बस देखा। अपनी आंखों से देखा और देख कर सबकुछ अनदेखा कर दिया। 

देखने को तो पुलिस उस दिन भी बस देख रही थी जिस दिन गार्गी कालेज में फैस्ट के दौरान अंतिम दिन पुरूष छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे। पुलिस ने पहले तो तीन घंटे तक तदर्थ भाव से देखा और फिर तीन दिन तक ऑर्डर का इंतजार किया। तीन दिन बाद जब ऊपर से ऑर्डर आया तो एक्शन लिया। एक्शन भी बस देखने दिखाने लायक लिया। ठीक उसी प्रकार दिल्ली के दंगों में भी पुलिस पहले तो देखती रही और ऊपर बताती रही। ऊपर से ऑर्डर आया कि बस देखो, करो कुछ मत। पुलिस ने वही किया जो करने के लिए कहा गया था। यानी कुछ नहीं किया। तीन दिन तक कुछ नहीं किया। फिर तीन दिन बाद ऊपर से ऑर्डर आया कि अब कुछ करो, तो कुछ एक्शन शुरू किया। पहले आप तीन दिन तक देखेंगे और फिर तीन दिन बाद एक्शन लेंगे, वो भी अगर ऑर्डर आ गया तो।

तीन दिन पुलिस ने देखा तो प्रधानमंत्री जी भी तीन दिन तक बस देखते ही रहे। प्रधानमंत्री जी ने पूरे बहत्तर, नहीं नहीं सॉरी, सत्तर घंटे बाद ट्विटर पर ट्वीट किया। सत्तर घंटे तक देखा और फिर ट्वीट किया। प्रधानमंत्री जी ने ही नहीं, गृहमंत्री जी ने भी तीन दिन तक सिर्फ़ देखा। 

प्रधानमंत्री जी, जब कहीं भी दंगा होता है, अशांति होती है, तो देखते हैं और फिर ट्वीट करते हैं। आमतौर पर देखते ही, एकदम से ही ट्वीट करते हैं। ट्वीट करने से पहले यह ध्यान रखते हैं कि अशांत क्षेत्र में इंटरनेट ट्वीट करने से पहले बंद हो जाये और उसके बाद ट्वीट कर शांति की अपील करते हैं। इससे अशांत क्षेत्र के अलावा सारे विश्व को पता चल जाता है कि प्रधानमंत्री जी को शांति की कितनी चिंता है। इस बार प्रधानमंत्री जी ने कुछ अलग किया। क्योंकि इंटरनेट बंद नहीं किया था इसलिए तीन दिन बाद ट्वीट कर शांति की अपील की। तीन दिन तक वही हम देखेंगे, हम देख रहे हैं लेकिन हमें कुछ दिख ही नहीं रहा है।

पर यस बैंक को तो तीन साल तक देखते रहे। 2017 में आरबीआई ने यस बैंक को देखना शुरू कर दिया था। आरबीआई देखता रहा, और देखता रहा। तीन साल तक बस देखता रहा। कुछ नहीं किया बस देखते रहने का काम किया। सही ढंग से दिखाई दे सके इसके लिए यस बैंक के बोर्ड में अपना एक मेंम्बर भी बैठा दिया। 2017 से देखते देखते 2020 में जब लगा कि अब बहुत देख लिया है तब एक्शन लिया।

पर ऐसा नहीं है कि पुलिस और वित्त विभाग (आरबीआई) ही सिर्फ़ देखते रहने में विश्वास करते हैं, न्यायपालिका भी "हम देखेंगे" की कायल है। धारा 370 को सर्वोच्च न्यायालय पिछले अगस्त से देख रहा है और अभी तक देखे ही जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने राफेल मामले को गौर से देखा और घूर कर बताया कि यह देखने लायक तो छोड़ो, निगाह मारने लायक भी नहीं है। जब बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद देखना शुरू किया तो न्याय को न्याय नहीं बहुमत के हिसाब से देख लिया। न्यायाधीश भी न्याय जैसा मर्जी दें पर देख अवश्य रहे हैं। न्यायाधीश देख रहे होते हैं कि न्याय भले ही न्याय की कसौटी पर खरा न उतरे पर अन्य कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए। 

देखते रहने वालों का सिर्फ़ देखते रहना उन्हें फलीभूत भी हो रहा है, इनाम भी दिला रहा है। यकीन न हो तो इनाम पाने वालों से पूछ लीजिये, गोगोई जी से पूछ लीजिये। जैसे देखते रहना गगोई जी को फलीभूत हुआ है, वैसे ही सब देखते रहने वालों को फलीभूत हो, मेरी सरकार से यही प्रार्थना है।

इधर इधर यह सब कुछ हो ही रहा था कि कोरोना के कहर से देश पीड़ित होने लगा। जब मरीज बढ़ने लगे तो प्रधानमंत्री जी को याद आया कि देश को संबोधित किया जाना चाहिए। लेकिन फिर वही "हम देखेंगे", लेकिन जो करना है जनता करेगी। जनता कर्फ्यू करेगी, थाली-परात और घंटी बजायेगी। और सरकार कुछ करेगी भी कैसे। ऐसी किसी भी आपातकालीन परिस्थितियों के लिए रखा रिजर्व बैंक में रखा रिजर्व फंड तो सरकार ने पहले ही कारपोरेट घरानों को दे दिया है। बैंकों को, कम्पनियों को बेल आउट करने में, विदेश जाने में और विदेशियों के आने में सरकार पहले ही दिवालिया हो चुकी है। अब गरीबों को बेल आउट भी जनता ही करेगी। हम तो बस देखेंगे, और देख कर भी देखेंगे कि हमें कुछ भी दिखाई न दे। हमने तो फ़ैज़ की कविता से यही सीखा है।

हम देखेंगे...

लाज़िम है हम भी देखेंगे

हम यह भी देखेंगे कि

ये मात्र देखते रहने वाले

देख कर कुछ न करने वाले

बहुत दिनों तक

गद्दीनशीं न रह पायें

रहनुमा न बन पायें

हम देखेंगे......

लाज़िम है हम भी देखेंगे....।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Satire
Political satire
Delhi Violence
Delhi riots
Religion Politics
Former CJI Ranjan Gogoi
Narendra modi
BJP
Faiz Ahmed Faiz
delhi police
JNU

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद

जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

उर्दू पत्रकारिता : 200 सालों का सफ़र और चुनौतियां

तिरछी नज़र: सरकार-जी, बम केवल साइकिल में ही नहीं लगता

विज्ञापन की महिमा: अगर विज्ञापन न होते तो हमें विकास दिखाई ही न देता

फ़ैज़: हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है... आजिज़ी सीखी ग़रीबों की हिमायत सीखी

तिरछी नज़र: बजट इस साल का; बात पच्चीस साल की

…सब कुछ ठीक-ठाक है

तिरछी नज़र: ‘ज़िंदा लौट आए’ मतलब लौट के...

राय-शुमारी: आरएसएस के निशाने पर भारत की समूची गैर-वैदिक विरासत!, बौद्ध और सिख समुदाय पर भी हमला


बाकी खबरें

  • starbucks
    सोनाली कोल्हटकर
    युवा श्रमिक स्टारबक्स को कैसे लामबंद कर रहे हैं
    03 May 2022
    स्टारबक्स वर्कर्स यूनाइटेड अमेरिकी की प्रतिष्ठित कॉफी श्रृंखला हैं, जिसकी एक के बाद दूसरी शाखा में यूनियन बन रही है। कैलिफ़ोर्निया स्थित एक युवा कार्यकर्ता-संगठनकर्ता बताते हैं कि यह विजय अभियान सबसे…
  • प्रबीर पुरकायस्थ, टी के अंजलि
    कोयले की किल्लत और बिजली कटौती : संकट की असल वजह क्या है?
    03 May 2022
    मौजूदा संकट, बिजली क्षेत्र में सुधारों की बुनियादी विचारधारा का ही नतीजा है, जहां 400 गीगावाट की स्थापित बिजली क्षमता के होते हुए भी, इससे आधी शीर्ष मांग पूरी करना भी संभव नहीं हो रहा है।
  • आज का कार्टून
    मंज़र ऐसा ही ख़ुश नज़र आए...पसमंज़र की आग बुझ जाए: ईद मुबारक!
    03 May 2022
    कार्टूनिस्ट इरफ़ान के साथ हम सब इस ईद पर यही चाहते हैं कि मंज़र ऐसा ही ख़ुश नज़र आए...पसमंज़र की आग बुझ जाए।
  • विजय विनीत
    बनारस में हाहाकारः पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र में पीने के पानी के लिए सब बेहाल
    03 May 2022
    ग्राउंड रिपोर्टः  बनारस में पानी की आफत को देखते हुए एमएलसी आशुतोष सिन्हा ने मांग की है कि शुद्ध पेयजल की आपूर्ति के लिए बनारस शहर में आपातकाल घोषित किया जाए और पानी की विलासिता पर रोक लगाई जाए।…
  • अखिलेश अखिल
    ढहता लोकतंत्र : राजनीति का अपराधीकरण, लोकतंत्र में दाग़ियों को आरक्षण!
    03 May 2022
    आजादी के अमृतकाल की दुदुम्भी और शंखनाद से इतर जब राजनीति के अपराधीकरण पर हम नजर डालते हैं तो शर्म से सिर झुक जाता है। जो सदन कभी जनता के सवालों पर गूंजता था,एक से बढ़कर एक वक्ताओं के ऐतिहासिक भाषणों…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License