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पतंजलि आयुर्वेद को कुछ कठिन सवालों के जवाब देने की ज़रूरत 
बाबा रामदेव का कहना है कि उनकी कंपनी एफएमसीजी दिग्गज हिंदुस्तान यूनीलीवर को जल्द पछाड़ देगी। आयुर्वेद और ‘भारतीय ज्ञान’ के बल पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को ललकारने के उनके दिन अब चले गये।
भारत डोगरा
28 Aug 2021
पतंजलि आयुर्वेद को कुछ कठिन सवालों के जवाब देने की ज़रूरत 
प्रतीकात्मक उपयोग।

हाल ही में, योग-आयुर्वेद गुरु बाबा रामदेव ने कहा था कि उनके पतंजलि आयुर्वेद, जिसने हाल ही में रूचि सोया का अधिग्रहण किया था, जल्द ही फ़ास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) क्षेत्र में बाजार अग्रणी हिन्दुस्तान लीवर को पछाड़ देगी। उनका कहना था कि पतंजलि का पोर्टफोलियो इतना व्यापक है कि इस लक्ष्य को हासिल करने को लेकर कोई संदेह की गुंजाइश नहीं है। रूचि सोया सहित पतंजलि का कुल राजस्व 2020-21 में 30,000 करोड़ रूपये था। वहीँ हिन्दुस्तान लीवर का राजस्व लगभग 45,000 करोड़ रूपये है। रामदेव के अनुसार, रूचि सोया के उत्पाद पोर्टफोलियो का मार्केट साइज़ 5 लाख करोड़ रूपये मूल्य का है। अपने ही अंदाज में, उन्होंने दावा किया कि उनके उद्यम “चलते” नहीं बल्कि “दौड़” लगाते हैं और उनका लक्ष्य एक वैश्विक एफएमसीजी ब्रांड बनाने का है। 

बाबा रामदेव का सफर काफी ख़ास रहा है, जिनकी लोकप्रियता शुरूआती दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चुनौती देने के साथ शुरू हुई थी। उनकी बाबा के तौर पर प्रतिष्ठा और व्यावसायिक प्रभाव आपस में गुंथे हुए हैं, भले ही वे अपने साम्राज्य में किसी भी औपचारिक पद पर पदासीन नहीं हैं। उनके करीबी सहयोगी, आचार्य बालकृष्ण कंपनी के अध्यक्ष के पद पर विराजमान हैं और पतंजलि के 90% से अधिक के मालिकाने पर उनका अधिकार है। उनकी कुल संपत्ति के आकलन में अंतर हो सकता है, लेकिन रामदेव अकेले ही पतंजलि ब्रांड के लिए स्टार वैल्यू बने हुए हैं। उन्होंने अब कहना शुरू कर दिया है कि वे सन्यासियों को प्रशिक्षित करेंगे, जिनमें से कुछ कंपनी में पदभार ग्रहण करेंगे, जो कि अपनेआप में एक विशिष्ट रूप से रामदेव का विचार है। कोई इस हैरत में भी पड़ सकता है कि इन भगवा अधिकारियों को सिर्फ मार्केटिंग में ही प्रशिक्षित किया जायेगा या एकाउंटिंग में भी पारंगत बनाया जायेगा। पतंजलि के प्रदर्शन में कई चौंका देने वाले नतीजे छिपे हुए हैं, इसकी शुरुआत इसके राजस्व से होती है, जो 2010-11 में तकरीबन 100 करोड़ रुपये थी, जो 2016-17 में 100 गुना बढ़कर 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की हो गई थी।

कर्ज में डूबी रूचि सोया के पास बैंकों का 12,000 करोड़ रूपये से अधिक का बकाया था और बाजार में धांधली के कारण जांच के दायरे में थी। पतंजलि ने इसे पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से उधार लेकर हासिल किया था, जिनसे रूचि ने कर्ज ले रखा था। रूचि का कर्ज (तकरीबन 2,200 करोड़ रूपये) को भी बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाल दिया गया था, और उस दौरान या दिवालिया घोषित किये जाने की कार्यवाही का सामना कर रही थी। इसके बावजूद, विभिन्न समाचार पत्रों की खबरों के मुताबिक, “भारतीय बैंकों ने न सिर्फ पतंजलि द्वारा इसे अधिग्रहण किये जाने के लिए वित्तपोषण की व्यवस्था की, बल्कि इन्होने इसके इक्विटी कॉन्ट्रिब्यूशन को भी काफी हद तक वित्तपोषित किया।” देखते ही देखते, अधिग्रहण के बाद रूचि का सारा संकट भी छूमंतर हो गया, और इसके शेयर की कीमतें किसी ओलिंपियन से भी तेजी से उछालें मारने लगी। “हेल्दी फूड्स” क्षेत्र में प्रवेश करने संबंधी घोषणा के बाद इस गर्मी में एक महीने के भीतर ही इसके शेयरों के मूल्य में 65% का उछाल देखने को मिला। रूचि सोया ने पिछले वित्तीय वर्ष का अंत 16,300 करोड़ रूपये की आय के साथ किया था, जिसने पतंजलि को 30,000 करोड़ रूपये के पार पहुंचा दिया- जो कि 2010-11 के मुकाबले 300 गुना से अधिक की वृद्धि है। मार्च 2020 में तिमाही के समाप्त होने पर इसने 41.24 करोड़ रूपये का शुद्ध घाटा दर्ज किया था, और एक साल बाद इसी तिमाही में 314.33 करोड़ रूपये का मुनाफा दर्ज किया है।

यदि आपको इसमें कुछ अजीब लगता है, तो रामदेव के असंख्य समर्थक आपको बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दलाल कहने लगेंगे। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके गुरु खुद उसी रास्ते पर चल पड़े हैं। यह रामदेव के एक समय के सहयोगी राजीव दीक्षित थे, जिनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी, जिन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ अभियान चलाया था। रामदेव और उनके सहयोगियों के विपरीत, जिनका वर्तमान और अतीत कई सवालों के घेरे में हैं, दीक्षित ने कभी भी वैराग्य के साथ व्यापार को जोड़ने की कोशिश नहीं की। 

उनके और पतंजलि के खिलाफ जमीन हड़पने (हरियाणा, उत्तराखंड में), धोखाधड़ी और अन्य आरोपों से संबंधित कई मामले हैं, कि अधिकारियों ने उन्हें फेवर किया और छूट दी हैं, जैसे कि असम से यह आरोप है। अक्सर सार्वजनिक धन एवं संपत्तियां इसमें शामिल होती हैं, इसलिए सिर्फ गहन जांच के जरिये ही तथ्यों के बारे में स्पष्टता बनाई जा सकती है।

दुनियाभर में, स्वास्थ्य, पोषण, “वैलनेस” और पर्सनल केयर कंपनियों के दावों को कोई भी उनके बड़े-बड़े दावों के आधार पर नहीं स्वीकारता है। इसलिए, पतंजलि के खिलाफ इन आरोपों कि उसने खराब गुणवत्ता वाले आंवले के जूस की बिक्री की, जिसे आर्मी कैंटीन ने लेने से इंकार कर दिया था, या अवैध तरीके से पुरुष बच्चे होने के बारे में “आश्वस्त” करने के साथ “दिव्य पुत्रजीवक” की मार्केटिंग की, कचरे को नदियों में प्रवाहित कर दिया गया, या इंस्टेंट नूडल्स जैसे अस्वास्थ्यकर स्नैक्स की बिक्री करने जैसे आरोपों की जांच की आवश्यकता है। रामदेव के निकट सहयोगियों और परिवार के सदस्यों पर भी आरोप है कि उन्होंने कर्मचारियों और इसके निर्माण संयंत्रों के आस-पास रहने वाले लोगों की शिकायतों को कुचलने के लिए गैर-वाजिब तरीकों, धमकियों और हिंसा का इस्तेमाल किया है। 

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बाबा रामदेव पर एलोपैथिक दवा और डाक्टरों के खिलाफ झूठी बयानबाजी करने पर मुकदमा चलाने की धमकी दी थी। उनके द्वारा कोविड-19 के उपचार के रूप में कोरोनिल की उनकी गलत व्याख्या की व्यापक स्तर पर आलोचना हुई, और उन्हें रामदेव के जबरदस्त राजनीतिक दबदबे के बावजूद इस दावे को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। न्यायमूर्ति सीवी कार्तिकेयन ने मद्रास हाई कोर्ट में कोरोनिल नाम से ब्रांड का इस्तेमाल करने पर ट्रेडमार्क उल्लंघन के तौर पर 10 लाख रूपये का जुर्माना लगाते हुए कहा “पतंजलि आम लोगों के बीच में कोरोनावायरस को लेकर व्याप्त भय और दहशत का फायदा उठाकर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए इसे उपचार के रूप में प्रायोजित करने में जुटी हुई है, जबकि ‘कोरोनिल’ टेबलेट इसका कोई इलाज नहीं है बल्कि एक इम्युनिटी बूस्टर है।” 

बही खातों में निर्वाण को तलाशने का विचार या मार्किट शेयर को हथियाने के लिए आध्यात्मिकता के साथ संकीर्ण कॉर्पोरेट लक्ष्यों की जुगलबंदी करना दरअसल में आध्यात्मिकता का अपमान है। पतंजलि बिजनेस साम्राज्य की सफलता अंतहीन उपभोक्तावाद को हवा देने पर आधारित है, जो कि आध्यात्मिकता से ठीक उलट है। यहाँ तक कि जिस प्रकार के योग का रामदेव प्रचार करते है, वह इसके ‘इंस्टेंट नूडल’ के संस्करण जैसा ही है। खादी के रूप में भारत के पास पहले से ही कहीं अधिक तर्कसंगत विकल्प मौजूद था, जिसने पूंजीवाद को चुनौती दी और स्थाई आजीविका को संरक्षण देने का काम किया था। पतंजलि एवं अन्य ने समय-समय पर खादी के स्थान को हड़पने के प्रयास किये हैं, बिना इस बात को समझे या सम्मान दिए कि असल में यह किस का प्रतिनिधित्व करती है।

स्वास्थ्यकर एवं पौष्टिक उत्पादों के लिए ग्रासरूट स्तर पर आंदोलन को चलाने के लिए सतत कड़े परिश्रम की जरूरत पड़ती है। प्राकृतिक खेती, जैविक बागवानी, प्राकृतिक वनों के संरक्षण एवं नष्ट हो चुके जंगलों को पुनर्जीवित करने का काम कोई आसान कार्यभार नहीं है। स्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थो की निरंतर आपूर्ति को सुनिश्चित करने का काम एक दीर्घकालिक उद्देश्य है जिसे कॉर्पोरेट के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। आपूर्ति श्रृंखला पर हावी हो जाने के मकसद से हड़बड़ी में जुटाए गए उपभोक्ता उत्पादों से न तो गुणवत्ता के प्रति कोई जवाबदेही बचती है और न ही इसकी निरंतरता को बनाये रखने की कोई आवश्यकता पड़ती है। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ जिनमें ताड़ का तेल और हाइड्रोजनीकृत तेल होता है, उसका उत्पादन वैश्विक व्यापार की शर्तों के आधार पर होता है, जिस पर बहुराष्ट्रीय निगमों का वर्चस्व बना हुआ है। यह हमेशा से ही मूंगफली, सरसों, तिल और नारियल सहित अन्य पौष्टिक तिलहनों की कीमत पर आएगा, जिसमें स्थानीय किस्मों के साथ-साथ तेल निकालने के विभिन्न विधियाँ भी शामिल हैं।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि रामदेव एक आक्रामक व्यापार रणनीति एवं निहित-स्वार्थ के चतुर धंधेबाज के प्रतीक बन गए हैं, न कि स्वस्थ जीवन शैली के। वे अपने साम्राज्य के विस्तार के संकीर्ण लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उनका रिकॉर्ड सवालों के घेरे में है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस व्यक्ति ने अपने सफर की शुरुआत मौजूदा कॉर्पोरेट जगत के विकल्प को मुहैय्या कराने के नाम पर शुरू की हो, आज वह उसी मॉडल के अनुकरण करने के साथ इसका समापन कर रहा है और यह सब परंपरा के नाम पर हो रहा है।

लेखक एक पत्रकार, लेखक और कैंपेन टू सेव द अर्थ नाऊ के मानद संयोजक हैं। आपकी हालिया प्रकाशित पुस्तकों में मैन ओवर मशीन और ह्वेन द टू स्ट्रीम्स मेट शामिल हैं। व्यक्त किये गये विचार निजी हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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