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एक ट्रांसजेंडर महिला की मौत और लिंग पुनर्निधारण सर्जरी में सुधार करने की जरूरत
टीजी (ट्रांसजेंडर) अधिनियम की धारा 15 संबंधित सरकारों को ट्रांसजेंडर समुदाय को अलग-अलग तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश देती है।
प्रशांत पद्मनाभन
02 Aug 2021
एक ट्रांसजेंडर महिला की मौत और लिंग पुनर्निधारण सर्जरी में सुधार करने की जरूरत

केरल में "लिंग पुनर्निधारण सर्जरी (SRS)" के खराब होने के चलते एक ट्रांसजेंडर (परलैंगिक) महिला ने खुदकुशी कर ली। इस पृष्ठभूमि में प्रशांत पद्मनाभन, "ट्रांसजेंडर्स पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स) एक्ट, 2019" के अधूरे वायदे पर प्रकाश डाल रहे हैं और बता रहे हैं कि जब तक विधेयक में ट्रांसजेंडर्स के लिए उल्लेखित स्वास्थ्य प्रावधानों को ठीक ढंग से लागू नहीं किया जाएगा, विधेयक में किए वायदे सिर्फ़ वायदे बनकर रह जाएंगे।

28 साल की अन्नया कुमारी की विडंबनापूर्ण मौत हमारे समाज को जगाने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए। अन्नया ने असफल लिंग पुनर्निधारण सर्जरी (SRS) करवाई थी, इस दौरान वह बहुत दर्द से गुजरी। केरल सरकार अन्नया की मौत के लिए जिम्मेदार स्थितियों की जांच की घोषणा कर चुकी है। लेकिन यहां स्वास्थ्य और कानून से जुड़े जो मुद्दे सामने आए हैं, उनके ऊपर तुरंत राज्य और आम जनता को ध्यान देने की जरूरत है। 

ट्रांसजेंडर शख़्स के सार्वभौमिक मानवाधिकारों को "योग्यकार्ता सिद्धातों" में मान्यता दी गई है। इनमें जीवन का अधिकार, भेदभाव ना किए जाने का अधिकार, कानून के सामने बराबरी का अधिकार, निजता का अधिकार और स्वास्थ्य दुर्व्यवहार से सुरक्षा के साथ-साथ दूसरे अधिकार शामिल हैं। 2006 में इंडोनेशिया के योग्यकार्ता में एक अंतरराष्ट्रीय बैठक में तए किए गए यह सिद्धांत लैंगिक पहचान और लिंग निर्धारण के क्षेत्र में मानवाधिकारों का पैमाना बनाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इन सिद्धांतों का उल्लेख 2014 में अपने प्रसिद्ध NALSA फ़ैसले में किया था। इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा था कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के पास खुद के लिंग निर्धारण का अधिकार होता है (चाहे पुरुष, महिला या तीसरा लिंग)। कोर्ट ने संघ और राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे इनके साथ सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े नागरिकों की तरह व्यवहार करें और इनके लिए शिक्षा के साथ-साथ सार्वजनिक नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान करें। कोर्ट ने सरकारों को यह निर्देश भी दिए कि वे ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याओं, जैसे- डर, शर्म, सामाजिक दबाव, अवसाद, खुदकुशी की प्रवृत्ति या सामाजिक लांछन का भी समाधान करें।

यह भी कहा गया था कि किसी के लिंग को बदलने की शर्त के साथ किया गया SRS अनैतिक और गैरकानूनी है। सरकारों को निर्देश दिया गया कि ट्रांसजेंडर्स को हॉस्पिटल में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाए जाएं और उनके लिए सार्वजनिक व दूसरी सुविधाओं में अलग से व्यवस्था की जाए।

ट्रांसजेंडर समुदाय के मानवीय सम्मान को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों वाली संवैधानिक पीठ ने 2018 के पुट्टास्वामी फ़ैसले में भी मान्यता दी थी, जहां उनके निजता के अधिकार को माना गया था। 

क़ानून

"ट्रांसजेंडर्स पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स) एक्ट, 2019 (TG एक्ट) 10 जनवरी 2020 से लागू हो चुका है। TG एक्ट में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को ऐसे परिभाषित किया गया है "जिसका लिंग, उस व्यक्ति के जन्म लेने के ठीक बाद तय किए गए लिंग से नहीं मिलता, इसमें ट्रांस-पुरुष और ट्रांस-महिलाएं (चाहे वह व्यक्ति SRS या हार्मोन थेरेपी या लेज़र थेरेपी करवा चुका हो या नहीं), अलग-अलग लिंगों के गुणों वाले व्यक्ति या किन्नर, हिजड़ा, अरावानी या जोगता जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान रखने वाले व्यक्ति शामिल हैं।"

हालांकि यह परिभाषा SRS करवाए जाने से निरपेक्ष होकर ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिभाषित करती है, लेकिन TG एक्ट में यह प्रावधान है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति के तौर पर अपनी पहचान के प्रमाणपत्र को लेने के लिए, ट्रांसजेंडर जिलाधीश के पास जाए। अगर कोई व्यक्ति सर्जरी करवा लेता है, तो उन्हें जरूरी चिकित्सा दस्तावेज़ों को DM के सामने पेश कर "संशोधित प्रमाणपत्र" की जरूरत पड़ती है। 

अमस की ट्रांस वकील स्वाति बिधान बरुआ द्वारा TG एक्ट की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका द्वारा चुनौती दी गई है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक नोटिस भी जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट के सामने इस कानून को दी गई चुनौती में दूसरी चीजों के साथ कहा गया है कि TG एक्ट ट्रांसजेंडर लोगों द्वारा आत्म-पहचान के बजाए, "राज्य द्वारा पहचान" पर आधारित है।

TG कानून के मुताबिक़, जो भी व्यक्ति किसी भी ट्रांसजेंडर शख़्स की जिंदगी ख़तरे में डाल रहा है या उसका शारीरिक या यौन उत्पीड़न कर रहा है, उसे 6 महीने से 2 साल तक की जेल हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट के सामने लगाई गई याचिका कहती है कि कानून में उल्लेखित सजा बेहद कम है, खासकर तब जब सामान्य पुरुष या महिला लिंग वाले व्यक्ति के मामले में न्यूनतम 7 साल तक की सजा का प्रावधान है।

TG एक्ट की धारा 15 संबंधित सरकार को ट्रांसजेंडर समुदाय को अलग-अलग स्वास्थ्य सुविधाएं, जैसे- अलग HIV सीरो सर्विलांस केंद्र, लिंग पुनर्निधारण सर्जरी और हॉर्मोन थेरेपी केंद्र (जिनमें SRS के पहले और बाद में काउंसलिंग की सुविधा उपलब्ध हो) जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश देता है। यह सरकारों को निर्देश देता है कि वे लिंग पुनर्निधारण सर्जरी (SRS) के लिए स्वास्थ्य निर्देश पुस्तिका बनाएं, जो "वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ गाइडलाइन्स" पर आधारित हो; साथ ही ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित विशेष रोगों का इलाज़ करने वाले डॉक्टरों के पाठ्यक्रम और शोध का पुनर्परीक्षण करे; ट्रांसजेंडर शख़्स को अस्पतालों और दूसरी स्वास्थ्य सुविधा संस्थानों तक पहुंच उपलब्ध करवाए और ट्रांसजेंडर शख़्स से जुड़ी दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं के खर्च के साथ-साथ SRS के खर्च के लिए एक समग्र बीमा योजना से सुविधाएं उपलब्ध करवाए।

इस कानून की धारा 16 केंद्र सरकार को ट्रांसजेंडर लोगों के लिए एक राष्ट्रीय परिषद बनाने की अनिवार्यता करती है।

इस कानून के तहत जो बेहद प्रगतिशील और फायदेमंद प्रावधान किए गए हैं, यह उनमें से सिर्फ़ दो ही हैं। लेकिन इस कानून को लागू करने की प्रक्रिया बेहद ढीली रही है। 

मैदान पर धीमी शुरूआत

नवंबर, 2020 में बताया गया कि केंद्र सरकार द्वारा ट्रांसजेंडर लोगों के लिए एक समग्र योजना बनाई जा रही है, जिसमें दूसरी चीजों के साथ-साथ यह प्रस्ताव भी दिया जा रहा है कि हर राज्य में एक सरकारी अस्पताल ऐसा हो जो मुफ़्त में SRS और काउंसलिंग उपलब्ध करवाता हो। यह योजना अब भी अंतिम रूप में नहीं आ पाई है, ना ही सार्वजनिक की गई है। 

TG अधिनियम की धारा 16 के मुताबिक़, केंद्र सरकार ने सामाजिक न्याय मंत्री की अध्यक्षता में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए राष्ट्रीय परिषद का गठन कर दिया, जिसके संबंध में 21 अगस्त, 2020 को संसूचना जारी की गई थी। जैसा धारा 17 में भी उल्लेखित है, इस राष्ट्रीय परिषद का काम केंद्र सरकार को ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित योजनाओं के गठन, उनकी निगरानी और विकास में सुझाव देना, ट्रांसजेंडर लोगों से संबंधित सभी सार्वजनिक और निजी एजेंसियों की गतिविधियों का पुनर्परीक्षण और उनमें समन्वय बनाना, साथ ही ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याओं का समाधान करना है।

राष्ट्रीय परिषद अब तक अपनी एक राष्ट्रीय नीति नहीं बना पाई है, ना ही TG अधिनियम की धारा 15 में बताई गईं जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कोई योजना पेश नहीं कर पाई है।

अस्पतालों में SRS और काउंसलिंग से जुड़े योग्य चिकित्सा पेशेवरों की आपात जरूरत है। इसमें सिर्फ़ सर्जन और मनोचिकित्सक ही शामिल नहीं हैं, बल्कि शरीर विज्ञान, यूरोलॉजी, मनोवैज्ञान, एंडोक्राइनोलॉजी, नर्सिंग और सामाजिक काम से जुड़े पेशेवरों की भी जरूरत है।

मनोवैज्ञानिक पेशेवर आमतौर पर ट्रांसजेंडर समुदाय की यौनिकता को समलैंगिकता के साथ देखते हैं। इस गलत प्रक्रिया को ख़त्म करने और ट्रांसजेंडर समर्थित व्यवहार अपनाने के लिए उन्हें सही प्रशिक्षण की जरूरत है। जैसा TG अधिनियम की धारा 15(d) में बताया गया है, "वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ गाइडलाइन" एक ऐसा उपकरण हो सकता है।

आपात क़दम उठाने के सुझाव

जब तक SRS के लिए, राष्ट्रीय परिषद के दिशानिर्देशों के तहत एक आदर्श प्रक्रिया तय नहीं कर दी जाती, अलग-अलग राज्य सरकारों को इस ऑपरेशन के लिए अपनी प्रक्रिया बनानी होगी और SRS करने वाले हर अस्पताल को अपने मरीजों से 'जागरुक सहमति' लेने का आदेश देना होगा। 

'जागरुक सहमति' में यह चीजें ध्यान में रखना चाहिए- सर्जरी के लिए मरीज़ की शारीरिक अवस्था और मानसिक तैयारी, क्या मरीज़ के व्यवहारिक लक्ष्य हैं और जो हस्तक्षेप किए जा रहे हैं क्या वो उनकी सही जानकारी रखता है, मरीज़ को वैकल्पिक प्रक्रियाओं को भी समझाना जरूरी है, साथ ही SRS के जोखिम और इससे उपजने वाली जटिलताओं से भी मरीज़ वाकिफ़ होना चाहिए। हर मरीज़ के चिकित्सा रिकॉर्ड में यह चीजें शामिल होना चाहिए। इन चीजों का पालन ना करने पर संबंधित अस्पताल प्रशासन के खिलाफ़ गंभीर कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।

इसके लिए मजबूत प्रयासों और प्रशिक्षण की जरूरत होगी। लेकिन अगर हम चाहते हैं कि अन्नया कुमारी एलेक्स जैसी त्रासदियां दोबारा ना हों, तो ऐसा करना जरूरी है।

(प्रशांत पद्मनाभन सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

यह लेख मूलत: द लीफ़लेट में प्रकाशित हुआ था।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

A Transgender Woman’s Death, and the Need for Urgent Revamp of Sex Reassignment Surgery

Gender Right
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transgender rights
gender justice

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