NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
ट्रम्प बनाम बाइडेन: बड़े कारोबारियों ने अब तक के इस सबसे महंगे अमेरिकी चुनाव में भारी रक़म झोंक दी है
रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच एक हताश, गला काट जंग जारी है,और यह डॉलर से तय होना है कि इस युद्ध में जीत किसे मिलेगी  
सुबोध वर्मा
30 Oct 2020
ट्रम्प बनाम बाइडेन

अमेरिका में चल रहा अमेरिकी राष्ट्रपति-डोनाल्ड ट्रम्प और उन्हें चुनौती देने वाले डेमोक्रेट नेता-जो बाइडेन के बीच के तीखे युद्ध वाला चुनावी अभियान मुद्रास्फीति को समायोजित करने वाले शब्दों में कहा जाये,तो अबतक का सबसा महंगा चुनावी अभियान होता जा रहा है। इसके अलावा,सीनेट और प्रतिनिधि सभा के चुनाव भी हो रहे हैं। जब अमेरिका पर शासन करने वाले इन त्रिस्तरीय निकायों पर होने वाले ख़र्चों को एक साथ रखकर देखते हैं, तो यह ख़र्च होश फ़ाख़्ता कर देने वाला दिखायी पड़ता है। आंशिक रूप से ऐसा इसलिए,क्योंकि महामारी के प्रकोप के चलते सार्वजनिक गतिविधि कुछ हद तक प्रतिबंधित है। लेकिन,मुख्य रूप से यह अमेरिकी समाज और इसके सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग के बीच पैदा हो गयी उस गहरी दरार से संचालित है कि ट्रम्प के विभाजनकारी और ढीठ प्रकृति के अभिजात्य शासन के चार वर्षों के बाद आने वाले सालों में इस देश को आख़िर किस तरह चलाया जाना चाहिए।

वाशिंगटन स्थित वक़ालत के पेशे से जुड़े एक समूह-सेंटर फ़ॉर रिस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स (CRP) की ओर से किये गये विश्लेषण के मुताबिक़, 26 अक्टूबर तक बाइडेन ने 938 मिलियन डॉलर पहले ही ख़र्च कर डाले हैं,जबकि ट्रम्प ने 596 मिलियन डॉलर ख़र्च किये हैं। 3 नवंबर को होने वाले इस चुनाव में अभी एक सप्ताह बाक़ी है और आख़िरी तौर पर होने वाला ख़र्च के आंकड़े चुनाव के बाद ही उपलब्ध हो पायेंगे। इसमें निगमों और दान देने वाले बड़े दाताओं की तरफ़ से किये जाने वाले वे "बाहरी ख़र्च" और "काले धन" शामिल नहीं हैं,जो किसी ख़ास उम्मीदवार के समर्थन में स्वतंत्र रूप से ख़र्च किये जाते हैं। 2010 में सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले के बाद से इन पैसों के विवरण को जमा करने की ज़रूरत नहीं रह गयी है,जब तक वे आधिकारिक अभियानों के साथ समायोजित नहीं होते हों।

राष्ट्रपति अभियान को लेकर उन सभी अन्य डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों द्वारा 2.16 बिलियन डॉलर ख़र्च किये गये, जो पार्टी की तरफ़ से राष्ट्रपति पद के लिए खड़ा किये जाने की उम्मीदवारी से बाहर हो गये या फिर हार गये। अगर आख़िरी दो उम्मीदवारों के लिए किये गये ख़र्च में इस रक़म को जोड़ दिया जाय,तो कुल ख़र्च 3.69 बिलियन डॉलर का हो जाता है,जो कि एक रिकॉर्ड है। (नीचे चार्ट देखें)

सदन और सीनेट के चुनाव में भी बड़े पैमाने पर पैसे ख़र्च किये जा रहे हैं। सीआरपी की तरफ़ से जुटाये गये आंकड़ों के मुताबिक़, 435 सदस्य वाले सदन के चुनावों में 1.7 बिलियन डॉलर ख़र्च किये गये हैं, जबकि 100 सदस्य वाले सीनेट के चुनावों में 1.5 बिलियन डॉलर की खपत हुई है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारी के साथ-साथ डेमोक्रेट ख़र्च के मामले में हाउस और सीनेट दोनों ही चुनावों में रिपब्लिकन से कहीं आगे बढ़कर ख़र्च कर रहे हैं।

राष्ट्रपति चुनाव पर होने वाले ख़र्चों के साथ अगर इन संघीय चुनावों के ख़र्चों को भी जोड़ दिया जाय,तो तक़रीबन 6.9 बिलियन डॉलर ख़र्च किये जा चुके हैं। सीआरपी का अनुमान है कि चुनाव के अंत तक,मौजूदा चुनावी चक्र में तक़रीबन 11 बिलियन डॉलर का ख़र्च हो चुका होगा, जो कि मुद्रास्फीति के समायोजन के बाद किसी भी अन्य अमेरिकी चुनावी अभियानों में होने वाले ख़र्चों से कहीं ज़्यादा है। मसलन, 2016 के चुनाव (ट्रम्प बनाम हिलेरी क्लिंटन) में 7 बिलियन डॉलर ख़र्च किये गये थे,जबकि 2012 के चुनाव (ओबामा बनाम मिट रोमनी) में मुद्रास्फीति को समायोजित किये जाने के बाद 7.1 बिलियन डॉलर का ख़र्च आया था।

पैसे आख़िर आ कहां से रहे हैं ?

अनुमानित 1 बिलियन डॉलर के "बाहरी धन" के अलावे, जिन पैसों को इन अभियानों (दोनों तरफ़) में लगाया गया है, उसके मद्देनज़र सीआरपी ने उन उद्योग / क्षेत्रों का विश्लेषण किया है,जिन्होंने ट्रम्प या बाइडेन को बड़े दान दिये हैं (कुछ बड़े दानकर्ताओं को दर्शाने वाले चार्ट नीचे देखें)। ये सम्बन्धित अभियानों में दिखाये गये सांविधिक संघीय फ़ाइलिंग के हिस्से हैं। बाइडेन को मुख्य रूप से वित्त / बीमा / रियल एस्टेट, और संचार / इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों और वकीलों तथा लॉबी करने वालों की तरफ़ से भी पैसे मिले हैं। दूसरी ओर ट्रम्प को स्वास्थ्य, ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन, निर्माण, कृषि व्यवसाय और परिवहन उद्योगों की तरफ़ से फ़ायदा पहुंचाया गया है। इस बात पर ग़ौर करें कि ये सभी उद्योग और क्षेत्र दोनों ही पक्षों को दान करते हैं।

ट्रम्प (155 मिलियन डॉलर) और बाइडेन (117 मिलियन डॉलर) के बीच विभाजित सभी क्षेत्रों / उद्योगों की एक विस्तृत श्रृंखला में फैले अन्य अपेक्षाकृत छोटे-छोटे दान देने वालों ने 272 मिलियन डॉलर का अंशदान दिया है। बाइडेन के आधिकारिक युद्ध कोष का 61% हिस्सा बड़े अंशदानों वाला है। यह अंशदान कुल 581 मिलियन डॉलर का है। ट्रम्प के लिए ऐसे बड़े दान 55% यानी 326 मिलियन डॉलर का है।

जैसा कि ऊपर दी गई तालिका से स्पष्ट होता है कि दोनों ही पक्षों को पारंपरिक तौर पर अलग-अलग अंशदान देने वालो के साथ-साथ बड़े-बड़े कारोबार से भी पैसे मिल रहे हैं। नई अर्थव्यवस्था के कारोबार (जैसे कि तकनीकी क्षेत्र और वित्तीय क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां) बाइडेन को पसंद करते हैं, जबकि ज़्यादातर दूसरे क्षेत्र ट्रम्प के पीछे खड़े हैं।

टीवी / ऑनलाइन विज्ञापनों पर रिकॉर्ड ख़र्च

वेस्लीयन मीडिया प्रोजेक्ट द्वारा विश्लेषित आंकड़ों के मुताबिक़, टीवी और ऑनलाइन विज्ञापन पर भी इस साल रिकॉर्ड ख़र्च किये गये हैं। 11 अक्टूबर तक तक़रीबन 4.5 मिलियन विज्ञापनों का प्रसारण किया गया है, जिस पर लगभग 2.5 बिलियन डॉलर का ख़र्च आया है। इनमें से लगभग 2 मिलियन प्रसारण तो अकेले राष्ट्रपति के लिए होने वाले चुनावों (2016 के चुनाव के मुक़ाबले 147% ज़्यादा) पर हुए हैं,जिस पर 1.3 बिलियन डॉलर का अनुमानित ख़र्च किया गया है, जबकि बाक़ी ख़र्च हाउस और सीनेट चुनाव पर हुआ है।

जहां तक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर हुए ख़र्च का सवाल है,तो पीएसी और एकल उम्मीदवार सुपर पीएसी ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों पर जनवरी 2019 से फ़ेसबुक और गूगल पर 615 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त ख़र्च किया है।

यह निश्चित रूप से आधिकारिक अंशदान से लिये गये आंकड़े हैं, जिसे रिकॉर्ड किया गया है और जिसका विवरण दर्ज किया जाता है। इस दर्ज हुई राशि से कहीं बड़ी ऐसी राशि है,जो दर्ज नहीं हुई है, जो सुपर-पीएसी (राजनीतिक कार्य समितियों) के पास गुप्त रूप से आती है।सुपर पीएसी ऐसे समूह होते हैं,जो फ़ंड जुटाते हैं और जो ज़्यादातर टीवी और ऑनलाइन विज्ञापनों के लिए धन लगाते हैं, और फ़ंड की उगाही करते हैं, आदि।

3 नवंबर को पूरी दुनिया को यह पता चल जायेगा कि ट्रम्प राष्ट्रपति पद पर बने रहेंगे या फिर उनकी जगह बाइडेन ले लेंगे। लेकिन, इस विचार पर ग़ौर करने की ज़रूरत है कि आख़िर यह कैसी लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया है, जिसमें पूरी दुनिया में घोर मंदी में होने के बावजूद इस तरह के ख़र्च किये जा रहे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Trump Vs Biden: Big Businesses Pump in Big Money in Costliest Ever US Election

Donald Trump
Donald Trump Election Funding
US Election Spending
Joe Biden Election Campaign
US Presidential Election 2020

Related Stories

ईरान नाभिकीय सौदे में दोबारा प्राण फूंकना मुमकिन तो है पर यह आसान नहीं होगा

एक साल पहले हुए कैपिटॉल दंगे ने अमेरिका को किस तरह बदला या बदलने में नाकाम रहा

2021 : चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका की युद्ध की धमकियों का साल

दुनिया क्यूबा के साथ खड़ी है

रिपोर्ट के मुताबिक सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की जलवायु योजनायें पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा कर पाने में विफल रही हैं 

अमेरिका के ईरान जाने के रास्ते में कंटीली झाड़ियां 

मोदी अकेले नहीं :  सभी ‘दक्षिण-पंथी सत्तावादी’ कोविड-19 से निपटने में बुरी तरह विफल साबित हुए

रूस और चीन के साथ संपर्क बनाए रखना चाहते हैं बाइडेन

यूएई से ट्रंप प्रशासन के हथियारों की बिक्री के सौदे को आगे बढ़ाने के बाइडन के फ़ैसले की कड़ी आलोचना

अमेरिका ने हौथी को 'आतंकवाद' की सूची से हटाया, विद्रोही यमनी समूह से बातचीत करने का आग्रह किया


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License