NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
फ़ुटपाथ : ट्रंप, मोदी, आदित्यनाथ और इस्लामोफ़ोबिया
अगर आप ग़ौर करें, तो पता चलेगा कि ये तीनों नेता सत्ता के जिस पायदान पर आज जहां मौजूद हैं, वहां तक उन्हें पहुंचाने में इस्लामोफ़ोबिया का अच्छा-ख़ासा रोल रहा है।
अजय सिंह
22 Jan 2020
Trum, Modi & Yogi

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के एक राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ में क्या समानता है? एक समानता, जो सीधे तौर पर मुखर है, वह है: इन तीनों उग्र दक्षिणपंथी नेताओं का इस्लामोफ़ोबिया से संचालित होना।

इस्लामोफ़ोबिया, यानी, इस्लाम व मुसलमान से तीखी नफ़रत व ख़ौफ़ का भाव। अगर आप ग़ौर करें, तो पता चलेगा कि ये तीनों नेता सत्ता के जिस पायदान पर आज जहां मौजूद हैं, वहां तक उन्हें पहुंचाने में इस्लामोफ़ोबिया का अच्छा-ख़ासा रोल रहा है।

आपने देखा होगा, 3 जनवरी 2020 को डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर अमेरिकी ड्रोन विमानों ने इराक़ की राजधानी बग़दाद के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर ईरान की सेना के सर्वोच्च अधिकारी का़सिम सुलेमानी के काफ़िले पर हमला किया और उन्हें मार डाला। क़ासिम सुलेमानी इराक़ के सरकारी दौरे पर थे और हवाई अड्डे से बाहर निकल कर जा रहे थे, तभी उन पर जानलेवा हमला हुआ। अक्षम्य अपराध की यह घटना सारे अंतर्राष्ट्रीय न्याय सिद्धांत व क़ानून के खि़लाफ़ थी। यह दो देशों (इराक़ और ईरान) पर हमला था, जिसके चलते तीसरा विश्वयुद्ध छिड़ने की गहरी आशंका पैदा हो गयी थी।

लेकिन डोनाल्ड ट्रंप को अपनी इस अपराधपूर्ण कार्रवाई पर ज़रा भी पछतावा या अफ़सोस नहीं था। उन्होंने पूरी बेशर्मी से इस हत्या को सही ठहराते हुए क़ासिम सुलेमानी पर झूठे, बेबुनियाद, वाहियात आरोप लगाये। ऐसे आरोप हर जगह मुसलमानों पर—सिर्फ़ मुसलमानों पर—लगाये जाते रहे हैं। ट्रंप ने क़ासिम को ‘मुस्लिम जेहादी’, ‘आतंकवादी’, ‘आतंकवादियों का सरगना’, ‘कई आतंकवादी घटनाओं में शामिल’ बताया और कहा कि ऐसे व्यक्ति का ‘सफ़ाया ज़रूरी था’। ट्रंप की पूरी भाषा इस्लाम व मुसलमान के प्रति गहरी हिंसा और नफ़रत से भरी हुई थी। क़ासिम की हत्या सिर्फ़ इसलिए की गयी कि वह मुसलमान थे, प्रभावशाली नेता थे, फ़िलिस्तीनी जनता के हमदर्द थे, अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोधी थे, और ऐसे मुस्लिम देश से थे, जिसे अमेरिका तबाह कर देना चाहता है।

अब अपने देश की ओर लौटें, जहां केंद्र में हिंदुत्ववादी भाजपा की सरकार है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। मोदी किसी व्यक्ति के कपड़े या पहनावे से जान लेते हैं कि हिंसा करनेवाली/करनेवाला कौन है! नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) का विरोध कर रहे आंदोलनकारियों के बारे में पिछले दिनों अपने एक भाषण में उन्होंने कहा कि आंदोलनकारियों के कपड़ों से पता चल जाता है कि कौन लोग सीएए का विरोध कर रही/रहे हैं। जाहिर है, उनका साफ़ इशारा मुसलमानों की ओर था-हिजाब/बुरक़ा वाली औरतें, सर पर गोल टोपी, लुंगी, ऊंचे टखने वाला पाजामा पहने हुए लोग और दाढ़ी वाले लोग। ऐसा करके मोदी एक ख़ास समुदाय को चिह्नित करना और उसे ‘दुष्ट’ के रूप में पेश करना चाहते हैं। यह प्रधानमंत्री की मुस्लिम-विरोधी मानसिकता और मुसलमानों से नफ़रत की भावना को प्रतिबिंबित करता है। मोदी जानबूझकर इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर देना चाहते हैं कि इस आंदोलन में सभी समुदायों के लोग शामिल हैं। यह समझ लेना चाहिए कि जो समुदाय जितना ज़्यादा उत्पीड़ित होगा, विरोध आंदोलन में उसकी भागीदारी उतनी ही ज़्यादा रहेगी।

उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने, जिनकी मुस्लिम-विरोधी हिंसा व नफ़रत का पुराना इतिहास है, राज्य में नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध करनेवाले आंदोलनकारियों पर तो जैसे कहर बरपा कर दिया। उन्होंने खुलेआम कहा कि आंदोलनकारियों से हम बदला लेंगे। यहां भी साफ़ इशारा मुसलमानों की ओर था। एक मुख्यमंत्री अपनी ही जनता से बदला लेने की बात कर रहा है! पुलिस को बेलगाम, खुली छूट दे दी गयी कि वह जो चाहे करे। आदित्यनाथ सरकार ने मुसलमानों के खि़लाफ़ एक प्रकार से युद्ध की घोषणा कर दी।

राज्य में 19 दिसंबर से 30 दिसंबर 2019 के बीच आंदोलन के दौरान कम-से-कम 23 लोग मारे गये। सब-के-सब मुसलमान, सब-के-सब नौजवान-इनमें आठ साल का बच्चा भी था। जो लोग मारे गये, उनके सर, आंख, गला, सीना व पेट को निशाना बना कर गोलियां चलायी गयीं। मारे गये लोगों के परिवारों का कहना है कि ये हत्याएं पुलिस ने की।

उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 5 जनवरी 2020 को लखनऊ में सार्वजनिक तौर पर कहा कि जो लोग मारे गये हैं, वे सब-के-सब पुलिस की गोलियों से मारे गये हैं। जो ख़बरें, तस्वीरें व वीडियो जारी हुए हैं, उनसे पता चलता है कि मुसलमानों को चुन-चुन कर निशाना बनाने में पुलिस ने बर्बरता और पाशविकता की सारी हदें पार कर दीं। नागरिकता संशोधन क़ानून-विरोधी आंदोलन को हिंसा का जामा पहनाने और उसे बदनाम करने में उत्तर प्रदेश सरकार व पुलिस ने पूरा ज़ोर लगा दिया।

आंदोलन के दौरान राज्य में क़रीब 1200 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और 5,558 लोगों को निवारक नज़रबंदी में रखा गया। इनमें 80 प्रतिशत से ज़्यादा मुसलमान हैं। पूरे राज्य में पुलिस ने मुसलमानों की बस्तियों और घरों में जो भयानक विनाश व हिंसा की, उसकी दास्तान अलग है। यह इस्लामोफ़ोबिया का ख़ौफ़नाक रूप था।

(लेखक वरिष्ठ कवि और स्वतंत्र पत्रकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

Narendra modi
Yogi Adityanath
Donald Trump
Islamophobia
islamophobia and right wing party
India
America

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़े के पास पहुँची आप पार्टी से लेकर मोदी की ‘भगवा टोपी’ तक

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस से लेकर पंजाब के नए राजनीतिक युग तक

उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License