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भारत
राजनीति
ट्रंप दिनभर - अहमदाबाद से लेकर आगरा तक
ट्रंप की यात्रा को ख़ास दिखाने के लिए सरकार से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया जी- जान से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस यात्रा में क्या वाकई कुछ ख़ास है?
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
24 Feb 2020
trump in india

एक तरफ राजधानी दिल्ली जल रही थी तो दूसरी तरफ हमारे प्रधानमंत्री और हमारी तथाकथित मेनस्ट्रीम मीडिया अमेरिका के राष्ट्रपति के स्वागत में जी जान से जुटे हुए थे। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 24 फरवरी की दोपहर से अहमदाबाद से भारत की अपनी 36 घंटे की यात्रा की शुरुआत कर दी। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हमारी सरकार द्वारा ट्रंप के स्वागत के लिए तकरीबन 100 करोड़ रूपये से अधिक खर्च किये गए हैं।

जानकरों का कहना है इस तरह के तामझाम से ऐसा लगता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की मदद के लिए तड़पा जा रहा है। ट्रंप को चमक- दमक में फंसाने के लिए अहमदाबाद की गरीबी छिपाई गयी है। सड़कों के किनारे दीवारें बनाई गयी हैं। जबकि खुद संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में तकरीबन चार करोड़ से ज्यादा गरीब लोग रहते हैं और अमेरिका आर्थिक असमानता के मामलें में दुनिया का सबसे खराब मुल्क हैं। बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यह पहली भारत यात्रा है। बीते 61 साल में ट्रम्प भारत आने वाले 7वें अमेरिकी राष्ट्रपति हैं।

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अहमदाबाद के साबरमती के करीब अमेरिकी राष्ट्रपति का स्वागत करने के लिए शोला भागवत स्कूल के बच्चे कतारों में खड़े में थे। इन बच्चों के हाथों में भारत और अमेरिका का झंडा था। इस नजारे की आलोचना करते हुए कई जानकारों ने कहा बच्चों को कूटनीति के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इन्हें भारत और अमेरिका की वास्तविक स्थिति का ठीक ढंग से पता भी नहीं है। यह ऐसे है जैसे बच्चे कोई निर्जीव वस्तु हों और उनका प्रदर्शनी में इस्तेमाल किया जा रहा हो।

साबरमती आश्रम के आगंतुक रजिस्टर में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपना संदेश लिखा। ट्रम्प ने बड़े अक्षरों में लिखा कि "टू माई ग्रेट फ्रेंड प्राइम मिनिस्टर मोदी, थैंक यू फॉर वंडरफुल विजिट।" यहाँ पर ट्रंप ने गाँधी जी का नाम तक नहीं लिखा। इसके बाद लोगों ने ट्रंप के सन्देश और बराक ओबामा के साबरमती आगुंतक रजिस्टर में लिखे संदेश की तुलना शुरू कर दी। बराक ओबामा ने साबरमती आश्रम के अपने यात्रा के दौरान साल 2015 में लिखा था कि “गांधी की आत्मा भारत में आज भी जीवित है। और यह दुनिया को मिला एक नायाब तोहफ़ा है। हम हमेशा प्रेम और शांति की उनकी भावना के साथ जिएं, यह भावना सभी लोगों और देशों में बनी रहे।”

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आगुन्तक रजिस्टर में ट्रंप की लिखी गयी बात पर जानकारों ने कहा कि यह बात सही है कि आज की दुनिया में देशों के बीच आर्थिक लेन-देन केंद्र में है। फिर भी ऐतिहासिक विरासत ही किसी देश का पहचान गढ़ती हैं। इन ऐतिहासिक विरासत के सहारे ही दुनिया के लोग किसी देश को जानते हैं। गाँधी भारत की ऐतिहासिक विरासत हैं। साबरमती आश्रम जाकर गाँधी को भूल जाना आर्थिक लेन - देन के तौर पर भले ही बड़ी बात न हो। लेकिन इतिहास के माध्यम से इस बड़े अवसर पर जिस तरह से पूरी दुनिया को सन्देश दिया जा सकता था, वह नहीं दिया जा सका। इसी तरह से एक विचारहीन नेता पूरी दुनिया को दिशाहीन कर देता है।

इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम पहुंचे। यहाँ पर बहुत बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ का इंतज़ाम किया गया था। वही भीड़ जिसके बारें में न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि ट्रंप और मोदी को लोगों की भीड़ पसंद है। अमेरिका ने मोदी के लिए भीड़ का इस्तेमाल किया था। ठीक इसी तरह मोदी, ट्रंप के लिए भीड़ का इस्तेमाल कर रहे हैं। ‘नमस्ते ट्रम्प’ कार्यक्रम में 27 मिनट का संबोधन दिया। बहुत सारी औपचारिक बातचीतों के बीच में ट्रंप ने कुछ ऐसी बातें भी कहें जिसपर ध्यान दिया जाना चाहिए :

- हम दुनिया के सबसे बेहतरीन हेलिकॉप्टर, रॉकेट, फाइटर प्लेन बनाते हैं। 3 अरब डॉलर मूल्य के हेलिकॉप्टर हम भारत की सेना को देने जा रहे हैं। भारत हमारा बड़ा डिफेंस पार्टनर है। हम दोनों देश एकसाथ भारतीय-प्रशांत क्षेत्र में संप्रभुता को बनाए रखने का काम करेंगे। हम इस्लामिक टेररिज्म खत्म करने के लिए काम कर रहे हैं। आज आईएसआईएस का खात्मा हो चुका है। हमने उसे सौ फीसदी नेस्तनाबूद कर दिया है।

बड़े ध्यान से समझा जाए तो ट्रंप का असल मकसद भी डिफेन्स डील ही है। दुनिया में सऊदी अरब के बाद हथियारों की खरीद करने वाला भारत दूसरा सबसे बड़ा देश है। 2016 में अमेरिका ने भारत को डिफेंस पार्टनर का दर्जा दिया। पिछले 12 साल में भारत ने अमेरिका से 18 अरब डॉलर के हथियार खरीदे हैं। जानकार ऐसे मानते हैं कि मोदी सरकार अपने पिछले कार्यकाल में ही देश की सम्प्रुभता को अमेरिका के हाथों गिरवी रख चुकी है। भारत, अमेरिकी दबाव में आकर 2018 में ही 'कम्युनिकेशन कंपेटिबिलिटी ऐंड सिक्युरिटी अग्रीमेंट' (कॉमकासा) पर हस्ताक्षर कर चुका है।

कॉमकासा का समझौता भारत के संप्रभुता के लिए खतरनाक है। इस पर दस्तखत करने के बाद अमेरिका अपनी कम्पनियों द्वारा सप्लाई किए गए हथियारों का समय समय पर निरीक्षण करने का हकदार हो गया है यानी वह जब चाहे मांग कर सकता है कि जिन हथियारों पर अमेरिकी संचार उपकरण लगे हैं वह उनकी जांच करेगा। यह समझौता दोनों देशों के सैन्य बलों के संचार नैटवर्कों का आपस में जोड़ देगा भारत की कोई तकनीक सीक्रेट नही रह गयी है। इसके अलावा लेमोआ यानी लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरंडम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement :LEMOA) पर भी मोदी सरकार अमेरिका के आगे 2016 मे ही घुटने टेक चुकी हैं।

लेमाओ समझौते के प्रावधानों के तहत अमरीका जब चाहे तब हिंदुस्तान के अंदर अपनी फौजों को तैनात कर सकता है, अमरीकी सशस्त्र बलों को भारतीय नौसैनिक बंदरगाहों तथा हवाई अड्डो का अपने युद्ध-पोतों, जंगी जहाजों की सर्विसिंग, तेल भराई तथा उनके रख-रखाव के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत इस समझौते के तहत दी गयी है।

-ट्रंप ने कहा- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मैं कारोबारी रिश्ते बढ़ाने पर भी चर्चा करेंगे। हम ट्रेड डील को लेकर शुरुआती बातचीत के दौर में हैं। मुझे उम्मीद है कि हम एक अच्छी डील को आकार दे सकते हैं। हालांकि, वे बहुत टफ नेगोशिएटर हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार 40 फीसदी बढ़ा है। भारत अमेरिका के लिए सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट है।

अमेरिका और भारत के बीच का ट्रेड डील की सबसे बड़ा कांटा टैरिफ की दरें है। ट्रंप यह चाहते हैं कि भारत अपना बाजार खोले यानी टैरिफ चार्ज को कम करे। इसलिए ट्रंप विश्व व्यापर संगठन में भारत को विकसित देश घोषित करने की चर्चा भी कर रहे हैं। 2018 में ट्रम्प हुकूमत ने भारत सहित कई विकासशील देशों से स्टील और एल्यूमीनियम के आयात पर एकतरफा टैरिफ लागू किया। रिपोर्ट्स बताती हैं कि अमेरिकी कार्रवाई की वजह से 12 महीनों में भारत के इस्पात उत्पादों का निर्यात 46% तक गिर गया।

अमेरिका ने बीमा में और बैंकिंग जैसे कई क्षेत्रों में भारत की निवेश सीमाओं पर भी निशाना साधा है। बीमा में निवेश के जरिये विदेशी मालिकाना हक 49% और बैंकिंग में 74% तक हासिल किया जा सकता है। ट्रम्प मीडिया और मल्टी-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा को हटाना चाहते हैं। भारत की ऐसी सभी औद्योगिक नीतियों को अमेरिका अपने पक्ष में मोड़ना चाहता है। अगर ऐसा होता है तो भारत को मिलेगा कम खोना अधिक पड़ेगा।

इसके बाद शाम ढलते ढलते ट्रंप अपने परिवार के साथ आगरा पहुंचे। उन्होंने यहां ताजमहल का दीदार किया। ट्रम्प ने विजिटर बुक में लिखा- इमारत समय से परे है। यह भारत की समृद्ध संस्कृति का प्रतीक है। ट्रंप की यात्रा को खास बनाने के लिए एयरपोर्ट से ताजमहल तक के रास्ते में 21 जगहों पर 3000 कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी।

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चलते - चलते आप जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र की इस यात्रा पर एक फेसबुक पोस्ट पढ़िए। '' ट्रंप अभी साबरमती आश्रम में गांधी जी का चरखा चला रहे हैं। फिर वह मुगलों द्वारा बनवाए गए ताजमहल देखेंगे। लेकिन दक्षिणपंथी विचारधारा में सने हुए लोग सुबह से शाम तक सबसे ज्यादा गाली गांधी और मुगलों को ही देते हैं। ये लोग कभी भी पुष्पक विमान का दर्शन कराने किसी विदेशी मेहमान को नहीं ले जाते। मोदी जब विदेश में होते तो बुद्ध और गांधी को सबसे ज्यादा कोट करते हैं। वह आचार्य मनु या सावरकर को कोट नहीं करते। दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग को पता है कि विदेशी लोगों के सामने अगर पुष्पक विमान, आचार्य मनु और सावरकर का नाम लेंगे तो वे लोग हंस देंगे। इसलिए मजबूरी में ही सही इन्हे बुद्ध, गांधी और ताजमहल का सहारा लेना पड़ता है। तो ये है दक्षिणपंथियों की सांस्कृतिक दरिद्रता या अंग्रेजी में कहें तो cultural poverty.'

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Sabarmati Ashram

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