NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
मोदी के कृषि ढांचे में निवेश के पीछे का सच
कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले बैंक क़र्ज़ में ठहराव बना हुआ है और कृषि मंत्रालय का बड़ा ख़र्च नक़द हस्तांतरण, बीमा प्रीमियम आदि पर हो रहा है।
सुबोध वर्मा
14 Aug 2020
Translated by महेश कुमार
कृषि
Image Courtesy: The Tribune

9 अगस्त को, प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि जगत के लिए एक नई 'योजना' की घोषणा की है, जिसके तहत अगले 10 वर्षों तक किसान संगठनों और उद्यमियों को कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउस, ई-मार्केटिंग व्यवस्था आदि स्थापित करने के लिए 1 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज़ दिया जाएगा। इस योजना के संदर्भ के बारे में सामान्य रूप से लफ़्फ़ाजी करते हुए बताया गया कि यह किसानों को "उनकी उपज के लिए अधिक मूल्य", "वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा करने की भारत की क्षमता में वृद्धि" करेगी और "कृषि क्षेत्र में एक नई सुबह का आगाज़ करेगी’। 

क़र्ज़, जो 3 प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी देगा, निश्चित रूप से उसे बैंकों द्वारा दिया जाएगा। इसलिए, जो भी सरकार ख़र्च करेगी, वह सब ब्याज के माध्यम से आर्थिक सहायता होगी। लेकिन वह एक विवादास्पद बिंदु है।

लेकिन असली मुद्दे ये हैं: कृषि में आखिर कितना क़र्ज़ बहाया जा रहा है? उसमें सरकार कितना ख़र्च कर रही है? और, क्या इस तरह का अधिक ऋण किसानों की मदद करेगा? आइए इन मुद्दों पर गौर करते हैं।

कृषि के लिए बैंक क़र्ज़ 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा दिए गए आंकड़ों के आधार पर नीचे दिए गए चार्ट से पता चलता है कि इस साल मई में कुल बांटा गया गैर-खाद्य बैंक क़र्ज़, जिसे कृषि (और संबद्ध गतिविधियाँ) के लिए दिया गया था वह मात्र 13 प्रतिशत था। जो बात विचित्र और चिंताजनक है वह यह है कि यह क़र्ज़ वास्तव में जून 2014 के समान स्तर है जब पहली मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी।

graph 1_13.png

जबकि इन सभी वर्षों में मोदी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के लिए काम करने का दावा करते हुए इस शो को अभी तक चला रही है, जबकि बैंक क़र्ज़ की उपलब्धता में कोई वृद्धि नहीं हुई है, यह दर्शाता है कि निवेश में ठहराव आ गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बुनियादी ढांचे में निवेश किसानों द्वारा नहीं किया जा सकता है- यह निवेश या तो सरकार करती है या फिर निजी संस्थाएं करती हैं। लेकिन कोई भी निजी संस्था, नहरों, मंडियों या अनुसंधान में निवेश करने में रुचि नहीं रखती है। और सरकार भी इसके लिए राजी नहीं है।

साथ ही, घोषित किए गए 1 लाख करोड़ रुपये कृषि के मौजूदा ऋण का दसवां हिस्सा है। यह बाल्टी में एक बूंद के बराबर है।

सरकार का ख़र्च जा कहाँ रहा है? 

आप पूछ सकते हैं- सरकार के खुद के ख़र्च की क्या कहानी है? जैसा कि नीचे दिया गया चार्ट दिखाता है, कृषि मंत्रालय ने 2014-15 से 2018-19 तक जीडीपी का मात्र 0.3 प्रतिशत ख़र्च किया है। (सीबीजीए ने इस डेटा को इकट्ठा किया है) किसानों के आंदोलनों से लगातार दबाव में, और 2019 में आम चुनावों की वजह से, सरकार ने पिछले दो वर्षों में आवंटन में वृद्धि की है- लेकिन वह भी जीडीपी का केवल 1 प्रतिशत ही बैठता है। यह आवंटन एक ऐसे क्षेत्र को दिया गया जो भारत के आधे से अधिक मजदूरों को रोजगार देता है और देश की जीडीपी में लगभग 17 प्रतिशत का योगदान देता है!

graph 2_12.png

सरकारी ख़र्च की कहानी यहां समाप्त नहीं होती है। सीबीजीए की गणना के अनुसार, वार्षिक रूप से कृषि मंत्रालय द्वारा ख़र्च किए जा रहे कुल धन का करीब 81 प्रतिशत हिस्सा जोकि एक चौंका देने वाली राशि है, केवल नकद हस्तांतरण में जा रहा है, जिसे प्रधान मंत्री बीमा योजना के  बीमा प्रीमियम भरने, ब्याज के अधीन चलने वाली योजनाओं को धन मुहैया कराने आदि पर ख़र्च किया जा रहा है। केवल 19 प्रतिशत रकम को “मुख्य गतिविधियों” जिसमें फसल और गैर-फसल प्रणाली जो कृषि क्षेत्र को मजबूत करती हैं पर ख़र्च किया जा रहा है। 

graph 3_2.png

जबकि हर तरफ से घिरे किसानों को नकद हस्तांतरण करना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन इतनी तुच्छ राशि (जो प्रति वर्ष केवल 6,000 रुपये है) और कुछ समय तक चलने वाली यह क्षणिक राहत कृषि क्षेत्र के प्रति सरकार की दृष्टि में कमी को दर्शाती है। जहां तक इंश्योरेंस प्रीमियम का सवाल है, वे बीमा कंपनियों के लिए शानदार मुनाफे को दर्शाते हैं। आधिकारिक जानकारी के अनुसार, तीन वर्षों (2016-19) के लिए उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि बीमा कंपनियों ने कुल प्रीमियम 75,772 करोड़ जमा किया है, जिसमें किसानों से 13,000 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की गई है, जबकि केंद्र और राज्य सरकारों ने 63,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। उल्लेखनीय रूप से, सभी दावों का भुगतान करने के बाद इन कंपनियों के पास लगभग 11,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि बची है। इस तरह मंत्रालय के बढ़े हुए ख़र्च से किसानों को नहीं बल्कि बीमा कंपनियों को फायदा हो रहा है।

एआईएफ़ का वास्तविक महत्व  

इस नए इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड का एक और लक्ष्य लगता है: वह यह कि इसके माध्यम से निजी या पीपीपी प्रकार की संस्थाओं का वित्तपोषण करना ताकि वे अपने दांत कृषि क्षेत्र में गड़ा सकें। इस रास्ते को हाल ही के अध्यादेशों के माध्यम से खोला गया है, जिसमें कृषि उत्पादों के व्यापार, भंडारण और मूल्य निर्धारण पर सरकारी नियमों को हटा दिया गया है। अब सार्वजनिक धन यानि सरकारी खजाने का इस्तेमाल ’किसान उत्पादक संगठनों’ से लेकर सीधे कॉरपोरेट संस्थाओं तक की विभिन्न प्रकार की संस्थाओं को वित्त प्रदान करने के लिए किया जाएगा जो कि अपनी आवश्यकताओं और अनिवार्यताओं के अनुसार बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर सकते हैं। यह कृषि क्षेत्र को बदलने की योजना नहीं है, बल्कि निजी क्षेत्र को देश के कृषि के हिस्से से बड़ा हिस्सा देने की योजना है।

कई विशेषज्ञों ने यह मानना है कि सिर्फ कोल्ड चेन और वेयरहाउस का निर्माण करना, या ई-मार्केटिंग करने से किसानों या कृषि क्षेत्र को बहुत अधिक मदद नहीं मिलेगी क्योंकि सारी उपजों को कोल्ड चेन की जरूरत नहीं होती है, और अधिकांश किसानों को बिक्री के लिए तैयार मंडी की जरूरत होती है क्योंकि वे भुगतान में देरी को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।

जब आप नए इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के लक्ष्य को खोल कर देखते हैं तो इसके भी वही परिणाम नज़र आते हैं जो हश्र मोदी सरकार की अन्य भव्य घोषणाओं का हुआ है- यानि भव्य प्रचार और तुछ हस्तक्षेप, वह भी गुमराह करने वाली धारणा और अमीर, कॉर्पोरेट वर्ग के पक्ष वाली योजना। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी कि कुछ साल के बाद यह पता चलेगा कि यह पत्तों का महल भी ढह गया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

The Truth Behind Modi’s Agri Infra Investment

Agriculture Sector
Narendra modi
farm loans
BJP
PM Fasal Bima Yojana
Ministry of Agriculture
Agricultural Infrastructure
Farmers’ Organisations

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License