NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
‘नमस्ते ट्रम्प’ में फेरबदल अभी भी संभव है
नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में डेमोक्रेटिक दल के शीर्ष नेतृत्व की ओर से अग्रिम पंक्ति में शामिल जो लोग चुनावी रेस में हिस्सा ले रहे हैं, उन्होंने भारत की आलोचना को लेकर अपने सुरों को लगातार बढ़ाना शुरू कर दिया है। आंशिक तौर पर ही सही पर इस असंतोष की कुछ वजह अमेरिकी चुनाव में मोदी के हस्तक्षेप के चलते है।
एम. के. भद्रकुमार
18 Feb 2020
Trump

म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (फरवरी 14-16) में अपनी हिस्सेदारी के साथ-साथ विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अमेरिकी सभापति नैन्सी पेलोसी के साथ होने वाली क्षणिक भेंट को सबसे उल्लेखनीय घटना कहा जा सकता है। और जैसा कि नमस्ते ट्रम्प अभियान की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है, इसे सिर्फ समय रहते नुकसान की भरपाई वाले कदम के रूप में देखा जाना चाहिए।

जयशंकर जो हाल-फिलहाल तक ट्रम्प के मुहावरे क्रेजी नैन्सी को समर्थन देते आये थे, संयोग से उन्हें कहना पड़ा है कि भारत-अमेरिकी रिश्तों में आपका “निरंतर सहयोग” हमारे लिए “बहुत बड़ा सहारा" रहा है।

यह जो अमेरिका में मरणासन्न “द्विदलीय सहमति” (रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच) के भरे-पूरे मंगलगान में नजर आया है, वह भारत के साथ साझेदारी के महत्व के संबंध में एक कूटनीतिक घटनाक्रम बनकर रह गया है।हाल के दिनों की कई घटनाओं की एक श्रृंखला ने इस बात के संकेत दिए हैं कि अमेरिका में भारत के समर्थन में जो जलाशय था, उसमें से कुछ क्षरण के संकेत मिलते हैं, खासकर पिछले सितम्बर के ह्यूस्टन की हौडी मोदी रैली के बाद से।नवम्बर में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव के सन्दर्भ में जो अग्रिम पंक्ति में डेमोक्रेटिक दल के नेता हैं, के बीच भारत को लेकर आलोचना के सुर बढ़ते जा रहे हैं। आंशिक तौर पर ही सही पर इस असंतोष की कुछ वजह अमेरिकी चुनाव में मोदी के हस्तक्षेप के चलते है।

और यह अपने निम्नतम बिंदु तक तब पहुँच गया जब जयशंकर ने वाशिंगटन में कुछ प्रभावशाली डेमोक्रेटिक सांसदों के साथ होने वाली एक निर्धारित बैठक को एक ही झटके में निरस्त कर दिया था।

इसमें कोई शक नहीं कि अमेरिका की इस "द्विदलीय सहमति" को भंग करने के लिए दिल्ली पूरी तरह से जिम्मेदार रही है। और वह भी एक ऐसे समय में किया गया जब रूस और चीन जैसी बड़ी ताकतें अमेरिका में "द्विपक्षीय आम सहमति" के बोझ की खिल्ली उड़ा रही हैं, जो उन्हें अभी तक या तो संशोधनवादी शक्तियाँ या शिकारी के तौर पर बदनाम करने में एकजुट थीं। साफ़ शब्दों में कहें तो ऐसा एक भी कारण नजर नहीं आता कि प्रधानमंत्री मोदी को ह्यूस्टन में सार्वजनिक रूप से यह दर्शाने की जरूरत क्यों पड़ी कि जैसे वे ट्रम्प के चुनाव एजेंट के रूप में काम कर रहे हों, और जैसे वे अमेरिका में ट्रम्प के लिए भारतीय-अमेरिकी समुदाय से वोट की अपील कर रहे हों।

भारत और पेलोसी का सम्बन्ध बहुत पुराना है, यह ट्रम्प के राजनीतिक क्षितिज पर उभरने से बहुत पहले की बात है। समय-समय पर चीनियों पर चोट करने के लिए 'दलाई लामा कार्ड'  को खेलने में उनका योगदान रहा है। अमेरिका में इनके तार इजरायली लॉबी से जुड़े होने के बारे में कहा जाता है।अगर साफ़-साफ़ कहें तो कैपिटल हिल में एक दोस्त के रूप में पेलोसी की उपस्थिति अच्छी बात है। 1987 से कांग्रेस सांसद के रूप में उनकी एक शानदार उपस्थिति रही है, जिन्होंने 2003 से हाउस डेमोक्रेट्स का नेतृत्व किया और स्पीकर के रूप में वे दो बार अपनी सेवाएं दे चुकी हैं।

एक बात और, पेलोसी अभी भी एक किंगमेकर वाली भूमिका में बनी हुई हैं। सोमवार को सीएनएन के क्रिस्टियन अमनपॉर के साथ अपने एक साक्षात्कार के हवाले से उन्होंने कहा है कि वे आयोवा और न्यू हैम्पशायर डेमोक्रेटिक के आरंभिक चुनावों में पूर्व उप-राष्ट्रपति के निराशाजनक नतीजों के बाद भी "जो बिडेन को रेस से बाहर नहीं मानतीं"।और सबसे महत्वपूर्ण बात देखने को तब मिली जब पेलोसी ने 4 फरवरी को ट्रम्प के राज्यों के संघ को सम्बोधन के खत्म होते ही अपनी प्रति (ट्रम्प की मौजूदगी में ही) फाड़ डाली, क्योंकि इस भाषण की अंतर्वस्तु उन्हें एक “भयानक” झूठ का पुलिंदा लगीं।

पेलोसी की ओर से किये गये इस अंतिम हंगामाखेज कृत्य ने ही लगता है जयशंकर को पेलोसी से मुलाक़ात के लिए उत्सुक बना दिया है। ट्रम्प के बारे में मशहूर है कि वे प्रतिशोध जरुर लेते हैं। उत्सुकता इस बात को लेकर है कि क्या जयशंकर ने इसके लिए मोदी से पूर्व अनुमति ली थी?जबकि इस बीच किसी तरह ट्रम्प को कहीं से इस बात की खबर लगी है कि जैसे ही 24 फरवरी को उनका विमान अहमदाबाद एअरपोर्ट पर उतरेगा, मोदी ने उनके स्वागत का भव्य आयोजन किया होगा आंशिक तौर पर ही सही पर इस असंतोष की कुछ वजह अमेरिकी चुनाव में मोदी के हस्तक्षेप के चलते है। अहमदाबाद की सडकों पर कुछ नहीं तो 50 से लेकर 70 लाख लोग लाइन लगाकर उनके स्वागत में खड़े नजर आने वाले हैं।

जबकि फिलवक्त जयशंकर भारत के पुराने दोस्त पेलोसी से “अत्यंत आनंददायक क्षणिक भेंट” का आनंद ले रहे हैं।कभी-कभी तो बिलकुल ही समझ नहीं आता कि चल क्या रहा है इस अमेरिकी-भारतीय “रणनीतिक साझेदारी” में। लेकिन देखकर आश्चर्य होता है कि वास्तिविकता में ये और कुछ नहीं बस एक स्वांग रचा जा रहा है- शुद्ध नाट्य मनोरंजन है जिसे अतिशयोक्तिपूर्ण मीम के जरिये प्रस्तुत किया जा रहा है।

अब जैसे नमस्ते ट्रम्प थीम को ही लें। निश्चित तौर पर ट्रम्प के लिए मोदी एक उन्मादपूर्ण अनुभव का आनन्द दिलाने की तैयारी में जुटे पड़े हैं, जिसे सम्भवतः अगले के लिए इस धरती पर, जहाँ पर वे सार्वभौमिक तौर पर नापसंद किये जाने वाले व्यक्ति के रूप में ख्यातिप्राप्त हैं, और कहीं भी हासिल कर पाना संभव नहीं है।

अब बताइये भला दुनिया में कौन सा ऐसा अन्य शासक होगा जो मोदी की तरह अपने 50 से 70 लाख नागरिकों को अपने घरों से बाहर निकलकर सड़कों पर लाइन लगाकर एक ऐसे व्यक्ति के स्वागत में अपने राष्ट्रीय ध्वज को फहराने का आह्वान कर सकता है, जिसके बारे में इससे पहले न उन्होंने कभी सुना और बमुश्किल से पहचानते हों?

ट्रम्प के लिए तो यह पाग्लकर देने वाला उटपटांग कार्यक्रम उनके चुनावी अभियान में काफी काम का साबित होने जा रहा है, जिसमें वे दिखा सकते हैं कि देखो दुनिया के नेता के रूप में वे कितने अधिक लोकप्रिय हैं। उसी प्रकार मोदी के लिए भी शायद यह मौका दुनिया में सबसे शक्तिशाली आदमी के साथ कंधे से कन्धा रगड़ने के रूप में अपने घरेलू भीड़ के समक्ष एक क्षणभंगुर सुख वाला साबित होने जा रहा है, जिससे वे अपना मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं। क्या यह दोनों के लिए एक “विन-विन” वाली स्थिति होने जा रही है?

लेकिन सोचिये यदि ट्रम्प व्हाइट हाउस में दूसरी बार काबिज नहीं हो पाते हैं, तो ऐसी स्थिति में क्या होने वाला है? राजनीति में नौ महीने का अंतराल एक बड़ा समय होता है, और अमेरिका में एक निकाय ऐसा भी है जिनकी चीजों के बारे में अपनी एक सुविचारित राय है, और जिसका मानना है कि नवंबर के चुनावों में “ट्रम्प को परास्त करना काफी हद तक संभव है"।

असलियत में अमेरिका में आज बहस इस बात को लेकर हो रही है कि डेमोक्रेटिक दावेदारों में से वो कौन है जिसके पास ट्रम्प को परास्त कर पाने की बेहतर संभावना है - जिसे अमेरिकी लोग "चुने जाने की योग्यता की बहस" के नाम से जानते हैं।हाल ही में एनबीसी/वॉल स्ट्रीट जर्नल के सर्वेक्षण में जो बिडेन 50-44 के साथ शीर्ष पर हैं, जबकि सैंडर्स ने ट्रम्प पर 49-45 की बढ़त बनाई हुई है, जिसे सांख्यिकीय के लिहाज से महत्वहीन अंतर कहा जा सकता है।

अब यहाँ पर जयशंकर प्रवेश करते हैं। एक उदार मानसिकता से भरे-पूरे, एक स्मार्ट हाव-भाव के साथ जो गहरी जड़ जमाये विश्वासों के बोझ से परे हो। इसमें कोई अचंभा नहीं कि बड़े ही स्वाभाविक रूप से जयशंकर को लगा हो कि चलो इसी बीच पेलोसी की टोकरी में एक भारतीय अंडा ही डाल दें, और इससे कुछ नहीं बिगड़ने जा रहा है।लेकिन ये भी सच है कि जयशंकर ने इस बात को लेकर काफी एहतियात बरता है, कि पेलोसी के साथ किसी प्रकार की औपचारिक भेंट न हो। उन्होंने तो इस खुशनुमा भेंट और कुशलक्षेम का वक्त भी खासतौर पर उस समय के लिए चुना जब म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कॉफी ब्रेक के दौरान कॉन्फ्रेंस हॉल से सब लोग बाहर निकल रहे थे।

बहरहाल उनका जो मकसद था वो पूरा हो गया है। उन्होंने नमस्ते ट्रम्प अभियान को हल्के से मोड़ने का अभिनव प्रयोग किया है, जो मात्र इतना सा है कि भारतीय दर्शकों के बीच इसको लेकर जो अतिरंजित धारणा बन रही थी, उसे कुछ अनुपात में अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी से उस टूटे पुल के पुनर्निर्माण की अपनी कोशिश भर की है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Tweaking ‘Namaste Trump’ Is Still Possible

Donald Trump
USA
BJP
Narendra modi

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल


बाकी खबरें

  • जितेन्द्र कुमार
    मुद्दा: बिखरती हुई सामाजिक न्याय की राजनीति
    11 Apr 2022
    कई टिप्पणीकारों के अनुसार राजनीति का यह ऐसा दौर है जिसमें राष्ट्रवाद, आर्थिकी और देश-समाज की बदहाली पर राज करेगा। लेकिन विभिन्न तरह की टिप्पणियों के बीच इतना तो तय है कि वर्तमान दौर की राजनीति ने…
  • एम.ओबैद
    नक्शे का पेचः भागलपुर कैंसर अस्पताल का सपना अब भी अधूरा, दूर जाने को मजबूर 13 ज़िलों के लोग
    11 Apr 2022
    बिहार के भागलपुर समेत पूर्वी बिहार और कोसी-सीमांचल के 13 ज़िलों के लोग आज भी कैंसर के इलाज के लिए मुज़फ़्फ़रपुर और प्रदेश की राजधानी पटना या देश की राजधानी दिल्ली समेत अन्य बड़े शहरों का चक्कर काट…
  • रवि शंकर दुबे
    दुर्भाग्य! रामनवमी और रमज़ान भी सियासत की ज़द में आ गए
    11 Apr 2022
    रामनवमी और रमज़ान जैसे पर्व को बदनाम करने के लिए अराजक तत्व अपनी पूरी ताक़त झोंक रहे हैं, सियासत के शह में पल रहे कुछ लोग गंगा-जमुनी तहज़ीब को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगे हैं।
  • सुबोध वर्मा
    अमृत काल: बेरोज़गारी और कम भत्ते से परेशान जनता
    11 Apr 2022
    सीएमआईए के मुताबिक़, श्रम भागीदारी में तेज़ गिरावट आई है, बेरोज़गारी दर भी 7 फ़ीसदी या इससे ज़्यादा ही बनी हुई है। साथ ही 2020-21 में औसत वार्षिक आय भी एक लाख सत्तर हजार रुपये के बेहद निचले स्तर पर…
  • JNU
    न्यूज़क्लिक टीम
    JNU: मांस परोसने को लेकर बवाल, ABVP कठघरे में !
    11 Apr 2022
    जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दो साल बाद फिर हिंसा देखने को मिली जब कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से संबद्ध छात्रों ने राम नवमी के अवसर कैम्पस में मांसाहार परोसे जाने का विरोध किया. जब…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License