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एक दुनिया में दो दुनिया
कोविड-19 की महामारी ने इस झूठ को उजागर कर दिया है कि फ्री मार्केट के सहारे सब को बुनियादी सुविधाएं मिल जाएंगी।
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
27 Jul 2020
एक दुनिया में दो दुनिया
उटागवा कुनियोशी (जापान), राक्षसी तकीयाशा और कंकाल का साया, 1849।

18 जुलाई को, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने ट्वीट किया: 'COVID-19 ने इस झूठ को उजागर कर दिया है कि मुक्त बाज़ार सभी को स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर सकते हैं, इस मिथ्या को सामने कर दिया है कि अवैतनिक देखभाल का काम काम नहीं है, [और] इस भ्रम को भी दर कर दिया है कि हम नस्लवादी भेदभाव रहित दुनिया में रहते हैं। हम सभी एक ही समुद्र में तैर रहे हैं, हालाँकि कुछ लोग बढ़िया यॉट्स (yachts) में सवार हैं और बाक़ी बहते मलबे से चिपके हैं।’

रॉकफ़ेलर फ़ाउंडेशन (अमेरिका) के अध्यक्ष डॉ. राजीव शाह ने हाल ही में कहा था कि संयुक्त राज्य अमेरिका COVID-19 के टेस्ट के लिए दो ‘मोनोपोली कंपनियों’ (क्वेस्ट और लैबकॉर्प) पर निर्भर है जिनके ‘सेंट्रल प्रासेसिंग सिस्टम में वर्तमान में आवश्यक मात्रा में टेस्ट करने की क्षमता नहीं है।’ ये मोनोपोली कंपनियाँ -जिन्हें वो मुक्त बाज़ार बढ़ावा देते हैं, जिनके बारे में गुटेरेस ने लिखा है- मुनाफ़े के उद्देश्य से चलती हैं, जिसका मतलब है कि ये कंपनियाँ केवल जस्ट-इन-टाइम प्रासेसिंग लैबोरेट्री हैं जिनमें सामान्य लैबोरेट्री के काम से अधिक कार्य करने की 'क्षमता' नहीं है; इससे ज़्यादा काम उनके लिए आर्थिक रूप से अलाभकारी है। डॉ. शाह कहते हैं कि टेस्ट की रिपोर्ट एक सप्ताह या दो सप्ताह से पहले तैयार नहीं की जा सकती। डॉ. शाह ने कहा, ‘सात दिन की समय-सीमा का मतलब है कि आप मूल रूप से कोई भी टेस्ट नहीं कर रहे; यह संरचनात्मक रूप से शून्य परीक्षणों के बराबर है।' इसका मतलब है कि अमेरिका क्षीण होती सार्वजनिक क्षेत्र में दरअसल कोई परीक्षण नहीं कर रहा है। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के एक शोधकर्ता सुबीन डेनिस ने एक मज़बूत सार्वजनिक क्षेत्र की आवश्यकता पर स्पष्ट समझ के साथ एक रिपोर्ट लिखी है।

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गिल्बर्ट और जॉर्ज (इटली / यूके), वर्ग युद्ध, 1986। 

लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र के निर्माण के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है। कोरोनावायरस के कारण आई मंदी इन संसाधनों को ख़त्म कर रही है, वो मंदी जो अपने ही आर्थिक सिद्धांतों से जुड़ी हुई नहीं है। डेब्ट सर्विस सस्पेंशन इनीशिएटिव जैसी- विश्व बैंक और जी 20 वित्त मंत्रियों द्वारा समर्थित- बहुत-सी ऋण स्थगन परियोजनाएँ पर्याप्त नहीं हैं; ऑक्सफ़ैम की एक नयी रिपोर्ट से पता चलता है कि इस इनीशिएटिव के लिए पात्र सभी देशों को इसके बावजूद कम-से-कम 33.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण भुगतान करना होगा। उनसे हर महीने 2.8 बिलियन डॉलर की माँग की जा रही है, जो कि ‘युगांडा, मालावी और ज़ाम्बिया द्वारा अपने वार्षिक स्वास्थ्य बजट पर ख़र्च की गई कुल राशि का दुगुना है।’

कई देश डिफ़ॉल्टर बनने की कगार पर हैं। अर्जेंटीना, इक्वाडोर और लेबनान पहले ही डिफ़ॉल्ट कर चुके हैं। लेबनान में मुद्रा संकट के कारण वहाँ का चिकित्सा क्षेत्र अव्यवस्थित हो चुका है। नगदी करेन्सी द्वारा दवाओं का आयात करने वाली दवा कंपनियाँ बंद हो चुकी हैं; सरकार मरीज़ों द्वारा सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत उपयोग की जाने वाली सेवाओं के लिए अस्पतालों की व्यवस्था करने में विफल रही है; और बेरोज़गारी के कारण चिकित्सा बीमा लेना मुश्किल हो गया है। बढ़ती वित्तीय कठिनाइयों में, ये देश एक बार फिर स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट में कटौती करेंगे, और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को एक ऐसे समय में कमज़ोर करेंगे जबकि उनकी अहमियत का अंदाज़ा साफ़ तौर पर लगाया जा सकता है।

हाल ही में, खाद्य की स्थिति का अध्ययन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की दो प्रमुख एजेंसियों -विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लू एफ पी) और खाद्य और कृषि संगठन (एफ ऐ ओ)- ने मिलकर एक रिपोर्ट जारी किया है जिसमें दिखाया गया है कि पच्चीस देशों में भुखमरी अकाल के स्तर तक बढ़ने वाली है। ये देश हैती से ज़िम्बाब्वे तक और लेबनान से बांग्लादेश तक फैले हुए हैं। अप्रैल में, WFP के निदेशक डेविड बेस्ले ने कहा कि इस तरह से व्याप्त भुखमरी की स्थिति ‘भयावह स्तर का अकाल’ पैदा कर सकती है। अब, बेस्ले का कहना है कि नये आँकड़ों के अनुसार ‘दुनिया के सबसे ग़रीब परिवार पहले से भी बदतर हालात में धकेले जा चुके हैं।’

इन देशों का ऋण इन्हें कोरोनावायरस, बेरोज़गारी और भुखमरी की तीनों महामारियों से ठीक तरह निपटने नहीं दे रहा।

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ली हुआ (चीन), भूखमरी की कगार पर, (1946)।

इसी संदर्भ में दिल्मा रूसेफ़, टी एम थॉमस इज़ाक, जॉर्ज अर्रेज़ा, यानिस वरौफ़किस, फ़्रेड एम'मेम्बे, जुआन ग्रेबिस और मैंने ऋण रद्द करने की ज़रूरत पर एक बयान जारी किया है। हमारा मानना है कि कोरोनावायरस के कारण आई मंदी के लिए अस्थायी रूप से ऋण भुगतान रोक देना काफ़ी नहीं; हम मानते हैं कि बढ़ते संकटों के समय में ऋण रद्द करना ही एकमात्र रास्ता है

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ऋण रद्द करने के लिए बयान

सभी अनुमानों के अनुसार, विकासशील देशों का क़र्ज़ अब 11 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है। बचे हुए साल 2020 के लिए ही, इस क़र्ज़ पर 3.9 ट्रिलियन डॉलर का ऋण भुगतान किया जाना है। ये क़र्ज़ पिछले कई दशकों से लगातार बढ़ रहा है, जिससे अधिकतर विकासशील देश अब एक अस्थिर वित्तीय परिस्थिति में हैं। समय-समय पर समस्या के हल के लिए डिफ़ॉल्ट करना या ऋण समायोजन करना विकासशील देशों में स्थायित्व प्राप्त कर चुका है, जिसके लिए अक्सर उनकी अपनी अर्थव्यवस्थाओं के मूल सिद्धांतों से बाहर के कारण दिए जाते हैं।

बजट कटौतियाँ स्थायी हो चुकी हैं, जिनके कारण कई देशों की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियाँ कमज़ोर हो गई हैं जबकि देश बुरी तरह से इस वैश्विक महामारी की चपेट में हैं। ऋण भुगतान जारी रखने या ऋण भुगतान करने के लिए बाध्य होने का मतलब है कि विकासशील देश कुशल और प्रभावी ढंग से महामारी से नहीं लड़ पाएँगे, और न ही भविष्य में आ सकने वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिए आवश्यक प्रणालियों का निर्माण ही कर पाएँगे।

क़र्ज़ चुकाने के लिए किसी बैंक या किसी अमीर बॉन्डहोल्डर को दिया जाने वाला प्रत्येक डॉलर, एक ऐसा डॉलर होगा जो वेंटिलेटर ख़रीदने या आपातकालीन खाद्य सहायता मुहैया करवाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। कोरोनाशॉक से आई त्रासदी में, ऐसा करना नैतिकता के ख़िलाफ़ है और आर्थिक रूप से भी तर्कहीन है।

ऋण को निलंबित या स्थगित कर देने से इन देशों को अपना ज़रूरी विकास कर पाने का हौसला नहीं मिलेगा। ये उपाय केवल [ऋण से] ध्यान हटा सकता है।

इन अप्रिय ऋणों को रद्द करना भविषय की बात है, जिनका-किसी भी सूरत में-कोरोनावायरस मंदी के दौरान भुगतान नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक और निजी लेनदारों ने निवेश कर जोखिम उठाया था। उन्होंने भयावह ब्याज दरों पर पैसा उधार देकर विकासशील देशों की ज़रूरतों से फ़ायदा कमाया; समय आ चुका है कि ये लेनदार अपने द्वारा उठाए गए जोखिम की क़ीमत ख़ुद चुकाएँ न कि कम संसाधनों वाले देशों को ये बड़ी रक़म अदा करने के लिए मजबूर करें।

दिल्मा रूसेफ (पूर्व राष्ट्रपति, ब्राज़ील)

टी एम थॉमस इज़ाक (वित्त मंत्री, केरल, भारत)

यानिस वरौफकिस (पूर्व वित्त मंत्री, ग्रीस)

जॉर्ज अर्रेज़ा (विदेश मंत्री, वेनेजुएला)

फ्रेड एम’मेम्बे (अध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी, ज़ाम्बिया)

जुआन ग्रेबिस (फ्रेंते पैट्रिया ग्रांडे, अर्जेंटीना)

विजय प्रसाद (ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान)

हमें उम्मीद है कि ये बयान ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचेगा; और जन-आंदोलनों द्वारा सरकारों पर दवाब बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा कि सरकारें उन ऋण निलंबन समझौतों को स्वीकार न करें, जो आगे चलकर देशों को दीर्घ-काल के लिए वित्तीय पतन की ओर ले जाएँगी।

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इब्राहिम अल- सलाहि (सूडान), बचपन के सपनो की आवाज़ का पुनर्जन्म(1961-65)। 

अन्य देशों से घिरे हुए बंदरगाह विहीन देश मालावी ने 1964 में ब्रिटेन से अपनी स्वतंत्रता जीत ली थी, लेकिन औपनिवेशिक लूट की विरासत से उठकर ये देश दुनिया के सबसे ग़रीब देशों में से एक देश के रूप में उभरा। डेविड रुबादिरी संयुक्त राज्य अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र दोनों के लिए मालावी के पहले राजदूत थे और सबसे अग्रिम पंक्ति के लोगों में थे जो मालावी का और अधिक ह्रास होते हुए देख रहे थे; उन्होंने अपना कार्यभार संभालने के एक साल के भीतर ही इस्तीफ़ा दे दिया। 1968 में युगांडा में पढ़ाते हुए उन्होंने Begging A.I.D. नामक कविता लिखी:

सर्कस

जो अब घर है,

के भिखारीपन में

रिंगमास्टर का चाबुक

एकाएक चलता है

हमारे अस्तित्व की कमर

उधेड़ता।

ये पंक्तियाँ सब कुछ कहती हैं: उपनिवेशवाद पराजित हुआ, लेकिन उसका ढाँचा बचा रहा, अब पूँजी भारी ब्याज दरों पर क़र्ज़ दी जाती है और इस क़र्ज़ के द्वारा देशों का राजनीतिक नियंत्रण क़ायम है। सामाजिक वर्चस्व के नये अज्ञात रूपों को समझने के लिए हमें दासता की पूरानी छवियाँ याद करनी होंगी। पेरिस क्लब के सरकारी लेनदारों या लंदन क्लब के निजी लेनदारों के हाथों में कोई वास्तविक चाबुक नहीं है, न ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या विश्व बैंक प्रमुखों के हाथों में; लेकिन मानव जाति की कमर उधेड़ते इस चाबुक की उपस्थिति महसूस की जा सकती है।
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ईरान दर्रूडी (ईरान), दृढ़ता, 1987। 

जब ईरानी लेखक सादिक़ हेदायत से उनके दोस्त मिलते थे तो सादिक़ कहते थे ‘हमारी ज़िंदगी अभी भी बेड़ियों में क़ैद है’ (दर क़ैद-ए हयात-इम)। हम सबकी ज़िंदगियाँ क़ैद हैं। इसीलिए, चाबुक चलाने वाले हाथ उखाड़ फेंकने और देशों की जनता को ऋण भुगतान की ग़ुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋण रद्द करने की मुहिम चलाना एक ज़रूरी शुरुआत है। 

नोट: अब से हमारा न्यूज़लेटर्स हमारी टीम के सदस्यों के काम पर रौशनी डालेगा। नीचे हमारे उपनिदेशक, रेनाटा पोर्टो बुगनी का लिखा छोटा-सा अंश है:

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जब क्वारंटीन समाप्त होता है, तो मैं साओ पाउलो के हाशिये पर रह ही महिलाओं के साथ अपने काम को फिर से शुरू करूँगी और अपनी टीम के साथ आमने-सामने की बैठकों को फिर से शुरू करूँगी। मैं अपने ख़ाली समय में हेलेथ सैफियोटी की किताब पढ़ रही हूँ; उनकी मार्क्सवादी नारीवादी दृष्टि हमारे समय के लिए उतनी ही ज्वलंत है। मैं कोरोनाशॉक और इसके जेंडर इम्पैक्ट पर एक रिपोर्ट लिखने में व्यस्त हूँ, जिसे इस साल के अंत में प्रकाशित होने की उम्मीद है।

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