NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
भारत
राजनीति
शिक्षाविदों का कहना है कि यूजीसी का मसौदा ढांचा अनुसंधान के लिए विनाशकारी साबित होगा
शिक्षाविदों का कहना है कि यूजीसी का नया मसौदा ढांचा, कला एवं विज्ञान क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिग्री की जरूरत को खत्म करने जा रहा है और स्नातक स्तर के कार्यक्रम को कमजोर बनाने वाला है। 
रवि कौशल
22 Mar 2022
UGC

बहुत सारी अटकलों के बाद जाकर अब देश में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए नियामक प्राधिकरण, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने चार-वर्षीय स्नातक कार्यक्रमों के लिए अपना मसौदा पाठ्यक्रम ढांचा जारी किया है और इस पर हितधारक 4 अप्रैल, 2022 तक अपनी टिप्पणियों को पेश कर सकते हैं। शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण कार्य के लिए अंतिम रुपरेखा को नई शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुसार तय किया जायेगा। 

मसौदा ढाँचे से पता चलता है कि कालेजों और विश्वविद्यालयों को तीन-वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रमों से विमुख होते हुए विभिन्न निकास बिन्दुओं के साथ चार-वर्षीय स्नातक कार्यक्रमों को अपनाना होगा। छात्रों को क्रमशः दो सेमस्टर (छमाही), चार सेमेस्टर्स, छह सेमेस्टर्स और आठ सेमेस्टर्स का पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा करने पर सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री और ऑनर्स की डिग्री से नवाजा जायेगा।

मसौदा दस्तावेज से इस बात का भी पता चलता है है कि विश्वविद्यालयों के द्वारा छात्रों को पहले तीन सेमेस्टर्स में मानविकी, विज्ञान, और सामाजिक विज्ञान के तौर पर सामान्य एवं परिचयात्मक पाठ्यक्रम से परिचित कराया जायेगा। तीसरे सेमेस्टर्स के अंत में, छात्रों के पास आगे के अध्ययन के लिए अनुशासनात्मक या अंतर-अनुशासनात्मक क्षेत्र में दो गौण एवं एक मुख्य विषय को चुनना होगा। छात्र चाहें तो वे अपने मुख्य विषय में आगे जाकर शोध कार्य को जारी रख सकते हैं। फिलहाल जहाँ इस ढाँचे को अंतिम रूप दिया जाना शेष है, वहीँ दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालयों ने पहले से ही चार-वर्षीय स्नातक कार्यक्रम के लिए अपनी रजामंदी दे दी है।

इसके अलावा, जो छात्र सीजीपीए 7.5 के साथ चार-वर्षीय स्नातक कार्यक्रमों को उत्तीर्ण करेंगे वे पीएचडी पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए पात्र माने जायेंगे। यूजीसी विनियम, 2016 (पीएचडी की डिग्री से सम्मानित करने के लिए न्यूनतम मानक एवं प्रकिया) में संशोधनों को सुझाने वाले मसौदे में कहा गया है कि 60% सीटों को राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा/ जूनियर रिसर्च फेलोशिप (नेट/जेआरएफ) की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों के लिए आरक्षित होंगी। नेट परीक्षा उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षण कार्य के लिए पात्रता परीक्षा है। नेट पास करने वालों में से शीर्ष 10% को यूजीसी के द्वारा निर्दिष्ट प्रत्येक विषय में अपनी पसंद के शोध क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए जूनियर रिसर्च फेलोशिप से नवाजा जाता है।

इसके कई प्रावधानों चिंतित शिक्षाविदों का कहना है कि मसौदा ढांचा द्वि-वर्षीय स्नातकोत्तर कार्यक्रम को खत्म करके शोध की गुणवत्ता को कमजोर बनाता है। यूजीसी ने वर्तमान शैक्षणिक सत्र से एम.फिल कार्यक्रम को पहले ही समाप्त कर दिया है। अब, छात्र चार साल के स्नातक कार्यक्रम के बाद ही पीएचडी की पढ़ाई कर सकते हैं।

कार्यकारी परिषद की पूर्व सदस्या, आभा देव हबीब ने न्यूज़क्लिक को बताया कि नया मसौदा ढांचा न सिर्फ कला एवं विज्ञान के पाठ्यक्रमों में स्नातकोत्तर डिग्री को खत्म करता है बल्कि यह स्नातक कार्यक्रम को भी कमतर बना देने वाला है।

उन्होंने कहा, “उच्च शिक्षा में अभी भी ज्यादातर छात्र स्नातक स्तर तक पढ़ते हैं। 2019-20 की एआईएसएचइ रिपोर्ट के मुताबिक, कुल 3.85 करोड़ में से स्नातकों की संख्या 3.06 करोड़ है। प्रस्तावित एफवाईयूपी योजना इस विशाल बहुमत के लिए यूजी की पढ़ाई को सरल बनाने जा रही है। विरोध के बावजूद, वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय 176 क्रेडिट्स के साथ एफवाईयूपी ढाँचे के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने में जुटी हुई है। हम यह देखकर आशंकित हैं कि जिस प्रकार से 148 क्रेडिट्स के साथ तीन-वर्षीय चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम की वर्तमान प्रणाली के विपरीत अध्ययन के घंटों की संख्या को कम कर दिया गया है उसमें हम पाठ्यक्रम की दो-तिहाई विषयवस्तु को बचा पाने में भी सक्षम नहीं हैं। ऑनर्स की डिग्री कमतर हो जाने वाली है और शिक्षकों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ेगा।”

उनका आगे कहना था कि छात्रों को सामान्य मोड्यूल सीखने में 1.5 साल की पढ़ाई बर्बाद करनी पड़ेगी। उनके अनुसार यह किसी उद्देश्य की पूर्ती नहीं करता है। उन्होंने कहा कि यदि ढांचा यह सुझाता है कि सभी छात्रों को गणित पढ़ने की जरूरत है तो माड्यूल दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम के ढांचे को ही दोहराएगा। जिन लोगों ने इसे पहले से ही सीख रखा है उनके लिए यह निराशाजनक दुहराव होगा और जिन्होंने इसे नहीं सीखा है वे विश्वविद्यालयों में अन्य विषयों को सीखने के लिए आये होंगे। उनका सवाल था कि माता-पिता अपना पैसा एक ऐसे पाठ्यक्रम ढाँचे पर बर्बाद करना क्यों चाहेंगे, जहाँ पहले से ही अधिकांश विषयों को स्कूलों में पढाया जा चुका है। हबीब ने कहा, “यह शिक्षकों से छात्रों के योग अभ्यास का मूल्यांकन करने के लिए कहता है। यह कहना बेमानी है कि योग करने से आपके अच्छे अंक आयेंगे। अधिकारी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि यह विशेषज्ञता है जिसे विश्व भर में सराहा जाता है न कि आम विषयों को।” 

उन्होंने आगे कहा, “राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता ढाँचे (एनएचइक्यूएफ) के द्वारा सुझाए गए एफवाईयूपी के ढांचे में 120 क्रेडिट्स की 3-साल की डिग्री और 160 क्रेडिट्स वाली 4 साल की डिग्री छात्रों के लिए डिग्री की कीमत को काफी कमजोर बनाने वाला है और शिक्षकों के लिए नौकरी के नुकसान का कारक बनने वाला है। माड्यूल पर 3 सेमेस्टर्स खर्च करने का विचार जो सभी छात्रों के लिए लागू होगा एक निहायत ही दोषपूर्ण सोच है और 2013 में डीयू में इसे थोपने पर एफवाईयूपी मॉडल के खिलाफ छात्रों के गोलबंद होने की प्रमुख वजहों में से एक रहा था। स्कूली पढ़ाई के बाद, जिसका समापन कुछ चुनिंदा विषयों पर गहन अध्ययन के साथ होता है, छात्रों के लिए उच्च शिक्षा में इस प्रकार से समय की बर्बादी जिसमें सभी स्ट्रीम के लिए घटाकर साझा माड्यूल के माध्यम से गुजरने से छात्रों का ध्यान पढ़ाई से उचट सकता है। सभी छात्रों के लिए साझा माड्यूल का अर्थ है कि ये कक्षा 11 और 12 के स्तर के भी नहीं होंगे। 

हबीब ने कहा, “इसके परिणामस्वरूप, एफवाईयूपी का मतलब है कि शिक्षा की लागत में बढ़ोत्तरी और पूर्ण स्नातक की डिग्री हासिल करने में अधिक साल लगेंगे, जबकि गहराई से विषयों को सीखने और जुड़ाव से कोई लाभ नहीं मिलने जा रहा है। छात्रों को इस प्रकार के एफवाईयूपी के बाद सीधे पीएचडी में दाखिले लेने की अनुमति देने का अर्थ है उच्चतर शिक्षा के काम को बड़ी मात्रा में कमजोर करना। मौजूदा तीन वर्षीय यूजी प्लस और दो-साल का पीजी पाठ्यक्रम अपनेआप में एनईपी 2020 के द्वारा उच्च शिक्षा के ढांचे को थोपने की तुलना में कहीं अधिक मजबूत और दृढ़ है।”

वित्तीय प्रभावों के बारे में बात करते हुए उन्होंने इस बात पर जोर देकर कहा, “चौथे साल के लिए छात्रों की मेजबानी करने के लिए मौजूदा बुनियादी ढांचे और क्षमताओं के किसी भी विस्तार के लिए कोई पैसा कहाँ है? जरा देश भर के कालेजों और विश्वविद्यालयों के बारे में विचार कीजिये। किसी भी सरकार ने इसके लिए धन मुहैय्या कराने का वादा नहीं किया है। एक ऐसे देश में जहाँ कई अन्य लोगों को शिक्षा के दायरे में लाये जाने की जरूरत है, कोई भी विस्तार कई अन्य छात्रों को प्रवेश दिए जाने के बारे में होना चाहिए, न कि उसी पाठ्यक्रम को लंबी अवधि के लिए जारी रखने के लिए।”

जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर और जेएनयू शिक्षक संघ के एक प्रमुख सदस्य, रोहित ने कहा कि स्नातकोत्तर कार्यक्रम को खत्म करने से एक अर्थ में भारी शून्य पैदा हो जाएगा कि छात्रों के पास शोध के लिए शायद ही कोई प्रेरणा बचे। उनका कहना था कि यूजीसी शिक्षा के अमेरिकी मॉडल को लाना चाहती है जहाँ छात्र जीआरई टेस्ट को उत्तीर्ण करने के बाद पीएचडी के लिए की पढ़ाई कर सकते हैं। हालाँकि, वहां पर एक बेहद छोटी संख्या ही शोध कार्य को अपनाती है जहाँ आवेदक का गहनता से मूल्यांकन किया जाता है। भारत में, यूजीसी ने एम.फिल से नाता तोड़ लिया है क्योंकि इसने इसके साथ कई मुद्दों का हवाला दिया है। लेकिन उस स्थिति में छात्रों के पास स्नातकोत्तर के विषय थे जहाँ वे खुद का आकलन कर पाने में सक्षम थे कि क्या वे वास्तव में उच्चतर शोध कार्य को जारी रखना चाहते हैं। रोहित ने कहा, कि स्नातक पाठ्यक्रमों में छात्रों को पाठ्य पुस्तक के मुताबिक पढ़ाया जाता है, जबकि पीएचडी छात्रों को अपने क्षेत्र के अध्ययन के क्षेत्र को गंभीरता से देखना होता है। 

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए रोहित ने कहा, “यह छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों दोनों के लिए ही काफी मुश्किल होने जा रहा है। स्नातक ऑनर्स कार्यक्रम में उन्हें अनुसंधान के लिए शायद ही कोई प्रशिक्षण प्राप्त हो सके। क्या आप इतने कम समय में किसी स्नातक की परीक्षा पास करने वाले छात्र को सार-संक्षेप (सिनोप्सिस) और शोध प्रबंध लिखने, जमीनी शोध कार्य करने, प्रश्नावली तैयार करने इत्यादि के बारे में प्रशिक्षित कर सकते हैं? सच कहूँ तो हम लोग शोध क्षेत्र में बड़े पैमाने पर ड्रॉप-आउट के बारे में चिंतित हैं।”  

प्रस्तावित संरचना भविष्य के शोध के पाठ्यक्रम को लेकर भी छात्रों की चिंता का सबब बना हुआ है। अलोक कुमार, जिन्होंने हाल ही में जेएनयू से भाषा विज्ञान में अपनी एम.फिल की पढ़ाई पूरी की है, ने कहा कि नई व्वयस्था उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय छोड़ने के लिए आसान विकल्प प्रदान कर रही है। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि देश के गरीब हिस्सों से आने वाले छात्रों के लिए महंगे शहरी परिसरों में अपने अध्ययन को जारी रख पाना अब मुश्किल होगा। उनका कहना था, “स्नातकोत्तर की पढ़ाई को हटा देने का सीधा सा मतलब है कि छात्र अब शोध के लिए पूरी तरह से गाइड पर निर्भर रहेगा। शोध में उनका हस्तक्षेप कहाँ रह गया है? दूसरा, आसान विकल्प गरीब राज्यों के छात्रों को उच्च शिक्षण से दूर कर देगा। इन क्षेत्रों के मुद्दों को कैसे हल किया जायेगा? क्या शहरी और आलीशान इलाकों के छात्र कभी भी देश के अलग-अलग हिस्सों में पीने के पानी की कमी के बारे में दिलचस्पी ले सकेंगे?

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

UGC Draft Framework Would be Disastrous for Research, say Academics

JNU
UGC
du
FYUP
NEP
UGC Draft Framework
Two Year Masters
new education policy
Higher education

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा

जेएनयू: अर्जित वेतन के लिए कर्मचारियों की हड़ताल जारी, आंदोलन का साथ देने पर छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष की एंट्री बैन!

स्कूलों की तरह ही न हो जाए सरकारी विश्वविद्यालयों का हश्र, यही डर है !- सतीश देशपांडे

नई शिक्षा नीति बनाने वालों को शिक्षा की समझ नहीं - अनिता रामपाल

कॉमन एंट्रेंस टेस्ट से जितने लाभ नहीं, उतनी उसमें ख़ामियाँ हैं  


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License