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क्या कोरोना महामारी में बच्चों की एक पूरी पीढ़ी के ग़ायब होने का खतरा है?
यूनिसेफ के मुताबिक संकट के इस काल में बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं। उनके बीमार होने का ख़तरा ज़्यादा है, उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है, उनका टीकाकरण प्रभावित हो रहा है, उनके ग़रीबी और भुखमरी के चपेट में आने की संभावना ज़्यादा है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
21 Nov 2020
कोरोना वायरस
Image courtesy: NYU Langone Health

संयुक्त राष्ट्र की बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रन्स फंड यानी यूनिसेफ ने महामारी के दौरान दुनिया भर में बच्चों की स्थिति पर एक नई रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने और गरीबी बढ़ने के कारण बच्चों की एक पूरी पीढ़ी का भविष्य खतरे में होने की चेतावनी दी गई है। वैश्विक स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पोषण, स्वच्छता या पानी की पहुंच के बिना गरीबी में रहने वाले बच्चों की संख्या में 15 फीसदी बढ़ोत्तरी होने की आशंका भी जताई गई है।

सरकारों से बच्चों की सेवाओं में सुधार करने का आग्रह

यूनिसेफ का मानना है कि कोविड-19 महामारी दुनिया भर के बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के लिए "अपरिवर्तनीय नुकसान" का कारण बन सकती है। संकट के इस दौर में बच्चों के लिए दिन-प्रतिदिन खतरा घटने के बजाय बढ़ता जा रहा है।

अपनी इस रिपोर्ट में एजेंसी ने सरकारों से बच्चों की सेवाओं में सुधार करने के लिए और अधिक कदम उठाने का आग्रह किया है। इसके साथ ही यूनिसेफ ने शैक्षिक और स्वास्थ्य संबंधी अंतरालों को बंद करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग भी की है।

यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनिरिएटा फोर के मुताबिक, "प्रमुख सेवाओं में रुकावट और गरीबी की दर बढ़ जाना बच्चों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह संकट जितना लंबा चलेगा बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और कल्याण पर उतना ही गहरा प्रभाव पड़ेगा। पूरी पीढ़ी का भविष्य खतरे में है।"

रिपोर्ट में किन बातों पर ज़ोर दिया गया है?

ये रिपोर्ट 140 देशों में किए गए सर्वे पर आधारित है। इसमें बच्चों के सामने मौजूद तीन तरह के खतरों की चेतावनी दी गई है। इन खतरों में महामारी के सीधे परिणाम, आवश्यक सेवाओं में रुकावट और बढ़ती गरीबी व असमानता को शामिल किया गया है।

यूनिसेफ का कहना है कि कोरोना वायरस महामारी बच्चों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य को खतरा पहुंचा रही है। महामारी से स्वास्थ्य सेवाओं में बाधा पहुंच रही है जो बच्चों के लिए बेहद घातक साबित हो सकती है। साथ ही बढ़ती गरीबी लाखों बच्चों को दोबारा बालश्रम में धकेल सकती है।

20 लाख बच्चों पर मौत का ख़तरा

यूनिसेफ के अनुसार अगर टीकाकरण और स्वास्थ्य समेत सभी बेसिक सेवाओं में आ रही बाधाओं को नहीं सुधारा गया और कुपोषण का बढ़ना जारी रहा तो करीब 20 लाख बच्चे अगले 12 महीने में मौत का शिकार हो सकते हैं और अतिरिक्त दो लाख अभी जन्म ले सकते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक लगभग एक तिहाई देशों ने स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच में कम से कम 10 फीसदी की गिरावट दर्ज की है, जिनमें टीकाकरण और मातृ स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं।

एजेंसी ने पाया कि महिलाओं और बच्चों के लिए पोषण सेवाओं में महामारी के कारण 135 देशों में 40 फीसदी की गिरावट देखी गई। अक्टूबर तक 26.5 करोड़ बच्चे स्कूल में मिलने वाला भोजन से वंचित रहे। इसके अलावा 25 करोड़ बच्चों को विटामिन ए का लाभ नहीं पा रहा, इन बच्चों की उम्र पांच साल से कम है। वहीं एजेंसी ने बताया कि पांच साल से कम उम्र के 60-70 लाख अतिरिक्त बच्चे तीव्र कुपोषण का शिकार हो सकते हैं।

स्कूल बंद रहने से संक्रमण कम लेकिन नुक़सान ज्यादा

रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि स्कूलों को बंद रखने से वायरस के फैलाव की गति थोड़ी धीमी हुई है, लेकिन लंबे समय में यह नुकसानदायक हो सकता है। इसमें दावा किया गया है की स्कूल बंद होने के कारण स्कूल जाने वाले 33 फीसदी बच्चे प्रभावित हुए हैं।

हालांकि उच्च शिक्षा संस्थानों ने महामारी के सामुदायिक प्रसार में एक भूमिका निभाई है। रिपोर्ट में शामिल 191 देशों में किए गए अध्ययनों के डाटा से पता चला है कि स्कूलों के दोबारा खुलने की स्थिति और कोविड-19 संक्रमण दर के बीच कोई सुसंगत संबंध नहीं है।

क्षमता प्रभावित हो सकती है!

यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि वैश्विक समुदाय के तत्काल अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव लाने तक शायद युवा पीढ़ी अपनी क्षमता खो सकती है। यूनिसेफ के मुताबिक, बच्चे और स्कूल सभी देशों में महामारी प्रसार के मुख्य वाहक नहीं हैं। इस बात के सबूत हैं कि स्कूलों को खुला रखने का शुद्ध लाभ उन्हें बंद रखने के मोल को कम कर देता है।

नुकसानदायक हो सकता है स्कूलों को अधिक समय के लिए बंद रखना

यूनिसेफ के मुताबिक, महामारी की पहली लहर के पीक पर आने तक पूरे विश्व में 90 फीसदी छात्रों (करीब 1.5 अरब बच्चे) की कक्षाओं में होने वाली पढ़ाई बाधित हो चुकी है और 46.3 करोड़ बच्चों के पास रिमोर्ट लर्निंग (ऑनलाइन कक्षाओं) की सुविधा मौजूद नहीं है।

यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि जितने ज्यादा समय तक स्कूल बंद रहेंगे, उतने ज्यादा बच्चे व्यापक सीखने के नुकसान से जूझेंगे। इसके दीर्घकालिक निगेटिव प्रभाव होंगे, जिनमें भविष्य की आय व स्वास्थ्य भी शामिल है।

रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर तक करीब 60 करोड़ बच्चे स्कूल बंद होने से प्रभावित हुए हैं। ज्यादा से ज्यादा देशों की सरकारों ने वायरस के दोबारा जोर पकड़ने के कारण स्कूलों में तालाबंदी के आदेश को रिन्यू कर दिया है।

सरकारें बच्चों को प्राथमिकता बनाने से कतरा रही हैं!

गौरतलब है कि इससे पहले भी यूनिसेफ समेत बच्चों के लिए काम करने वाली दूसरी संस्थाओं ने कई रिपोर्ट जारी कर महामारी काल में बच्चों के खत्म होते बचपन की भयावता की ओर इशारा किया है। बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली ब्रिटेन की संस्था "सेव द चिल्ड्रन" ने भी कहा था कि कोरोना महामारी ने एक अभूतपूर्व शिक्षा आपातकाल खड़ा कर दिया है जिसके कारण करोड़ों बच्चों से शिक्षा का अधिकार छिन जाएगा। हालांकि इसके बावजूद सरकारें इसे अपनी प्राथमिकता बनाने से कतरा रही हैं। भारत जैसे देशों में सरकार उनके लिए बेहतर पढ़ाई लिखाई, भोजन, शौचालय, अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं को मुहैया करा पाने में असफल रही है। मिड-डे मील जैसे योजनाओं के वंचित बच्चों के लिए हम आनलाइन क्लासेज चला रहे हैं।

जाहिर है यदि महामारी के कारण होने वाली वित्तीय कठिनाइयों से परिवारों को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो कम और मध्यम आय वाले देशों में राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बच्चों की कुल संख्या वर्ष के अंत तक 67.2 करोड़ तक पहुंच सकती है। लाखों बच्चे खसरा, डिप्थीरिया और पोलियो जैसे जीवन रक्षक टीके से वंचित रह जाने के जोखिम का सामना कर सकते हैं।

इसे भी पढ़ें: ब्लॉग: क्या बच्चों के लिए 2020 उम्मीदों, सपनों और आकांक्षाओं के टूट जाने का साल है?

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