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विधानसभा चुनाव
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राजनीति
यूपी विधानसभा चुनाव : लाभार्थी वर्ग पर भारी आहत वर्ग
लाभार्थी वर्ग और आहत वर्ग ने यूपी विधानसभा चुनाव को प्रभावित किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है। मगर, सवाल यह है कि क्या इन दोनों वर्गों के मतदाताओं ने वोट करते समय जाति, धर्म और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को भुलाकर वोट किया है?
प्रेम कुमार
08 Mar 2022
up elections

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के दो स्पष्ट वर्ग नज़र आए हैं। एक लाभार्थी वर्ग और दूसरा आहत वर्ग। लाभार्थी वर्ग वह वर्ग है जिसे डबल इंजन की सरकार में लोक कल्याणकारी योजनाओं का फायदा मिला है। वहीं आहत वर्ग वह है जिसमें शामिल लोग डबल इंजन की सरकार के जनविरोधी क्रियाकलाप से चोट पहुंचा हुआ महसूस करते हैं। हर जाति, धर्म, समुदाय, शहरी, ग्रामीण और यहां तक कि राजनीतिक लोग भी इन दो वर्गों में बंटे हैं। दोनों ही वर्ग चुनाव को प्रभावित कर रहे हैं।

लाभार्थी वर्ग और आहत वर्ग ने यूपी विधानसभा चुनाव को प्रभावित किया है। इसमें कोई संदेह नहीं है। मगर, सवाल यह भी है कि क्या इन दोनों वर्गों के मतदाताओं ने वोट करते समय जाति, धर्म और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को भुलाकर वोट किया है? क्या कोरोना काल में सरकार से राशन लेते रहे मुस्लिम, यादव, राजभर, पटेल, पासी, निषाद मतदाताओं ने सिर्फ लाभार्थी होकर वोट किया है? लाभार्थी वर्ग में किसान भी रहे हैं और क्या उन्होंने 13 महीने के अपने राजनीतिक आंदोलन से अप्रभावित होकर वोट किया है? या फिर बेसहारा पशुओं के कारण हुए नुकसान को भुलाकर उन्होंने सिर्फ लाभार्थी होकर वोट किया है? 

आहत वर्ग का दायरा भी व्यापक रहा है। कोरोना काल में मारे गए लोगों के परिजन हों या फिर ऑक्सीजन और बेड समेत दवाओं की कमी या इलाज को तरसते रहे मरीज और उनके परिजन; रोजगार के लिए तरसते युवा हों या महंगाई से पीड़ित अवाम; वे किसान हों जिनके खेत बेसहारा पशुओं ने चर लिए या वे किसान जिनकी आमदनी दुगुनी होने के बजाए आधी हो गयी हो, जिनकी उपज का बकाया लंबित हो;  सौतेला व्यवहार झेलता अल्पसंख्यक वर्ग हो या फिर जातीय भेदभाव महसूस करती खास जाति से जुड़े लोग- ये आहत वर्ग में आते हैं। आप सुविधानुसार इस सूची का दायरा बढ़ा ले सकते हैं।

लाभार्थी और आहत वर्ग में व्यापक कौन?

अब सवाल है कि क्या लाभार्थी वर्ग से बड़ा है आहत वर्ग? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल में 80 करोड़ लोगों तक दिवाली तक राशन पहुंचाने की घोषणा 2020 में ही की थी। इस अवधि का लगातार विस्तार करते हुए राशन वितरण जारी है और यह 31 मार्च 2022 तक प्रभावी है। यह संख्या देश की कुल आबादी का 57 फीसदी है। इस हिसाब से उत्तर प्रदेश में 13 करोड़ से ज्यादा लोग लाभार्थी हुए। यूपी में 15 करोड़ मतदाता हैं। अगर लाभार्थी को मतदाताओँ में भी उसी अनुपात में बांटकर समझें तो लाभार्थी मतदाताओँ की संख्या हो जाती है 8.5 करोड़। जाहिर है हर दूसरा मतदाता लाभार्थी है। बल्कि, उससे ज्यादा लाभार्थी हैं। 

अन्य किस्म के लाभार्थी भी हैं लेकिन यह यकीन से कहा जा सकता है कि वे सभी लाभार्थी राशन पाने वाले लाभार्थी वर्ग के अंतर्गत ही आते होंगे। ऐसे लाभार्थियों में मुफ्त गैस कनेक्शन पाने वाले लोगों से लेकर मुफ्त आवास और शौचालय पाने वाले तक सभी शामिल हैं। डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम हो या फिर किसान सम्मान निधि के लाभुक वर्ग, बीमा पॉलिसी का लाभ लेने वाला वर्ग हो या नीम कोटिंग यूरिया से खाद की कालाबाजारी से मुक्त होने वाला वर्ग- ये सारे लोग राशन पाने वाले वर्ग में समाहित हो जाते हैं।

महंगाई, बेरोजगारी, बेसहारा पशुओं से पीड़ित किसानों के दायरे में करोड़ों लोग

महंगाई अकेला ऐसा आहत वर्ग है जो लाभार्थी वर्ग से बड़ा हो जाता है। मगर, कहा जाता है कि महंगाई तो हर सरकार में रही है इसलिए इसका उस मात्रा में नकारात्मक प्रभाव नहीं होगा जितना लाभार्थी वर्ग का सकारात्मक प्रभाव होगा। थोड़ी देर के लिए इस तर्क को मान लेते हैं। फिर सवाल यह है कि क्या पांच किलो राशन, आवास, शौचालय और दूसरी योजनाओं के लाभार्थी इस बात से बेफिक्र रह सकते हैं कि उनके घर पल रहे बच्चे बेरोजगार हैं? ऑक्सफेम और स्वतंत्र एजेंसियों की रिपोर्ट के इन दो तथ्यों पर गौर करें- 

  • रोजगार बढ़ नहीं रहे हैं बल्कि कम हो रहे हैं। जब योगी सरकार आयी थी तब रोजगार में जितने लोगों की हिस्सेदारी थी उसी प्रतिशत को अगर बरकरार रखा जा पाता तो कम से कम दो करोड़ लोगों को और नौकरी मिली होती। 
  • आमदनी बढ़ नहीं रही है बल्कि कम हो रही है। देश में 84 फीसदी लोगों की आमदनी कोरोना काल में घट गयी है। 

नियुक्ति के संघर्ष में हैं 15 लाख लोग 

उत्तर प्रदेश में 32 हजार से ज्यादा अनुदेशक लंबे समय से महज 7 हजार रुपये के मानदेय पर काम करते रहे हैं। विधानसभा में 17 हजार रुपये मानदेय का वादा करके भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उसे पूरा नहीं कर पाए। आखिरी विधानसभा सत्र में दो हजार रुपये बढ़ाने की घोषणा जरूर हुई। मगर, उनकी घोषणा के बाद भी असंतोष कम नहीं हुआ। वजह यह है कि कभी उन्हें 8700 रुपये का मानदेय मिला करता था जिसे योगी राज में घटाकर 7 हजार कर दिया गया था। अनुदेशक नियमितीकरण की मांग कर रहे हैं।

पौने दो लाख शिक्षा मित्र अपनी नौकरी और वेतन के लिए संघर्षरत हैं तो डेढ़ लाख बीपीएड को भर्ती प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार है। 9 हजार एंबुलेंस कर्मी और 70 हज़ार ग्राम प्रहरी भी स्थायी नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। 69 हज़ार भर्ती में 22 हज़ार पद अब भी रिक्त हैं जिसके लाखों अभ्यर्थी संघर्ष कर रहे हैं। 2 लाख ग्राम प्रेरकों की लड़ाई अलग है। 12, 400 विशिष्ट बीटीसी, 4 हजार असिस्टेंट प्रोफेसर, 4 हजार कंप्यूटर टीचर, 4 हजार ऊर्दू टीचर, 4 हजार फार्मासिस्ट अपनी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इनसे जुड़े अभ्यर्थी भी लाखों में हैं। इंटर और डिग्री कॉलेज के करीब 3 लाख वित्तविहीन शिक्षक की पीड़ा अलग है। इन संख्याओँ को जोड़ें तो यह 15 लाख से अधिक हो जाती है। 

ओल्ड पेंशन स्कीम की लड़ाई लड़ रहे हैं 15 लाख कर्मचारी

आहत वर्ग की पीड़ा और लाभार्थी वर्ग के सुख-संतोष की तुलना करें तो आहत वर्ग भारी पड़ जाता है। हमें ओल्ड पेंशन स्कीम की लड़ाई लड़ रहे उत्तर प्रदेश के 15 लाख शिक्षक और कर्मचारियों को भी नहीं भूलना चाहिए। ये आंदोलनकारी लोग लाभार्थी होकर कतई वोट नहीं करेंगे। 30 लाख का यह आहत वर्ग महंगाई और दूसरे मुद्दों से परेशान वर्ग से अलग है। लाभुक वर्ग में सरकार के प्रति कृतज्ञ होने का भाव जिस मात्रा में है उससे कहीं ज्यादा गुस्से का भाव इस वर्ग में है। आहत वर्ग राजनीतिक रूप से जागरूक और संगठित भी है। 

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बेसहारा पशुओं से आहत किसान वर्ग को भरोसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिलाया, मगर उन्होंने उनकी समस्या को पहचानने में बहुत देर कर दी। बेरोजगारों के दर्द को गृहमंत्री अमित शाह ने चुनाव के आखिरी चरण में समझा। ओल्ड पेंशन की मांग पर बीजेपी के कान बंद ही रहे। इसके उलट समाजवादी पार्टी ने इन मुद्दों को अपने घोषणापत्र में शामिल किया। सत्ता में आते ही 16 लाख सरकारी नौकरी देने का देने का भरोसा भी दिलाया। 

उत्तर प्रदेश का चुनाव परिणाम इसी बात पर निर्भर करने वाला है कि लाभार्थी वर्ग और आहत वर्ग को क्रमश: जुबान देने वाली सत्ताधारी बीजेपी और मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के गठबंधन में कौन किस पर भारी पड़ता है। लाभार्थी वर्ग में मौजूद आहत वर्ग का रुख स्वयं बदला जा सकता है, लेकिन आहत वर्ग में मौजूद लाभार्थी वर्ग का रुख आसानी से नहीं बदल सकता। यही बात विपक्ष के लिए उम्मीद और बीजेपी के लिए चिंता का सबब है। 

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