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भारत
राजनीति
अखिलेश की जनसभाओं में आ रही भीड़ भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है
समाजवादी पार्टी ने आगामी विधानसभा के लिए महान दल, अपना दल (कमेरावादी), राष्ट्रीय लोकदल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी जैसे दलों से गठबंधन कर कहीं न कहीं सत्तारूढ़ भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं।
गौरव गुलमोहर
30 Dec 2021
akhilesh

उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही समय शेष रह गया है। सभी पार्टियां अपनी-अपनी रणनीति बनाने में लगी हैं। बहुजन समाज पार्टी को छोड़ लगभग सभी दलों ने रैलियों और यात्राओं का आयोजन शुरू कर दिया है। कांग्रेस ताबड़तोड़ जनसभाओं का आयोजन कर रही है, भाजपा भी उद्घाटन समारोह और मंदिर पूजन के बहाने एक के बाद एक रैली कर रही है तो वहीं समाजवादी पार्टी भी विजय यात्रा की शुरूआत कर चुकी है। अभी तक अखिलेश की विजय यात्रा कई ज़िलों जौनपुर, बांदा, महोबा, रायबरेली से होते हुए उन्नाव से जा चुकी है।

ऐसे में जब यूपी में मुख्यतः लड़ाई दो ही दलों के बीच दिख रही है तब यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि अन्य पार्टियों की जनसभाओं से अखिलेश यादव की विजय यात्रा किन मायनों में भिन्न है? हमने अभी तक अखिलेश की विजय यात्रा बांदा, महोबा और रायबरेली में देखी है। सभी जिलों में यात्रा का स्वरूप और रणनीति एक जैसी नज़र आई। यात्रा की रूपरेखा देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह यात्रा खास तरह से प्लान की गई है।

उत्तर प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी अपने साथी दलों के साथ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। पिछले चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन को कुल 54 सीटें मिली थीं, जिसमें सात सीटें कांग्रेस के खाते में रहीं। जो घटकर अब पांच पर पहुंच गई है। रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह और हरचंदपुर सीट से कांग्रेस विधायक राकेश कुमार सिंह अब भाजपा में जा चुके हैं।

सपा ने आगामी विधानसभा के लिए महान दल, अपना दल (कमेरावादी), राष्ट्रीय लोकदल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी जैसे दलों से गठबंधन कर कहीं न कहीं सत्तारूढ़ भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा कर दी है। सपा के साथ जो प्रमुख दल आज गठबंधन में हैं वे पूर्व में भाजपा के साथ गठबंधन में रहते हुए महती भूमिका निभा चुके हैं। इन दलों का उत्तर प्रदेश की लगभग 100 सीटों पर खास प्रभाव देखने को मिलता है।

आम तौर पर सभी चुनाव पूर्व में हुए चुनावों से भिन्न होते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव पिछले चुनाव से कई मायनों में कुछ अलग हो सकता है। भारतीय जनता पार्टी ने पिछला चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा था जबकि 2022 में निर्विरोध तौर पर चुनाव वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर होने जा रहा है। पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री के चेहरे पर चुनाव होने से उत्तर प्रदेश के जातीय आधार पर मतदान व्यवहार में अंतर देखने को मिला था। आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि जातीय आधार पर और बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कितना प्रभाव छोड़ पाते हैं।

अखिलेश की विजय यात्रा जिस जिले में पहुंच रही है वहां एक दिन में लगभग दो जनसभाओं का आयोजन किया जाता है। दोनों जनसभाओं के बीच की दूरी लगभग 30 से 40 किलोमीटर की होती है। एक जनसभा से दूसरे जनसभा के बीच की यात्रा ऐसे प्लान की जाती है कि अखिलेश यादव की बस (रथ) उस विधानसभा के ठीक बीच से निकलती है। एक जनसभा से दूसरी जनसभा के बीच जगह जगह पर पार्टी कार्यकर्ताओं का समूह अपने नेता का इंतजार कर रहा होता है। सिलसिलेवार चल रही यात्राओं को देख कर लगता है कि इस चुनावी यात्रा के लिए विशेष तौर पर रणनीति बनाई गई है।

निवास स्थल पर मौजूद युवाओं की नारेबाजियों के बीच अखिलेश यादव रथ से जनसभा के लिए सुबह 9 से 10 बजे के बीच निकलते हैं। सड़क के दोनों ओर खड़े जनसमूह का आभिवादन स्वीकार करते हुए उनका काफिला आगे की ओर बढ़ता चला जाता है। वे सम्मान में आए लोगों से फूल माला व 'गदा' स्वीकार करते हैं।

चुनाव के दौरान जनसभाओं में प्रतीक के तौर पर गदा के इस्तेमाल पर वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी कहते हैं कि "राजनीति में यह नई परंपरा है। अखाड़ा में पहलवानी करने वाले पहलवानों के सम्मान में भी गदा देने की परंपरा रही है और मुलामय सिंह यादव तो पहलवानी लड़ते भी थे। लेकिन राजनीति में जैसे-जैसे पारंपरिक और स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकों का अभाव पड़ता चला गया वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियों में धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग बढ़ता चला गया।"

वे आगे कहते हैं कि "अखिलेश यादव की जनसभाओं में गदा का इस्तेमाल भी कार्यकर्ताओं में जोश भरने और उत्साहित करने का तो है ही, कहीं न कहीं गदा का इस्तेमाल धार्मिक प्रतीक के तौर पर भी किया जा रहा है।"

अखिलेश का पूरा भाषण राइम से भरा होता है। सभी राइम स्थानीय व आम जनता के मुद्दों के आस-पास गढ़े गए होते हैं। भाषण में ज्यादा बातें आम जनता की स्थानीय समस्याओं से जुड़ी होती हैं। राइम में ही विपक्ष पर हमला भी करते हैं।

उत्तर प्रदेश में पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक लोगों के लिए आवारा पशु और महंगाई समान रूप से अहम मुद्दा है। इस समस्या से आम जनता पिछले पांच वर्षों से रोज दो-चार हो रही है। भाजपा सरकार महंगाई, बेरोजगारी और आवारा पशुओं पर लगाम लगाने में बुरी तरह विफल रही है।

रायबरेली निवासी कालीदीन यादव बताते हैं कि इस सरकार में आवारा पशुओं से इतनी परेशानी है कि खेत में कुछ बच नहीं रहा है, दिन-रात पूरा गांव लाठी-डंडा लिए जानवरों से रखवाली करता रहता है। इस सरकार में गरीबों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

अखिलेश यादव द्वारा राइम में भाषण देने के कारण सभा में आई जनता बोर नहीं होती है। अखिलेश राइम में ही सीएम योगी की आलोचना भी करते हैं। वे अपने भाषण में कहते हैं योगी अदित्यनाथ में प्रदेश के कल्याण के लिए प्रभावी कदम उठाने की क्षमता नहीं है। अखिलेश कहते हैं बाबा खुद लैपटॉप, टैबलेट और स्मार्टफोन नहीं चलाना जानते तो वे कैसे युवाओं को लैपटॉप या स्मार्टफोन देंगे? जनता को संबोधित करते हुए अखिलेश अपने कार्यकाल में प्रदेश में किए गए विकास की चर्चा करते हैं।

इस दौरान वे कहते हैं पहले एक चिमनी में 230 से 250 मेगावाट बिजली बनती थी लेकिन समाजवादी सरकार बनने के बाद एक ही चिमनी, एक ही प्लांट में 'सिक्स सिक्सटी सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट' लगवाया था और उत्तर प्रदेश में लगना शुरू हो गए थे। लेकिन क्या आपने कभी बाबा के मुंह से "थ्री इंटु सिक्स सिक्सटी थर्मल प्लांट" सुना, क्या बाबा कह पाएंगे? तो ये योगी नहीं अनुपयोगी हैं।"

एक बात खास है कि अखिलेश की रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए प्रत्याशियों पर दबाव बनाने की की बात सामने नहीं आई है लेकिन वहीं अन्य दलों की रैलियों में प्रत्याशियों पर दबाव बनाकर रैलियों में भीड़ जुटाने की बात सामने आई थी। मीडिया में ये बातें सामने आई है कि सत्तारूढ़ भाजपा की रैलियों में भीड़ इकट्ठा करने के लिए सरकारी बसों और विधायकों, मंत्रियों को निर्देश जारी किया जा रहा है। बनारस में भाजपा की रैली में आगरा से जनता जाती है। सुल्तानपुर में बुंदेलखंड से भीड़ लाई जा रही है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह अखिलेश यादव की रैली में आ रही भीड़ के संदर्भ में कहते है कि "अखिलेश यादव की रैली में आ रही भीड़ देखकर साफ पता चलता है कि मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही है, कहीं-कहीं फ्रिंज मुकाबला बसपा और कांग्रेस के बीच देखने को मिलता है। सरकार से कुछ वर्ग नाराज हैं और वे अखिलेश की रैली में आ रहे हैं। समाजवादी पार्टी की उपस्थिति सभी जगह है, उनका समर्थक समूह है इसके अलावा एक-एक सीट पर दस से पंद्रह प्रत्याशी टिकट मांग रहे हैं, इससे चुनाव से पहले वातावण बन जाता है जिसका निश्चित तौर पर लाभ मिलता है। अखिलेश की सभा में पहले भी भीड़ जुटती थी लेकिन उन सभाओं में इतना जोश देखने को नहीं मिलता था।"

वे आगे कहते हैं कि "लेकिन भारतीय जनता पार्टी की केंद्र और राज्य में सरकार है। उत्तर प्रदेश की सवर्ण जातियों का समर्थन भी है। उसके पास राजनीतिक और आर्थिक शक्ति है। उसे इसका साथ मिलेगा। जनसभा में भीड़ आ जाना पर्याप्त नहीं है उसे मत पेटी तक अखिलेश यादव पहुंचा पाएंगे, यह मुख्य सवाल है।"

(गौरव गुलमोहर स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Uttar pradesh
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