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यूपी: पीएम के गोद लिए गांव की रिपोर्टिंग को लेकर पत्रकार सुप्रिया शर्मा पर एफआईआर
सुप्रिया शर्मा न्यूज़ वेबसाइट स्क्रोल डॉट इन की कार्यकारी संपादक हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव डोमरी में भूख से पीड़ित लोगों पर स्टोरी की थी।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
19 Jun 2020
SUPRIYA SHARMA

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों का उत्पीड़न थमने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा मामला न्यूज़ वेबसाइट स्क्रोल डॉट इन की कार्यकारी संपादक सुप्रिया शर्मा का है। लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव डोमरी की स्थिति पर रिपोर्ट करने पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकार सुप्रिया शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।

बता दें कि उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों फतेहपुर जिले के पत्रकार अजय भदौरिया पर स्थानीय प्रशासन ने एफआईआर दर्ज करा दी। उन्होंने सामुदायिक रसोईघर बंद होने पर रिपोर्ट लिखी थी। साथ ही एक अन्य पत्रकार विवेक मिश्रा ने स्थानीय गौशालाओं में लगातार मर रही गायों से जुड़ी एक रिपोर्ट की थी। उन पर भी मामला दर्ज किया गया। इसके खिलाफ जिले के तमाम पत्रकारों ने सात जून को जल सत्याग्रह शुरू कर दिया था। इससे पहले मिर्जापुर के पत्रकार पवन जायसवाल पर मिडे-डे मील की हकीकत दिखाने पर भी एफआईआर हो चुकी है।

मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक यह एफआईआर 13 जून को वाराणसी के रामपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज हुई है। पुलिस के मुताबिक उनके खिलाफ वाराणसी के डोमरी गांव की रहने वाली माला देवी ने शिकायत दर्ज करवाई है। माला देवी का आरोप है कि शर्मा ने उनकी पहचान और बयानों को बदलकर प्रस्तुत किया है।

स्क्रोल की सहयोगी वेबसाइट सत्याग्रह के मुताबिक, सुप्रिया शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पर कोरोना वायरस और उससे निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के प्रभाव से जुड़ी रिपोर्टों की एक सीरीज की थी। इसमें उन्होंने सांसद ग्राम योजना के तहत प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिए गांव डोमरी की निवासी माला देवी का भी इंटरव्यू लिया था। इस बातचीत में माला देवी ने बताया था कि वे लोगों के घरों में काम करती हैं और राशन कार्ड न होने की वजह से उन्हें लॉकडाउन के दौरान भोजन जुटाने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

सत्याग्रह के मुताबिक, हालांकि इसके उलट पुलिस को जो शिकायत मिली है उसके मुताबिक माला देवी का कहना है कि वे एक घरेलू कामगार नहीं बल्कि वाराणसी नगर निगम में आउटसोर्सिंग सफाई कर्मचारी हैं। इस एफआईआर में माला देवी के हवाले से यह भी लिखा गया है कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें या उनके परिवार में किसी को भी खाने-पीने की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन सुप्रिया शर्मा ने अपनी रिपोर्ट में उनके और उनके बच्चों के भूखे रहने की बात कहकर उनकी ग़रीबी और जाति का मज़ाक बनाया है।

इस मामले में पुलिस ने सुप्रिया शर्मा के ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम- 1989, किसी की मानहानि करने से जुड़ी आईपीसी की धारा 501 और किसी महामारी को फैलाने में बरती गई लापरवाही से जुड़ी आईपीसी की धारा 269 के तहत मामला दर्ज़ किया है।

इस पूरे मामले पर स्क्रोल ने बयान जारी कर प्रतिक्रिया दी है। इसमें कहा गया है, ‘5 जून 2020 को हमने डोमरी गांव (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) की रहने वाली माला देवी का इंटरव्यू लिया था। उसमें उन्होंने बिल्कुल वही बातें कहीं जैसा कि हमारी इस रिपोर्ट का शीर्षक है ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव में लोग लॉकडाउन के दौरान भूखे रहे।’ हम अपने इस आर्टिकल पर पूरी तरह कायम हैं। लॉकडाउन के दौरान समाज के पिछड़े वर्ग की रिपोर्टिंग के चलते की गई ये एफआईआर स्वतंत्र पत्रकारिता को डराने और उस पर हमला करने का प्रयास है।

 

इसे पढ़ें : यूपी में फिर पत्रकार पर मुकदमा, राशन किट में कथित गड़बड़ी को किया था उजागर!

प्रेस परिषदों के वैश्विक संघ ने मीडिया में नौकरियां जाने पर चिंता जतायी

प्रेस परिषदों के वैश्विक संघ (डब्ल्यूएपीसी) ने दुनिया भर की प्रेस और मीडिया परिषदों से आग्रह किया है कि वे 'कोरोना वायरस महामारी के चलते पत्रकारों की नौकरियां जाने के गंभीर मुद्दे' को अपने-अपने देश की सरकारों और संयुक्त राष्ट्र के समक्ष उठाएं।

एक बयान में कहा गया है कि एशिया, यूरोप और अफ्रीका में प्रेस तथा मीडिया परिषदों के एकमात्र प्रमुख संगठन डब्ल्यूएपीसी के अध्यक्ष डॉ. सुले अकेर ने रविवार को सदस्य देशों के साथ सम्मेलन किया। सम्मेलन में महामारी और इसके प्रभाव के कारण जिस संकट का सामना सभी मीडिया संगठन कर रहे हैं, उस पर चिंता जतायी गई।

संयुक्त राष्ट्र से मान्यता प्राप्त डब्ल्यूएपीसी ने अभूतपूर्व संकट की इस घड़ी में पत्रकारों और मीडिया जगत को हर संभव मदद मुहैया कराने के लिये संयुक्त राष्ट्र और उससे संबंद्ध यूनेस्को जैसे संगठनों का रुख करने का भी फैसला किया है। डॉक्टर सुले ने बयान में कहा कि विभिन्न देशों में अपनी ड्यूटी करते हुए इस खतरनाक बीमारी के कारण कई पत्रकारों की जान जा चुकी है और ऐसे ही माहौल में काम करने की वजह से कई पत्रकार इसकी चपेट में आ चुके हैं।

इसे पढ़ें : यूपी: प्रशासन की नाकामी उजागर करने पर एफआईआर दर्ज करने के विरोध में पत्रकारों का जल-सत्याग्रह जारी  

बयान में सभी देशों की सरकारों से मीडिया को बचाने के लिये तत्काल हस्तक्षेप करने की अपील की गई है। डॉक्टर सुले और डब्ल्यूएपीसी के महासचिव किशोर श्रेष्ठ ने सभी प्रेस तथा मीडिया परिषदों को पत्र लिखकर कहा है कि वे इस अभूतपूर्व महामारी के समय मीडिया को बचाने के लिये सरकारों से हस्तक्षेप की अपील करें।

इसे देखें : कोरोना को छोड़, सच दिखाते पत्रकारों पर सत्ता का कहर  

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ) 

 

Press freedom
Uttar pradesh
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COVID-19
Lockdown
Supriya Sharma

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