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भारत
राजनीति
यूपी: एक ट्वीट पर पत्रकारों से लेकर ट्विटर तक पर मुक़दमा
बुज़ुर्ग से पिटाई मामले में ट्वीट करने पर ग़ाज़ियाबाद में पुलिस ने नौ लोगों के ख़िलाफ़ दंगा भड़काने की कोशिश के आरोप में मुक़दमा लिख लिया। जिसमें तीन पत्रकार हैं, एक डिजिटल मीडिया संस्थान के अलावा विपक्षी नेता और माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ‘ट्विटर’ है।
असद रिज़वी
16 Jun 2021
यूपी: एक ट्वीट पर पत्रकारों से लेकर ट्विटर तक पर मुक़दमा

उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता करना आसान नहीं है। ख़बर करने पर जेल जाने से लेकर जान जाने तक का ख़तरा है। प्रतापगढ़ में  हुई पत्रकार की हत्या के मामले अभी तक खुलासा करने में नाकाम उत्तर प्रदेश पुलिस ने ग़ाज़ियाबाद में एक ट्वीट को लेकर पत्रकारों को दंगा भड़काने की कोशिश करने का आरोपी बना दिया।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में, शासन-प्रशासन द्वारा लगातार पत्रकारों का दमन किया जाना, हैरान करने वाला है। यहाँ प्रेस-मीडिया जिनको संविधान का का चौथा स्तंभ कहा जाता है, उसको लगातार कमज़ोर किया जा रहा है। राजधानी लखनऊ से लेकर प्रदेश के विभिन भागों से पत्रकारों पर हमलों की ख़बरे बराबर आती रहती हैं।

प्रेस की स्वतंत्रा में 142 वाँ स्थान

ख़बरें अपने मुताबिक न होने या ख़बर में त्रुटि होने पर उसका खंडन संपादक को भेजने या प्रेस काउन्सिल जैसी संस्थाओं में शिकायत करने के बजाय, सरकार पत्रकारों पर सीधा मुक़दमा लिख रही है। शायद यही वजह है की विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत, प्रेस की स्वतंत्रा के मामले में, वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स 2021 में, 180 में से 142वें स्थान पर आ गया है।

प्रतापगढ़ में 14 जून को पत्रकार की हुई हत्या का मामला अभी तक प्रदेश पुलिस सुलझा नहीं सकी है। लेकिन ग़ाज़ियाबाद में पुलिस ने नौ लोगों के ख़िलाफ़ दंगा भड़काने की कोशिश के आरोप में  मुक़दमा लिख दिया। जिसमें तीन पत्रकार हैं, एक डिजिटल मीडिया संस्थान है के अलावा विपक्षी नेता और माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर है।

ट्वीट पर पत्रकारों पर मुक़दमा

देश की राजधानी से 44 किलोमीटर दूर ग़ाज़ियाबाद में एक मुस्मिल बुजुर्ग से मारपीट और दाढ़ी काटे जाने के बारे में ट्वीट करने पर, पत्रकारों के ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखा गया है। इन सभी पर "सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने" का आरोप है।

क्या है मामला?

बता दें कि एक बुज़ुर्ग मुस्लिम व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि पांच जून को उस पर हमला हुआ, और उनको "वंदे मातरम" और "जय श्री राम" के नारे लगाने के लिए मजबूर किया गया। बुजुर्ग अब्दुल समद ने एक वीडियो दिखाकर दावा किया कि उसकी दाढ़ी काट दी गई थी।

इसी घटना के बारे में ट्वीट करने के मामले में लेखक पत्रकार राना अय्यूब, सबा नक़वी और मोहम्मद ज़ुबैर को आरोपी बनाया गया है। ऑनलाइन न्यूज़ "द वायर" के ख़िलाफ़ भी संगीन धराओं में  मुक़दमा दर्ज हुआ है।

 

संगीन धाराएं

इन सबके  ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 153 (दंगा भड़काना), 153 ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 295 ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से काम करना), 505 (शरारत), 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत  एफ़आईआर दर्ज की गई है। मुक़दमा “ट्विटर” पर भी लिखा गया है।

कहा जा रहा है कि कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान मीडिया के एक वर्ग द्वारा प्रदेश में कुप्रबंधन (ऑक्सीज़न की कमी और नदियों में बहती लाशों) की ख़बरों को दिखाए जाने से, इस वर्ग के विरुद्ध सरकार में नाराज़गी है।

क्या कहते हैं पत्रकार

जब इस मामले पर न्यूज़क्लिक  के लिए पत्रकार सबा नक़वी से संपर्क किया गया तो उन्होंने अभी कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया। जबकि “द वायर” ने एक बयान जारी करते हुए, एफ़आईआर की निंदा की है और कहा उनके द्वारा प्रकाशित की गई ख़बर सत्य है और पीड़ित बुज़ुर्ग के बयान पर आधारित है। वायर ने अपने बयान में कहा कि सरकार चाहती है कि उसके बयानो के अलावा, जो भी ख़बर मीडिया में आये उसको अपराध की श्रेणी में ले आया जाये।

विपक्ष भी नहीं बचा

विपक्षी नेता डॉ. मशकूर उस्मानी ने न्यूज़क्लिक के लिए बात करते हुए कहा कि उनके और पत्रकारों के ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखकर सरकार असहमति के आवाज़ों को दबाना चाहती है। डॉ. उस्मानी ने कहा यह एफ़आईआर योगी सरकार एक संदेश है कि, जो भी असहमति में आवाज़ उठायेगा, विपक्ष या मीडिया उनको मुक़दमों में फँसा कर परेशान जायेगा। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र संघ अध्यक्ष रह चुके डॉ. उस्मानी ने कहा कि सरकार जितना भी दमन कर ले, नागरिकों के संविधानिक अधिकार नहीं छीन सकती है।

पुलिस का बयान

इसके अलावा मुक़दमे में कांग्रेस नेता डॉ. मशकूर उस्मानी के अलावा सलमान निज़ामी, और शमा मोहम्मद का भी नाम शामिल है। ग़ाज़ियाबाद में लोनी बॉर्डर थाने में दर्ज मुक़दमे में पुलिस का आरोप है कि, तथ्यों की पुष्टि किए बिना और घटना को इन लोगों ने सांप्रदायिक रंग देने के लिए ट्वीट किया।

पुलिस की जल्दबाज़ी

सोशल मीडिया की एक पोस्ट पर पत्रकारों के ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखने वाली उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रतापगढ़ में 14 जून को एबीपी के पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की संदिग्ध हालात में (अर्धनग्न अवस्था) में लाश मिलने के तुरंत बाद  बिना किसी जाँच किये, उनकी मौत को एक हादसा बता दिया था।

जबकि दिवंगत पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव ने 12 जून को ही शराब माफियाओं से जान माल का खतरा बताया था। इस संबंध में उन्होंने अपर पुलिस अधीक्षक, प्रतापगढ़ को एक पत्र भी भेजा था। विपक्षी दलों, समाजिक संस्थाओ और मीडिया के दबाव में बाद में पुलिस को बाद में हत्या का मुक़दमा लिखना पड़ा।

पत्रकार की पिटाई

इसके अलावा हाल में ही मई के महीने में सिद्धार्थनगर में बीजेपी के एक विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह और एसडीएम त्रिभूवन सिंह की कथित मौजूदगी में, एक बड़ी भीड़ ने,हिन्दी चैनल के एक पत्रकार, अमीन फ़ारूक़ी को जमकर मारा था।

विडंबना ये कि बाद में आरोपियों के साथ पत्रकार के विरुद्ध भी मुक़दमा लिखा गया। बताया जाता है कि अमीन फ़ारूक़ी ने कोविड-19 के प्रकोप में ज़िले में हो रहे कुप्रबंधन पर सवाल किया था। पत्रकार का आरोप है की उसको विधायक और एसडीएम के इशारे पर मारा गया।

पहले दर्ज हुए कुछ मामले 

लेकिन यह पहली बार नहीं  हुआ है कि प्रदेश में पत्रकारों पर मुक़दमा लिखा गया है या उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। ऐसा पिछले कई सालों से होता आ रहा है। मिड-डे मील में घोटाले की ख़बर दिखाने पर मिर्ज़ापुर के युवा पत्रकार पंकज जयसवाल पर 31 अगस्त 2019 में मुक़दमा किया गया। वहाँ का प्रशासन उनसे इस बात पर नाराज़ था, कि उन्होंने प्रिंट मीडिया के पत्रकार होते हुए, वीडियो क्यूँ बनाया।

न्यूज़ पोर्टल “स्क्रॉल” की सम्पादक सुप्रिया शर्मा पर 13 जून, 2020 में वाराणसी में इस आरोप में मुक़दमा हुआ की उन्होंने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  द्वारा गोद लिए गए डोमारी गाँव, वाराणसी में लॉकडाउन-01 के दौरान भुखमरी पर ग़लत ख़बर दिखाई। 

इसके अलावा 16 सितंबर, 2020 को  सीतापुर में रवींद्र सक्सेना- क्वारंटीन सेंटर पर बदइंतज़ामी की ख़बर दिखाने के विरुद्ध, 10 सितंबर, 2019- आज़मगढ़ के एक स्कूल में छात्रों से झाड़ू लगाने की घटना को रिपोर्ट करने वाले पत्रकार संतोष जायसवाल समेत छह पत्रकारों के ख़िलाफ़, 7 सितंबर, 2020-बिजनौर में दबंगों के डर से वाल्मीकि परिवार के पलायन करने संबंधी ख़बर के मामले में पांच पत्रकारों आशीष तोमर, शकील अहमद, लाखन सिंह, आमिर ख़ान तथा मोइन अहमद के ख़िलाफ़ और 25 जनवरी 2021 में कानपुर देहात में तीन स्थानीय पत्रकारों मोहित कश्यप, अमित सिंह और यासीन अली के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज हुए।

पत्रकार प्रशांत कनौजिया को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर व्यंगपूर्ण टिप्पणी के आरोप में जेल भेज दिया गया था। हाथरस कांड की  रिपोर्टिंग के लिए जा रहे केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन अभी भी उत्तर प्रदेश जेल में बंद हैं।

मुख्यमंत्री के कार्यक्रम पर ट्वीट करने के लिए वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन को अयोध्या (फ़ैज़ाबाद) पुलिस ने लॉकडाउन के समय सम्मन भेज के तलब कर लिया। बाद में उनको अदालत से राहत मिली।

एडिटर गिल्ड भी नज़रअंदाज़

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हो रहे हमलों और कार्यवाहीयों  पर एक पत्र पिछले वर्ष “एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया” ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजा था। गिल्ड ने मुख्यमंत्री से पत्रकारों की सुरक्षा और अधिकरों को लेकर मिलने के लिए समय भी माँगा था। लेकिन गिल्ड के सचिव संजय कपूर ने “न्यूज़क्लिक” को बताया कि मुख्यमंत्री द्वारा आज तक न पत्र का जवाब भेजा गया और न पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल को मिलने का समय दिया है।

 उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी जो कई दशकों तक बीबीसी (हिन्दी) के लिए बतौर ब्यूरो चीफ़ काम कर चुके हैं, ने मौजूदा हालात पर एक इंटरव्यू में कहा था “पहले मफ़ियाओं और भ्रष्टाचारयों के ख़िलाफ़ लिखने वाले पत्रकारों को सरकार से संरक्षण मिलता था- लेकिन अब सही ख़बर लिखने व दिखाने लिखने वाले पत्रकारों को, स्वयं को सरकार के शिकंजे से बचाना पड़ता है।”

प्रेस की स्वतंत्रा के लिए आवाज़ उठायें

वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि मौजूदा 04-05 साल में सरकार पत्रकार और पत्रकरिता दोनो को दबाव में लेने की पूरी कोशिश कर रही है। पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रदीप कपूर मानते हैं, कि सरकार और अधिकारियों के हौसले इतने इसलिए बढ़ गए हैं, क्यूँकि पत्रकार संगठन ख़ामोश बैठे हैं। 

उनका कहना है कि जिस तरह उत्तर प्रदेश में पत्रकारों का उत्पीड़न किया जा रहा है, उस पर एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया और प्रेस काउन्सिल ऑफ़ इंडिया को एक साथ खड़े होकर पत्रकारों की सुरक्षा और अधिकरों को सुनिश्चित करना होगा।

प्रदीप कपूर कहते हैं प्रेस को जिस तरह से कुचलने की कोशिश हो रही है, यह लोकतंत्र के लिए शुभ संदेश नहीं है। राष्ट्रीय, प्रादेशिक व ज़िला सभी पत्रकार संगठन एक साथ मिलकर,पत्रकारों और पत्रकारिता को बचाने के लिए आवाज़ उठायें, तभी प्रेस की स्वतंत्रा को बचाया जा सकता है।

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